मजबूत भारत के निर्माण में मुफ्तखोरी एक बड़ी बाधा है

    हम सभी भारतवासी चाहते हैं कि हमारा भारत एक मजबूत राष्ट्र बने. मजबूत भारत ही हमारी शान है; हमारी पहचान है. मजबूत भारत के निर्माण में बहुत सी बाधायें हैं. मुफ्तखोरी भी उन्ही बड़ी बाधाओं में से एक है. पहले मुफ्तखोरी की समस्या कोई बड़ी समस्या नहीं थी. जैसे किसी संयुक्त परिवार में किसी कमजोर सदस्य का गुजारा बड़ी आसानी से हो जाता था वैसे ही मुफ्तखोरों का भी गुजारा हो जाता था. लेकिन इधर व्यापक उत्कोच और अन्य कारणों से मुफ्तखोरी बड़ी तेजी से पनप रही है. अब बहुत से लोग यह मानने लगे हैं कि मुफ्तखोरी से प्रभावित लोगों की श्रम-उत्पादकता घट रही है. श्रम-उत्पादकता का घटना कामचोरी को बढ़ा रहा है. यह समस्या एक चिन्ता उत्पन्न करने वाली है.  
    दुनिया भर में लोग अच्छी वस्तुओं और अच्छी सेवाओं का उपभोग सभी लोग करना चाहते हैं. अधिकांश लोगों को यह सुविधा अपने माँ-पिता से और फिर अपने श्रम और बुद्धि से उनके आर्थिक ताकत के हिसाब से मिलते रहती है. ऐसे लोगों के जीवन में आर्थिक उतार-चढ़ाव व्यवस्थित ढंग आते-जाते रहता है. जब कभी ऐसे लोगों को आर्थिक झटके लगते हैं तो उन लोगों में आर्थिक झटकों को सहने की शक्ति भी उनके संस्कार के अनुसार स्वतः विकसित हो जाती है. वे लोग अपनी आर्थिक तंगी में कम गुणवत्ता वाली वस्तुओं और सेवाओं से अपना काम चला लेते हैं. ऐसे लोग अपने से संघर्ष करके शीघ्र ही अपनी उन्नत्ति के रास्ते खोज लेते हैं. पुनः उनकी जिन्दगी में उपभोक्तावाद के चलते अच्छी वस्तुएं और अच्छी सेवाएं आ जाती हैं.
    इसके विपरीत बहुत से ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हे मुफ्त में ही अच्छी वस्तुएं और अच्छी सेवायें मिल जाती हैं. यानि ऐसे लोगों को अच्छी वस्तुएं और अच्छी सेवायें पाने के लिये संघर्ष नहीं करना पड़ता है. धीरे-धीरे ये लोग अच्छी वस्तुएं और सेवायें के आदि हो जाते हैं यानि उसके वगैर ठीक से अपना जीवन नहीं व्यतीत कर पाते हैं. इसी व्यवस्था को मुफ्तखोरी कही जा सकती है. यह अकाट्य सत्य है कि दुनिया में कहीं भी अच्छी वस्तुएं और अच्छी सेवायें मुफ्त में नहीं मिलती हैं. लेकिन यहाँ बहुत से लोगों को अच्छी वस्तुएं और अच्छी सेवायें मिल रही है. अब उनकी मानसिक स्थिति समझना आवश्यक है जो मुफ्त में दूसरों को अच्छी वस्तुएं और अच्छी सेवायें उपलब्ध करा रहे हैं. इसके पीछे उनका कोई छिपा हुआ स्वार्थ होता है. वे लोग मुफ्तखोरों से अनैतिक या आपराधिक कार्य कराने लगते हैं.
    अनैतिक कार्य का आशय कम पारिश्रमिक देकर या कभी-कभी सिर्फ कपडा और खुराकी पर ही काम कराते  रहना है. इसे बन्धुआ मजदूरी भी कहा जा सकता है. कुछ मुफ्तखोर युवक अच्छी वस्तुएं और सेवायें प्राप्त करने हेतु अपराध में भी लिप्त हो जाते हैं. और एक बार जब ऐसे मुफ्तखोर लोग अपराध में लिप्त हो गये तो उनका अपराध की दुनिया से बाहर निकलना बहुत कठिन होता है. अधिकांश अपराधियों का शोषण माफिया लोग करते हैं.
    अब तो ऐसे भी समाचार आ रहे हैं कि सिरसा के एक डेरा में स्थायी मुफ्तखोर पैदा करने हेतु लगभग चार सौ युवकों को बधिया कर दिया गया था. अगर यह समाचार सही है तो यह हमारे समाज के लिये बहुत दुखदायी होगा। बधिया कर अधिक रुपये में गुलामों को बेंचने की कहानियाँ ही सुनी जाती थी. अब तो उन कहानियों का दर्शन साक्षात् होने की सम्भावना बन रही है.
मुफ्तखोरों का हमारे समाज पर प्रभाव:- उपलब्ध प्राकृतिक और सृजित संसाधनों के अनुपात से जब जन-संख्या अधिक होने लगती है तब बेरोजगारी बढ़ने लगती है. उसके बाद कालान्तर में बेरोजगारी अपने साथ गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, अन्धविश्वास और अन्य सम्बन्धित समस्यायें भी लाती है. अधिक बेरोजगारी भी मुफ्तखोरी बढ़ाने में सहायक रही है. मुफ्तखोरी का प्रतिकूल प्रभाव परिवार से होता हुआ समाज पर और अन्ततः राष्ट्र पर पड़ता है. यह कहा जा सकता है कि मुफ्तखोरी एक सामाजिक समस्या बन कर उभर रही है. मुफ्तखोरी के चलते सभी प्रकार के बड़े तस्करों को आसानी से उनके अवैध सामानों को एक जगह से दूसरे जगह पहुँचाने वाले लोग मिल जा रहे हैं.
    मुफ्तखोरी का एक अति अलोकप्रिय उदहारण उन सुरक्षाकर्मियों के व्यवहार में देखा जा सकता है जो नवधनाढ्य VIP के ड्यूटी में लगे हैं. ऐसे निचले पंक्ति वाले सुरक्षाकर्मी अपने से काफी बड़े अधिकारी का सम्मान तो दूर उनके विधि-सम्मत आदेश का पालन करना भी अपनी शान के विरुद्ध समझते हैं.(इसे हाल के पंचकूला की घटना के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है. यह भी कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस तरह के उदहारण भरे पड़े हैं). 
    हमारे तिकडमी नेताओं को आसानी से वोट मिल जा रहे हैं. हमारे संसद और विधान सभाओं में कुछ तिकडमी नेता आसानी से पँहुच जा रहे हैं. इसके विपरीत मुफ्तखोरी के चलते भी बहुत से वैसे नेता हार जा रहे हैं जो हमारे राष्ट्र को एक नयी ऊंचाई पर ले जाने की क्षमता रखते हैं. जब अच्छे नेता चुने जायेंगे तो वे लोग राष्ट्रहित में अच्छी नीतियां बनायेंगे। साथ अपनी नीतियों के अनुपालन हेतु अच्छे अधिकारियों को अपने टीम में शामिल करेंगे। अच्छे नेता का लाभ सभी देशवासियों को हमेशा मिलते रहा है.
    अब प्रश्न उठ रहे हैं कि क्या मुफ्तखोरों से मुक्ति सम्भव है? ऐसे प्रश्नों का उठना ही मुफ्तखोरी की समस्या के निदान में पहला कदम है. इसका अर्थ यह भी हुआ कि लोग अब मुफ्तखोरी से होने वाली परेशानियों को अनुभव कर रहे हैं. समस्या की पहचान भी समस्या के निदान में सहायक होता है. इस समस्या के निदान हेतु बड़े स्तर पर चर्चा और बहस आवश्यक है. मुफ्तखोरों का व्यवहार मानसिक गुलामों जैसा होता है. इनके लिये राष्ट्रीयता का कोई महत्व नहीं है. मुफ्तखोर लोग अपने आका को देश के सम्विधान से ऊपर समझते हैं.
    कुछ लोग सांध्य चर्चाओं में मुफ्तखोरी को कम करने हेतु जन-संख्या पर नियन्त्रण, हमारे संसाधनों का उचित बंटवारा और बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध कराना बताते हैं. इन सब के लिये यह जरुरी है कि अच्छे जनप्रतिनिधियों का चुनाव किया जाये। जागरूक अभिभावक भी अपने बच्चों में अच्छे संस्कार भरकर उन्हें मुफ्तखोरी और अपराध से विरत करते रहे हैं. इस सच से अधिक से अधिक किशोरों और किशोरियों को भी स्मरण कराते रहना होगा। ये लोग कल को नागरिक और पुनः आगे चलकर अपने बच्चों के अभिभावक बनेंगे।
मुफ्तखोरों के पुनर्वास हेतु कड़े पर्यवेक्षकों की भी जरुरत पड़ेगी।
 https://Twitter.com/BishwaNathSingh

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