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Showing posts from 2023

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को बढ़ाने का औचित्य

 प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना कोरोना काल में प्रारम्भ हुआ था। यह योजना दिनांक 31.12.2023 को समाप्त होने वाली थी।इस योजना में लगभग अस्सी करोड़ कथित रूप से गरीब लोगों को जन वितरण प्रणाली के माध्यम से प्रत्येक लाभार्थी को 5 kg प्रति माह अन्न देने का प्रावधान है। मान लीजिये कि मोदी सरकार इस योजना को आगे नहीं बढ़ाती तो ऐसे में क्या होता? मेरा उत्तर: इस योजना में प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ टन अनाज वितरित किया जाता है। अब इतना अनाज FCI किसानों से एमएसपी पर नहीं खरीदती। तब किसान नेता शोर मचाते कि उनके अनाज को सरकार नहीं खरीद रही है। तब किसानों को इतना अनाज व्यापारियों के हाथों बेचना पड़ता। अब व्यापारी किस तरह से खरीद के मौसम में मूल्य कम करा देते हैं इसे हमने पूर्व सरकार में देखा है।  क्या किसान और किसानों के हितैषी यही चाहते हैं? या फिर नया किसान आंदोलन?

हमास इजरायल युद्ध बम, गोला, बंदूक के आगे

  कुछ विचित्र जानकारी 1. सन 1948 में यूएनओ ने पुराने इजरायल के नाम पर पुनः भूमध्य सागर के पूर्वी तट और फिलिस्तीन के निकट एक इजरायल नाम के देश की स्थापना की। फिलिस्तीनियों ने इसे स्वीकार नहीं किया और झगड़ा प्रारम्भ हो गया। लेकिन अमेरिका के सहयोग से इजरायल फलता फूलता रहा। 2. सन 1948 की तुलना में फिलिस्तीनियों ने अपनी जनसंख्या दस गुनी बढ़ा ली। लेकिन यहूदियों के समूल नाश के सिद्धांत पर बढ़ते हुए सिर्फ इस्लाम की कट्टरता बढ़ाते रहे। 3. इसके विपरीत इसराइली लोकतांत्रिक विधि से अपनी बुद्धि और परिश्रम तथा व्यापारिक कौशल से जल प्रबंधन और आधुनिक कृषि को बढ़ाते रहे। 4. स्थिति यह है कि पूरी फिलिस्तीन आबादी इसराइली कम्पनियों के पानी और कृषि उपज पर आश्रित हो गए।  5. स्थिति यह हो गई है कि गाजा पट्टी के बीस लाख और वेस्ट बैंक के तीस लाख फिलिस्तीनी को यदि पूर्ण रूप से पानी रोक दे तो विश्व भर के मुसलमान और सेकुलर चाहे जितना पैसा दे दें उन्हे पानी उपलब्ध नहीं करा सकते। 6. इसराइली सेना ने गाजा स्थित "नेशनल इस्लामिक बैंक ऑफ गाजा" को पूर्ण रूप से ध्वस्त कर दिया है। अर्थात गाजा वासी बैंकिंग सेवा से वं

चंद्रयान 3 ने खोला संभावनाओं के द्वार

 पृथ्वी पर का वायु मण्डल उल्कापात से हमारी रक्षा करता है। जब ब्रह्माण्ड से आकर उल्का पिंड तीव्र गति से हमारे वायु मण्डल से टकराते हैं तो घर्षण से भस्म होकर छोटे छोटे कण के रूप में बिखर जाते हैं। चूंकि हमारी पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत भाग जलमग्न है अतः वर्षा से वे उल्का पिंड के कण प्रायः उतने ही भाग जल में समा जाते हैं। उन पदार्थों का उत्खनन अत्यंत ही कठिन और खर्चीला होता है। इसके विपरित चांद के वायु मण्डल विहीन वातावरण में उल्का पिंड या तो जमीन में धंस जाते हैं या चट्टान से टकराकर कर कई टुकड़ों में टूट कर सतह पर बिखर जाते हैं। अब कहा जाता है कि उल्का पिंड में बहुमूल्य पदार्थ हो होते हैं। इस कारण चांद पर बहुमूल्य पदार्थ या धातुओं का उत्खनन आसान है। उम्मीद है इसरो अब उत्खनन की नई चुनौतियों से निबटते हुए हमारे देश को बहुमूल्य धातुओं और He3(Helium isotope) जैसे उच्च ऊर्जा वाले गैस को लाने की दिशा में अग्रसर होगा। चंद्रयान 3 का चांद पर सफल पत्तन एक शुभ संकेत है। इस सफल प्रयोग ने हमारे वैज्ञानिकों का मनोबल बढ़ाया है। इसने साथ ही हम भारतीयों में भी पहले से व्याप्त हीनभावना को भी समाप्त किया है

नये प्रकार की भूमिगत यातायात प्रणाली

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 यह कम्पनी एक नया प्रकार की यातायात प्रणाली विकसित कर रही है। इस कम्पनी के स्वामी ने छः वर्ष पूर्व कहा था कि उनकी योजना Prufork टनल बोरिंग मशीन से प्रति सप्ताह एक माइल टनल बनाने की क्षमता प्राप्त करने की है। यह अधिकतम गति घोंघा(snail) की होती है। इस वर्ष इस कम्पनी ने Prufork 2 बनाकर प्राप्त कर लिया है। उक्त फोटो Prufork 3 का है। एक समाचार के अनुसार इस नया TBM के टनल बनाने की गति पूर्व की अपेक्षा कम खर्च में प्रति दिन 7 माइल तक की हो सकती है। इस नई यातायात प्रणाली में विकसित टनल का व्यास 12 की है। वर्तमान में यह कम्पनी अमेरिका के सबसे महंगे शहर लास वेगास में 65 माइल की भूमिगत सड़क का निर्माण कर रही है। इसमें से लगभग 17 माइल का भूमिगत यातायात प्रणाली कार्य कर रहा है। यह दुनिया भर के मेट्रो यातायात प्रणाली से सस्ती हो सकती है। इसमें गर्मी, ठंढा और बरसात का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह नदियों और पहाड़ों नीचे से होते हुए समतल भूभाग के लगभग 40 फीट नीचे से गुजरने वाली बताई जा रही है। अर्थात हमारा क्षितिज धीरे धीरे मनोहारी होते जा रहा है। हो सकता है कि इसी दशक में यह हमारे देश में भी आ

प्रतावित यूक्रेन-रूस शांति वार्ता

भले ही पूरा विश्व यूक्रेन और रूस के बीच चलने वाले सैन्य संघर्ष को एक युद्ध माने लेकिन अभी भी रूस इसे एक विशेष सैन्य अभियान ही मानता है। प्रस्तावित शांति समझौता के दो कारण दिखता है। 1. यदि युद्ध नहीं रुका तो विश्व व्यापी मंदी के खतरे दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। आसन्न मंदी के खतरे को समझने हेतु गत जून के चीन के निर्यात के आंकड़े एक पर्याप्त संकेत है। उस माह में चीन का निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में 12.4% घटा है। यह ह्रास विगत पांच दशकों में पहली बार हुआ बताया जा रहा है। यह आसन्न मंदी की एक स्पष्ट घंटी है। आसन्न मंदी को समझने हेतु दूसरा उदाहरण है क्रूड ऑयल के उत्पादन में भारी कटौती के बाद भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपेक्षा के अनुरूप उसके मूल्य नहीं बढ़ रहा है। सऊदी अरब ने जुलाई महीने के प्रथम सप्ताह से ही अपने क्रूड ऑयल के उत्पादन में दस लाख बैरल प्रतिदिन की अतिरिक्त कटौती की है। 2. अभी का सऊदी अरब की जनता और शासक दल के लोग अपने पूर्व की पीढ़ी की तुलना में अधिक शिक्षित है। वहां का शासक दल विश्व राजनीति में अपनी हिस्सेदारी भी चाहता है। यदि प्रस्तावित शांति समझौता सम्पन्न हो जाता है तो सऊदी

दो लंगोटिया मित्र का वार्तालाप

पहला: ~ हमारे देश की प्रगति का एक तरकीब है। दूसरा: बताओ। पहला: ~ जब हम लोगों का भारत पर राज होगा तब हम अमरीका पर आक्रमण कर देंगे। अमरीका हमे जीतकर अपना इकावनवा राज्य बना लेगा। अमरीका तो हमेशा ही तरक्की करते रहता है; वह हमारे देश को भी विकसित कर देगा। कल्पना करो उस स्थिति का। हमारे देश का करेंसी भी मजबूत डॉलर होगा, वहां जाने के लिए कोई वीजा की आवश्यकता नहीं होगी। दुनिया भर में हमारे नागरिकों का अमरीकी के रूप में सम्मान बढ़ जायेगा। दूसरा मित्र उदास हो गया। पहले ने उनसे उदासी का कारण पूछा। दूसरे ने बताया कि बताओ यदि युद्ध में अमरीका हार गया तब क्या होगा? पहला मित्र: ~ अरे भाई, यह तो बहुत ही अच्छा हो जायेगा। जब हमारा देश जीत जायेगा तब हम अमरीका में भी आरक्षण लागू कर देंगे। इससे  वहां की बहुत सी नौकरी हमारे लोगों को मिलने लगेगी। तुम्हे मालूम है पहले अलास्का रूस का एक भूभाग हुआ करता था। हम अलास्का राज्य को रूस को लौटा देंगे। इससे रूस भी हमसे प्रसन्न हो जायेगा।  आप अपनी उदासी हटाइए और चुनावी मोड में आ जाइए। चुनाव में अपनी पार्टी की जीत निश्चित है। जय हो सामाजिक न्याय की।

अति वामपंथ का एक रूप

 बात 1977 की है। एक छोटा क्षेत्र वाम पंथ से आगे बढ़कर अति वामपंथ की ओर बढ़ गया। एक सुबह उस अति वामपंथ प्रभावित क्षेत्र के कई गांवों में दीवारों पर एक ही नारा लिखा गया था। वह नारा था -  " मांस मांस सब एक है का सुअर का गाय। " इस दीवार लेखन के नारे पर चर्चा होती रही। अति वामपंथी नेता उस नारे की व्याख्या अपने ढंग से करते रहे। उन नेताओं ने धर्म को गरीबों की मुक्ति में एक बड़ी बाधा बताते रहे। चाहे जो हो उस दीवाल लेखन के नारे ने उस क्षेत्र से बहुत ही भय का वातावरण बना दिया। यहां तक कि कुछ वामपंथी गरीब विशेषकर बूढ़े महिला पुरुष उस नारे से क्षुब्ध हो गए। कुछ माह बाद राता राती उसी नारे के नीचे दूसरा नारा उसी लय में किसी समूह ने लिखवा दिया "......   ......  सब एक है का जोडू का माय।"  अगले सुबह जब ग्रामीण उठे तो नए नारे को देख कर भ्रमित हो गए। उन्हे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। उस दूसरे नए नारे की बहुत चर्चा बहुत जोरों से होने लगी। लोग यही कहते रहें कि जब पहले वाला सही है तो दूसरा कैसे गलत है?  मात्र एक नारे का उसी रूप रूप में प्रतिकार से उस पूरे क्षेत्र में ध

एक अलग प्रकार का चुनाव प्रचार

 चुनाव के समय एक नेताजी अधिक से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कर रहे थे। एक गांव में नेताजी पंहुचे। कुछ ही देर में उनके पास पच्चीस तीस लोग जमा हो गए। नेताजी ने कहा: जल्दी से इस गांव की दो प्रमुख समस्या बताओ।  एक ग्रामीण ने बताया कि इस गांव में अस्पताल तो है लेकिन कोई डॉक्टर साहब नहीं आते हैं। नेताजी ने झट से फोन लगाया और किसी से कुछ बतियाया।  नेताजी बोले काम हो गया अगले सप्ताह से डॉक्टर साहब आने लगेंगे। सभी ग्रामीण खुशी से झूम उठे और वादा किए कि इस गांव का सब वोट आप ही को मिलेगा। नेताजी ने झट से दूसरी प्रमुख समस्या पूछी। लोगों ने बताया कि कुछ महीनों से इस गांव के बगल में टावर रहने के बावजूद नेटवर्क नहीं आता है। नेताजी ने झट से जवाब दिया कि इसका भी समाधान हो जायेगा। ग्रामीण खुशी से झूम उठे। नेताजी दूसरे गांव में प्रचार में निकल गए। और फिर नए गांव में भी वही गांव की प्रमुख समस्या। यह सिलसिला कई दर्जन पिछड़े गांवों में चला। चुनाव में वह नेताजी उन गांवों के वोटों से जीत गए। अब ग्रामीण माथापच्ची कर रहे हैं कि जब इस गांव में फोन का नेटवर्क ही नहीं है तो नेताजी डॉक्टर साहेब हेतु बात कैसे कर

यूक्रेन युद्ध का पंद्रहवां महीना

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 आज यूक्रेन युद्ध अपने पंद्रहवें माह में प्रवेश कर गया। इतने लम्बे समय तक एक महाशक्ति रूस के समक्ष यूक्रेन के टिके रहने के कारण तो सभी बता देते हैं लेकिन इतनी व्यापक क्षति के बाद भी यूक्रेनी अपनी जान क्यों दे रहे हैं इसका उत्तर कोई नहीं देता। चूंकि प्रति सप्ताह सैंकड़ों की संख्या में यूक्रेनी युद्ध की बलि वेदी पर चढ़ रहे हैं, जख्मी हो रहे हैं तो ऐसे बलिदान के पीछे उनका कोई न कोई यथोचित कारण होगा। समय बीतने के साथ वह कारण भी हमलोग जान ही जायेंगे। यूक्रेन का विनाश तो जग जाहिर है। थोड़ा हम रूस के बारे में समझने की चेष्टा करते हैं। विश्व अर्थव्यवस्था के प्रसिद्ध यूट्यूबर Joe Blogs के अनुसार इस वर्ष के प्रथम तिमाही में युद्धरत रूस की अर्थ व्यवस्था गिरावट पर है। उनके अनुसार रूस के पास युद्ध पूर्व संचित निधि $150 अरब डॉलर थी जिसमे गत वर्ष कुछ वृद्धि हुई थी। गत तिमाही में उसके निर्यात के तेल और गैस की आय में 45% की कमी आई है। जिस तरह से इस वर्ष के प्रथम तिमाही में उसकी संचित निधि से धन की निकासी हो रही है उस दर इस वर्ष के अंत तक उसकी संचित निधि समाप्त हो सकती है। यह सब यूक्रेन युद्ध के तत्काल

एक बैल की बिक्री, एक बुजुर्ग की जुबानी

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बैल का दाम एक सौ अस्सी रुपया  बात लगभग छ दशक पहले की है उस समय मै सकलडीहा इन्टर कालेज मे दशवी या ग्यारहवी का छात्र धा। उस समय खेती बैलो से ही होती थी। सकलडीहाँ में बैलो का विशाल मेला लगता था। यह मेला गर्मी मै लगता था ताकि बर्षात से पहले किसान अपने पुराने बैल बेचकर नया बैल खरीद सकें। यह मेला हमारे गाँव त्रिपाठ से डेढ कोस दूर पड़ता धा। गाँव के सभी लोग अपने बैलों की सींग व पगहा रंगकर मेला मे एक सीध मे रखते थे। हमारे गाँव के सोहन(name changed) जिनको हमलोग ठेठी कहते थे वे भी अपना बूढ़ा नाटा बैल बेचने के लिये गये थे। उनके  भाई ने कहा था कि 180रु भी मिले तो बेच देना। एक गाहक आया व संबाद हूबहू लिख रहा हूँ। गाहक'- इ बैल क केतना लेबा? ठेठी:- तू बतावा केतना देबा? गाहक-अढ़ाई सौ। ठेठी -बड़ बड़ी ऊख क सेतही लवाही। बैल 180 रु से एक्को पैसा कम न लेब (बस इस बात पर वहां उपस्थित गाँव के लोग हँसने लगे।) गाहक- ठीक हौ भैया एक सौ अस्सियै लेला। गाँव के लोग समझाने लगे कि अढ़ाई सौ 180रु से अधिक होति है पर ठेठी ने कहा कि 180ही लेगे। गाहक:- ठीक हौ एकसौ अस्सी ही लेलो। पर ठेठी तो ठेठी थे। वे लोगो के हसने से चिढ़

आजकल के शूद्र कौन है?

 शूद्र कौन है? मेरी समझ से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य नहीं हैं वे सभी शुद्र हैं। उदाहरणार्थ  ज्ञान और जानकारी  के आधार पर कार्य करने वाले बुद्धिजीवी शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, पत्रकार, वकील, लेखक, नेता, आदि ब्राह्मण हैं। हमारी सेना, अर्द्ध सैनिक बल और पुलिस के लोग क्षत्रिय हुए। इसी तरह व्यापार, उत्पादन और कृषि करने वाले वैश्य हुए। अब जो इन तीनों समूह में नहीं आते वे शूद्र की श्रेणी में होने चाहिये। जो बच गये जैसे सेवा क्षेत्र में कार्यरत लोग अर्थात कंपाउंडर, मिस्त्री, सभी तरह के वाहन चालक, पुजारी, श्रमिक आदि शूद्र हुए। शूद्र और क्षुद्र में भी पर्याप्त अंतर है। हमारे देश की सभ्यता विकसित हुई तब तत्कालीन बुद्धिजीवियों को सभ्य लोगों के बीच उनके कार्यों का बंटवारा किया गया। उनके कार्यों का बंटवारा का आधार कर्म बना। समाज के लोगों को चार समूह में बांटा गया और यह व्यवस्था वर्णव्यवस्था के रूप में प्रचलित हुआ। यही वर्णव्यवस्था हमारे समाज को हजारों वर्षों तक अराजकता से दूर रखा। यह व्यवस्था कभी भी वंशानुगत नहीं रही। जब हमारे देश पर मुस्लिम शासकों का प्रभाव बढ़ा तब उन्होंने हमारे समाज क