चंद्रयान 3 ने खोला संभावनाओं के द्वार

 पृथ्वी पर का वायु मण्डल उल्कापात से हमारी रक्षा करता है। जब ब्रह्माण्ड से आकर उल्का पिंड तीव्र गति से हमारे वायु मण्डल से टकराते हैं तो घर्षण से भस्म होकर छोटे छोटे कण के रूप में बिखर जाते हैं।

चूंकि हमारी पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत भाग जलमग्न है अतः वर्षा से वे उल्का पिंड के कण प्रायः उतने ही भाग जल में समा जाते हैं। उन पदार्थों का उत्खनन अत्यंत ही कठिन और खर्चीला होता है।

इसके विपरित चांद के वायु मण्डल विहीन वातावरण में उल्का पिंड या तो जमीन में धंस जाते हैं या चट्टान से टकराकर कर कई टुकड़ों में टूट कर सतह पर बिखर जाते हैं। अब कहा जाता है कि उल्का पिंड में बहुमूल्य पदार्थ हो होते हैं। इस कारण चांद पर बहुमूल्य पदार्थ या धातुओं का उत्खनन आसान है।

उम्मीद है इसरो अब उत्खनन की नई चुनौतियों से निबटते हुए हमारे देश को बहुमूल्य धातुओं और He3(Helium isotope) जैसे उच्च ऊर्जा वाले गैस को लाने की दिशा में अग्रसर होगा।

चंद्रयान 3 का चांद पर सफल पत्तन एक शुभ संकेत है। इस सफल प्रयोग ने हमारे वैज्ञानिकों का मनोबल बढ़ाया है। इसने साथ ही हम भारतीयों में भी पहले से व्याप्त हीनभावना को भी समाप्त किया है। अब हम अपने को विश्व में उन्नत देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने को सक्षम अनुभव कर रहे हैं। जिन क्षेत्रों में अपार सम्भावनायें दिख रही हैं वे हैं:--

1. रोबोटिक्स: चांद पर उल्कापात के खतरे को देखते हुए वहां उत्खनन आदि के जो भी कार्य होंगे उनके लिए हमारे वैज्ञानिकों को पहले से अधिक सक्षम और सस्ते रोबोट की आवश्यकता होगी। अभी जो हमारा प्रज्ञान रोवर जो कार्यरत है वह एक का रोबोट ही तो है। अब चांद पर मात्र एक प्रज्ञान रोवर से काम नहीं चलने वाला है।

2. जब कई प्रज्ञान रोवर और वह भी कई प्रकार के तब वहां अधिक दूर संचार की आवश्यकता होगी ताकि उनका सम्पर्क विक्रम लैंडर, वहां स्थापित होने वाले रिले उपग्रह स्टेशन से तथा इसरो के मुख्यालय से बना रहे। 

3. धातु विज्ञान: अब पहले की तुलना में हल्के, मजबूत और सस्ते मिश्र धातु(Alloy) की आवश्यकता पड़ेगी। इस क्षेत्र में पर्याप्त सम्भावना दिखती है।

4. Sensors: पूरे चंद्रयान या गगनयान मिशन में लगने वाले कई प्रकार के सेंसर में निरंतर सुधार होना जरूरी है। इस क्षेत्र में भी सतत विकास की सम्भावना दिख रही है।

5. विविध क्षेत्र: उक्त चार क्षेत्रों के अतिरिक्त भी कई प्रकार के शोध हेतु उपकरण, बैटरी, इलेक्ट्रिक जेट, अंतरिक्ष में विनिर्माण आदि के क्षेत्रों में भी जैसा कि हमारे वैज्ञानिक चाहें तो उनमें सतत विकास की सम्भावना बनेगी।

अर्थात अब हम पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था से अधिक दूर नहीं हैं। हम भारतीयों की ओर से इस चंद्रयान मिशन में लगे वैज्ञानिकों और सम्भावित उद्यमियों को बहुत बहुत बधाई!

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