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यदि रेल गाड़ी ऐसे चलती तो कितना अच्छा होता!

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     बहुत दिनों से मन में इच्छा जगते रहती थी कि काश! रेल गाड़ी ऐसे चलती तो कितना अच्छा होता! इच्छायें तो मन में आती हैं; फिर यह सोचकर दब जाती हैं कि मेरे सोचने से क्या होगा। कई बार तो हटिया-पटना एक्सप्रेस ट्रेन में जब सुबह में जहानाबाद से काफी बड़ी संख्या में अनपेक्षित यात्री स्लीपर क्लास में चढ़ जाते हैं. पता चलता है कि अधिकांश यात्री मज़बूरी में और कुछ तो मनशोखी में ट्रेन चढ़ जाते हैं. आरक्षित यात्रियों को अब अपना बर्थ का अधिकार छोड़ना पड़ता है. कुछ देर के बाद अनपेक्षित यात्री बर्थ पर बैठकर अपना उसपर अपना अधिकार भी ज़माने लगते हैं.      यात्री प्रायः मध्यम या अधिक दूरी के यात्रा में व्यवधान नहीं चाहते हैं. इसी कारण आरक्षित यात्री दिन में लोकल यात्रियों का प्रतिरोध नहीं करते। जब यह ट्रेन आदतन छोटे स्टेशनों पर या बाहरी सिग्नल पर रुकते चलती है तब लोकल यात्रियों में रेल परिचालन से संबंधित खूब बहस होती है. कभी-कभी तो यह बहस काफी तार्किक और ज्ञानवर्धक होती है. उन्ही बहसों में से कुछ निम्न बिन्दु उल्लेखनीय लगते हैं-- (1). 13329 धनबाद-पटना गंगा-दामोदर एक्सप्रेस प्रतिदिन धनबाद से 23:10 बजे खुलकर 2