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Showing posts from July, 2014

धार्मिक उन्माद मानवता के विरुद्ध एक अपराध है!

      1953 में पश्चिमी देशों की कम्पनियों ने अरब देशों में कच्चे तेल खोज कर व्यावसायिक रूप से काफी लाभदायक बना दिया। इससे अरब देशों में बेशुमार दौलत आने लगी. शासक वर्ग अपने शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिये धर्म का सहारा लेने लगे. आधुनिक इतिहास में धर्म का दुरूपयोग यहीं से शुरू होता है. इसके पहले नेपोलियन ने सफलता पूर्वक धर्म को राजनीति से अलग किया था. उसके राज के इस काल खण्ड में फ्रांस में विकास भी अधिक हुआ था. वहां की लड़कियों और महिलाओं को अधिकतर अधिकार उसी काल-खण्ड में मिले थे.        अस्सी के दशक में सोवियत सैनिकों को अफगानिस्तान से भगाने के लिये भी धर्म का सहारा लिया गया था. इसके लिये अफगानिस्तान की सीमा पर बड़े पैमाने पर मदरसे खोले गये थे. इन मदरसों में प्रारम्भिक शिक्षा के साथ-साथ जिहाद(दूसरे धर्म के लोगों के विरुद्ध युद्ध) की भी शिक्षा दी जाने लगी. उन क्षेत्रों में ईश-निन्दा कानून पहले से ही लागू था, लेकिन आपराधिक न्याय प्रणाली कमजोर होने के कारण प्रायः पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता था और ईश-निन्दा के आरोपियों को प्रायः मृत्यु-दण्ड दिया जाता. सोवियत सैनिकों और उनके साम्यवा

सुने-सुनाये चुटकुले जो जीवन की कुछ सच्चाई दर्शाते हों

बहुतों ने इन चुटकलों को जरूर सुना होगा, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होंगे जो जिनको इन्हे सुनने का मौका ही नहीं मिला। इन्ही लोगों के लिये ये चुटकुले यहाँ प्रस्तुत है:- 1. जब भगवान ने सभी प्राणियों का सृजन किया तो प्रायः बड़े प्राणियों की उम्र पच्चीस वर्ष निर्धारित कर दी तथा उनके कार्यों का निर्धारण भी कर दिया। एक युग बाद भगवानजी को लगा कि कुछ प्राणियों से पूछ लिया जाय कि वे उम्र निर्धारण से सन्तुष्ट हैं या नहीं।     सबसे पहले घोड़ा को बुलाया गया और उनका मन्तव्य इस सम्बन्ध में पूछा गया. घोड़ा ने अदब से जवाब दिया और बोला कि उसे आदमी को बैठाकर दौड़ते हुए उसे ढोना पड़ता है या सामान को खींचना पड़ता है.  इसलिये वह पच्चीस वर्ष के उम्र से सन्तुष्ट नहीं है. उसने भगवानजी से प्रार्थना की कि इनका उम्र दस वर्ष कम कर दी जाय.     इसके बाद बैल को बुलाया गया. उसने बताया कि भले ही उसे धीरे-धीरे बोझ ढोना पड़ता है और बिना मतलब के गाड़ीवान या व्यापारी पीटते रहता है. साथ ही बैल ने यह भी शिकायत की कि हलवाहा हल जोतते समय अपने भी पसीने-पसीने होते रहता है और अपना खीझ मिटाते हुए अनावश्यक रूप से अरउआ से मारते रहता है. इतने ज

किरासन तेल, सौर ऊर्जा उत्पादों और मध्याह्न भोजन का पैसा सीधे लाभुक को दिया जाता तो उन्हें ज्यादा लाभ होता!

    पुराने ज़माने में लोग रौशनी के लिए करंज, रेंड़ी, महुआ, अलसी आदि तेलों का उपयोग अपने घरों में ढिबरी या दीपक जलाने में करते थे. यूरोप वाले इसके लिये अपने लैम्पों में जानवरों विशेषकर ह्वेल की चर्बी का उपयोग करते थे. कहा तो यह भी जाता है कि यदि किरासन तेल का अविष्कार समय पर नहीं होता तो इंसान अपनी सुविधा हेतु आख़िरी ह्वेल को भी मार देता।            अक्सर पेट्रोल/डीजल में किरासन तेल मिलाकर बेंचने  का समाचार कई सालों से मिलता रहा है. एक बार इंडियन आयल का एक बहादुर और कर्तव्य परायण अधिकारी मंजु नाथ ने एक पेट्रोल पम्प पर मिलावट की जाँच करने की धृष्टता की थी. ताकतवर मिलावटखोरों ने तो मंजु नाथ की जान ही ले ली थी.     पेट्रोल/डीजल में किरासन तेल मिलावट से गाड़ियों के इंजन पर ज्यादा भार पड़ता है और इसके चलते गाड़ियाँ ज्यादा ख़राब हो रहीं हैं. परिणामस्वरूप वाहन मालिकों को अपना बहुमूल्य समय वाहन मिस्त्रियों के यहाँ बिताना पड़ता है और उनके वाहनों के रख-रखाव पर ज्यादा खर्चा आ रहा है.     इसी तरह मध्याह्न भोजन खाकर बिमार पड़ने का समाचार मीडिया में आये दिन आते रहता है. एक बार तो मध्याह्न भोजन खाकर बिहार