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Showing posts from 2016

हमारे तीर्थ-स्थान और वहाँ पल रहे कुछ पाखण्ड!

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     काफी दिन पहले सम्भवतः नब्बे के दशक  के मध्य में मुझे जगन्नाथ पुरी की यात्रा करने का सुअवसर मिला था. भगवान जगन्नाथजी के दर्शन और पूरे परिसर के पूजा के अन्तिम चरण में मैं एक पीपल गाछ के पास गया. वहाँ बैठे एक पंडीजी ने पूजा कराया और अन्त में उन्होंने बताया कि इस पीपल के तना पर हिन्दू धर्म के सभी तेंतीस करोड़ देवी-देवताओं के नाम पर एक पैसा का लोग कच्चा सूत का धागा बंधवाते हैं और मेरी पत्नी को ऐसा करने हेतु संकल्प करने का निर्देश दिया। मैं समझ गया कि इसमें तेंतीस लाख रुपये का खर्च होने वाला है जो मेरी आर्थिक स्थिति में दूर-दूर तक नहीं समां रही थी. मैं झूठ भी नहीं बोलना चाहता था. अतः मैं उसे विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिया। उसके बाद वह पंडीजी मेरी पत्नी के तरफ देखने लगे. इस बात को मेरी पत्नी समझ नहीं सकीं और कुछ मौन तना-तनी भी हो गयी. उसके बाद मैं पूरे परिवार के साथ घर लौट तो आया लेकिन काफी दिनों तक घर से शान्ति गायब रही. मैं तो यह समझ रहा था कि जगन्नाथपुरी की यात्रा से घर में सुख-शान्ति और समृद्धि आयेगी और हुआ मेरे घर में उल्टा।      कुछ सालोँ के बाद मैंने अपनी परेशानी कुछ जानकार और

अधूरी पनबिजली सह सिंचाई परियोजना और पर्यावरण

    हम बड़े-बड़े सपने देखते हैं, बड़ा सोचते हैं, बड़ी-बड़ी बाते करते हैं, बड़ी-बड़ी योजनायें भी बनाते हैं लेकिन उन्हें शायद ही पूर्णता तक पंहुचा पाते हैं. जब पटना का गाँधी सेतु बना तो इसके बारे में काफी बड़ी-बड़ी बातें कही गयीं, लेकिन दुःख के साथ कहना है कि एक सौ वर्ष की आयु वाला यह नामी-गिरामी पुल मात्र तेईस साल में ही बूढ़ा हो गया. यह हमारी कमजोर कार्य संस्कृति को दर्शाता है. हमारी सरकार ने कई बड़ी-बड़ी पनबिजली योजनायें बनायीं और कई को पूरा भी किया गया तथा कई योजनायें तो करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी अधूरी ही रह गयीं। कोयल-कारो पनबिलजी बिजली योजना तो स्थानीय विरोध के कारण अरबों रुपये खर्च करने के बाद बन्द ही कर दी गयी. यहाँ मैं झारखण्ड के लातेहार जिला के दक्षिणी-पश्चिमी किनारे पर अवस्थित उत्तर कोयल नदी पर प्रस्तावित मण्डल सिंचाई सह पनबिजली परियोजना के बारे में उल्लेख करना चाहता हूँ. यह नदी गुमला जिला से निकल कर नेतरहाट पहाड़ नीचे से गुजरती हुई मण्डल और मेदनीनगर होते हुए हैदरनगर के पास नबीनगर के निर्माणाधीन दो बड़े ताप बिजली परियोजनाओं के पहले ही सोन नदी में मिल जाती है. पुनः सोन नदी पटना से कर

हमारे कानून की कुछ विसंगतियां?

1. मोटर दुर्घटना के मामले में जब किसी मनुष्य की मृत्यु होती है तब धारा 279/304A भारतीय दण्ड विधान के अन्तर्गत तीन साल के अधिकतम सजा का प्रावधान है जब कि यदि किसी मोटर दुर्घटना में किसी पालतू कुत्ता या कोई अधिसूचित जानवर मर जाय तो धारा 279/429 भारतीय दण्ड विधान के अन्तर्गत अधिकतम पाँच वर्ष की सजा का प्रावधान बनाया गया है.      यानि हमारा कानून मनुष्य को पालतू कुत्तों से भी कम महत्व देता है. यह भेदभाव हमारी आज़ादी पर एक बदनुमा धब्बा लगता है. मानते हैं की आज़ादी के पूर्व अंग्रेजों या राजाओं के पास मोटर गाड़ियां थीं और कुत्तों के पालने का शौक उन्ही लोगों का था, आज़ादी के बाद अब हम किस मुंह से कह सकते हैं कि कानून सबके लिये बराबर होता है. 2. जेल से या पुलिस/न्यायिक कस्टडी से कोई व्यक्ति भाग जाय या उसे कोई आपराधिक मंशा से भगा दे तो धारा 224 या 225 भारतीय दण्ड विधान के अन्तर्गत जो सजा का प्रावधान है वह जमानती है भले ही भागने वाला व्यक्ति किसी राष्ट्रद्रोह या जघन्य अपराध का आरोपी या दोषी हो. 3. अगर किसी कारणवश ऐसे मोटर-दुर्घटना में जिसमे किसी मनुष्य की मृत्यु हुई हो, तीन वर्ष के अन्दर पुलिस

एक बेरोजगार की भीष्म-प्रतिज्ञा!

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     एक गाँव के एक लड़का को नौकरी मिलते-मिलते रह जाती थी। उसके पिता किसी निजी कम्पनी में उसे छोटा-मोटा काम भी नहीं करने देते थे; खानदान के इज़्ज़त का जो सवाल था। नौकरी नहीं मिलने के लिये वह लड़का अपने किस्मत को दोष देता जबकि उसके पिता आरक्षण को।      एक दिन वह लड़का एक लैपटॉप की मांग अपने पिता से कर बैठा। उसके दहेज़ लोभी पिता ने उसे समझाया कि लैपटॉप उसकी शादी में दहेज़ में मिल जायेगा। इस पर वह लड़का भड़क गया। उस लड़के ने गुस्से में आकर एक भीष्म-प्रतिज्ञा कर डाली कि जब तक हमारे नेताजी प्रधान मन्त्री नहीं बन जाते तब तक वह शादी नहीं करेगा। उसने सबको बताया कि नेताजी के प्रधान मन्त्री बन जाने से सब बेरोजगारों को एक-एक स्मार्ट फोन मिल जायेगा और सभी को नौकरी भी मिल जायेगी। इस तरह देश की सभी समस्यायों का समाधान हो जायेगा।      वह लड़का अब नेता बन गया और अपनी भीष्म-प्रतिज्ञा को पूरी करने में जुट गया। एक व्यक्ति अपनी उम्र की सीमा पार करने पर भी बेरोजगार रह गया था. उसने नये नेताजी से पूछ ही लिया। क्या कश्मीर और चीन समस्या का भी समाधान हो जायेगा? क्या महंगाई भी कम हो जायेगी? उस नये नेता ने बताया कि वह अप

एलएमपी(Legal Medical Practitioner) और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवायें।

     बहुत ज्यादा दिन की बात नहीं है करीब तीस-चालीस साल पहले ग्रामीण इलाकों के बाज़ारों में कोई न कोई डॉक्टर साहेब रहते थे. वे सभी डॉक्टर दरभंगा या कलकत्ता के मेडिकल स्कूलों से पढ़े होते थे.     पिछली शताब्दी के सत्तर के दशक से अपने देश में खासकर BIMARU राज्यों में शहरीकरण की गति बढ़ने लगी. उस समय तक बिहार में पटना, राँची और दरभंगा में मेडिकल कॉलेज थे लेकिन वहाँ से लगभग तीन सौ डॉक्टर हर साल निकलते थे और सब के सब शहरों में ही खपने लगे. ग्रामीण इलाकों में भी प्रत्येक प्रखण्ड में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र(PHC) और सहायक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र(APHC) की स्थापना हुई और वहाँ चिकित्सक जाकर अपनी अच्छी सेवा भी देने लगे.     जब से मेडिकल की पढाई का निजीकरण हुआ तब से ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा में कमी आने लगी. धीरे-धीरे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र(PHC) और सहायक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र(APHC) से चिकित्सक गायब होने लगे. सरकार ने चिकित्सकों को ग्रामीण क्षेत्रों में भेजने के कई प्रयास किये लेकिन वांछित सफलता नहीं मिली। इसका मुख्य कारण ग्रामीण इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव रहा. अब तो प्रायः वे ही

राजनैतिक चंदा और धूर्त व्यापारी।

     लगभग चालीस वर्ष पहले की बात है. एक स्थान पर कुछ साधु बाबा लोगों का प्रवचन चल रहा था. प्रवचन सुनकर आये लोग बाबा की कही गयी बातों का खूब बखान और तारीफ कर रहे थे. मेरी भी उत्सुकता प्रवचन सुनने की बढ़ने लगी . समय निकाल कर एक दिन मैं भी बाबा के पास पँहुच गया. प्रवचन सुनने वालों की भीड़ लगभग सौ से पार कर गयी थी; बैठने की जगह कोई गुंजाइस नहीं थी. उस दिन के प्रवचन का विषय था- "व्यवसाय में नैतिकता". मैंने देखा कि भीड़ धीरे-धीरे खिसक रही है; लोग तरह-तरह के बहाने बनाकर जा रहे थे. लगभग पन्द्रह मिनट में ही भीड़ सिकुड़ कर बीस-बाइस लोगों की रह गयी थी थी. बचे हुए लोग गम्भीर श्रोता लग रहे थे. उन्ही लोगों में प्रवचन के व्यवस्थापक मण्डली के लोग भी थे.      प्रवचन देने वाले बाबा भी क्षीण हो गयी भीड़ का कारण समझ रहे थे और मुस्कुरा भी रहे थे. बाबा बताने लगे कि वे कल श्रोताओं के बीच में बैठे थे और भीड़ एक घण्टे के अन्त तक डटी रही थी. कल के प्रवचन का विषय था- "परेशानी और उनका धार्मिक निदान" और कल के प्रायः सभी श्रोता सन्तुष्ट होकर प्रवचन स्थल से अपने घरों को गये थे. बाबा इस बात से तनिक भी

काश, युद्ध कम से कम एक साल के लिये और टल जाता!

    अभी प्रायः सभी मोर्चों पर हमारी प्रगति अच्छी हो रही है और उम्मीद है कि प्रगति की रफ़्तार और बढ़ेगी।काश, युद्ध एक साल और टल जाता। तब हमारे पास काम भर बराक-8, तेजस, ब्रह्मोस, अरिहन्त, धनुष और कई प्रकार के मिसाइलें आदि होते तथा करीब एक माह तक कारगर युद्ध लड़ने लायक पर्याप्त मात्रा में गोला-बारूद  और पेट्रोलियम उत्पाद भी हो जाते; कुछ परजीवी और पाकिस्तान परस्त मीडिया कर्मी और सिने कर्मी भी कम होते; पाकिस्तानी जासूसों के संरक्षण देने वाले भी कम होते; आवश्यक वस्तुओं का उचित भण्डारण भी पूरे देश में होता।     हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि हमारे देश के अन्दर भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो हमारे दुश्मन को कई तरह से मदद करते रहते हैं. हम प्रॉक्सी वॉर भी बहुत दिनों से झेल रहे हैं. हमारे देश के कथित सेकुलरिस्ट हमारे ही लोगों को सरकार के विरुद्ध भड़काते रहते हैं. हमें उग्रवाद और अलगाववाद भी झेलने पद रहे हैं. अंदरूनी दुश्मन से निपटने हेतु हमें अपने आपराधिक न्याय प्रणाली को समय के अनुसार और मजबूत बनाते रहना होगा। इन सब के लिये हमारे देश को कुछ और समय चाहिये।     यह भी हो सकता है कि तबतक बलुचिस्तानी भी

किसानों की कुछ ध्यान देने योग्य समस्यायें.....

हालांकि यूरिया की उपलब्धता और E-NAM के चालू होने से किसानों में ख़ुशी की लहर है, फिर भी किसान काफी समस्यायों से चिन्तित रहते हैं। कुछ समस्यायें और उनके निदान की चाहत निम्न प्रकार की हैं:- 1. सिंचित क्षेत्र के किसानों की मुख्य समस्या उनके फसल का उचित मूल्य नहीं मिलना है। बड़ी उम्मीद के साथ सरकार से किसान इस ओर टकटकी लगाये हुए हैं। 2. असिंचित क्षेत्र के किसान उम्मीद लगाये हुए हैं कि वर्षों लम्बित पड़ी योजनायें ही पूरी कर दी जायें तो किसानों की आमदनी बढ़ जायेगी। 3. किसान कम फसल से ज्यादा परेशान अधिक फसल हो जाने पर हो जाता है क्योंकि तब फसल का बाजार मूल्य काफी गिर जाता है। 4. फसल बीमा में नीलगाय, हाथी, बन्दर आदि जानवरों से हुए नुकसान को शामिल नहीं किया गया है। किसान चाहते हैं कि ऐसे नुकसान को भी बीमा योजना में शामिल किया जाये। 5. बहुत से किसान चाहते हैं कि गेहूं, धान, तिलहन, दाल आदि के भण्डारण क्षमता को बढ़ाया जाये ताकि उनके फसल बाजार में आने पर उनका मूल्य ज्यादा न गिरे। 6. आलू और प्याज के भण्डारण हेतु उचित मात्रा में कोल्ड स्टोरेज बनाया जाये। 7. जब खाद्यान्न और खाद्य तेलों की कमी ह

जंगल में मोर नाचा; किसने देखा?

     बहुत से लोग अच्छा वेतन छोड़कर कम वेतनमान में सरकारी नौकरियों में योगदान करते रहे हैं। सबके अपने-अपने तर्क हैं। एक ने बड़ा ही अजीब तर्क दिया। उसका तर्क था- "जंगल में मोर नाचा; किसने देखा?". इस तरह के अनेकों तर्क सुने जाते रहे हैं. उन्ही तर्कों के आधार पर यह ब्लॉग प्रस्तुत किया जा रहा है.      भले ही गैर प्रशासनिक पदधारियों का वेतन ज़्यादा हो, लेकिन छोटे बड़े सभी प्रशासनिक पदधारियों को उनके नौकरी कार्य-काल में ऊपरी कमाई के मौके(Scope) ज्यादा मिलते हैं.       छोटे बड़े सभी प्रशासनिक पदधारियों को सरकारी गाड़ी, बंगला, ड्राइवर, नौकर-चाकर आदि की सुविधा गैर-प्रशासनिक पदधारियों की तुलना में बहुत ज्यादा है.       प्रायः लोगों के माता-पिता को गैर-प्रशासनिक पदधारियों के माता-पिता को की तुलना में सस्ते में या कभी-कभी मुफ्त में चिकत्सीय सहायता उब्लब्ध हो जाता है. इसलिये भी माता-पिता अपने बच्चों को प्रशासनिक पदों पर भेजना पसन्द करते हैं. क्या कुछ मामलों में यह सही नहीं है कि नौकरी पा जानेवाले अपने मातापिता से ज्यादा ध्यान अपने कुत्तों पर देते हैं?       छोटे-बड़े प्रशासनिक पदों पर ब

"Late, thin and a few" की नीति को अपना कर भी जन-संख्या नियंत्रित की जा सकती है।

     अपने देश में जितने संसाधन पैदा किये जा रहे हैं उससे अधिक गति से हमारी जन-संख्या बढ़ रही है। हमारी जन-संख्या बांग्लादेश और म्यनमार के शरणार्थी भी बढ़ा रहे हैं. औद्योगीकरण का प्रभाव भी हमारी जन-संख्या पर पड़ रहा है। आज हर जगह स्वचालन(Automation) का प्रचलन बढ़ रहा है। दुनिया में रोबोट की संख्या हमारी जन-संख्या वृद्धि से लगभग दस गुना की तेजी से बढ़ रही है। ये दोनों मिलकर जहाँ दस रोजगार पैदा कर रहे हैं वहीँ दूसरी और बारह रोजगार समाप्त कर रहे हैं। यह सुनने में  भले ही अटपटा और काल्पनिक लगे लेकिन इतना तो कटु सत्य है कि स्वचालन और रोबोट से जितने रोजगार पैदा हो रहे हैं उससे ज्यादा रोजगार छीने जा रहे हैं। परम्परागत रोजगार में अवसर कम हो रहे हैं:-  पहले रेलवे में सभी टिकट हाथ से ही काटे जाते थे. आज हालत ऐसी हो गयी है कि 65% से ऊपर बर्थ और चेयर कार में टिकट ऑनलाइन कटाये जा रहे हैं. UTS प्रणाली से सामान्य टिकट भी कटने लगे हैं और इन सेवाओं का तीव्र गति से विस्तार हो रहा है. यह एक छोटा सा उदहारण है. पाठकगण यदि थोड़ा इस पर चिन्तन करेंगे तो उन्हों दर्जनों इस तरह के उद्धरण मिल जायेंगे जहाँ बाजार में ट