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Showing posts from 2017

बढ़ती जन-संख्या बेरोजगारी भी बढ़ा रही है

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हमारी स्वतन्त्रता के साथ ही हमारी जन-संख्या भी बढ़ रही है. जहाँ 1951 में हम 36 करोड़ थे वहीं 2011 में बढ़कर 121 करोड़ हो गये. पिछले दशक में हमारी जन-संख्या 1.77 प्रतिशत से बढ़ी है. अगर हम जन-संख्या की इसी वृद्धि दर के आधार पर गणना करें तो निम्नलिखित चार्ट के अनुसार वर्त्तमान में हमारी जन-संख्या 134 करोड़ होनी चाहिये(अगर यह गणना गलत लगे तो कृपया सुधारें). लेकिन इस जन-संख्या वृद्धि के अनुपात में हमारे यहाँ रोजगार नहीं बढ़ रहे है. इस बेरोजगारी बढ़ रही है.  वर्ष            जन-संख्या 2011         1,21,12,10,193 As per Census data 2012          1,23,26,48,613 2013          1,25,44,66,494 2014          1,27,66,70,551 2015          1,29,92,67,620, 2016          1,32,22,64,656, 2017          1,34,56,68,741 Calculated and expected  इसके अलावे हमारे पडोसी देशों से घुसपैठ के कारण भी हमारी जन-संख्या बढ़ रही है.  इस चार्ट को देखने से स्पष्ट है कि दो करोड़ से अधिक नये लोगों को रोजगार चाहिये। इसके अलावे बड़ी संख्या में पहले से ही हमारे युवक-युवतियां रोजगार पाने को प्रयत्नशील हैं. संगठित और असंगठित क

बच्चों की Security और सेफ्टी पर कुछ चिन्ता

    आये दिन स्कूलों में बच्चों की Safety और Security से उत्पन्न खतरों के समाचार टीवी, सोशल मीडिया और अख़बारों पर आ रहे हैं. हाल ही में हुए रेयान स्कूल, गुरुग्राम में एक सात वर्षीय बालक प्रदुम्न की निर्मम हत्या की घटना ने तो पूरे देश को झकझोर कर ही रख दिया है। उसके एक दिन बाद दिल्ली के एक स्कूल से एक पॉँच वर्षीय बालिका के साथ हुए पाश्विक बलात्कार की घटना ने तो अभिभावकों के जले पर नमक छिड़क दिया. स्कूल बसों एवम अन्य स्कूल वाहनों से बच्चों के मरने या उनके जख्मी होने के समाचार तो आम हो चले हैं. अब समय आ गया है कि बच्चों के Security और उनके Safety पर वाजिब चिन्ता जाहिर करते हुए इनपर आवाज उठायी जाये।     रेयान स्कूल, गुरुग्राम की घटना इसलिये भी अत्यन्त चिन्ताजनक है क्योंकि वह स्कूल अपने देश के लगभग 140 स्कूलों वाले एक बहुत ही नामी स्कूल में घटी है. नामी स्कूल प्रबन्धन से उम्मीद की जाती है कि वे अपने नाम के अनुरूप ही अपने स्कूलों में बच्चों की Security और Safety हेतू उचित प्रबन्ध किये होंगे। आज ही यानि 14.09.2017 को एक और दुःखद समाचार आया कि मलेशिया की राजधानी कुआला लम्पुर के एक स्कूल में आग

Thanks और Sorry का प्रभाव भी मतदान पर पड़ता है

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   अंग्रेजों ने हमें अपनी भावना को व्यक्त करने हेतु Thanks और Sorry के रूप में दो शक्तिशाली शब्द दिये हैं. बड़े और शरीफ लोग इन दोनों शब्दों का उपयोग बड़े पैमाने पर करते हैं. अब तो इन दोनों शब्दों का उपयोग मतदान के समय भी किया जाने लगा है. सभी अच्छे कार्यों की चर्चा खूब की जाती है और इससे सरकारी नेताओं की खूब बड़ाई होती है. किसी अच्छे कार्य का श्रेय लेने की होड़ सी लग जाती है. बड़े नेताओ के चाटुकार लोग तो इस अवसर का खूब लाभ उठाते हैं. इसके विपरीत कार्य करने वाले कनीय नेता और अधिकारी चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं. श्रेय लेने वालों और दिलाने वालों को खूब Thanks मिलता है. उसी तरह अपने किये गये वादों को पूरा नहीं किये जाने पर Sorry बोला जाता है और उन्हें पूरा करने हेतु और अधिक समय की मांग की जाती है. यही सिलसिला चुनाव दर चुनाव चलते रहता है.     जब अटलजी ने परमाणु परीक्षण कराये थे तो बड़े लोगों ने उनकी खूब प्रशंसा की थी. जब उन्होंने अच्छी सड़कें बनवाई तब गाड़ी-मालिक और उनके उपयोग करने वालों ने उनकी खूब तारीफ की थी. अच्छी सड़कों के पास की जमीन की उपयोगिता और उसी अनुरूप कीमत भी काफी बढ़ गयी

भारत और म्यांमार के बीच मजबूत सम्बन्ध समय की माँग है

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    म्यांमार(पूर्व का बर्मा) हमारा पूर्वी पडोसी देश है. पहली अप्रैल 1937 को ब्रिटिश इंडिया से बर्मा को अंग्रेजों ने अलग कर उसपर अलग से शासन शुरू किया। बर्मा ने 1948 में अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त की अभी म्यांमार में शान्ति के लिये नोबेल पुरष्कार प्राप्त श्रीमती औंग सान सू की का शासन चल रहा है. भारत और म्यांमार में काफी समानतायें हैं. इन दोनों देशों के बीच का मजबूत सम्बन्ध समय की मांग है. इन दोनों देशों में अभी शासन की प्रजातान्त्रिक व्यवस्था चल रही है. इन दोनों देशों के बीच का सम्बन्ध दो हजार वर्ष से भी पुराना है. सम्राट अशोक के ज़माने से भारत से लोग बर्मा जाने लगे थे. अभी म्यंमार बौद्ध प्रधान देश है जिसकी जड़ें भारत में जमी हुई हैं.      मुग़ल वंश का अन्तिम बादशाह बहादुर शाह द्वितीय ने अपनी अन्तिम सांस बर्मा में ली थी. उनका कब्र वहाँ के रंगून शहर के पास ही स्थित है. द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सेना में शामिल बहुत से भारतीय सैनिकों ने जापानी सैनिकों के समक्ष समर्पण कर आज़ाद हिन्द सेना में शामिल हो गये थे. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में आज़ाद हिन्द सेना ने अंग्रेजी सेना को हरात

मजबूत भारत के निर्माण में मुफ्तखोरी एक बड़ी बाधा है

    हम सभी भारतवासी चाहते हैं कि हमारा भारत एक मजबूत राष्ट्र बने. मजबूत भारत ही हमारी शान है; हमारी पहचान है. मजबूत भारत के निर्माण में बहुत सी बाधायें हैं. मुफ्तखोरी भी उन्ही बड़ी बाधाओं में से एक है. पहले मुफ्तखोरी की समस्या कोई बड़ी समस्या नहीं थी. जैसे किसी संयुक्त परिवार में किसी कमजोर सदस्य का गुजारा बड़ी आसानी से हो जाता था वैसे ही मुफ्तखोरों का भी गुजारा हो जाता था. लेकिन इधर व्यापक उत्कोच और अन्य कारणों से मुफ्तखोरी बड़ी तेजी से पनप रही है. अब बहुत से लोग यह मानने लगे हैं कि मुफ्तखोरी से प्रभावित लोगों की श्रम-उत्पादकता घट रही है. श्रम-उत्पादकता का घटना कामचोरी को बढ़ा रहा है. यह समस्या एक चिन्ता उत्पन्न करने वाली है.       दुनिया भर में लोग अच्छी वस्तुओं और अच्छी सेवाओं का उपभोग सभी लोग करना चाहते हैं. अधिकांश लोगों को यह सुविधा अपने माँ-पिता से और फिर अपने श्रम और बुद्धि से उनके आर्थिक ताकत के हिसाब से मिलते रहती है. ऐसे लोगों के जीवन में आर्थिक उतार-चढ़ाव व्यवस्थित ढंग आते-जाते रहता है. जब कभी ऐसे लोगों को आर्थिक झटके लगते हैं तो उन लोगों में आर्थिक झटकों को सहने की शक्ति भी उन

डेरा और मठ का बढ़ता-घटता प्रभाव

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    युग/समय के साथ डेरा और मठ का प्रभाव हमारे देश में बढ़ता-घटता रहा है. भक्ति युग में कुछ भक्त सांसारिक सुखों को त्याग कर साधू बनने लगे. अनपढ़ साधू भी तीर्थाटन के क्रम में अन्य ज्ञानी साधुओं की सुसंगति में शास्त्रार्थ में समय बिताने लगे और अपना ज्ञानवर्धन करते-करते स्वयं भी ज्ञानी हो गये. साधु लोग अपना अधिकांश समय तीर्थाटन और धार्मिक प्रवचनों में व्यतीत करते थे. बड़े साधू को कालान्तर में सन्त की उपाधि दी गयी. कई बड़े साधुओं ने घूमते-घूमते थक हारकर अपने जीवन को स्थिर करने और अपना प्रभाव बढ़ाने हेतु मठों की स्थापना की. उम्र बढ़ने के बाद साधुलोग बाबा कहलाने लगे. पुराने साधूलोगों ने अपना सारा जीवन सादगी के साथ दूसरों और समाज के कल्याण में बिता दिया।     ईसाई धर्म में Charity, इस्लाम धर्म में जकात और सनातन(हिन्दू) धर्म में "सीधा" और "अगउँ" जैसे दान देने की प्रथा की प्रधानता पहले से ही रही है. प्रायः सभी धर्म-परायण व्यक्ति अपनी कमाई का एक छोटा सा अंश दान के रूप में देते रहे हैं. इस तरह दान से प्राप्त राशि से बहुत से अस्पताल और विद्यालय भी चलते हैं. दान से गरीबों को भी पर्व-त

सृजन घोटाला संस्थागत विफलताओं का भी परिणाम है

    आजकल बिहार के "सृजन घोटाला" की बड़ी चर्चा हो रही है. इस घोटाले के केन्द्र में सृजन नाम का एक गैर सरकारी(NGO) संगठन भागलपुर, बिहार में है. कुछ महीने पूर्व इस NGO की संचालिका मनोरमा देवी की मृत्यु हो गयी. उसके उत्तराधिकारी मनोरमा देवी की विरासत को सम्हाल नहीं पाये, जिसके कारण भागलपुर के एक अधिकारी का लगभग दो करोड़ रुपये के चेक bounce हो गया यानि उस सरकारी चेक को यह कहकर बैंकवालों ने लौटा दिया कि उस अधिकारी के खाते में उतनी राशि उक्त तिथि को नहीं थी जबकि सरकारी बही-खातों में उसके बैंक खाते में उससे ज्यादा राशि होनी चाहिये थी. यह एक असामान्य घटना साबित हुई और हंगामा मच गया. यह घोटाला बिहार के बाहर भी अख़बारों, टीवी और सोशल मीडिया में अभी भी छाया हुआ है और भविष्य में भी काफी दिनों तक छाया रहेगा।     अब सवाल उठता है कि इसका नाम "सृजन घोटाला" क्यों पड़ा?  कुछ लोग तो इसे "पापड़ घोटाला" भी कहते हैं क्योंकि सृजन नाम के NGO की संचालिका स्व. मनोरमा देवी को अपने उस NGO को ज़माने में काफी पापड़ बेलने पड़े थे. पहले की व्यवस्था के अनुसार वित्तीय वर्ष के अन्त तक यानि इक्कतीस

आपदा प्रबन्धन और सुशासन

    अभी अपने देश के कई भागों में बाढ़ की विभीषिका लोगों के जीवन को नरकमय बना दिया है. बाढ़ तो हमारे देश की हर साल आनेवाली एक स्थायी आपदा बनती जा रही है. अब लोग इस विषय पर ज्यादा चर्चा करने लगे हैं. हमारे देश का मौसम विभाग(IMD) हर साल मानसून आने के पूर्व माह अप्रिल में अपना प्रारम्भिक और माह जून में पुनरीक्षित(Revised) पूर्वानुमान प्रतिवेदन प्रकाशित करता है. इस वर्ष प्रारम्भिक और पुनरीक्षित दोनों प्रतिवेदनों में सामान्य से अधिक मानसून आने का आंकलन किया गया था. इसका सामान्य अर्थ तो यही हुआ कि प्रायः बाढ़ ग्रसित इलाकों में ज्यादा वर्षा होगी और यही हुआ भी. पारिणामतः बाढ़ की विभीषिका गोरखपुर से लेकर किशनगंज तक और पश्चिम बंगाल तथा आसाम के इलाके बाढ़ से घिर गये हैं. बाढ़ पीड़ित लोग आपदा प्रबन्धन करने वालों के तरफ कातर दृष्टि से देख रहे हैं.      आपदा प्रबन्धन चार भागों में बंटा होता है.  (1) महत्वपूर्ण सूचना को साझा करना:- बाढ़ से सम्बन्धित सूचना तो हमारे मौसम विभाग ने काफी पहले ही दे दी थी और इसी अनुरूप NMDA, NDRF और राज्य के सम्बन्धित अधिकारी अपनी उचित कार्यवाई की होगी। भूकम्प, सुनामी, बड़े रेल

भारत और नेपाल के बीच सम्बन्धों में सुधार समय की माँग है

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    हमारे देश के उत्तर में नेपाल अवस्थित है. हमारे देश के राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम की सीमायें नेपाल से मिलती हैं. सदियों से भारत का नेपाल से मधुर सम्बन्ध रहा है. नेपाल की तराई में तो भारतीय संस्कृति और नेपाली संस्कृति में कोई अन्तर ही नहीं दिखता। नेपाल की तराई के बहुत से लोगों की शादियाँ भी सीमावर्ती भारतीय क्षेत्र में होती रही हैं. नेपाल के तराई के अधिकांश लोग भी भोजपुरी और हिन्दी ही बोलते हैं और उनके अधिकांश रीति-रिवाज/पर्व-त्यौहार सीमावर्ती भारतीय क्षेत्र के रीति-रिवाज/पर्व-त्यौहार से मिलते-जुलते हैं. बिहार और झारखण्ड में एक-एक पुलिस बटालियन में आज भी नेपाल मूल के लोग ही भर्ती होते हैं. बहुत से नेपाली तो हमारी सेना में भी कार्यरत हैं और उनकी निष्ठा भारत की सुरक्षा में निहित रही है. बहुत से नेपाली सेवा-निवृत्त होकर अपने परिवार के साथ भारत के विभिन्न भागों में बस कर यहाँ के लोगों से घुलमिल गये हैं. काठमाण्डू, नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मन्दिर का एक दृश्य (Image Source:-Wikimedia)     उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में नेपाल पर आधिपत्य ज़माने हेतु अंग्रेजों और नेप

पहले दुनिया में अण्डा आया था; बाद में मुर्गी?

    बहुत दिनों से यह सवाल पूछा जाता रहा है कि इस दुनिया में पहले अण्डा आया था या पहले मुर्गी? इस सवाल पर लोग पहले भी हँसते थे, आज भी हँसते है और भविष्य में भी हँसते ही रहेंगे। बहुत से बहसों में जब कोई किसी निष्कर्ष पर नहीं पँहुचता है तो यही कहता है कि "छोड़िये अब बन्द कीजिये। यह तो चलता ही रहेगा कि पहले इस दुनिया में मुर्गी आयी या अण्डा?". आजकल तो टीवी पर दिन प्रति दिन किसी न किसी मुद्दे पर बहस चलते ही रहती है. कुछ बहस तो लगता है कि जनता की मुलभुत समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिये भी की जाती है और शब्दों के जाल में लोगों को फँसा भी दिया जाता है. मैं समझता हूँ कि एक बार फिर इस बहस को सिर्फ मनोरञ्जन हेतु आगे बढ़ाया जाना चाहिये।     किसी भी जीव की उत्पत्ति महज संयोगों का ही प्रकृति का एक खेल है. पहले मनुष्य को ही लें. वैज्ञानिक बताते हैं कि पहले वनमानुष की तरह के कुछ प्राणी थोड़ा खड़े होने लगे और अपने दोनों हाथ और दोनों पैरों के बजाये अपने पैरों के सहारे ही ज्यादा चलने लगे. लेकिन इस प्राणी में पूँछ थी. इस प्राणी को Homo erectus की संज्ञा दी गयी. कुछ लाख वर्ष बाद कुछ प्राणी

प्रभावकारी चिकित्सा व्यवस्था से भी लोगों का दिल जीता जा सकता है.

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   चिकित्सा-सेवा को हमारे सम्विधान के समवर्ती सूचि में रखा गया है. यानि जनता को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करने केन्द्र और राज्य सरकारों दोनों का सम्वैधानिक दायित्व है. हमारे सम्विधान को जन-कल्याणकारी और समाजवादी दोनों बनाया गया है. कल्याणकारी और समाजवादी व्यवस्था का अर्थ है कि राष्ट्रीय धन पर सभी जनता का उचित अधिकार है. हमारे देश के कर्णधारों ने हमारे देश के लिये मिश्रित अर्थ-व्यवस्था को उचित बताया था और इसी मार्गदर्शन के अन्तर्गत निजी चिकित्सा प्रणाली को भी समय-समय पर उचित प्रोत्साहन भी दिया जाता रहा है. निजी चिकित्सा व्यवस्था ने हमारे बहुत से लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार भी दिया है. इसके नियमन हेतु मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया(MCI) भी बनाया गया है.     अपने देश के लोगों के आर्थिक वर्गीकरण से लगभग दस प्रतिशत धनी लोग निजी चिकित्सा व्यवस्था से सन्तुष्ट बताये जाते हैं. लगभग पैतीस प्रतिशत मध्यम वर्ग के लोग लाचारी में निजी चिकित्सा व्यवस्था को अपना रहे हैं. लेकिन शेष पचपन प्रतिशत लोग, जिनकी आमदनी उतनी नहीं है कि वे महँगी निजी चिकित्सा व्यवस्था का लाभ उठा सकें, सरकारी अस्पतालों में अपनी बीमारी

तकनीकों से बदलती दुनिया और उसके पीछे-पीछे हमारा देश

    आजकल तकनीकों के सहारे दुनिया को बदलने का प्रयास चल रहा है और हमारा देश उसके पीछे-पीछे उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है. अगर हम इन नयी तकनीकों को नहीं अपनावेंगे तो हमें दुनिया में पिछड़ जाने के खतरों का सामना करना पड़ सकता है. हमारी नयी सरकार दुनिया से कदम से कदम मिलाकर चलने का पूरा प्रयास कर रही है. ऊर्जा क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है. बैटरी चालित कारें अब जल्दी ही जहरीली धुआं उगलती कारों के मूल्य से मुकाबला करने लायक होने वाली है. अभी भी लगभग तीस प्रतिशत ऊर्जा पेट्रोलियम उत्पादों से ही प्राप्त हो रही है. लेकिन धीरे-धीरे सौर/पवन ऊर्जा और हाइड्रोजन से प्राप्त ऊर्जा की मात्रा बढ़ रही है. 1. बढ़ती मोटर दुर्घटनाओं से लोग परेशान हैं और स्वचालित या चालकरहित वाहनों का इंतजार बेसब्री से कर रहे हैं. उत्खनन क्षेत्र में तो वॉल्वो कम्पनी द्वारा उत्पादित वाहन का उपयोग शुरू भी हो गया है. उत्खनन क्षेत्र से शुरू होकर स्वचालित या चालक रहित मोटर वाहन ड्रोन, जहाज और ट्रक होते हमारे शहरों में भी आने ही वाले हैं. अब इन्हे रोकना कठिन है लेकिन कब आयेंगे यह कहना कठिन है. ऐसे वाहनों के लिये अच्छी सड़कें बनान

हम खाने के लिये जिन्दा रहें या जिन्दा रहने के लिये खायें?

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    एक ओर जहाँ कोल्हान में गरीब लोग ख़ुशी-ख़ुशी लातेर-मांडी(साग-भात) खाकर जिन्दा रहते हैं वहीँ दूसरी ओर दुनिया के सभी जगहों के सम्पन्न लोग तरह-तरह के व्यंजनों के स्वाद लेने के क्रम में खा-खा कर मोटे हुए जा रहे हैं. अब तो मोटापा एक तरह से बिमारी का रूप लेने लगा है. कहा जाता है कि मोटापा अपने आप में कोई बिमारी नहीं है लेकिन मोटापा तमाम बिमारियों को आमन्त्रित करता है. मोटापा सौन्दर्य को भी कम कर रहा है. छड़हड़ा बदन वाले लोग मोटे लोगों को पसन्द नहीं करते। मोटापा और सम्पन्नता में गहरा सम्बन्ध है. इस तथ्य की पुष्टि इस बात से भी होती है कि मात्र पिछले दो वर्षों में ही वेनेजुएला नाम के देश की सम्पन्नता कम होते ही वहाँ के निवासियों का औसत वजन दस किलो ग्राम तक कम हो गया है.     एक बार एक मोटा और काफी सम्पन्न व्यक्ति अपने मोटापा के कारण कई बिमारियों से घिर गया. वह अपनी बिमारियों के इलाज कराते-कराते थक और निराश हो गया था. तभी उसके किसी शुभ-चिन्तक ने उसे पटना(बिहार) के एक गरीबों के डॉक्टर  के रूप में प्रसिद्ध डॉ शिव नारायण सिंह से मिलकर उनसे सलाह लेने को कहा. पहले तो वह व्यक्ति " गरीबों के ड

बिहार और झारखण्ड के शहरी क्षेत्रों में पानी की समस्या?

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    बिहार और झारखण्ड में हर साल लगभग 50 से 55 इंच वर्षा होती है. इस वर्षा-जल में से लगभग एक प्रतिशत का उपयोग ही शहरी क्षेत्रों में हमारे पीने और अन्य आवश्यक कार्यों में उपयोग में लाया जाता है. वर्षा-जल का शेष भाग में से अधिकांश बह कर नदियों में चला जाता है. बिहार और झारखण्ड की नदियां पश्चिम बंगाल और ओडिशा की बड़ी नदियों में मिलकर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाता है. वर्षा-जल का कुछ पानी वाष्पीकरण के माध्यम से आकाश में और कुछ अवशोषण के माध्यम से जमीन के नीचे जाकर पुनः उपयोग हेतु जमा हो जाता है.     आज से लगभग चालीस वर्ष पूर्व जब बड़ी संख्या में लोग शहरों में भी कुओं से ही पानी पर ही निर्भर थे तो बाल्टी से पानी भरने में परिश्रम लगने के कारण प्रति व्यक्ति पानी की खपत लगभग पच्चास लीटर बताया जाता है. उसके बाद चापा-नल या चापा-कल का युग आया तो यह खपत लगभग साठ लीटर हो गयी. जब कुआँ या चापा-नल या बोरिंग में बिजली के मोटर से पानी खींचा जाने लगा तब खपत बढ़कर प्रति व्यक्ति लगभग एक सौ लीटर हो गयी. जो लोग दूसरों के घरों में रहते हैं उनके यहाँ यह खपत लगभग कुछ ज्यादा होती है. अर्थात जैसे-जैसे सुविधा बढ़ते

सरकारी अस्पताल की इलाज और राजनीति

    एक नेताजी ने टिकट दिलाने की लॉबी करने वाले कुछ लोगों को प्रभावित कर विधायक का टिकट प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर ली लेकिन उनके लिये चुनाव जीतना काफी कठिन था. उनके लिये चुनाव जीतना इसलिये भी कठिन था क्योंकि उनके पार्टी के विपरीत चुनावी लहर चल रही थी. उनके पक्ष में एक बात बहुत मजबूत थी कि जिस नेता के पुत्र होने का दावा कर उन्होंने छल से ही टिकट प्राप्त किया था उनका इलाका में बहुत प्रभाव था. वो प्रभावशाली नेताजी अब वृद्ध हो गये थे और बीमार चल रहे थे. इन कारणों से उनकी राजनैतिक गतिविधि लगभग शून्य सी हो गयी थी. उस समय उस इलाके में संचार की व्यवस्था भी कमजोर थी. इसके अलावे विपरीत राजनैतिक लहर चलने के कारण उनके पार्टी के अन्दर कोई विशेष प्रतिस्पर्द्धा भी नहीं चल रही थी.     विधायक के उम्मीदवार( अब आगे से नेताजी ) अपने चुनाव क्षेत्र में अपनी पार्टी के अपने क्षेत्र के उक्त बुजुर्ग नेता को हवाला देकर कई बड़े नेता की चुनावी रैली कराने में सफल रहे. नेताजी सभी रैलियों में मंच पर अपने बुजुर्ग नेता(अपने कथित पिता) का फोटो लगाना नहीं भूलते थे. चुनाव समाप्त हुआ और विपरीत चुनावी लहर में भी कुछ