Posts

Showing posts from July, 2023

प्रतावित यूक्रेन-रूस शांति वार्ता

भले ही पूरा विश्व यूक्रेन और रूस के बीच चलने वाले सैन्य संघर्ष को एक युद्ध माने लेकिन अभी भी रूस इसे एक विशेष सैन्य अभियान ही मानता है। प्रस्तावित शांति समझौता के दो कारण दिखता है। 1. यदि युद्ध नहीं रुका तो विश्व व्यापी मंदी के खतरे दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। आसन्न मंदी के खतरे को समझने हेतु गत जून के चीन के निर्यात के आंकड़े एक पर्याप्त संकेत है। उस माह में चीन का निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में 12.4% घटा है। यह ह्रास विगत पांच दशकों में पहली बार हुआ बताया जा रहा है। यह आसन्न मंदी की एक स्पष्ट घंटी है। आसन्न मंदी को समझने हेतु दूसरा उदाहरण है क्रूड ऑयल के उत्पादन में भारी कटौती के बाद भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपेक्षा के अनुरूप उसके मूल्य नहीं बढ़ रहा है। सऊदी अरब ने जुलाई महीने के प्रथम सप्ताह से ही अपने क्रूड ऑयल के उत्पादन में दस लाख बैरल प्रतिदिन की अतिरिक्त कटौती की है। 2. अभी का सऊदी अरब की जनता और शासक दल के लोग अपने पूर्व की पीढ़ी की तुलना में अधिक शिक्षित है। वहां का शासक दल विश्व राजनीति में अपनी हिस्सेदारी भी चाहता है। यदि प्रस्तावित शांति समझौता सम्पन्न हो जाता है तो सऊदी

दो लंगोटिया मित्र का वार्तालाप

पहला: ~ हमारे देश की प्रगति का एक तरकीब है। दूसरा: बताओ। पहला: ~ जब हम लोगों का भारत पर राज होगा तब हम अमरीका पर आक्रमण कर देंगे। अमरीका हमे जीतकर अपना इकावनवा राज्य बना लेगा। अमरीका तो हमेशा ही तरक्की करते रहता है; वह हमारे देश को भी विकसित कर देगा। कल्पना करो उस स्थिति का। हमारे देश का करेंसी भी मजबूत डॉलर होगा, वहां जाने के लिए कोई वीजा की आवश्यकता नहीं होगी। दुनिया भर में हमारे नागरिकों का अमरीकी के रूप में सम्मान बढ़ जायेगा। दूसरा मित्र उदास हो गया। पहले ने उनसे उदासी का कारण पूछा। दूसरे ने बताया कि बताओ यदि युद्ध में अमरीका हार गया तब क्या होगा? पहला मित्र: ~ अरे भाई, यह तो बहुत ही अच्छा हो जायेगा। जब हमारा देश जीत जायेगा तब हम अमरीका में भी आरक्षण लागू कर देंगे। इससे  वहां की बहुत सी नौकरी हमारे लोगों को मिलने लगेगी। तुम्हे मालूम है पहले अलास्का रूस का एक भूभाग हुआ करता था। हम अलास्का राज्य को रूस को लौटा देंगे। इससे रूस भी हमसे प्रसन्न हो जायेगा।  आप अपनी उदासी हटाइए और चुनावी मोड में आ जाइए। चुनाव में अपनी पार्टी की जीत निश्चित है। जय हो सामाजिक न्याय की।

अति वामपंथ का एक रूप

 बात 1977 की है। एक छोटा क्षेत्र वाम पंथ से आगे बढ़कर अति वामपंथ की ओर बढ़ गया। एक सुबह उस अति वामपंथ प्रभावित क्षेत्र के कई गांवों में दीवारों पर एक ही नारा लिखा गया था। वह नारा था -  " मांस मांस सब एक है का सुअर का गाय। " इस दीवार लेखन के नारे पर चर्चा होती रही। अति वामपंथी नेता उस नारे की व्याख्या अपने ढंग से करते रहे। उन नेताओं ने धर्म को गरीबों की मुक्ति में एक बड़ी बाधा बताते रहे। चाहे जो हो उस दीवाल लेखन के नारे ने उस क्षेत्र से बहुत ही भय का वातावरण बना दिया। यहां तक कि कुछ वामपंथी गरीब विशेषकर बूढ़े महिला पुरुष उस नारे से क्षुब्ध हो गए। कुछ माह बाद राता राती उसी नारे के नीचे दूसरा नारा उसी लय में किसी समूह ने लिखवा दिया "......   ......  सब एक है का जोडू का माय।"  अगले सुबह जब ग्रामीण उठे तो नए नारे को देख कर भ्रमित हो गए। उन्हे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। उस दूसरे नए नारे की बहुत चर्चा बहुत जोरों से होने लगी। लोग यही कहते रहें कि जब पहले वाला सही है तो दूसरा कैसे गलत है?  मात्र एक नारे का उसी रूप रूप में प्रतिकार से उस पूरे क्षेत्र में ध