एक दादा का अपनी पोती के नाम पत्र

मेरी स्नेहमयी पोती वर्णिका!
                                                                                राँची,
शुभ आशीर्वाद,
    मेरे गाँव में एक बाबा थे। उनका घर स्कूल जाने के रास्ते में पड़ता था। वे हम सहपाठियों में से किसी न किसी को उसके व्यवहार या आचरण में कमी पाकर उससे उसके दादा का नाम पूछ लेते। एक-दो दिन बाद ही उनकी शिकायत गलती करनेवाले सह पाठी के दादा के पास पँहुच जाती। उनका कहना था कि बच्चों में संस्कार देने की जवाबदेही उसके दादा की होती है।
    वे कभी हम सहपाठियों को डांटते नहीं थे, बल्कि कभी-कभी सीजन में आम या अमरुद खिला देते थे। कुछ ही महीनों में वे बाबा हम लोगों को अच्छे लगने लगे थे। एक दिन मेरी भी गलती पकड़ी गयी। मेरी गलती यह थी कि उस दिन मैं बिना स्नान किये स्कूल जा रहा था। वे बाबा मेरे दादा का नाम पूछ बैठे। इसपर मेरे सभी सहपाठी हंस पड़े। उक्त बाबा और मैं भी सहपाठियों के हंसी का राज नहीं समझ पा रहा था। इसी उधेर-बुन में मैं उनके सवाल का जवाब देना भूल गया। उन्होंने अपना सवाल मुझसे फिर दुहराया।
मैंने तत्काल अपने दादा का नाम बता दिया। उनके हिसाब से मेरे नाम बताने में भी मैंने गलती कर दी थी। वे मुझे अपने पास बुलाये और बताये कि मृत लोगों के नाम के पहले स्वर्गीय लगाते हैं।

     मैं तीसरी कक्षा में पढ़ता था और मेरे दादा मुझे अबोध अवस्था में छोड़ कर तब परलोक सिधार गये थे जब मैं दो साल का भी नहीं हुआ था। मेरे पिताजी सेना में नौकरी करते थे। उन्हें मेरे लिये समय कम मिलता था। संयुक्त परिवार होने के कारण माँ को घर के काम-काज से ही फुरसत नहीं मिलती थी। स्कूल में भी गुरूजी इस तरह की सीख नहीं दे पाये थे। मैं चुप रहा और अपने सहपाठियों के साथ स्कूल चला गया।
    घर आकर मैंने सारी बातें अपनी माँ से बतायी। मेरी माँ ने भी उक्त बाबा की बातों को सही बताया और मुझसे कहा कि मैं उक्त बाबा का आदर करूँ तथा उन्हें देखते ही उनको हाथ जोड़कर और थोड़ा सर झुकाकर मैं उन्हें प्रणाम करूँ। अगले दिन मैं अपनी माँ के कहे अनुसार उनको प्रणाम किया। मेरे इस व्यवहार से वे बहुत खुश हुए। मैं धीरे-धीरे उन्ही बाबा को मैं अपने दादा के रूप में देखने लगा।

     मेरे कुछ समझदार होने पर मेरी माँ ने मुझे एक कहानी सुनायी थी। मेरे नाना का घर गंगा किनारे था। एक दिन मेरी नानी को लगा कि गंगा मैय्या जिस रफ़्तार से जमीनों का कटाव कर रही हैं, कुछ ही सालों में उनका घर सहित सब जमीन को अपने में समां लेंगी। एक दिन नानी ने सब परिवार को अपने आँगन में इकठ्ठा किया और मुख्य दरवाजा को अन्दर से बन्द कर सबके सामने अपना सब गहना एक खाट पर छितरा दिया। उन्होंने अपने उस समय सातवां क्लास में पढ़ने वाले पोते को आदेश दिया कि वह सभी गहना को लेकर चुपके से
कलकत्ता जाये और इन गहनों को धीरे-धीरे बेंचकर खूब पढ़कर और अच्छा इन्सान बनकर आये तथा पुरे परिवार को आगे बढ़ाये। कुछ देरी तक उनके परिवार के प्रायः सभी लोगों ने नानी की इस योजना का अपने-अपने तर्कों के साथ विरोध किया। अधिकतर सदस्यों ने मेरे उक्त ममेरे भाई का उम्र का हवाला देकर बताया कि वह इतनी बड़ी जवाबदेही उठाने के लायक नहीं है। नानी ने यह तर्क देकर कि उनके गहनों पर सिर्फ उनका ही हक है; जब वे ही इन गहनों को त्याग रही हैं; अपने नाबालिग पोते पर भरोसा कर रही हैं और उनको पूरा विश्वास है कि उनका पोता इस जवाबदेही को उठा लेगा; सबको शान्त कर दिया। कुछ ही दिनों में उनका पोता अपनी दादी का आदेश मानकर और उनका आशीर्वाद लेकर चुपके से कलकत्ता चला गया। मेरी नानी ने परिवार के सभी लोगों को कसम दिला दिया था कि बाहर में इस बात का पता नहीं लगना चाहिये; कोई पूछे तो बताना है कि रूठ कर वह घर से भाग गया है।
     मेरी माँ बताती थी कि वह अपने दरवाजे से शांत गंगा का मनोरम दृश्य निहारा करती थी । धीरे-धीरे समय बीतते गया। मेरे नाना जो गाँव के सबसे सम्पन्न किसान थे कटाव के कारण अपना खेत खोने लगे। कटाव के कारण मेरे नाना का प्रायः सब खेत गंगा में समा गया। मेरे नाना अब लगभग कंगाल हो चले थे। परिवार के सभी सदस्य ये ही कहते रहे कि आज गहना रहता तो उससे कुछ दिन और अच्छी तरह कट जाते। प्रायः सभी लोग मेरी नानी को कोसने लगे। किसी तरह मेरी माँ की शादी सेना के एक गरीब सिपाही से हो गयी। मेरी माँ की शादी के कुछ ही दिन बाद मेरे ममेरे भाई साहेब कलकत्ता से ओभरसियरी पास कर सरकारी नौकरी प्राप्त कर अपने घर पहुँचे। मेरी नानी तो ख़ुशी से नाचने लगी, लेकिन अन्य लोग झेंप गये. पुरानी समृद्धि तो नहीं आयी, लेकिन मेरे ननिहाल के लोगों की जिन्दगी पुनः पटरी पर लौट आयी.
 
    जो सामान जहाँ से उठाओ, उस सामान को वहीँ रखो. याद रहे हर सामान को रखने के लिये एक जगह नियत होनी चाहिये। किसी सामान को रखने में जितना कम समय लगाओगी, जरुरत पड़ने पर उसे खोजने में उतना ही ज्यादा समय लगेगा। प्रायः जो बच्चे रात को देर से सोते हैं, अपनी पढ़ाई में फिसड्डी होते हैं. अगर तुम आगे बढ़ना चाहती हो तो रात को जल्दी सो जाना और सुबह उठकर अपनी पढ़ाई की तैयारी करना।
    गिफ्ट लेने से मनुष्य परजीविता की ओर अग्रसर होने लगता है. इसलिए जहाँ तक हो सके किसी से गिफ्ट लेने से परहेज करना।
    किसी विषय को समझने के लिये उसके कुछ बातों को याद करना और कुछ बातों का निरन्तर अभ्यास करना जरुरी है। जहाँ भी कुछ समझ में नहीं आवे तब  अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिये उसे अपने माता-पिता और अपने टीचर से जरुर पूछो।
   अच्छा रिश्तेदार बनना:- तुम अभी बेटी, पोती, ममेरी/फुफेरी बहन हो। समय के साथ स्वतः ही अन्य रिश्तेदार भी बनोगी। रिश्तेदार एक पारिवारिक और सामाजिक पद है। मैं भी अच्छा दादा बनने की कोशिश कर रहा हूँ। मेरे कुछ रिश्तेदारों ने मुझसे इतनी ज्यादा अपेक्षाएं पाल लीं कि मैं उनकी सभी अपेक्षाएं पूरी नहीं कर सका। तुम भी रिश्तों की मर्यादा का ख्याल रखते हुए हर रिश्ते को अच्छी तरह से निभाने की कोशिश करना।

   गदह पच्चीसी:- लड़कियों में 14 साल से और लड़कों में 16 साल से पच्चीस साल के उम्र की अवधि को गदह पच्चीसी कहते हैं। इस काल में लड़के/लड़कियों को लगता है कि वे प्रायः जो भी कार्य कर रहे हों वह सही है और उनकी गतिविधि को कोई नहीं जान पाता। इस उम्र में तुमसे लोग अच्छी-अच्छी और लुभावनी बातें करेंगे। मुफ्त में खिला भी सकते हैं और महंगे गिफ्ट भी देंगे, लेकिन ये सभी बातें पतन की ओर ले जाने वाली हैं। माता-पिता कार्य-व्यस्तता के कारण भले ही अपने बच्चों की गतिविधि को नजर अंदाज कर दें, लेकिन समाज उनकी गतिविधि पर नज़र रखता है। यही वह काल है जब बच्चों की गतिविधि रचनात्मक और प्रगतिशील हो तो उनके माता/पिता समाज में सम्मान पाते हैं अथवा गतिविधि नकारात्मक होने पर उनके सम्मान में कमी होने लगती है और वे तनावग्रस्त हो जाते हैं।
   मेरी नानी हमारे कूल-खानदान में सबसे पहले शिक्षा का दिया जलायी, उस दिया की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए मेरी माँ भी एक दिया जलायी। मैंने भी कई दिये जलाये; मेरी इच्छा है कि इस परम्परा को तुम आगे बढ़ाओ। 
   किसी का बोझ उठाना पुण्य है जबकि किसी पर बोझ बनना पाप। जब तुम किशोरावस्था पार करोगी तब कुछ दिन के बाद या तो तुम किसी पर बोझ बन जाओगी या किसी का बोझ उठाने लायक। यह तुम्हारे विवेक पर निर्भर करेगा कि तुम किसका चुनाव करती हो। अनिर्णय की स्थिति में तुम स्वयं ही किसी पर बोझ बन जाओगी। आप हीरा हैं यानि लड़कियां हीरे जैसा बहुमूल्य होती है जबकि लड़का सोना होता है. सोना में अगर खरोच आ जाये तो सुनार उसको पुनः चमका देता है जबकि हीरा में खरोच आने पर उसका मूल्य काफी घट जाता है; काफी कम हो जाता है.
    Trust & Responsibility:- People trust responsible person. Life is a duty; do it. Life is a burden; bear it & Life is a pleasure; share it.
There is no free lunch or gift in the world. Everything(favor/service/product) has its price tag. इनके कीमतों का पता बाद में चलता है। तब पछताने से इतिहास नहीं बदला जा सकता।
    किसी ने कहा है-- "What comes easy, won't last. What lasts, won't come easy."
    तुम्हे मौका निकाल कर दुनिया की महान हस्ती जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम, कृष्णा, सिकन्दर, महाराणा प्रताप, विवेकानन्द, अब्राहम लिंकॉन, मार्टिन लूथर किंग, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जॉन एफ केनेडी, कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स आदि के जीवन की कहानियों को पढ़नी चाहिये।
    मुझे विश्वास तो नहीं है, लेकिन हल्की उम्मीद जरुर है कि 7-8 साल बाद जबतक तुम समझदार हो जाओगी यह पत्र तुम्हारे पास पँहुच जायेगा। कोई न कोई भद्रजन इस पत्र को तुम्हारे पास पँहुचा देंगे।
तुम मेरा अरमान हो. मैं चाहता हूँ कि जो काम मैं नहीं कर सका वो तुम करो. मैं तुम्हारी सफलता की कामना करता हूँ. मेरी शुभ कामनाओं के साथ
तुम्हारे दादाजी।
@BishwaNathSingh
           

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