आरक्षण अब अधिकांश लोगों को कष्ट देने लगा है.

     26 जनवरी 1950 को हमारा सम्विधान लागू हुआ. हमारे सम्विधान निर्माताओं ने हमें सबको बराबरी का दर्जा दिया था. इस समानता के अधिकार की खूब चर्चा हुई थी और दुनिया भर में हमारे प्रजातन्त्र और सम्विधान की खूब प्रशंसा हुई. लेकिन अगले ही साल 1951 में प्रथम सम्विधान संसोधन के माध्यम से हमारे देश के नीति निर्धारक नेताओं ने हमसे समानता का अधिकार सदा के लिये छीन लिया और सरकारी नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था कर दी. समय बीतने के साथ आरक्षण के लाभ-हानि भी सामने आने लगे. अब आरक्षण अधिकांश लोगों को कष्ट देने लगा है. इस कारण आरक्षण पर बहस भी तेज होने लगी है.
       क्या यह हास्यास्पद नहीं है कि अब तीसरी पीढ़ी के लोग भी आरक्षण का मलाई खा रहे हैं और उसकी चौथी पीढ़ी के युवा लोग भी आरक्षण का लाभ लेने हेतु कतार में खड़े हैं. अर्थात आरक्षित वर्ग के सम्पन्न लोग ही अपने वर्ग के गरीबों का हक़ मार रहे हैं. संचार बढ़ने से इस बात की भी सम्भावना है कि निकट भविष्य में ही अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये आरक्षित वर्ग में ही आंतरिक संघर्ष(Intra- Class Struggle for Existence) प्रारम्भ हो जाय.
योग्यता:- रकारी नौकरी हेतु आयोजित प्रतिस्पर्द्धात्मक परीक्षाओं में प्रायः आरक्षित वर्ग के परीक्षार्थियों द्वारा प्राप्त अधिकतम अंक 40 से 50% के बीच और अनारक्षित वर्ग के लिये न्यूनतम अंक 70% के आस-पास रहा है. यानि लगभग आधे से अधिक कर्मचारी कम योग्यता वाले हो गये हैं. इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव अपराध जगत पर पड़ा है. कुछ युवा जो अधिक योग्यता रखते थे लेकिन उन्हें रोजगार नहीं मिला और वे कुसंगति में पड़कर अपराध जगत या उग्रवादी संगठन में प्रवेश कर गये. ऐसे अपराधी/उग्रवादी नयी-नयी अपराध शैली और आधुनिक तकनीकों को अपना कर अपने से कम योग्यता वाले पुलिस और सुरक्षा बलों को ठेंगा दिखाने रहते हैं.
कार्य-दक्षता:- अनारक्षित वर्ग के अधिकारी आरक्षित वर्ग के अधीनस्थ कर्मचारियों से अपेक्षित कार्य नहीं करा पा रहे हैं. सच्चाई तो यह भी है कि बड़ी संख्या में अनारक्षित वर्ग के उत्कोची अधिकारी आरक्षित वर्ग के अधीनस्थ कर्मचारियों से डरते हैं. इसके विपरीत बहुत से आरक्षित वर्ग के अधिकारी अपने अधीनस्थ अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों के साथ सौतेला व्यवहार करते हैं. इन दोनों परिस्थितियों में ही श्रम-उत्पादकता घट रही और कार्य-दक्षता प्रभावित हो रही है. कार्य-दक्षता और श्रम-उत्पादकता घटने से समाज और राष्ट्र को नुकसान हो रहा है. इससे अधिकांश लोगों को मानसिक कष्ट होना स्वाभाविक है.
जन-संख्या में वृद्धि:- आज़ादी के बाद ही सरकार ने जन-संख्या नियन्त्रण की नीति अपनायी। पहले "दो या तीन बच्चे, सुखी परिवार" और बाद में "हम दो हमारे दो" की नीति की घोषणा की गयी. लेकिन इन नीतियों को कभी भी गम्भीरतापूर्वक लागू नहीं किया गया. परिणाम यह हो रहा है कि जन संख्या तेजी से बढ़ रही है और इस वृद्धि के अनुपात में रोजगार सृजन नहीं हो रहा है. परिणाम स्वरुप बेरोजगारी बढ़ रही है. बेरोजगारी बढ़ने से आरक्षण का पूरा लाभ समाज को नहीं मिल रहा है.         
रोजगार के अवसर:- आरक्षण के आधार पर सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर मिलते हैं. मोटा-मोटी अनुमान के अनुसार हर साल लगभग पाँच लाख+ नौकरी उपलब्ध होती है, जिनमे से लगभग तीन लाख नौकरी आरक्षित वर्ग को मिलती है. इसके विपरीत रोजगार चाहने वालों में हर साल एक करोड़ से अधिक नये लोग आरक्षित वर्ग में बढ़ जा रहे हैं. यानि हर साल मात्र तीन प्रतिशत को ही आरक्षण के आधार पर नौकरी मिलती है. इन आंकड़ों पर लगातार बहस होते रहती है और आगे भी बहस होते रहेगी। 
रोजगार के अवसर में कमी:- तकनीकि दुनिया में तेजी से बदलाव आ रहे हैं. प्रशासनिक खर्च में कटौती हेतु प्रायः सभी विभागों में आधुनिकीकरण के नामपर स्वचालन अपनाया जा रहा है. उसी तरह परियोजाओं के खर्च में कटौती और तेजी से काम करने हेतु मशीनीकरण पर जोर दिया जा रहा है. हमारे श्रम कानून और आरक्षण भी कुछ हद तक स्वचालन की प्रक्रिया को तेज करने में सहायक रहा है. IBM Watson दुनिया भर में रेडियोलाजिस्ट की नौकरियों को धीरे-धीरे लील रहा है और Tesla एवम अन्य की चालकरहित गाड़ियां में दस्तक देने लगा है. यानि कार्य करने वालों के लिये अवसर कम हो रहे हैं और आगे भी कम होते जायेंगे. चूँकि हर साल ठेकेदारी, स्वचालन और मशीनीकरण से रोजगार के अवसर घट रहे हैं अतः आरक्षण का लड्डू हर साल छोटा ही होते जा रहा है और लड्डू  का प्रसाद चाहने वालों की संख्या बढ़ रही है.
प्रोन्नति में आरक्षण:- आरक्षित वर्ग के व्यक्तियों के लिये नौकरी पाने में आयु की छूट है, लेकिन सेवा निवृत्ति में कोई छूट नहीं है. इसका असर यह होता है कि बड़ी संख्या में आरक्षित वर्ग के लोग प्रोन्नति पाने के पहले ही सेवा-निवृत्त हो जाते हैं और उस वर्ग में रिक्ति हो जाती है. अपने जूनियर के अधीन काम करना पीड़ादायक होता है और इससे दक्षता प्रभावित होती है. इसी आधार पर माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने अब प्रोन्नति में आरक्षण पर रोक लगा दी है. लेकिन राजनेता समाज को बांट कर राज करने के अपने संवैधानिक हथियार को अपने हाथ से जाने देना नहीं चाहते और समय समय पर कानून बनाकर माननीय सर्वोच्च न्यायलय के आदेश को निरस्त कर आरक्षण को प्रोन्नति में भी लागू करना चाहते हैं.
     सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों में निजी कम्पनियों की तुलना में अधिक कर्मचारी हैं. जैसे बीएसएनएल में लगभग दस करोड़ ग्राहकों की सेवा देने हेतु एक लाख से अधिक कर्मचारी हैं, जबकि निजी दूर संचार कम्पनियों में काफी कम हैं. अब बीएसएनएल को अपने बाजार में टिके रखने के लिये स्वचालन और आधुनिक तकनीकों को अपना कर अपने कर्मचारियों की संख्या कम करनी ही होगी। अगर पाठक इस बिन्दु पर थोड़ा चिन्तन करेंगे तो उन्हों इस तरह के दर्जनों उदहारण और मिल जायेंगे।
Creamy Layer की अवधारणा:- माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने समाज में आरक्षण से उपजे अविश्वास के वातावरण और कड़वाहट को कम करने के लिये क्रीमी लेयर की अवधारणा को प्रतिस्थापित किया था. क्रीमी लेयर बनाने का मुख्य उद्देश्य था "आरक्षण या अन्य सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने से जो समाज में मलाईदार परत जम गयी उसको अलग करना"। लेकिन दुर्भाग्यवश राजनैतिक कारणों से क्रीमी लेयर को इस तरह से परिभाषित किया गया कि इस अवधारणा की धार कुन्द हो गयी. अभी आठ लाख रुपये प्रतिवर्ष से ऊपर की कमाई बताने वालों के आश्रित ही आरक्षण की सुविधा से वंचित किया गये हैं। ये अब सभी जानते हैं कि अधिकांश लोग अपना सही आय नहीं दिखाते। यानि महँगी कारों और हवाई जहाज से यात्रा करने वाले और पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले तो आरक्षण का लाभ पा सकते हैं लेकिन किसी तरह सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले और जेनरल क्लास में ट्रेन में यात्रा करने वाले अनारक्षित जाति प्रतिभावान युवक/युवती आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकते।
आरक्षित वर्ग को नौकरी पाने में परीक्षा में भाग लेने हेतु सामान्य से अधिक अवसर मिलता है. इसका सबसे ज्यादा लाभ वे ही उठा पाते हैं जो कोचिंग संस्थानों के माध्यम से आते हैं. यानि क्रीमी लेयर वाले अपने ही वर्ग के गरीब युवा-युवतियों का नौकरी पाने के अधिकार का हनन करते हैं. इस कारण भी आरक्षित वर्ग के गरीब लोगों को कष्ट होने लगा है.    
आरक्षण की सुविधा का दुरूपयोग:- अख़बारों में गलत जाति प्रमाण-पत्र बनवा कर नौकरी पाने, जन-प्रतिनिधि बन जाने और शिक्षण संस्थाओं में दाखिला प्राप्त कर लेने की ख़बरें प्रकाशित होती रही हैं. बहुत से लोगों ने अपना धर्म तो बदल लिया लेकिन अपने जाति प्रमाण पत्रों में अपना धर्म अपने पूर्वजों का ही लिखवाया तथा आरक्षण का लाभ सभी स्तरों पर लेते रहते हैं. इन सब से आरक्षित गरीबों में निराशा पनप रही है और उन्हें मानसिक कष्ट हो रहा है. आरक्षण उत्कोच रूपी राक्षस को भी पालते-पोषते रहा है.
आरक्षण प्राप्त करने हेतु जाट और पटेल आन्दोलन:- आरक्षण प्राप्त करने के लिये हरियाणा में जाट और गुजरात में पटेल आन्दोलन सम्बन्धी समाचार कभी-कभी टीवी पर तथा समाचार पत्रों में मुख्य स्थान पा जाते हैं. जिस तरह ये दोनों आन्दोलन के नेता अपने राज्य के बाहर भी बड़े नेताओं का समर्थन पा रहे हैं उससे ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि में वे लोग कुछ ही सालों में अपनी सफलता प्राप्त कर लेंगे। उसके बाद गुर्जर(राजस्थान), महतो(झारखण्ड) आदि ऐसी और जातियां जो सरकार बनाने या बिगाड़ने की ताकत रखती हैं इस तरह के आन्दोलन करने को प्रेरित होंगी।
     आरक्षण के रहते हम ऐसे समाज की रचना नहीं कर सकते जिसमे सभी को अपनी प्रतिभा दिखाने का समान अवसर मिल सके. अब आरक्षण हमारे समाज को बांटने का एक संवैधानिक हथियार भी बनता जा रहा है और समाज में समरसता की कमी का खामियाजा सामान्य लोगों को भुगतना पड़ रहा है. अब आरक्षण हमारे समाज में आर्थिक और सांस्कृतिक असन्तुलन पैदा करते हुए "सबका साथ, सबका विकास" की अवधारणा को भी अन्दर ही अन्दर खोखला करते जा रहा है.
      मात्र तीन प्रतिशत को नौकरी देकर पूरे आरक्षित वर्ग का विकास करना चाँद को धरती पर लाने के समान है. सिर्फ आरक्षण किसी वर्ग की समस्याओं का निदान नहीं हो सकता। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाकर पूरे समाज का विकास करना कुछ कठिन जरूर है लेकिन असम्भव नहीं। अब यह देखना है कि "योग्यता और जाति" का यह खेल हमारे समाज को; देश को कहाँ ले जाता है?
नोट:- रोजगार के अवसर के आंकड़े में विवाद हो सकता है. अगर किसी के पास अद्यतन आधिकारिक आंकड़े हों तो बताये। मैं इस ब्लॉग में कही गयी बातों से असहमति रखने वालों से क्षमाप्रार्थी हूँ. पाठकों की खट्टी-मीठी टिप्पणियों का सदैव स्वागत रहेगा।
https://twitter.com/BishwaNathSingh
Comments through Twitter
1.  
जिसे एक बार आरक्षण का लाभ मिल गया उसके पुत्रों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिये।
2.  
India's socialism only led 2 numerous gatekeepers - leading 2 wholesale : corruption , bribery & red tap --
3.

Comments

  1. Can Narendra Modi abolish the caste system like the USA abolished slavery in 1863?

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  2. Reservation causes discrimination for capable. Many people do not say anything against reservation because they have accepted it as one of several barriers to job. If it is abolished and opportunities are given equally to all then it will be a just and fair society.

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