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Showing posts from April, 2014

गऊ-पालन में भी रोजगार की अपार सम्भावनायें हैं?

  पशु-पालन हमारे देश में कुटीर उद्योग और लघु उद्योग की तरह फैला हुआ था और इनमे करोड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ था. रोजगार का सृजन बहुत ही पुण्य का कार्य माना जाता है और बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराना दुनिया की सबसे बड़ी समाज सेवा मानी जाती है. भाग-1( दुधारू गऊ-पालन) इस लेख का यह भाग निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित है--- 1. एक देसी गाय की औसत उम्र 14-15 साल है, जिसमे वह करीब तीन साल के बाद बच्चा देती है, अगले आठ साल में वह करीब चार (कुछ अन्तरालों पर) साल औसतन प्रतिदिन दो लीटर दूध देती है, करीब पाँच साल(कुछ अन्तरालों पर) बिसुखी रहती है और वह अपना आखिरी तीन-चार साल का समय गौलक्षणी या गौशाला या गौपालकों के दरवाजा बिता कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेती है. 2. शंकर नस्ल की उन्नत जर्सी या साहिवाल गाय करीब सात साल तक प्रतिदिन औसतन दस लीटर दूध देती है. इसका औसत वजन चार क्विंटल होता है. जीवन काल लगभग सभी गायों की समान ही है. 3. देशी गाय छोटा मेहनती परिवार के लिये अपने घरेलु उपयोग के लिये उपयुक्त है जबकि शंकर नस्ल की गायें बड़ा परिवार के घरेलु उपयोग या व्यावसायिक उपयोग के लिये उपयुक्त है. 4. क

हमारे न्यायालयों में करोड़ों मामलों के लम्बित रहने के कुछ कारण!

    मीडिया के ख़बरों के अनुसार हमारे न्यायालयों में करीब साढ़े तीन करोड़ मामले लम्बित हैं और यह हर महीने बढ़ता ही जा रहा है. इस तरह हमारी आबादी का लगभग 10% हिस्सा न्यायालयों में वर्षों चक्कर लगाते रहता है. कुछ लोग इस संख्या को और भी ज्यादा बताते हैं. ऐसा होने के कुछ निम्न प्रकार के कारण लगते हैं:---- 1. प्रायः मामलों की शुरुआत पुलिस थानों से होती है. कुछ मामलों की शुरुआत न्यायलय से भी होती है. पीड़ितों की आम शिकायत रहती है कि पीड़ितों का पुलिस थानों में उतना स्वागत नहीं होता, जितना कि वे उम्मीद करते हैं. आस-पास के कुछ दलाल लोग पीड़ित को घेर लेते हैं और उसका दोहन कर नमक-मिर्च, मसाला लगाकर प्रथम सूचना पत्र दर्ज करवा देते हैं. गवाहों को मालूम भी नहीं रहता है कि क्या जोड़ा या क्या घटाया गया है. इससे न्यायालयों को सच्चाई निकालने में काफी कठिनाई होती है और मामले अनावश्यक रूप से लम्बा चलते रचोरी, लूट हते है. पीड़ित को सबसे ज्यादा परेशानी  चोरी(घर से या बाहर से) , लूट और भूमि विवाद में हुए मारपीट के मामलों को दर्ज कराने में होती है. इसमें विलम्ब के चलते वाहन चोरी या लूट की घटना में बीमा दावे करने मे

मतदान कम होने के कुछ कारण!

    उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और बिहार में इस बार 2009 के लोक-सभा चुनाव की तुलना में लगभग दस प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिल रही है. फिर भी अन्य विकसित राज्यों की तुलना में यह कम है. मतदान कम होने के निम्न कारण लगते हैं---- 1. इन प्रदेशों के बहुत से लोग अपने अस्थाई कार्य हेतु दिल्ली, पंजाब, हरयाणा, गुजरात और महाराष्ट्र आदि विकसित राज्यों में जाते हैं. इनकी आर्थिक हालत ऐसी नहीं है कि काफी खर्च कर ये लोग सिर्फ मतदान करने हेतु अपने घर आ सकें। 2. कहने को तो मतदान के दिन अवकाश घोषित रहता है, लेकिन छोटे निजी कारखानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, दुकानों आदि पर काम करने वाले लोग प्रायः मतदान करने के बजाय अपने काम पर जाना ज्यादा पसन्द करते हैं. 3. डाक बैलट प्रणाली मृतप्राय है, यानि यह प्रणाली अभी तक कागज से बाहर नहीं आ पाया है. इस कारण मतदानकर्मी और मतदान कार्य में लगे सुरक्षा कर्मी मतदान करने से वंचित रह जाते हैं. चूँकि इनकी संख्या लाखों में होती है अतः मतदान कम होने का यह प्रमुख कारण है. अपने देश में लगभग दो करोड़ लोग तो प्रति दिन अपना समय रेल यात्रा में गुजारते हैं. ये लोग मात्र वोट दे

कुछ नीतियां महँगाई भी बढ़ाती हैं!

मुझे लगता है कि निम्न प्रकार की नीतियों से महँगाई बढ़ती है---- 1. बैंकिंग और बीमा क्षेत्रों को अधिक ब्याज दर से लाभ होता है और लोग बेहतर रिटर्न की उम्मीद में इन दोनों में अपना पैसा जमा करते है. जब बैंक और बीमा कम्पनियाँ अधिक ब्याज का वादा करेंगी और देंगी भी तो निश्चित रूप चाहेंगी कि महंगाई बढे ताकि उन्हें कम मूल्य वाला पैसा का भुगतान करना पड़े. 2. शासक दल प्रायः पेशेवर कर्जखोरों का कर्ज अपने राजनैतिक लाभ के लिये माफ़ करते रहे हैं. इससे बैंकों का NPA बढ़ रहा है और इसका बोझ आम जनता पर पड़ रहा है. 3. हमने अपनी अर्थ-व्यवस्था का बहुत ही अधिक डिजलीकरण और डॉलरीकरण कर लिया है. जब-जब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे ईंधन और डॉलर का मूल्य बढ़ेगा तब-तब महँगाई बढ़ते रहती है. 4. हमारे यहाँ काला धन की समानान्तर सरकार नुमा अर्थ-व्यवस्था काम कर रही है. यह व्यवस्था सरकार के अच्छे कार्यक्रमों को भी सफलीभूत नहीं होने दे रही है और महँगाई बढाती है. 5. तस्करी और हवाला कारोबार को कारगर ढंग से न रोकने की नीति अपनायी जाती रही है. इस कारण बड़े पैमाने पर हमारे देश से नगदी कैश, सेक्स और घरेलु कार्य हेतु लड़कियों/औरतो

अयोध्या के श्रीराम मन्दिर-बाबरी मस्जिद के झगड़े का एक समाधान!

     जब तक श्री राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद का ताला नहीं खुलवाया था तब तक बहुत कम लोगों को यह झगड़ा मालूम था. मुझे तो उस समय तक इसके बारे में कुछ पता नहीं था. यह मेरा दुर्भाग्य ही था. संतोष की बात यही थी कि इस मामले में मैं अकेला नहीं था. उसके बाद तो समाचार-पत्रों में बहुत कुछ पढ़ने को मिला और आगे भी पढ़ने को मिलता रहेगा। उसके बाद श्री राजीव गांधी द्वारा श्री राम मन्दिर का शिलान्यास भी कराया गया. मैं यहाँ पर ताला खुलने के समय के कुछ श्रुति सम्मत बातों के आधार पर अयोध्या-बाबरी मस्जिद के झगड़े का एक समाधान का जिक्र करना चाहता हूँ, जो उस समय मुझे एक बुजुर्ग द्वारा बताया गया था.      अयोध्या-बाबरी मस्जिद के झगड़े में तीन तथ्य स्पष्ट हैं-- 1. श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था जबकि बाबर का जन्म कई देश पार उज्बेकिस्तान में हुआ था अर्थात अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम राम से जुड़ा है न कि क्रूरता के लिये नमी बाबर से. हिन्दुओं के दिलों में श्री राम का स्थान कई हजार वर्षों से ऐसे बन गया है कि उनको निकाला नहीं जा सकता। अधर्मियों या विधर्मियों को यह तथ्य हजम नहीं होगा। 2. बाबरी मस्जिद बाबर की बर्बरता,