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Showing posts from November, 2016

हमारे तीर्थ-स्थान और वहाँ पल रहे कुछ पाखण्ड!

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     काफी दिन पहले सम्भवतः नब्बे के दशक  के मध्य में मुझे जगन्नाथ पुरी की यात्रा करने का सुअवसर मिला था. भगवान जगन्नाथजी के दर्शन और पूरे परिसर के पूजा के अन्तिम चरण में मैं एक पीपल गाछ के पास गया. वहाँ बैठे एक पंडीजी ने पूजा कराया और अन्त में उन्होंने बताया कि इस पीपल के तना पर हिन्दू धर्म के सभी तेंतीस करोड़ देवी-देवताओं के नाम पर एक पैसा का लोग कच्चा सूत का धागा बंधवाते हैं और मेरी पत्नी को ऐसा करने हेतु संकल्प करने का निर्देश दिया। मैं समझ गया कि इसमें तेंतीस लाख रुपये का खर्च होने वाला है जो मेरी आर्थिक स्थिति में दूर-दूर तक नहीं समां रही थी. मैं झूठ भी नहीं बोलना चाहता था. अतः मैं उसे विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिया। उसके बाद वह पंडीजी मेरी पत्नी के तरफ देखने लगे. इस बात को मेरी पत्नी समझ नहीं सकीं और कुछ मौन तना-तनी भी हो गयी. उसके बाद मैं पूरे परिवार के साथ घर लौट तो आया लेकिन काफी दिनों तक घर से शान्ति गायब रही. मैं तो यह समझ रहा था कि जगन्नाथपुरी की यात्रा से घर में सुख-शान्ति और समृद्धि आयेगी और हुआ मेरे घर में उल्टा।      कुछ सालोँ के बाद मैंने अपनी परेशानी कुछ जानकार और

अधूरी पनबिजली सह सिंचाई परियोजना और पर्यावरण

    हम बड़े-बड़े सपने देखते हैं, बड़ा सोचते हैं, बड़ी-बड़ी बाते करते हैं, बड़ी-बड़ी योजनायें भी बनाते हैं लेकिन उन्हें शायद ही पूर्णता तक पंहुचा पाते हैं. जब पटना का गाँधी सेतु बना तो इसके बारे में काफी बड़ी-बड़ी बातें कही गयीं, लेकिन दुःख के साथ कहना है कि एक सौ वर्ष की आयु वाला यह नामी-गिरामी पुल मात्र तेईस साल में ही बूढ़ा हो गया. यह हमारी कमजोर कार्य संस्कृति को दर्शाता है. हमारी सरकार ने कई बड़ी-बड़ी पनबिजली योजनायें बनायीं और कई को पूरा भी किया गया तथा कई योजनायें तो करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी अधूरी ही रह गयीं। कोयल-कारो पनबिलजी बिजली योजना तो स्थानीय विरोध के कारण अरबों रुपये खर्च करने के बाद बन्द ही कर दी गयी. यहाँ मैं झारखण्ड के लातेहार जिला के दक्षिणी-पश्चिमी किनारे पर अवस्थित उत्तर कोयल नदी पर प्रस्तावित मण्डल सिंचाई सह पनबिजली परियोजना के बारे में उल्लेख करना चाहता हूँ. यह नदी गुमला जिला से निकल कर नेतरहाट पहाड़ नीचे से गुजरती हुई मण्डल और मेदनीनगर होते हुए हैदरनगर के पास नबीनगर के निर्माणाधीन दो बड़े ताप बिजली परियोजनाओं के पहले ही सोन नदी में मिल जाती है. पुनः सोन नदी पटना से कर

हमारे कानून की कुछ विसंगतियां?

1. मोटर दुर्घटना के मामले में जब किसी मनुष्य की मृत्यु होती है तब धारा 279/304A भारतीय दण्ड विधान के अन्तर्गत तीन साल के अधिकतम सजा का प्रावधान है जब कि यदि किसी मोटर दुर्घटना में किसी पालतू कुत्ता या कोई अधिसूचित जानवर मर जाय तो धारा 279/429 भारतीय दण्ड विधान के अन्तर्गत अधिकतम पाँच वर्ष की सजा का प्रावधान बनाया गया है.      यानि हमारा कानून मनुष्य को पालतू कुत्तों से भी कम महत्व देता है. यह भेदभाव हमारी आज़ादी पर एक बदनुमा धब्बा लगता है. मानते हैं की आज़ादी के पूर्व अंग्रेजों या राजाओं के पास मोटर गाड़ियां थीं और कुत्तों के पालने का शौक उन्ही लोगों का था, आज़ादी के बाद अब हम किस मुंह से कह सकते हैं कि कानून सबके लिये बराबर होता है. 2. जेल से या पुलिस/न्यायिक कस्टडी से कोई व्यक्ति भाग जाय या उसे कोई आपराधिक मंशा से भगा दे तो धारा 224 या 225 भारतीय दण्ड विधान के अन्तर्गत जो सजा का प्रावधान है वह जमानती है भले ही भागने वाला व्यक्ति किसी राष्ट्रद्रोह या जघन्य अपराध का आरोपी या दोषी हो. 3. अगर किसी कारणवश ऐसे मोटर-दुर्घटना में जिसमे किसी मनुष्य की मृत्यु हुई हो, तीन वर्ष के अन्दर पुलिस