किरासन तेल, सौर ऊर्जा उत्पादों और मध्याह्न भोजन का पैसा सीधे लाभुक को दिया जाता तो उन्हें ज्यादा लाभ होता!

    पुराने ज़माने में लोग रौशनी के लिए करंज, रेंड़ी, महुआ, अलसी आदि तेलों का उपयोग अपने घरों में ढिबरी या दीपक जलाने में करते थे. यूरोप वाले इसके लिये अपने लैम्पों में जानवरों विशेषकर ह्वेल की चर्बी का उपयोग करते थे. कहा तो यह भी जाता है कि यदि किरासन तेल का अविष्कार समय पर नहीं होता तो इंसान अपनी सुविधा हेतु आख़िरी ह्वेल को भी मार देता।       
    अक्सर पेट्रोल/डीजल में किरासन तेल मिलाकर बेंचने  का समाचार कई सालों से मिलता रहा है. एक बार इंडियन आयल का एक बहादुर और कर्तव्य परायण अधिकारी मंजु नाथ ने एक पेट्रोल पम्प पर मिलावट की जाँच करने की धृष्टता की थी. ताकतवर मिलावटखोरों ने तो मंजु नाथ की जान ही ले ली थी.
    पेट्रोल/डीजल में किरासन तेल मिलावट से गाड़ियों के इंजन पर ज्यादा भार पड़ता है और इसके चलते गाड़ियाँ ज्यादा ख़राब हो रहीं हैं. परिणामस्वरूप वाहन मालिकों को अपना बहुमूल्य समय वाहन मिस्त्रियों के यहाँ बिताना पड़ता है और उनके वाहनों के रख-रखाव पर ज्यादा खर्चा आ रहा है.
    इसी तरह मध्याह्न भोजन खाकर बिमार पड़ने का समाचार मीडिया में आये दिन आते रहता है. एक बार तो मध्याह्न भोजन खाकर बिहार में बहुत से नौनिहाल असमय ही काल के गाल में समा गये. इस घटना पर काफी शोर मचा और जमकर राजनीति हुई लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी किसी को कोई दण्ड नहीं मिला। बच्चे गरीब के थे इसलिये सीबीआई को जाँच का जिम्मा नहीं दिया गया और त्वरित न्याय हेतु विशेष अदालत का भी गठन नहीं हुआ.
    थोड़ा सा खाते-पीते घरों के बच्चे मध्याह्न भोजन योजना का खाना नहीं खाते हैं. वर्ष 2010-11 में साढ़े तेरह रुपये प्रति बच्चा इस योजना में सरकार से मिलता था. पैसे की लालच में निचले सरकारी स्कूलों के अध्यापक और अभिभावक समिति के लोग मिलकर बच्चों का फर्जी नामांकन भी करा लेते हैं. इस योजना से उत्कोच भी बढ़ रहा है.
    शायद राजीव गाँधी राजनीति में नौसिखुवे थे. सो बोल दिये थे कि गरीबों के लिये जितना पैसा केंद्र से भेजा जाता है उसका 15% ही लाभुक तक पँहुच पाता है. उसके बाद किसी नेता ने यह बताने की हिम्मत नहीं की कि अब कितना प्रतिशत पैसा लाभुक तक पँहुच रहा है.
    अभी भी पेट्रोल/डीजल में किरासन तेल की मिलावट पर चर्चा होते रहती है. मिलावट से बचने के लिये किरासन तेल को जन वितरण प्रणाली से मुक्त कर किरासन तेल से सबसिडी ख़त्म कर वर्तमान नियन्त्रित मूल्य और बाजार मूल्य के अन्तर का रकम सीधे लाभुकों के बैंक खाता में डाल दिया जाय. हो सकता है कि लाभुक सरकार से पैसा प्राप्त कर भी किरासन तेल नहीं खरीदें, लेकिन इससे उनकी कुछ गरीबी दूर होगी और पेट्रोल/डीजल में किरासन तेल की मिलावट लगभग समाप्त हो जाएगी। इससे वाहन मालिकों को भी काफी राहत मिलेगा।
    इधर कुछ दिनों से बिहार में सौर ऊर्जा उत्पादों के खरीद में भारी घोटाले के समाचार अख़बारों में प्रकाशित हो रहे हैं. यह परोक्ष अनुदान दिये जाने का परिणाम है. एक ओर जहाँ परोक्ष अनुदान से कुछ कम्पनियों, दुकानदारों और विचौलियों को तो भारी लाभ हो रहा है, वहीँ दूसरी ओर लाभार्थियों को क्षणिक लाभ ही हो रहा है. परोक्ष अनुदान प्रतिस्पर्द्धा को भी कुंठित कर रहा है. यदि सौर ऊर्जा के अनुदान को सीधे लाभार्थियों के खाते में जमा करा दिये जाएँ तो निश्चित रूप से स्वस्थ  प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी और लाभार्थी अच्छी गुणवत्ता वाले सोलर प्लेट, बैटरी, चार्ज कंट्रोलर आदि खरीद पायेंगे। इससे हमारे ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा रौशन होंगे।
    बच्चों के मध्याह्न भोजन खाकर बिमार पड़ने की ख़बरों से स्पष्ट है की गरीबों के नाम पर चलायी जा रही सरकारी योजनाओं से गरीबों से ज्यादा विचौलिये मालामाल हो रहे हैं. इन योजनाओं से सम्बद्ध कर्मचारी/अधिकारी और कुछ अन्य लोग भी लाभान्वित हो रहे हैं. क्या यह अच्छा नहीं होता की इन योजनाओं का पैसा सीधे लाभुक को दे दिया जाता। हो सके तो मात्र शनिवार के मध्याह्न भोजन का पैसा सीधे बच्चों के अभिभावक के जन-धन खाते में सीधे डाल दिया। इससे जन-धन खातों की क्रियाशीलता भी बढ़ेगी।
     अगर ऐसा होता तो शायद बहुत से गरीब अबतक गरीबी रेखा की परिधि से बाहर आ गये होते। अगर इस मद के पैसे जो 2010 में तेरह रु. प्रति बच्चा मिलता था, को सीधे लाभुक को दे दिया जाय तो निश्चित रूप से अविभावक अपने बच्चों को लन्च बॉक्स के साथ स्कूल भेजेंगे। आज करीब दस करोड़ बच्चे इस योजना के अन्तर्गत आते हैं. उस समय बहुत ख़राब लगता है जब दोपहर में घण्टी बजने के पहले ही कुछ गरीब बच्चे देहात के स्कूलों में कटोरा लेकर भिखमंगा की तरह अपने स्कूल में पहुँच कर भोजन का इन्तजार करते हैं. यह योजना गरीब बच्चों को संस्कारहीन भी बना रहा है. प्रायोगिक रूप से भी कुछ समय के लिये इस सुझाव को कुछ जिलों में आजमाया जाना चाहिये।
     यह सुझाव विशेषकर वैसे इलाके जैसे बिहार का पुराना आरा जिला के इलाकों में ज्यादा उपयोगी हो सकता है. क्योंकि इस इलाके के गरीब लोग भी गिर-गिराकर सरकारी सुविधा प्राप्त करना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं. इन तीनों योजनाओं को आधार कार्ड से जोड़ कर लाभुकों को सीधे उनके बैंक खाते में दाल दिया तो निश्चित रूप से सरकारी खजाना और लाभुक दोनों को लाभ होगा।

https://twitter.com/BishwaNathSingh
Readers Comments through Twitter.
1. anand vardhan @anandvarhan on 04.01.2015 "Fair Price Shops should be closed; subsidy shud be given directly".
2. anand vardhan @anandvarhan on 04.01.2015 "I am from Balia, UP. Fair Price Shop's next door. The owner blacks the goods at night. Guess who benefits?"
3.  on 07.01.2015    
"किरासन तेल का अनुदान सीधे देने के कई फायदे हैं।लाभुक को रकम पहुंचेगी।सरकार का पैसा बचेगा। मिलावट खत्म होगी।"




Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

मानकी-मुण्डा व्यवस्था और Wilkinson Rule

एक दादा का अपनी पोती के नाम पत्र

बिहार के पिछड़ेपन के कुछ छिपे कारण!