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Showing posts from June, 2017

हमारे देश में साठ राज्य होते तो ज्यादा विकास होता

    कहा जाता है कि झारखण्ड के कोल्हान क्षेत्र के एक प्रभावशाली और सम्मानित नेता श्री कृष्ण चन्द्र हेम्ब्रम ने अपने कुछ साथियों के साथ 1980 के आस-पास ब्रिटेन का भ्रमण किया था। उन्होंने वहाँ की महारानी से मुलाकात कर उन्हें कोल्हान में प्रचलित "Wilkinson Rule" की जानकारी दी थी और उन्हें कोल्हान आने का निमन्त्रण भी दिया था। इस बात की जानकारी मिलने पर प्रशासन ने श्री हेम्ब्रम पर राज्य के विरुद्ध अपराध का आरोप भी लगाया था। श्री हेम्ब्रम का कहना था कि कोल्हान का जिक्र राज्यों के विलयन कानून के नियमों के अन्तर्गत छूट गया था। कोल्हान का भी योगदान झारखण्ड के सृजन में रहा है. नये राज्य के सृजन हेतु क्षेत्रीय, राज्य और केन्द्र स्तर पर के प्रभावशाली नेताओं में राजनैतिक इच्छा शक्ति भी होनी चाहिये।     राजधानी की सड़कों/सरकारी भवनों के रख-रखाव और नये निर्माण पर किया जाने वाला खर्च राजधानी के बाहर के ऐसे खर्च से बहुत ज्यादा होता है. बाहरी क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा हेतु राजधानी भेजते हैं. बेहतर इलाज हेतु और खरीदारी हेतु भी बड़ी संख्या में लोग राजधानी में आते

पकड़ुआ विवाह और समाज

    झारखण्ड के चाईबासा के कुछ इलाकों में जवान लड़की को बलपूर्वक पकड़ कर वर पक्ष के लोग ले जाते थे और शादी कर देते थे. उस घटना के बाद कुछ दिन तक सनसनी और भय का वातावरण बन जाता था. लेकिन जब पता चलता था कि उस लड़की की शादी कर दी गयी है तब सब कुछ सामान्य हो जाता था. कुछ दिन बाद वर पक्ष के लोग यथा शक्ति बैल, गाय और खस्सी आदि उपहार के रूप में लड़की के माँ-पिताजी को लाकर देते थे. वर पक्ष के लोगों का उचित आदर-सत्कार भी किया जाता था और पूरा समाज उन दोनों को पति-पत्नी के रूप में मान्यता और सम्मान देता था. लेकिन जब पता चलता था कि उस लड़की के साथ धोखा हुआ है तब समाज वर पक्ष से उनका जीने का अधिकार छीन लेता था. लोग बताते हैं कि अब यह प्रथा इतिहास की बात हो गयी है.     इसी से मिलता-जुलता बिहार के मुंगेर, बेगूसराय, समस्तीपुर, लखीसराय, खगड़िया, नवगछिया और कटिहार के अधिकांश इलाकों में पकड़ुआ शादी का चलन है। इस तरह की शादी-विवाह में लक्षित जवान लड़का को लोग बलपूर्वक कहीं रास्ते से उठा लेते हैं और लक्षित लड़की के घर पँहुचा देते हैं. उसकी शादी उस लड़की से धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ करा दी जाती है. विवाह हेतु लड़का

तिलक-दहेज़ प्रथा और हमारा समाज

    हमारे देश में लड़कों और लड़कियों के बीच का Sex Ratio लड़कों के पक्ष में थोड़ा सा झुका हुआ है, जिसका अर्थ हुआ कि यह अनुपात तिलक-दहेज़ को प्रोत्साहित नहीं करता। इसके बावजूद हमारे समाज में तिलक-दहेज़ की प्रथा बनी हुई है. मजाक(जोक) में यह भी कहा जाता है कि हमारे उच्च तकनीकी/मेडिकल संस्थानों में पढ़ने वाले अधिधांश छात्रों को धनी ससुर मिलते हैं. लगभग यही स्थिति प्रशासनिक पद प्राप्त करने वाले अधिकांश अविवाहित युवा की भी है. एक दूसरा जोक है- "नव-धनाढ्य लोगों को आसानी से अच्छा दामाद मिल जाता है".     जब तिलक-दहेज़ नेताओं के बीच भी मुद्दा बन गया तब इसे एक सामाजिक बुराई मानते हुए संसद के संयुक्त अधिवेशन से तिलक-दहेज़(प्रतिषेध) अधिनियम 1961 पास हुआ और दहेज़ मृत्यु प्रताड़ना को रोकने के लिये भारतीय दण्ड विधान 1960 में उचित संशोधन कर धारा 304बी और 498A जोड़ा गया. कुछ लोगों का कहना है कि हमारे समाज से तिलक-दहेज़ प्रथा समाप्त हो गयी है, लेकिन NCRB के दहेज़ मृत्यु और महिलाओं के प्रताड़ना के सम्बन्धी आंकड़े उनके दावों को झुठलाते रहते हैं. यहाँ पर समाज के छोटे वर्ग का उल्लेख किया जा रहा है जिसमे शादी-वि

Name & Surname(Title) और उससे जुड़े कुछ किस्से; कुछ परम्परायें

    पुराने ज़माने में लोगों के नाम छोटे और प्रायः एक ही शब्द के होते थे. जैसे राम, कृष्ण, चाणक्य, अरस्तु, सुकरात, सिकन्दर, अशोक, शिवाजी, गैलिलियो आदि.  हमारे जितने भी महाग्रंथ हैं उनमे भी स्त्री हो या पुरुष सबके नाम एक ही शब्द के मिलते हैं. पुरातन इतिहास में भी प्रायः सभी नाम एक ही शब्द के मिलते हैं. सभ्यता के विकास के क्रम में कुछ लोगों में अपने ही समाज के और लोगों से अलग दिखने की मानसिकता बनने लगी. वैसे लोगों ने अपने पूर्वजों की कुछ विशेषताओं को अपने नाम के बाद लगाने लगे. उनके वंशजों ने इस विचार को आगे बढ़ाया और धीरे-धीरे नाम के बाद उपनाम या Title जोड़ने की परम्परा बन गयी. यहाँ उपनाम का आशय उपाधि से नहीं है जो नाम के आगे या पीछे जोड़ा जाता है. उपाधि तो व्यक्ति के मृत्यु के बाद ही समाप्त होने लगती है जबकि उपनाम पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलती रहती है.     लोगों ने अपने नाम के बाद टाइटल कब और कैसे लगाना प्रारम्भ किया इस सम्बन्ध में तरह-तरह की किम्वदंतियां सुनायी देती हैं. उन्ही किम्वदन्तियों में से कुछ का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है. कई इलाकों में तो नाम रखने की भी कुछ विशेष परम्परा है. 1. झारखण्ड

Common Sense और धीरज !

     एक गाँव बेवकूफी के लिये मशहूर था. यद्यपि कि उस गाँव के लोग मेहनती और भोले-भाले थे, लेकिन अन्य गावों के लोग उन्हें मौका पाकर चिढ़ाते रहते थे. उन लोगों की अर्थ-व्यवस्था का आधार पशुपालन और दूसरे गांव या शहर जाकर मजदूरी करना था. उस गांव की बदनामी अगल-बगल के दूर-दूर तक के गावों तक फ़ैल गयी थी. इसका असर धीरे-धीरे उस गाँव के लड़के-लड़कियों की शादी पर भी पड़ने लगा.      उस गांव में एक लड़का अब जवान हो चला था. वह लड़का भूमिहीन परिवार से था. उस नवजवान का नाम जनकदेव था. उस गांव में लगभग सभी जमीन बगल के गांव के पूर्व जमीन्दार परिवारों का था. गांव के प्रायः सभी लोग पूर्व जमीन्दार के खेतों में ही काम कर अपनी जिन्दगी गुजार देते थे. सामाजिक बदलाव का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उस गांव के लोगों यानि मज़दूरों और भूमिपति के बीच सम्बन्ध बिगड़ने लगा. कई साल तो सब के सब जमीन पड़ीत ही रह गये. मज़दूर अब अन्य राज्य में जाकर कमाने लगे.        जनकदेव भी एक बार कमाने के लिये पंजाब गया. वहाँ भी उसे उसे अपने गाँव अगल-बगल के गॉवों के कुछ मजदूर काम करते हुए मिल गये. उन मजदूरों ने यह भी नहीं सोचा कि परदेस है; परदेस में पडोसी गाँव