हमारे देश में साठ राज्य होते तो ज्यादा विकास होता

    कहा जाता है कि झारखण्ड के कोल्हान क्षेत्र के एक प्रभावशाली और सम्मानित नेता श्री कृष्ण चन्द्र हेम्ब्रम ने अपने कुछ साथियों के साथ 1980 के आस-पास ब्रिटेन का भ्रमण किया था। उन्होंने वहाँ की महारानी से मुलाकात कर उन्हें कोल्हान में प्रचलित "Wilkinson Rule" की जानकारी दी थी और उन्हें कोल्हान आने का निमन्त्रण भी दिया था। इस बात की जानकारी मिलने पर प्रशासन ने श्री हेम्ब्रम पर राज्य के विरुद्ध अपराध का आरोप भी लगाया था। श्री हेम्ब्रम का कहना था कि कोल्हान का जिक्र राज्यों के विलयन कानून के नियमों के अन्तर्गत छूट गया था। कोल्हान का भी योगदान झारखण्ड के सृजन में रहा है. नये राज्य के सृजन हेतु क्षेत्रीय, राज्य और केन्द्र स्तर पर के प्रभावशाली नेताओं में राजनैतिक इच्छा शक्ति भी होनी चाहिये।
    राजधानी की सड़कों/सरकारी भवनों के रख-रखाव और नये निर्माण पर किया जाने वाला खर्च राजधानी के बाहर के ऐसे खर्च से बहुत ज्यादा होता है. बाहरी क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा हेतु राजधानी भेजते हैं. बेहतर इलाज हेतु और खरीदारी हेतु भी बड़ी संख्या में लोग राजधानी में आते रहते हैं. बाहरी लोगों को अपनी शिकायतों के निवारण और न्याय पाने हेतु भी राजधानी आना पड़ता है. इन सब गतिविधियों से बड़ी मात्रा में पूंजी बाहर से राजधानी आती है जो राज्य की राजधानियों के विकास में सहायक है.
    तेजी से बढ़ते शहरीकरण से प्रायः सभी राज्यों की राजधानियों में आवासीय भवनों, कार्यालय, अस्पतालों और सड़कों आदि हेतु जमीन की कमी हो रही है. जनसँख्या के घनत्व बढ़ने से भूगर्भीय जल का स्तर भी नीचे जा रहा है. कहीं-कहीं तो पानी में जहरीले पदार्थों की मात्रा जरुरत से ज्यादा मिलने लगी है. ट्रैफिक और प्रदूषण की समस्याएँ भी विकराल रूप ले रही हैं. नये राज्यों के निर्माण से ये सब समस्याएँ कुछ हद तक कम की जा सकतीं हैं.
    राजधानी में ऐसे बहुत से स्थान पहले से ही अपना दर्शनीय महत्व रखते है, जिनके सौन्दर्यीकरण पर हर साल दो साल पर बहुत खर्च किया जाता है. कुछ लोग इसे सरकारी "गोईठा" भी कहते हैं. ऐसे खर्च राजधानी के बाहर के दर्शनीय स्थानों पर कम ही किया जाता है. इस खर्च से पर्यटकों की संख्या भी बढ़ती है जो पुनः राजधानी के विकास की गति को बढ़ाता है.
    जब राज्यों का आकार छोटा हो जायेगा तब बड़े राज्य की तुलना में दूर-दराज के ज्यादा लोग अपनी राजधानी का दर्शन कर पायेंगे। लोग कहते हैं कि देखा-देखी भी विकास होता है. जब देखा-देखी यानि प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी तो लोगों में जागरूकता भी बढ़ेगी।
    जब राज्यों का आकार छोटा हो जायेगा तब बड़ी संख्या में प्रशासनिक पदों की संख्या बढ़ेगी। ऐसे में सरकारी उपक्रम और निजी कम्पनियाँ भी अपना क्षेत्रीय कार्यालय राजधानी में जरूर खोलेंगी। इससे भी बड़ी संख्या में नये पदों का सृजन होगा। जब ज्यादा पद होंगे तो रोजगार के अवसर भी ज्यादा होंगे। ज्यादा रोजगार का अर्थ है खुशहाली। जब राज्यों का आकार छोटा हो जायेगा तब नये कर्मचारी/पदाधिकारी/अधिकारी अपने हम-उम्र के नेताओं के साथ ही अपनी प्रोन्नति पायेंगे। ऐसी स्थिति में नेता और कर्मचारी एक दूसरे को ज्यादा नजदीक से जान पायेंगे। निश्चित रूप से इस तरह की जानकारिया उत्कोच रोकने में सहायक होंगी। यह स्थिति भी छोटे राज्यों के विकास में सहायक होगा।
    जब छोटे राज्य की राजधानी का कुछ विकास हो जायेगा तब उसे देश के अन्य राज्यों की राजधानियों से जोड़ने हेतु अच्छी सड़कों और उन्नत रेल-मार्ग की बनाने की आवाज उठेगी। अगर उनकी आवाज मानकर अच्छी सड़के और उन्नत रेल-मार्ग बनाये जायेंगे तो निश्चित ही इन सड़कों के आस-पास और रेलमार्ग में पड़ने वाले स्टेशनों के आस-पास के क्षेत्रों का ज्यादा विकास होगा। इसी तरह का विकास नये राज्य की राजधानी को उस राज्य के सभी जिलों से जोड़ने वाली उन्नत सडकों से भी हो सकता है.
    राजधानी की गरिमा के अनुरूप ही अच्छे हवाई अड्डा, अच्छे अस्पताल, उच्च न्यायलय, उच्च शिक्षण संस्थान आदि बनेंगे और उसी अनुरूप उनसे जुडी अन्य सेवायें विकसित भी होंगी। इससे भी बहुत लोगों को रोजगार मिलेगा। आजकल अधिक से अधिक लोग शहरीकरण का लाभ बताते हुए रजधानी में ही बसना चाहते हैं. अधिक से अधिक सरकारी कर्मचारी और अधिकारी राजधानी में ही अपनी सेवा देना चाहते हैं. ऐसे तो नियम यह है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी एक निर्धारित अवधि तक ही एक क्षेत्र में रह सकता है लेकिन तरह-तरह की परिस्थितियां उन्हें राजधानी में ही रहने हेतु इस नियम को शिथिल बनाने में सहायक रहती हैं. एक बार जब ऐसे लोग राजधानी में जम जाते हैं तब वे लोग अन्यत्र स्थानान्तरित होने के बाद भी किसी न किसी रूप में राजधानी से जुड़े रहते हैं. इससे उनके पूंजी का पलायन राजधानी की और ही होता है. इससे भी राज्य का कई तरह से विकास होता है.
    छोटे राज्यों में विधान परिषद् नहीं होता। यह सभी मानते हैं कि बिधान सभा चुनाव में जनता से ठुकराये गये नेता अपना स्थान जुगाड़ और तिकड़म लगाकर विधान परिषद् में पा लेते हैं. कहा जाता है कि विधान परिषद् उत्कोच और मुफ्तखोरी को भी बढ़ाते रहा है. उत्कोच और मुफ्तखोरी हमारे देश को सुपर पावर बनने में बड़ी बाधा हैं. इस विचार से भी छोटे राज्य होने से विकास की सम्भावना बढ़ सकती है.  
    जब राज्यों का आकार छोटा हो जायेगा तब क्षेत्रीय, भाषायी और सांस्कृतिक आदि मुद्दों पर मतभेद कम होंगे। याद करिये जब अमरीका में मात्र 13 राज्य थे तो वहाँ उत्तर और दक्षिण के बीच बराबर गृह-युद्ध होता रहता था. अब वहाँ पच्चास राज्य बना दिये गये हैं. वहाँ राज्यों की संख्या बढ़ने से अब गृह-युद्ध इतिहास की बात हो गयी. जब अपने देश में भी लगभग 600 देशी रियासत और सीधे अंग्रेजों द्वारा शासित राज्य हुआ करते थे तब क्षेत्रीय, भाषायी और सांस्कृतिक आदि मुद्दों पर मतभेद कम होते थे. उसी अनुरूप आज की तुलना में हिंसक झड़पें भी भी कम होती थीं. छोटे राज्य होने से मतभिन्नता कम होगी। ज्यादा मतभिन्नता हो जाने से मनभेद बढ़ जाता है, जिससे राष्ट्रीयता की भावना कमजोर होती है. शायद ही ऐसा कोई देश होगा जिसने बिना मजबूत राष्ट्रीयता के ज्यादा विकास किया हो.
     कुछ लोग कहते हैं कि छोटे राज्यों के सृजन से प्रशासनिक खर्च बहुत बढ़ जायेंगे। क्या अभी फ़िज़ूलख़र्ची नहीं हो रही है? 2003 में किये गये 91वाँ सम्विधान संशोधन के अनुसार राज्य के मुख्य मन्त्री सहित मन्त्री-परिषद में राज्य विधान सभा की कुल संख्या का 15% मन्त्री ही होंगे। उसी अनुपात में पुराने राज्य में मन्त्रियों की संख्या घट जायेगी। इस सम्वैधानिक व्यवस्था के बाद राज्य के शासनिक खर्च में कोई विशेष वृद्धि नहीं होगी। हाँ उनके लिये अलग से कार्यालय सह आवासीय निर्माण में खर्च बढ़ेगा। प्रशासनिक पदों के बढ़ने से नये राज्य के सचिवालय से लेकर भवनों के निर्माण पर तथा प्रशासनिक खर्च में जरूर ज्यादा वृद्धि होगी। उक्त तथ्यों के आलोक में लाभ-हानि के हिसाब लगाने से भी अच्छे परिणाम आवेंगे। फ़िज़ूलख़र्ची और उत्कोच में कमी आने से नये राज्य का सञ्चालन खर्च तर्कसंगत हो सकता है.
    अधिक राज्य होने से क्षेत्रीय झगडे कम होंगे जिस कारण हमारा संघीय ढांचा भी मजबूत होगा।
    साठ राज्य मतलब आज़ादी के राज्यों(देशी रियासतों सहित) का दसवां भाग और आज की संख्या से लगभग दुगुना। इस तरह साठ राज्यों या केन्द्र शासित प्रदेशों के सृजन से हमारे देश में ज्यादा विकास होने की सम्भावना है। यह भी सही है कि एक राज्य के निर्माण से कई अन्य राज्यों के निर्माण का आन्दोलन उठने लगता है. अब तो राजनैतिक इच्छा शक्ति और राज्य के निर्माण की सार्थकता ही नये राज्य की आधारशिला बनेगी। नये राज्यों का निर्माण यदि राज्य पुनर्गठन आयोग की अनुशंसा पर किया जाता तो परिणाम बेहतर होंगे। जैसे कभी "बुन्देलखण्ड" राज्य बना तो उसमे उत्तर प्रदेश के मध्य प्रदेश के भी कुछ भाग शामिल होंगे।
नोट:- यह ब्लॉग गपशप पर आधारित है. इसकी किसी भी बातों पर गम्भीर होने की आवश्यकता नहीं है. पाठकों से निवेदन है कि इस चर्चा को आगे बढ़ावें ताकि भविष्य में जब कभी नये राज्यों के निर्माण का कोई आन्दोलन हो तो उसकी सार्थकता पर उचित बहस हो सके.
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