एक बैल की बिक्री, एक बुजुर्ग की जुबानी
बैल का दाम एक सौ अस्सी रुपया बात लगभग छ दशक पहले की है उस समय मै सकलडीहा इन्टर कालेज मे दशवी या ग्यारहवी का छात्र धा। उस समय खेती बैलो से ही होती थी। सकलडीहाँ में बैलो का विशाल मेला लगता था। यह मेला गर्मी मै लगता था ताकि बर्षात से पहले किसान अपने पुराने बैल बेचकर नया बैल खरीद सकें। यह मेला हमारे गाँव त्रिपाठ से डेढ कोस दूर पड़ता धा। गाँव के सभी लोग अपने बैलों की सींग व पगहा रंगकर मेला मे एक सीध मे रखते थे। हमारे गाँव के सोहन(name changed) जिनको हमलोग ठेठी कहते थे वे भी अपना बूढ़ा नाटा बैल बेचने के लिये गये थे। उनके भाई ने कहा था कि 180रु भी मिले तो बेच देना। एक गाहक आया व संबाद हूबहू लिख रहा हूँ। गाहक'- इ बैल क केतना लेबा? ठेठी:- तू बतावा केतना देबा? गाहक-अढ़ाई सौ। ठेठी -बड़ बड़ी ऊख क सेतही लवाही। बैल 180 रु से एक्को पैसा कम न लेब (बस इस बात पर वहां उपस्थित गाँव के लोग हँसने लगे।) गाहक- ठीक हौ भैया एक सौ अस्सियै लेला। गाँव के लोग समझाने लगे कि अढ़ाई सौ 180रु से अधिक होति है पर ठेठी ने कहा कि 180ही लेगे। गाहक:- ठीक हौ एकसौ अस्सी ही लेलो। पर ठेठी तो ठेठी थे। वे लोगो के हसने से चिढ़