उस ज्ञान का क्या लाभ जो राष्ट्र निर्माण के काम ना सके.
हमारे देश में ज्ञानियों की संख्या बहुत है। ऐसे लोगों के पास ऐसी जानकारियां हैं जिनके सदुपयोग से हमारा राष्ट्र कम समय में ही काफी प्रगति कर सकता है। दुनिया में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसके पास राष्ट्र निर्माण के योग्य कोई न कोई महत्वपूर्ण जानकारी नहीं होगी। ऐसे बहुत लोग दुनिया से विदा हो गये लेकिन अपने पास की विशेष जानकारी दूसरों को नहीं दे पाये। इसका सबसे बड़ा खामियाजा हमारे आयुर्वेद को उठाना पड़ा है. जब हमारा देश आज़ादी और गुलामी के बीच के संक्रमण काल से गुजर रहा था तब भी बहुत से ज्ञानी और चिन्तक चुप रहे. वे चाहते तो गुलामी का दुष्परिणाम सामान्य लोगों को समझा सकते थे लेकिन उन लोगों ने चुप रहना ही उचित समझा। शायद उन्हें लगा कि उन्हें अगला शासक और उसके आदमी इसलिये तंग नहीं करेंगे क्योंकि वे तो तटस्थ हैं. यही स्थिति आज बढ़ती जनसँख्या और विकराल होती बेरोजगारी ने पैदा कर दी है. आज पुनः हम एक संक्रमण काल से गुजर रहे हैं. धीरे-धीरे संसाधनों की कमी हो रही है. सरकारी अस्पताल हो या सरकारी स्कुल या रेल गाड़ी हो हर जगह भीड़ देख कर इसे अनुभव किया जा सकता है. यानि राष्ट्रीय संसाधनो