अयोध्या के श्रीराम मन्दिर-बाबरी मस्जिद के झगड़े का एक समाधान!

     जब तक श्री राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद का ताला नहीं खुलवाया था तब तक बहुत कम लोगों को यह झगड़ा मालूम था. मुझे तो उस समय तक इसके बारे में कुछ पता नहीं था. यह मेरा दुर्भाग्य ही था. संतोष की बात यही थी कि इस मामले में मैं अकेला नहीं था. उसके बाद तो समाचार-पत्रों में बहुत कुछ पढ़ने को मिला और आगे भी पढ़ने को मिलता रहेगा। उसके बाद श्री राजीव गांधी द्वारा श्री राम मन्दिर का शिलान्यास भी कराया गया. मैं यहाँ पर ताला खुलने के समय के कुछ श्रुति सम्मत बातों के आधार पर अयोध्या-बाबरी मस्जिद के झगड़े का एक समाधान का जिक्र करना चाहता हूँ, जो उस समय मुझे एक बुजुर्ग द्वारा बताया गया था.
     अयोध्या-बाबरी मस्जिद के झगड़े में तीन तथ्य स्पष्ट हैं--
1. श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था जबकि बाबर का जन्म कई देश पार उज्बेकिस्तान में हुआ था अर्थात अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम राम से जुड़ा है न कि क्रूरता के लिये नमी बाबर से. हिन्दुओं के दिलों में श्री राम का स्थान कई हजार वर्षों से ऐसे बन गया है कि उनको निकाला नहीं जा सकता। अधर्मियों या विधर्मियों को यह तथ्य हजम नहीं होगा।
2. बाबरी मस्जिद बाबर की बर्बरता, गैर धर्म के प्रति उसकी असहिष्णुता और उसकी भारत पर राज पताका को दर्शाता है.
3. साथ-साथ धार्मिक गतिविधियाँ चलाना सम्भव नहीं है. मस्जिद में नमाज के समय हिन्दुओं को मस्जिद के आस-पास शंख/घंटा बजाना, आरती करना, बारात लगाना, कीर्तन करना या कोई धार्मिक जुलुस निकालना वर्जित है.
    इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए एक समाधान निकलता है कि अभी जहाँ राम लल्ला का एक अस्थाई पूजा घर है वहाँ सरकारी खर्च पर एक मन्दिर सोमनाथ के तर्ज पर बना दिया जाये और सरकारी खर्च पर ही आयोध्या के सरयू पार कम से कम पच्चीस किमी की दूरी पर पंच-कोसी के बाहर एक भव्य मस्जिद बना दिया जाय.
इन दोनों धार्मिक स्थलों के बीच में किसी उपयुक्त स्थान पर एम्स की तर्ज पर एक बड़ा अस्पताल सरकारी खर्च पर बनवा दिया जाय. इस अस्पताल में मरीजों को दवा के साथ दुआ का भी लाभ मिलेगा। इन तीनो स्थानों पर रेल/सड़क परिवहन और अन्य आवश्यक सुविधाओं को भी उपलब्ध कराया जाये.
    इस तरह के समाधान प्रस्तुत कर पहले भी इस झगड़े को सलटाने का प्रयास किये गये थे, लेकिन अंग्रेजों ने कट्टरवादियों को उकसा कर समाधान नहीं होने दिया। राजीव गांधी इसका समाधान कर भारत को उदारवादी प्रगतिशील रास्ते पर ले जाना चाहते थे लेकिन दलाल और कट्टरवादी ताकतें उनके रास्ते में अवरोध खड़ा कर उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
    यह समाधान कुछ कड़वा जरुर है लेकिन भविष्य में शान्ति और सद्भाव स्थापित करने वाला साबित हो सकता है. इससे पर्यटन उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा। कुछ अदृश्य विभाजनकारी और कट्टरवादी ताकतें हैं जो श्रीराम मन्दिर-बाबरी मस्जिद के झगड़े का कोई सम्मानजनक समाधान होने ही देना नहीं चाहते।
    कृपया ध्यान दें. न्यायालय सामान्यतः विवादित भूमि के स्वामित्व पर अपना निर्णय देता है. पंचायती तो अन्ततः दोनों सम्प्रदाय के जवाबदेह लोगों को मिलकर ही करना है. तीसरा सम्प्रदाय इसके समाधान में दिलचस्पी क्यों लेगा?
विज्ञानं के इस युग में "काल निर्धारण पद्धति" का सदुपयोग करके भी हमारा पुरातत्व विभाग अपनी सार्थक भूमिका निभा सकता है.
नोट:- यह समाधान जनश्रुतियों पर आधारित है. मेरा उद्देश्य किसी के धार्मिक भावनाओं को आहत करना नहीं है. जिन पाठकों को इस आलेख के किसी अंश से असहमति या आपत्ति हो, वे कृपया इसे बकवास मानकर भूल जायें।
https://twitter.com/BishwaNathSingh
Readers' comment through Twitter
1.
BHUPENDRA@bps19
धार्मिक चस्मा उतारकर मानवतावादी सोच ही समाधान
          

Comments

Popular posts from this blog

मानकी-मुण्डा व्यवस्था और Wilkinson Rule

एक दादा का अपनी पोती के नाम पत्र

बिहार के पिछड़ेपन के कुछ छिपे कारण!