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Showing posts from August, 2017

मजबूत भारत के निर्माण में मुफ्तखोरी एक बड़ी बाधा है

    हम सभी भारतवासी चाहते हैं कि हमारा भारत एक मजबूत राष्ट्र बने. मजबूत भारत ही हमारी शान है; हमारी पहचान है. मजबूत भारत के निर्माण में बहुत सी बाधायें हैं. मुफ्तखोरी भी उन्ही बड़ी बाधाओं में से एक है. पहले मुफ्तखोरी की समस्या कोई बड़ी समस्या नहीं थी. जैसे किसी संयुक्त परिवार में किसी कमजोर सदस्य का गुजारा बड़ी आसानी से हो जाता था वैसे ही मुफ्तखोरों का भी गुजारा हो जाता था. लेकिन इधर व्यापक उत्कोच और अन्य कारणों से मुफ्तखोरी बड़ी तेजी से पनप रही है. अब बहुत से लोग यह मानने लगे हैं कि मुफ्तखोरी से प्रभावित लोगों की श्रम-उत्पादकता घट रही है. श्रम-उत्पादकता का घटना कामचोरी को बढ़ा रहा है. यह समस्या एक चिन्ता उत्पन्न करने वाली है.       दुनिया भर में लोग अच्छी वस्तुओं और अच्छी सेवाओं का उपभोग सभी लोग करना चाहते हैं. अधिकांश लोगों को यह सुविधा अपने माँ-पिता से और फिर अपने श्रम और बुद्धि से उनके आर्थिक ताकत के हिसाब से मिलते रहती है. ऐसे लोगों के जीवन में आर्थिक उतार-चढ़ाव व्यवस्थित ढंग आते-जाते रहता है. जब कभी ऐसे लोगों को आर्थिक झटके लगते हैं तो उन लोगों में आर्थिक झटकों को सहने की शक्ति भी उन

डेरा और मठ का बढ़ता-घटता प्रभाव

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    युग/समय के साथ डेरा और मठ का प्रभाव हमारे देश में बढ़ता-घटता रहा है. भक्ति युग में कुछ भक्त सांसारिक सुखों को त्याग कर साधू बनने लगे. अनपढ़ साधू भी तीर्थाटन के क्रम में अन्य ज्ञानी साधुओं की सुसंगति में शास्त्रार्थ में समय बिताने लगे और अपना ज्ञानवर्धन करते-करते स्वयं भी ज्ञानी हो गये. साधु लोग अपना अधिकांश समय तीर्थाटन और धार्मिक प्रवचनों में व्यतीत करते थे. बड़े साधू को कालान्तर में सन्त की उपाधि दी गयी. कई बड़े साधुओं ने घूमते-घूमते थक हारकर अपने जीवन को स्थिर करने और अपना प्रभाव बढ़ाने हेतु मठों की स्थापना की. उम्र बढ़ने के बाद साधुलोग बाबा कहलाने लगे. पुराने साधूलोगों ने अपना सारा जीवन सादगी के साथ दूसरों और समाज के कल्याण में बिता दिया।     ईसाई धर्म में Charity, इस्लाम धर्म में जकात और सनातन(हिन्दू) धर्म में "सीधा" और "अगउँ" जैसे दान देने की प्रथा की प्रधानता पहले से ही रही है. प्रायः सभी धर्म-परायण व्यक्ति अपनी कमाई का एक छोटा सा अंश दान के रूप में देते रहे हैं. इस तरह दान से प्राप्त राशि से बहुत से अस्पताल और विद्यालय भी चलते हैं. दान से गरीबों को भी पर्व-त

सृजन घोटाला संस्थागत विफलताओं का भी परिणाम है

    आजकल बिहार के "सृजन घोटाला" की बड़ी चर्चा हो रही है. इस घोटाले के केन्द्र में सृजन नाम का एक गैर सरकारी(NGO) संगठन भागलपुर, बिहार में है. कुछ महीने पूर्व इस NGO की संचालिका मनोरमा देवी की मृत्यु हो गयी. उसके उत्तराधिकारी मनोरमा देवी की विरासत को सम्हाल नहीं पाये, जिसके कारण भागलपुर के एक अधिकारी का लगभग दो करोड़ रुपये के चेक bounce हो गया यानि उस सरकारी चेक को यह कहकर बैंकवालों ने लौटा दिया कि उस अधिकारी के खाते में उतनी राशि उक्त तिथि को नहीं थी जबकि सरकारी बही-खातों में उसके बैंक खाते में उससे ज्यादा राशि होनी चाहिये थी. यह एक असामान्य घटना साबित हुई और हंगामा मच गया. यह घोटाला बिहार के बाहर भी अख़बारों, टीवी और सोशल मीडिया में अभी भी छाया हुआ है और भविष्य में भी काफी दिनों तक छाया रहेगा।     अब सवाल उठता है कि इसका नाम "सृजन घोटाला" क्यों पड़ा?  कुछ लोग तो इसे "पापड़ घोटाला" भी कहते हैं क्योंकि सृजन नाम के NGO की संचालिका स्व. मनोरमा देवी को अपने उस NGO को ज़माने में काफी पापड़ बेलने पड़े थे. पहले की व्यवस्था के अनुसार वित्तीय वर्ष के अन्त तक यानि इक्कतीस

आपदा प्रबन्धन और सुशासन

    अभी अपने देश के कई भागों में बाढ़ की विभीषिका लोगों के जीवन को नरकमय बना दिया है. बाढ़ तो हमारे देश की हर साल आनेवाली एक स्थायी आपदा बनती जा रही है. अब लोग इस विषय पर ज्यादा चर्चा करने लगे हैं. हमारे देश का मौसम विभाग(IMD) हर साल मानसून आने के पूर्व माह अप्रिल में अपना प्रारम्भिक और माह जून में पुनरीक्षित(Revised) पूर्वानुमान प्रतिवेदन प्रकाशित करता है. इस वर्ष प्रारम्भिक और पुनरीक्षित दोनों प्रतिवेदनों में सामान्य से अधिक मानसून आने का आंकलन किया गया था. इसका सामान्य अर्थ तो यही हुआ कि प्रायः बाढ़ ग्रसित इलाकों में ज्यादा वर्षा होगी और यही हुआ भी. पारिणामतः बाढ़ की विभीषिका गोरखपुर से लेकर किशनगंज तक और पश्चिम बंगाल तथा आसाम के इलाके बाढ़ से घिर गये हैं. बाढ़ पीड़ित लोग आपदा प्रबन्धन करने वालों के तरफ कातर दृष्टि से देख रहे हैं.      आपदा प्रबन्धन चार भागों में बंटा होता है.  (1) महत्वपूर्ण सूचना को साझा करना:- बाढ़ से सम्बन्धित सूचना तो हमारे मौसम विभाग ने काफी पहले ही दे दी थी और इसी अनुरूप NMDA, NDRF और राज्य के सम्बन्धित अधिकारी अपनी उचित कार्यवाई की होगी। भूकम्प, सुनामी, बड़े रेल

भारत और नेपाल के बीच सम्बन्धों में सुधार समय की माँग है

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    हमारे देश के उत्तर में नेपाल अवस्थित है. हमारे देश के राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम की सीमायें नेपाल से मिलती हैं. सदियों से भारत का नेपाल से मधुर सम्बन्ध रहा है. नेपाल की तराई में तो भारतीय संस्कृति और नेपाली संस्कृति में कोई अन्तर ही नहीं दिखता। नेपाल की तराई के बहुत से लोगों की शादियाँ भी सीमावर्ती भारतीय क्षेत्र में होती रही हैं. नेपाल के तराई के अधिकांश लोग भी भोजपुरी और हिन्दी ही बोलते हैं और उनके अधिकांश रीति-रिवाज/पर्व-त्यौहार सीमावर्ती भारतीय क्षेत्र के रीति-रिवाज/पर्व-त्यौहार से मिलते-जुलते हैं. बिहार और झारखण्ड में एक-एक पुलिस बटालियन में आज भी नेपाल मूल के लोग ही भर्ती होते हैं. बहुत से नेपाली तो हमारी सेना में भी कार्यरत हैं और उनकी निष्ठा भारत की सुरक्षा में निहित रही है. बहुत से नेपाली सेवा-निवृत्त होकर अपने परिवार के साथ भारत के विभिन्न भागों में बस कर यहाँ के लोगों से घुलमिल गये हैं. काठमाण्डू, नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मन्दिर का एक दृश्य (Image Source:-Wikimedia)     उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में नेपाल पर आधिपत्य ज़माने हेतु अंग्रेजों और नेप

पहले दुनिया में अण्डा आया था; बाद में मुर्गी?

    बहुत दिनों से यह सवाल पूछा जाता रहा है कि इस दुनिया में पहले अण्डा आया था या पहले मुर्गी? इस सवाल पर लोग पहले भी हँसते थे, आज भी हँसते है और भविष्य में भी हँसते ही रहेंगे। बहुत से बहसों में जब कोई किसी निष्कर्ष पर नहीं पँहुचता है तो यही कहता है कि "छोड़िये अब बन्द कीजिये। यह तो चलता ही रहेगा कि पहले इस दुनिया में मुर्गी आयी या अण्डा?". आजकल तो टीवी पर दिन प्रति दिन किसी न किसी मुद्दे पर बहस चलते ही रहती है. कुछ बहस तो लगता है कि जनता की मुलभुत समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिये भी की जाती है और शब्दों के जाल में लोगों को फँसा भी दिया जाता है. मैं समझता हूँ कि एक बार फिर इस बहस को सिर्फ मनोरञ्जन हेतु आगे बढ़ाया जाना चाहिये।     किसी भी जीव की उत्पत्ति महज संयोगों का ही प्रकृति का एक खेल है. पहले मनुष्य को ही लें. वैज्ञानिक बताते हैं कि पहले वनमानुष की तरह के कुछ प्राणी थोड़ा खड़े होने लगे और अपने दोनों हाथ और दोनों पैरों के बजाये अपने पैरों के सहारे ही ज्यादा चलने लगे. लेकिन इस प्राणी में पूँछ थी. इस प्राणी को Homo erectus की संज्ञा दी गयी. कुछ लाख वर्ष बाद कुछ प्राणी