पकड़ुआ विवाह और समाज

    झारखण्ड के चाईबासा के कुछ इलाकों में जवान लड़की को बलपूर्वक पकड़ कर वर पक्ष के लोग ले जाते थे और शादी कर देते थे. उस घटना के बाद कुछ दिन तक सनसनी और भय का वातावरण बन जाता था. लेकिन जब पता चलता था कि उस लड़की की शादी कर दी गयी है तब सब कुछ सामान्य हो जाता था. कुछ दिन बाद वर पक्ष के लोग यथा शक्ति बैल, गाय और खस्सी आदि उपहार के रूप में लड़की के माँ-पिताजी को लाकर देते थे. वर पक्ष के लोगों का उचित आदर-सत्कार भी किया जाता था और पूरा समाज उन दोनों को पति-पत्नी के रूप में मान्यता और सम्मान देता था. लेकिन जब पता चलता था कि उस लड़की के साथ धोखा हुआ है तब समाज वर पक्ष से उनका जीने का अधिकार छीन लेता था. लोग बताते हैं कि अब यह प्रथा इतिहास की बात हो गयी है.
    इसी से मिलता-जुलता बिहार के मुंगेर, बेगूसराय, समस्तीपुर, लखीसराय, खगड़िया, नवगछिया और कटिहार के अधिकांश इलाकों में पकड़ुआ शादी का चलन है। इस तरह की शादी-विवाह में लक्षित जवान लड़का को लोग बलपूर्वक कहीं रास्ते से उठा लेते हैं और लक्षित लड़की के घर पँहुचा देते हैं. उसकी शादी उस लड़की से धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ करा दी जाती है. विवाह हेतु लड़का को अपहरण करने वाले यानि पकड़ कर लाने वाले लोग इस तरह के विवाह के बाद लड़की की खुशहाल जिन्दगी और उसके सम्मान की गारंटी लेते हैं. वे लोग विवाह के बाद दूल्हा को आदरपूर्वक चौकी पर बैठाते हैं और दूल्हा से बोलते हैं--"भर हाथ लहठी, ना त... पटकइयाँ रांड़।" इसका अर्थ यह हुआ कि "या तो हमारी बेटी आपके यहाँ सम्मानपूर्वक खुशहाल जिन्दगी जीयेगी नहीं तो हमलोग आपको पटक कर आपसे आपकी जिन्दगी छीन लेंगे; हमें अपनी विधवा बेटी स्वीकार्य होगा लेकिन आपको जिन्दा देखना हमें स्वीकार्य नहीं होगा।"
    जब दूल्हा इस शर्त को मान लेता है तब घर वाले यथाशक्ति उपहार देकर दूल्हा के घर भेजवा देते हैं. बाद में दूल्हा के माता-पिता भी भारी मन से दुल्हन को अपनी पतोहू मान लेते हैं और धीरे-धीरे सब मन-मुटाव दूर हो जाता है. अब सब कुछ सामान्य होने लगता है. दूल्हा के परिवार/गांव /समाज के लोग और दुल्हन के परिवार/गांव/समाज के लोग दोनों को पति-पत्नी के रूप में जीवन पर्यन्त मान्यता देते हैं और उन्हें भरपूर सम्मान भी देते हैं.
    यह प्रथा तिलक-दहेज़ की कुप्रथा के समानान्तर ही उक्त इलाकों में विकसित हुई है. जब लड़का के पिता बहुत ज्यादा तिलक-दहेज़ मांगते थे और लड़की वाले उतना देने में समर्थ नहीं होते थे तब लड़की वाले बलपूर्वक लड़का को उठा कर लाते थे और धार्मिक रीति-रिवाजों से शादी कर देते थे. धीरे-धीरे इस तरह की घटनायें बढ़ने लगी और लोगों ने उसे "पकडुआ विवाह" का नाम दे दिया।
    कुछ दिनों के बाद इस तरह की शादी कराने का गिरोह बनने लगा. गिरोह अपने काम को सम्पन्न करने हेतु अपना मेहनताना लेने लगा. 1980 के दशक के प्रारम्भ से बिहार के कुछ इलाकों में और विशेषकर उक्त इलाकों में बाहुबली नेताओं का युग आया. हर दबंग जातियों में बाहुबली नेताओं का उदय होने लगा और इन बाहुबली लोगों का इलाका भी बंटने लगा. अब बाहुबली नेता पकडुआ विवाह निःशुल्क कराने लगे. इससे बाहुबली नेताओं का स्थानीय लोगों में सम्मान भी बढ़ने लगा.
    एक बार ऐसा हुआ कि दूल्हा को पकड़ कर लाने वाला गिरोह पटना के एक होस्टल में पँहुचा। उस गिरोह के लोग लक्षित दूल्हा को पहचानते नहीं थे. वे लोग उसका सिर्फ नाम ही जानते थे. संयोग ऐसा हुआ कि उस नाम का उस होस्टल में दो युवक रहकर अपनी नौकरी पाने की पढाई करते थे और एक दूसरे के विपरीत सामाजिक पृष्ठभूमि से थे और जब उस होस्टल में गिरोह के लोग पँहुचे तो लक्षित दूल्हा किसी कार्यवश बाहर गया हुआ था. गिरोह ने पिस्तौल के बल पर सिर्फ नाम पूछ कर ही वहाँ उपपस्थित उसी नाम के दूसरे युवक को पकड़ लिया। उस युवक के गिड़गिड़ाने पर गिरोह के लोग उसकी बहानेबाजी समझ लिये और उसका कलात्मक रूप से अपहरण कर यथास्थान नियत गांव में पँहुचा दिये। वहाँ पूर्व से ही पूर्ण नियोजित रूप से विवाह का कार्यक्रम चल रहा था. वहाँ भी उस युवक की बात नहीं सुनी गयी और धार्मिक रीति-रिवाज से पकड़ुआ विवाह सम्पन्न हो गया. भोर में दूल्हा-दुल्हन को एक कमरा में रख दिया गया. एकान्त में उस युवक ने कसम खाकर अपनी असलियत बतायी और उसने दुल्हन का हाथ भी छूने से इन्कार कर दिया तथा उसने दुल्हन को बता दिया कि "आपके साथ धोखा हुआ है". अब दुल्हन भी किंकर्तव्यविमूढ़ थी. सुबह जब कथित दूल्हा-दुल्हन को सार्वजनिक रूप से अशीर्वादी हेतु खुले में चौकी पर बैठाया गया तो दुल्हन के पिता भी दूसरे युवक को देखकर चौंक पड़े. धीरे-धीरे यह बात पूरे गांव में फ़ैल गयी और लोग जुट गये. सबों के सामने उस युवक ने अपनी असलियत बता दी. अब रूढ़िवादी लोग उस युवक से छुटकारा पाने हेतु उसकी हत्या कर उसके शव को गायब करने की बात करने लगे. दुल्हन के पिता भी इस कुकृत्य के लिये हामी भर दी. अब दुल्हन ने दुर्गा का रूप धारण करते हुए लोगों को बताया कि उसने इस युवक को अपना पति रीति-रिवाज से मान लिया है. अगर इस युवक की हत्या की गयी तो वह भी आत्महत्या कर लेगी; अब वह किसी भी हालत में दुबारा विवाह नहीं करेगी। अन्त में हारकर लोगों ने उस युवक को चुपचाप गांव से चले जाने को कहा.
    वह युवक अपने होस्टल लौट आया और इस घटना को किसी को नहीं बताया और अपनी पढ़ाई में लग गया. संयोग देखिये कि उस युवक को सरकारी नौकरी लग गयी. नौकरी दे कुछ दिनों बाद उसने अपने माता-पिता को उक्त पकडुआ विवाह की घटना सुनायी। उसने अपने माता-पिता से उसी लड़की से दुबारा किसी शिव-मन्दिर में विवाह करने की अनुमति मांगी और कहा कि यदि उसे अनुमति नहीं मिली या उस लड़की ने इन्कार कर दिया तो वह दूसरा विवाह नहीं करेगा। अपने समाज से विचार-विमर्श कर उसके माता-पिता ने अनुमति दे दी. वह अपनी नौकरी पर लौट गया. वहीँ से उसने उस लड़की को अपनी नौकरी तथा अपने माता-पिता व अपने समाज की सहमति का उल्लेख करते हुए रजिस्ट्री से पत्र लिखा। पत्र पाकर लड़की के पिता ने पहले तो बात छिपाने का प्रयास किया लेकिन बात छिप नहीं सकी और उस लड़की को भी पूरी जानकारी मिल गयी तथा यह बात काना-फुस्की होते हुए पूरे गांव -समाज में फ़ैल गयी. अब नौकरी की बात ने उस के लोगों की रूढ़िवादिता को कमजोर कर दिया और अब इस बात पर चर्चा होने लगी कि "लड़की को उसी युवक के पास पँहुचा देने में ही भलाई है". लड़की तो पहले से ही प्रतिबद्ध थी. सो लड़की ने सकारात्मक उत्तर और लड़का से वहाँ आकर उसे ले जाने  का पत्र अपने पिता के माध्यम से भेजवा दिया। वह युवक हिम्मत कर अपने दुल्हन के गांव आया और उसे विदा करा कर अपने गांव ले गया तथा अपने गांव के एक शिव-मन्दिर में एक संक्षिप्त समारोह का आयोजन कर विवाह कर लिया एवं सम्मानपूर्वक अपना जीवन बिताया।(Content provided by Shri Daya Shankar Singh)
    लोग चाहे जो कुछ भी कहें लेकिन "पकडुआ विवाह" की यह प्रथा बिहार के उक्त क्षेत्र विशेष की एक कड़वी सच्चाई है. जब तक तिलक-दहेज़ की कुप्रथा समाज में रहेगी तब तक उसी के समानान्तर इस तरह की प्रथा भी अपना जड़ हमारे समाज में जमाये हुए रहेगी। उस इलाके के लोग भी इस प्रथा के साथ जीना सीख गये हैं. इस तरह के अपहरण के मामले प्रशासन के पास भी गये हैं लेकिन बाद में अपहरण के रूप में कोई भी कथित घटना की पुष्टि नहीं करता है.
नोट:- यह ब्लॉग इस इस तरह की घटनाओं के जानकार लोगों से हुई बातचीत पर आधारित है. कुछ लोगों ने तो बड़े विश्वास के साथ कुछ घटनाओं के सुने रूप में वृत्तान्त भी सुनाये। एक बुजुर्ग व्यक्ति ने तो एक घटना का अपनी आँखों देखा रूप में पूरा वृत्तान्त सुनाया। लेकिन कोई भी अपना नाम जग जाहिर होने देना नहीं चाहता।
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