उग्रवाद समस्या के कुछ काल्पनिक समाधान।

    कहा जाता है कि ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिसका कोई समाधान नहीं हो. हर समस्या कुछ न कुछ दुःख देती है; कष्ट देती है. बड़े बुजुर्ग यह भी कह गये हैं कि जब भगवान किसी को दुःख देते हैं तो उसे दुःख सहने की शक्ति भी पहले ही दे देते हैं. उग्रवाद की समस्या ने भी न जाने हमारे समाज से कितनी ही जिंदगियाँ समय के पहले ही छीन ली. बहुत से उग्रवादी भी हमारे सुरक्षा बलों के मुठभेड़ में मारे गये. हमारे सुरक्षा बलों के बहुत सारे जवान उग्रवादियों द्वारा बारूदी सुरंग के विस्फोट किये जाने से या उनके द्वारा घात लगाकर किये गये हमलों में मारे गये.  उग्रवादियों ने बहुत से ग्रामीणों को मुखबिरी का आरोप लगाकर मार दिया तो बहुत से ग्रामीण उग्रवाद प्रभावित इलाकों में मेडिकल सुविधा के अभाव में समय से पहले ही स्वर्ग सिधार गये. उग्रवाद प्रभावित इलाकों में Human Index भी बहुत निम्न स्तर पर है.
    कुल मिलाकर अब इस सोशल मीडिया के युग में सिविल समाज के स्तर पर भी उग्रवाद की समस्या पर आवाज उठाने का समय आ गया है. सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव सरकार और नक्सली संगठनों पर भी बढ़ता जा रहा है. नक्सली समस्या के कुछ काल्पनिक समाधान नीचे दिये जा रहे हैं. प्रबुद्ध नागरिकों को इन काल्पनिक समाधानों पर चर्चा करते रहना चाहिये।
(1) राजनैतिक वार्ता द्वारा(Political Dialogue):- उग्रवादी अपने ही देश के लोग हैं लेकिन ये लोग हमारे सम्विधान को नहीं मानते। इनका मानना है कि सत्ता का जन्म बन्दूक की नोक से होता है. इन लोगों ने कभी-कभी दिखने वाली एक सेना बना ली है और ये अपना हथियार जंगलों में छिपाकर रखते हैं. इनके सक्रिय अति सदस्य ही पूर्णकालिक होते हैं और सक्रिय सदस्य लगभग सेना के सुरक्षित दल की तरह होते हैं जो प्रायः साल के आधा समय से ज्यादा अपने घर पर ही रहकर खेती या अन्य कार्य करते हैं. ये लोग आमने-सामने की लड़ाई में विश्वास नहीं रखते। हमारे सुरक्षा बल उचित दबाव बनाकर उग्रवादियों के शीर्ष नेता गणपति या उनके प्रतिनिधि को हमारे सम्विधान के परिधि में राजनैतिक वार्ता हेतु बाध्य कर सकते हैं. नक्सली नेताओं की उचित मांगों को मान लेने में कोई नुकसान नहीं है.
(2) सुशासन द्वारा:- उग्रवाद भी एक तरह से सामाजिक बिमारी ही है जो बहुत दिनों के कुशासन से पैदा हुई है. अतः इस बिमारी को सुशासन से ठीक किया जा सकता है. कुछ इलाकों में प्रशासन और ग्रामीणों के बीच में खाई बहुत बढ़ गयी और इस खाई से उग्रवाद की तेज धारा वाली नदियां बह रही हैं. यदि घोर उग्रवाद प्रभावित इलाकों में हर तीसरे महीने किसी Randomly Selected ग्राम पंचायत में राज्य और केन्द्र सरकार के सभी विभाग के हल्का से लेकर अनुमण्डल स्तर के सभी सम्बन्धित कर्मचारी और अधिकारी तीन दिनों का कैम्प लगाकर वहाँ के सभी मामलों को निपटाने का प्रयास करें तो कोई कारण नहीं कि सुशासन का परिणाम देखने को न मिले।

उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में सरकारी चिकित्सा सुविधा काफी कमजोर है. यदि उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रो में प्रतिनियुक्त सुरक्षा इकाई में एक मेडिकल यूनिट रखा जाये तो बड़ी संख्या में स्तानीय लोग सरकार के करीब आवेंगे। इस तरह उग्रवादियों के Population Distraction Tactics कमजोर पड़ जायेगा।
    उचित स्थानों पर सामाजिक पुल बनाकर प्रशासन और ग्रामीणों के बीच के सम्पर्क को भी मजबूत बनाया जा सकता है. सुशासन बढ़ने से अवैध उत्खनन और वन्य-उपज का अवैध कारोबार भी काफी कम हो जायेगा और तदनुरूप उग्रवादियों को मिलने वाला लेवी भी कम हो जायेगा। तब सरकारी सब्सिडी का पैसा भी सीधे ग्रामीण लाभुकों के खाता में जाने लगेगा। इससे उन इलाकों के ग्रामीणों के जीवन स्तर में भी सुधार होने लगेगा और उसी अनुरूप उनका Human Index भी बढ़ जायेगा।
(3) लड़ाई के माध्यम से:- एक अच्छा सिपाही अपने दुश्मन की रणनीतियोंन उनकी कमजोरियों और उनके ताकतों को अच्छी तरह समझने के बाद ही अपने दुश्मन से जी जान लगाकर लड़ता है. जी-न्यूज़ के अनुसार अपने देश में सक्रिय उग्रवादियों की संख्या करीब 20,000 है यानि इतने लोगों के पास पुलिस और सुरक्षा बलों से लूटे हुए घातक हथियार है. कुछ हथियार उन लोगों ने ख़रीदे भी होंगे. जब तक सशस्त्र उग्रवादियों को निरस्त्र नहीं किया जायेगा तब तक उग्रवाद की समस्या रुक-रुक कर अपना सर उठाते ही रहेगी। लोग उम्मीद लगाये बैठे हैं कि हमारे सुरक्षा बल अच्छी रणनीति बनाकर और उसका उचित रिहर्सल कर तथा कोई कारगर अभियान चला कर नक्सली समस्या का समाधान करेंगे। सुरक्षा बलों के दबाव बढ़ने और उचित माहौल बनने पर उग्रवादी बड़ी संख्या में अपने हथियारों के साथ आत्मसमर्पण भी कर सकते हैं.
(4) विकास के माध्यम से:- आज़ादी के बाद से ही सभी सरकारों ने अपने-अपने तरीके से कुछ न कुछ विकास जरूर किया है. भले ही विकास की मलाई खाने वालों की संख्या सीमित रही हो. वर्त्तमान सरकार "सबका साथ सबका विकास" के संकल्प के साथ काम कर रही है. शहरों और उसके आस-पास के गावों में विकास दिखने भी लगा है. नक्सल प्रभावित इलाकों में भले ही विकास का सूरज अभी नहीं निकला है लेकिन विकास का भिन्सहरा(Dawn) होने ही वाला है. कुछ ही समय में पक्षियों की चह-चह-आहट भी सुनायी देने लगेगी। लोगों को रोजगार मिलने लगेंगे तो युवा-युवतियों को गलत कार्य करने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी। इस रास्ते से उग्रवाद धीरे-धीरे मिटेगा, लेकिन मिटेगा जरूर।
कहा जाता है कि घोर उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में लगभग 25% और अन्य उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में लगभग 15% परियोजना राशि ठेकेदारों के माध्यम से उग्रवादियों के पास पँहुच जाता है. इसके अलावा उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में क्रियाशील खनन इकाई और Forest Produce के ठेकेदार भी उग्रवादियों को लेवी(Peace Money) के रूप में बड़ी राशि हर महीना देते हैं. इन सबकी समीक्षा बैठक में उस इलाके में प्रतिनियुक्त सुरक्षा इकाई प्रभारी को शामिल कर उनकी राय का महत्व देने से उग्रवादी आर्थिक रूप से कमजोर हो सकते हैं.
(5) समय स्वयं ही समाधान निकाल लेगा:- प्रायः समस्यायों की एक आयु होती है. इसी सिद्धान्त पर उग्रवाद समस्या की भी एक आयु होगी। या तो वर्त्तमान के उग्रवादी संगठन भविष्य की घटनाओं के प्रभाव में आकर स्वयं ही काल-कलवित हो जायेंगे या तो वे प्रजातन्त्र के माध्यम से स्वयं अपनी विधिवत सरकार बनाकर जनता की समस्याओं का अपने हिसाब से समाधान करेंगे। वर्त्तमान युग में कुछ क्षेत्रों में तकनीकी सुधार या उनमे होने वाले अविष्कार हमारे जीवन और हमारे समाज पर अपना प्रभाव जरूर डालेगा। निम्लिखित तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक है:-
(क) सौर ऊर्जा सस्ती हो रही है:- पिछले वर्ष यानि 2016 में कई देशों में या कई देशों के कुछ भागों में सौर ऊर्जा द्वारा उत्पादित बिजली वहाँ के कोयला संयन्त्रों द्वारा उत्पादित बिजली से सस्ती हो गयी है. इसी अनुरूप बैटरी भी सस्ती हो रही है. अगर यही ट्रेंड बरक़रार रहा तो हमारे देश के उग्रवाद प्रभावित इलाकों में भी सोलर पावर से सस्ती बिजली पँहुचने लगेगी और गरीब ग्रामीण भी इसका लाभ उठा कर राष्ट्र की मुख्य धारा में आ पायेंगे।
(ख) निचली कक्षा की उपग्रह(LEO) इन्टरनेट सेवा:-इस तरह की सेवा वर्ष 2019 में ग्रेग वैलेर अपनी कम्पनी OneWeb  के माध्यम से लाने की बात कर रहे हैं. उसके बाद ड्रोन के माध्यम से और भी कम्पनियाँ बिना टावर के ही सस्ती इन्टरनेट सेवा लाने वाली हैं. यह निर्विवाद सत्य है कि असामान्य गतिविधि या घटना की बात सामान्य लोगों में नहीं पचती। तब ऐसी सूचना पाकर कोई न कोई ग्रामीण उन सूचनाओं को प्रशासन को दे ही देगा। इस तरह के संचार को रोकना किसी के वश में नहीं है और सम्बन्धित सूचना पाकर स्थानीय प्रशासन को उचित कार्यवाही करने को बाध्य होना पड़ेगा।
(ग) ड्रोन सेवा:- बैटरी और हाइड्रोजन फ्यूल सेल में तेजी हो रहे सुधार के कारण सस्ते और कारगर ड्रोन बड़ी मात्रा में प्रशासन को उपलब्ध होने लगेंगे। इससे दुर्गम क्षेत्र की गतिविधियां भी अब आसानी से उन लोगों के पास भी पँहुचने लगेंगी जिन्हे कार्यवाई करने का विधि-सम्मत अधिकार होगा। ड्रोन सर्दियों के मौसम में तो Infra Red फोटोग्राफी का इस्तेमाल कर अवांछित गतिविधि का पता आसानी से लगा लेगा।
(घ) न्यायिक प्रक्रिया से:- अब आँखों-देखी गवाही या मौखिक सबूतों का जमाना नहीं रहा. कुछ अपवादों को छोड़कर नक्सली घटनाओं के बड़े आरोपी सबूतों के अभाव में न्यायालय से छूटते रहे हैं. अब नक्सल सम्बन्धी बड़े-बड़े मामलों को NIA अपने हाथ में ले रहा है और वैज्ञानिक तरीके से सबूतों को इकठ्ठा कर रहा है. यह एक अच्छी दीर्घ-कालिक नीति है. कुछ वर्षों बाद इसका सकारात्मक परिणाम देश को देखने को जरूर मिलेगा।
    जब तक जन-संख्या अनियन्त्रित रहेगी तब तक बेरोजगारी की समस्या बनी रहेगी। और जब तक बेरोगार अपने जॉब की तलाश में भटकते रहेंगे तब तक नक्सली संगठन को बन्दूक ढोनेवाले मिलते ही रहेंगे। समय बड़ा बलवान होता है. बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान समय स्वयं ही निकाल लेता है. इस माध्यम से उग्रवाद समस्या के समाधान में काफी समय लग सकता है. हमें यह भी याद रखना चाहिये कि समय सिर्फ उग्रवादियों को ही नहीं सुधारेगा बल्कि उग्रवादी जिनसे लड़ रहे हैं समय उनको भी सुधरेगा। अधिक से अधिक लोगों को इस ओर अपना गिलहरी प्रयास जारी रखना चाहिये। इस प्रश्न का भी उत्तर खोजा जाना चाहिये कि आखिर  नक्सल समस्या Law & Order की है या Security की?
   उक्त सभी पॉँच समाधानों में से सबसे मजबूत समाधान सुशासन का है और सबसे कमजोर समाधान विकास का माध्यम है. सम्बन्धित इलाकों में सरेआम कहा जाता है कि विकास के पैसे का बड़ा भाग कुछ ही लोगों को जाता है और अधिकांश ग्रामीणों के पास अभी भी स्व. राजीव गाँधी के प्रसिद्ध फार्मूला यानि 15% ही पँहुच पाता है. यानि विकास का माध्यम परोक्ष रूप से उग्रवादियों को ज्यादा मदद करता रहा है. लड़ाई और विकास के माध्यम से हम विगत पच्चास सालों से उग्रवादियों से लड़ रहे हैं. अब उक्त अन्य माध्यम भी आजमाये जाने चाहिये।
    बहुत पहले मलेरिया उन्मूलन हेतु मलेरिया विभाग बना था, लेकिन आज मलेरिया नाम की बिमारी भी है और मच्छर भी हैं तथा मलेरिया उन्मूलन विभाग वाले भी अपना काम कर रहे हैं. उसी तरह आज से पच्चास वर्ष पूर्व 1967 में नक्सलबाड़ी(पश्चिम बंगाल) से शुरू हुआ उग्रवाद भी अपने चरम पर है और उग्रवाद उन्मूलन में लिप्त हमारे सुरक्षा बल भी क्रियाशील हैं. यह कैसी विडम्बना है कि जहाँ उग्रवादी काफी सक्रिय हैं वहाँ कार्य करने वाली उत्खनन कम्पनिया और वन्य उत्पादों के व्यापारी तथा वहां क्रियाशील मिशनरियों के लोगों को तो अपना कार्य करने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन हमारे प्रशासन के लोगों को वहाँ जाकर अपना कार्य करने में काफी परेशानी हो रही है. अब यह स्थिति बदलनी चाहिये।
नोट:- यह ब्लॉग विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर चुके कई अनुभवी लोगों से उग्रवाद पर हुई चर्चा पर आधारित है. इसमें यथास्थान कुछ लिंक दिये गये हैं, जिनका लाभ उठाया जा सकता है. पाठकों की खट्टी-मीठी टिप्पणियों का हमेशा स्वागत रहेगा।
https://Twitter.com/BishwaNathSingh
Comments through Twitter
1.   06.05.2017
"Very clear!"
2.


Comments

  1. Its nice to state the hypothetical solution. But all above there is a problem of illiteracy in deep fringe area. So the literate persons can be learned but an illiterate does not what is nationalism or humanity. Discrimination in religion, caste, wealth, race, colour etc. is the cause of most violent activity in the world. So the world need to give equal opportunity in hunger, thirst, medical aid, education, transportation, security to all without discrimination will cause people to think about nation. There is nothing given by nation to people open hands. So the reason they could not think about patriotism. The politicians know there is no need to educate to a person to vote him so he never provide the normal living accessaries to the people. They want them to be alive till vote only after that they have no need to worry about them. So the several reforms are required to solve problems of terrorism.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

मानकी-मुण्डा व्यवस्था और Wilkinson Rule

एक दादा का अपनी पोती के नाम पत्र

बिहार के पिछड़ेपन के कुछ छिपे कारण!