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हमारे सार्वजनिक उपक्रम/संस्था के पड़ुआ बैल

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 एक दिन की परिचर्चा में एक सज्जन ने एक उदाहरण दिया। "एक किसान ने मेला से एक बाछा लाकर उसे पाला पोसा। बैल बनने पर वह बाछा पड़ुआ  निकल गया। उसके पास इतना संसाधन भी नहीं था जिससे कि वह उस पड़ुआ बैल के स्थान पर एक नया बैल खरीद सके। इससे वह किसान बहुत परेशान रहने लगा क्योंकि इससे उसकी खेती बाधित होने लगी। किसान का एक बैल पड़ुआ जरूर था लेकिन वह खाने-पीने में कभी भी पीछे नहीं रहता था। वह पड़ुआ बैल देखने में हट्टा कट्ठा था। किसान उसके कल्याण में कोई कमी नहीं रखता था। कुछ वर्ष बाद उसका एक बेटा जवान हो चला था। उसने अपने एक मित्र के पिता से निहोरा कर उनका एक बैल मांग कर लाया और अपनी खेती करने लगा। बदले में वह अपने मित्र के खेतों में मजदूरी भी कर देता। इससे दोनों परिवारों की समृद्धि बढ़ने लगी। यही स्थिति हमारी सरकारी कंपनियों की है।" सरकारी कंपनियों/संस्थाओं के कामगारों की तुलना उक्त पड़ुआ बैल से करने और उसके स्थान पर outsourced बैल से खेती कराये जाने पर परिचर्चा के एक दूसरे प्रतिभागी भड़क गये। तल्खी इतनी बढ़ी कि परिचर्चा को बंद करना पड़ा। अब बहुत से लोग उक्त तुलना को सही और सटीक बता रहे हैं। किस