भारत की डूबती हुई प्रतिभा डा. वशिष्ट नारायण सिंह
Dr Bashisht Nr Singh, Photographed by the Author. |
उसके कुछ ही महीने बाद PU के College of Engineering में गणित सम्मलेन का आयोजन किया गया था. उस सम्मलेन में विश्व प्रसिद्द गणितज्ञ डा. जॉन एल केली अमेरिका के कलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले से पधारे थे. आयोजकों ने वशिष्ट नारायण का परिचय डा. केली से कराया। उन्होंने वशिष्ट नारायण को कई कठिन प्रश्न हल करने को दिया। वशिष्ट नारायण की प्रतिभा से डा. केली बहुत प्रभावित हुए और तत्काल बर्कले आकर आगे की पढ़ाई का निमंत्रण दे दिया। वशिष्ट नारायण ने अर्थाभाव के कारण बर्कले जाने में अपनी असमर्थता जतायी। डा.केली ने उनका सारा खर्च वहन करने का भरोसा दिलाया।
PU प्रशासन ने उनके स्नातक डिग्री लेने के बाद उनका पासपोर्ट/वीसा बनवाकर उन्हें डा.केली के पास कलिफ़ोर्निया भेजवा दिया। डा.केली ने भी अपना वादा निभाया और अपने मार्गदर्शन में रिसर्च कराया।वशिष्ट नारायण ने भी पूरे लगन और मेह्नत के साथ रिसर्च कर Ph.D की डिग्री प्राप्त कर उस ज़माने का एक कीर्तिमान स्थापित किया। वशिष्ट नारायण अब डा. वशिष्ट नारायण सिंह कहलाने लगे.
कम उम्र में एक अति कठिन Topics "Reproducing Kernels and Operators with a Cyclic Vectot" पर 1969 में Ph.D प्राप्त कर लेने के कारण वे अमेरिका में भी मशहूर हो गये।
Work of Dr Vashisht Narain Singh उन्हें NASA में नौकरी मिल गयी जो एक तेज विद्यार्थी के लिये सपना होता है. कुछ ही महीनों में उन्हें राष्ट्र-प्रेम सताने लगा और वे भारत लौट आये. घर लौटने पर पूरे इलाके में उनका शानदार स्वागत हुआ. उनके माता-पिता की प्रतिष्ठा आसमान पर पँहुच गयी.
भारत लौटने पर इनकी नौकरी पहले भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान कानपुर और बाद में भारतीय सांख्यिकी संस्थान कलकत्ता में लगी. वशिष्ट की शादी के लिये लोगों का आना शुरू हो गया. यह निश्चित हो गया था कि वशिष्ट की शादी का निर्णय उनके पिताजी ही करेंगे। अधिक संख्या में शादी के लिये आने से उनके पिताजी को समझ नहीं आ रही थी कि शादी किससे की जाय. यह सर्व विदित है कि जिस जाति में योग्य लड़कों की कमी होती है और काला धन की अधिकता होती है उस जाति में तिलक-दहेज़ उतना ही ज्यादा होता है. एक दिन सबसे अधिक तिलक-दहेज़ वाला व्यक्ति मिल ही गया और वशिष्ट की शादी बड़ी धूम-धाम से हो गयी.
एक तो वशिष्ट अति साधारण घर से थे. वे खान-पान और रहन-सहन तथा विचार से भी साधारण थे और संयुक्त परिवार के समर्थक थे. इसके विपरीत उनकी पत्नी शाह-खर्च और ऐय्याश निकली तथा एकल परिवार की विचार-धारा में विश्वास रखती थी। जल्दी ही कुल मिलाकर यह शादी बेमेल साबित हो गयी और तलाक़ का नौबत आ गया. तलाक़ की प्रक्रिया में वशिष्ट इतने प्रताड़ित और अपमानित हुए कि वे पागल हो गये. अपने समूह से कट जाना भी उनके पागलपन का एक महत्वपूर्ण कारण बना. उनकी नौकरी छूट गयी और उन्हें राँची के पागल खाना में भर्ती होना पड़ा.
कुछ ठीक होने पर 1986 में उनके छोटे भाई अपने साथ अपने पदस्थापन की जगह पूना(आज का पुणे) ले जा रहे थे कि बीच रास्ते में एक बड़े स्टेशन पर उतर कर लापता हो गये. काफी प्रयास के बाद भी नहीं मिले। ग्राम बसन्तपुर का नजदीकी बाज़ार गंगा पार डुमरी, जिला छपरा पड़ता है. 1990 में एक दिन इस गांव के दो लड़के डुमरी बाज़ार करने गये थे. एक की नज़र एक दुकान पर जूठे बर्तन उठाने वाले पर पड़ी. वह चौंक पड़ा पड़ा और बोला "ई तो बसीठ काका बाड़न"; दूसरा लड़का भी उन्हें पहचान लिया। पहले ने दूसरे को उनपर निगरानी रखने को कहा और स्वयम् भागकर थाना को सूचित किया। यह सूचना तेजी से फैलते हुए जिलाधीश के मार्फ़त मुख्य मन्त्री श्री लालू प्र. यादव तक पहुँच गयी. लालू यादव ने वशिष्ट बाबू को तत्काल पटना बुला लिया।
मुख्य मन्त्री आवास पर उनका अच्छा स्वागत हुआ और स्नान कराकर उन्हें नया कपड़ा पहनाया गया. मुख्य मन्त्री वशिष्ट बाबू से बोले - "आउर का दीं?". वशिष्ट बाबू ने जवाब दिया - "तोहरा पासे का हवे कि हमरा के देबअ, चार आना पइसा दअ". सभी लोग सन्न रह गये. उसके बाद वशिष्ट बाबू को उनके पैतृक आवास ग्राम बसन्तपुर पँहुचा दिया गया. उनके छोटे भाई राम अयोध्या सिंह बताते हैं कि जब भी वे अपने बड़े भइया से 1986 से 1990 के गुमनामी काल के बारे में पूछते हैं तो उनका एक ही उत्तर होता है "छोड़अ ई सब ना पूछे के". अब उनसे इस बारे में कोई सवाल नहीं करता है.
अभी वशिष्ट बाबू अपने पैतृक गांव में ही रह रहे हैं और अधिकतर भोजपुरी में ही बात करते हैं और करीब-करीब अनपेक्षित(unexpected) जीवन बिता रहे हैं. पढ़ाने के लिये कुछ प्रस्ताव भी आये लेकिन उनके गांव के लोग उन्हें अकेले कहीँ बाहर जाने नहीं देते।
इन्हे भारत का John Nash भी कहा जाता है, जिन्होंने पढाई से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की, नौकरी पेंटागॉन में की और नोबेल पुरस्कार अर्थशास्त्र में प्राप्त किया। उन्हें भी पागलपन के दौर से गुजरना पड़ा था लेकिन उनकी आदर्श पत्नी और उनकी सरकार जॉन नैश साहब की देखभाल अच्छी तरह से कर रहीं हैं. इनकी जिन्दगी की कहानी पर आधारित एक फ़िल्म "A Beautiful Mind" भी बनी थी. उसी फ़िल्म की यह Video Clipping है, जिसमे उन्हें नोबेल पुरस्कार वितरण समारोह में भाषण देते दिखाया गया है.
हमारे वशिष्ट बाबू उतने खुश-किश्मत तो नहीं हैं, लेकिन उनके छोटा भाई सेवा निवृत्त सूबेदार राम अयोध्या बाबू एक आदर्श भाई का दायित्व निभाते हुए उनकी सेवा और देखभाल यथा-शक्ति कर रहे हैं. आज भी पूरा गांव-जेवार(इलाका) वशिष्ट बाबू पर गर्व करता है.
उनके एक ग्रामीण का भोजपुरी में यह कथन कि "हमनी के त जहाजे डूब गईल! अब खाली जहाज के मस्तूल लउकत बा!" मुझे काफी उद्वेलित किया और मेरा अन्तःकरण ने मुझे यह लेख लिखने पर मजबूर किया। मुझे तो लगा कि वशिष्ट बाबू के घर पर जाकर उनका दर्शन कर और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर मुझे काफी अच्छी अनुभूति हुई, लेकिन भारत की इस डूबती हुई प्रतिभा को देख कर दुःख भी हुआ.@BishwaNathSingh
I feel proud of such talent. His work is taught in the University of California, Berkeley.
ReplyDeleteI am sharing few information:
Reproducing kernels and operators with a cyclic vector. I. Vashishtha N. Singh.
Source: Pacific J. Math. Volume 52, Number 2 (1974), 567-584.
Vashishtha N. Singh on the website of University of California, Berkeley
Dissertation Title:
Reproducing Kernels and Operators with a Cyclic Vector
Dissertation Supervisor: John L. Kelley
PhD Received: Jun 1969
http://math.berkeley.edu/people/grad/vashishtha-narayan-singh