मतदान कम होने के कुछ कारण!

    उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और बिहार में इस बार 2009 के लोक-सभा चुनाव की तुलना में लगभग दस प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिल रही है. फिर भी अन्य विकसित राज्यों की तुलना में यह कम है. मतदान कम होने के निम्न कारण लगते हैं----
1. इन प्रदेशों के बहुत से लोग अपने अस्थाई कार्य हेतु दिल्ली, पंजाब, हरयाणा, गुजरात और महाराष्ट्र आदि विकसित राज्यों में जाते हैं. इनकी आर्थिक हालत ऐसी नहीं है कि काफी खर्च कर ये लोग सिर्फ मतदान करने हेतु अपने घर आ सकें।
2. कहने को तो मतदान के दिन अवकाश घोषित रहता है, लेकिन छोटे निजी कारखानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, दुकानों आदि पर काम करने वाले लोग प्रायः मतदान करने के बजाय अपने काम पर जाना ज्यादा पसन्द करते हैं.
3. डाक बैलट प्रणाली मृतप्राय है, यानि यह प्रणाली अभी तक कागज से बाहर नहीं आ पाया है. इस कारण मतदानकर्मी और मतदान कार्य में लगे सुरक्षा कर्मी मतदान करने से वंचित रह जाते हैं. चूँकि इनकी संख्या लाखों में होती है अतः मतदान कम होने का यह प्रमुख कारण है. अपने देश में लगभग दो करोड़ लोग तो प्रति दिन अपना समय रेल यात्रा में गुजारते हैं. ये लोग मात्र वोट देने के लिये तो अपनी यात्रा नहीं रोक सकते। मतदान कम होने का यह भी एक मुख्य कारण है.
4. बड़ी संख्या में Genuine मतदाताओं का नाम मतदाता सूचि में नहीं जोड़ा जाता या अगर पहले से नाम है तो उनका नाम मतदाता सूचि से काट दिया जाता है. मतदान के करीब दो महीना पहले होने वाले घर-घर जाकर किया जानेवाला मतदाताओं का गहन पुनरीक्षण कागज पर ही रह जाता है. इस बार ECI द्वारा काफी समय दिया गया था, लेकिन इस कार्य में लगे निचले कर्मचारी सहयोग नहीं करते और ऊपर के अधिकारी सुनने को तैयार नहीं होते। लेकिन इसके विपरीत पिछले दरवाजे से शातिर नेता अपने लोगों हेतु बोगस मतदाता काफी संख्या में बनवा लेते हैं. बोगस मतदाता का अस्तित्व एक केन्द्रीय मन्त्री भी स्वीकार चुके हैं.
यह भी कहा जाता है कि बोगस मतदान की प्रवृत्ति ही Genuine मतदाताओं का नाम मतदाता सूचि में जुड़ने नहीं देती। अभी भी ऐसे बहुत क्षेत्र हैं जहाँ जागरूकता कम है और स्याही लगाने वाले मतदानकर्मी और बूथ एजेंट बेईमानी करने से नहीं चूकते।
5. जब-जब मतदान में कड़ाई होती है, तब-तब मतदान का प्रतिशत कम हो जाता है. विडिओग्राफी भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इसका उदहारण तब सामने आता है जब बोगस मतदान की शिकायत पर पुनः मतदान होता है.
6. खातेपीते घरों के लोग मतदान करने से कतराते हैं. उन्हें लगता है कि कोई सांसद/विधायक बने उनसे ये लोग अपना काम करा ही लेंगे। मतदान कर ये किसी भी राजनैतिक दल के कार्यकर्ताओं से नाराजगी मोल लेना नहीं चाहते। उप चनावों में इसका असर ज्यादा पड़ता है, जिसके कारण मतदान का प्रतिशत कम हो जाता है.
7. शिकायत निवारण तन्त्र कारगर नहीं है. इसके चलते नागरिकों को काफी कठिनाई हो रही है.
    प्रायः मतदान कर्मी निष्पक्षता पर कम और शान्तिपूर्ण मतदान पर अधिक ध्यान देते हैं. वे लोग छोटी-छोटी चुनावी मतदान सम्बन्धी बेईमानियों को नजरअंदाज करते रहते हैं. जैसे-जैसे मोबाइल फोन कनेक्टिविटी और इंटरनेट नेटवर्क में सुधार होता जायेगा, वैसे-वैसे इन प्रदेशों में भी मतदान का प्रतिशत बढ़ता जायेगा। समाजसेवियों को भी मतदाता को और जागरूक करने में अपना सहयोग बढ़ाना चाहिये। हमारा चुनाव आयोग(ECI) इस सम्बन्ध में मतदान-पर्ची घर-घर पँहुचा कर और विज्ञापनों के माध्यम से मतदाता जागरूकता अभियान चलाकर सराहनीय कार्य कर रहा है.
Note:- This article is based on heresay info which I believe to be correct. Readers are requested to verify its facts before believing it.
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