आपदा प्रबन्धन और सुशासन

    अभी अपने देश के कई भागों में बाढ़ की विभीषिका लोगों के जीवन को नरकमय बना दिया है. बाढ़ तो हमारे देश की हर साल आनेवाली एक स्थायी आपदा बनती जा रही है. अब लोग इस विषय पर ज्यादा चर्चा करने लगे हैं. हमारे देश का मौसम विभाग(IMD) हर साल मानसून आने के पूर्व माह अप्रिल में अपना प्रारम्भिक और माह जून में पुनरीक्षित(Revised) पूर्वानुमान प्रतिवेदन प्रकाशित करता है. इस वर्ष प्रारम्भिक और पुनरीक्षित दोनों प्रतिवेदनों में सामान्य से अधिक मानसून आने का आंकलन किया गया था. इसका सामान्य अर्थ तो यही हुआ कि प्रायः बाढ़ ग्रसित इलाकों में ज्यादा वर्षा होगी और यही हुआ भी. पारिणामतः बाढ़ की विभीषिका गोरखपुर से लेकर किशनगंज तक और पश्चिम बंगाल तथा आसाम के इलाके बाढ़ से घिर गये हैं. बाढ़ पीड़ित लोग आपदा प्रबन्धन करने वालों के तरफ कातर दृष्टि से देख रहे हैं.
     आपदा प्रबन्धन चार भागों में बंटा होता है. 
(1) महत्वपूर्ण सूचना को साझा करना:- बाढ़ से सम्बन्धित सूचना तो हमारे मौसम विभाग ने काफी पहले ही दे दी थी और इसी अनुरूप NMDA, NDRF और राज्य के सम्बन्धित अधिकारी अपनी उचित कार्यवाई की होगी। भूकम्प, सुनामी, बड़े रेल हादसे, बड़ी आतंकवादी घटना आदि की पूर्व सूचना प्रायः नहीं मिल पाती। आपदा वाले स्थान पर पहले छोटे कर्मचारी/पदाधिकारी ही पँहुचते हैं जिनके वश में सिर्फ अपने बूते आपदा प्रबन्धन सम्भव नहीं है. अतः यह मानकर चलना ही श्रेयष्कर होता है कि किसी विश्वस्त सूचना मिलने पर अपने से बड़ों को सम्बन्धित आपदा की सूचना शीघ्र दे दी जाये। उफान पर आयी नदियों और बांध/बराज पर जल-स्तर की सूचना पहले से ही रेडिओ पर दी जाती रही है. अब तो सूचना प्रवाह के बहुत से माध्यम आ गये हैं जिनसे सम्भावित पीड़ितों को भी महत्वपूर्ण सूचना समय पर मिलनी चाहिये।
(2) पूर्व तैयारी:- आपदा प्रबन्धन की पूर्व तैयारी ही इसके सफलता की गारंटी है.
(क) दीर्घ-कालिक संरचना:- बाढ़ तो हमारे देश में बरसात के दिनों में आने वाली एक नियमित घटना होते जा रही है. ज्यादातर बाढ़ नेपाल और चीन से आने वाले पानी से भी आती है. अतः अब राहत सामग्री के स्थायी उचित भण्डारण करना ही श्रेयष्कर है. आपदा प्रबन्धन से निपटने हेतु उचित संख्या में दक्ष मानव-संसाधन भी होने चाहिये। अपने देश में NDRF और SDRF मानव-संसाधन की भूमिका निभा रहे हैं.
(ख) अल्प-कालिक भण्डारण:- राहत सामग्रियों का कुछ भाग अल्प-कालिक रूप में प्रखण्ड और ग्राम-पंचायत तक हो तो बाढ़ पीड़ितों को ज्यादा लाभ हो सकता है. अन्य सम्भावित पीड़ितों के लिये कम से कम राज्य स्तर पर हो ही रहा है.
(3) Logistics:- बचाव और राहत कार्य के सफल सञ्चालन हेतु आपदा प्रबन्धन का यह सबसे सम्वेदनशील भाग होता है. संचार-तन्त्र के दिनों-दिन मजबूत होते जाने से आपदा के परिणामस्वरूप क्षति एवं पीड़ा के दृश्य बचाव एवं राहत कर्मियों के राहत सामग्री लेकर पँहुचने के पहले ही टीवी और सोशल मीडिया पर आने लगते हैं. आपदा आने के चौबीस घण्टे के अन्दर की अवधि को कुछ लोग अति सम्वेदनशील मानते हैं. यह भी माना जाता है कि आपदा से पीड़ित व्यक्ति अगर इस अवधि को पार पा लेता है तो उसके जीने की सम्भावना बढ़ जाती है. बड़े भूकम्प के समय बड़े पैमाने पर विदेशी मदद आने लगती है और ऐसे में कई बार अफरा-तफरी भी मचने लगती है. इन सभी स्थिति से बचने के लिये यही बेहतर है कि सभी बचाव और राहत कार्य NDMA के अधीन ही चलाये जायें।
    1935 के बिहटा(बिहार) के भीषण पंजाब मेल ट्रेन की दुर्घटना और अन्य कई बड़ी रेल दुर्घटनाओं में मृत और जख्मी यात्रियों के बहुमूल्य सामानों के अमानवीय तरीके से लूट-पाट के किस्से भरे पड़े हैं. अतः भीषण ट्रेन दुर्घटनाओं की सूचना मिलने पर NDRF को घटनास्थल पर पंहुचाने की त्वरित व्यवस्था अपेक्षित है ताकि पूर्व के अमानवीय कुकृत्य दुहराने का मौका न मिल सके.   
राहत-शिविर:- इन्हे रेलवे के कुछ स्टेशनों के समीप बनाये जायें तो उनमे अन्य दिनों में स्कूल, खेल के मैदान आदि का उपयोग किया जा सकता है. रेल स्टेशन के नजदीक होने से पीड़ितों को लाने और राहत कार्य चलाने में भी सुविधा होगी।
   प्रायः आपदा तीव्रता कम होने या समाप्त होने के बाद आपदाग्रस्त क्षेत्रों में कई तरह की तरह की बीमारियां फैलती हैं. इन बीमारियों से निपटना पीड़ित लोगों के वश में नहीं होता। NDRF भी तबतक लौटने लगता है. इस बिन्दु पर SDRF को प्रशिक्षित करना और उन्हें इस स्थिति से निपटने हेतु उचित संसाधन उपलब्ध कराना आवश्यक है.  
(4) पुनर्वास:- मानवता और जन-कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना को साकार करने हेतु आपदा से पीड़ित लोगों का पुनर्वास किया जाता है. लोगों की जिन्दगी पहले के स्तर तक तो नहीं लौट पाती फिर भी यथा सम्भव प्रयास होने ही चाहिये। सुनामी पीड़ितों के पुनर्वास हेतु तो उसके आपदा के साल भर बाद भी भवन निर्माण जारी रहा. बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास हेतु भी उचित व्यवस्था होनी चाहिये।
    राहत और पुनर्वास में सुशासन के अभाव के कारण काफी शिकायतो से सम्बन्धित समाचार बराबर अख़बारों में छपते रहते हैं. दबे जबान से कुछ लोग यह भी कहते हैं कि हर साल बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा नहीं आयेगी तो उसके प्रबन्धन से जुड़े शक्तिशाली लोगों की बेटी की शादी कैसे होगी? इसी तरह उनके बच्चों के उच्च पढाई की महँगी फीस की भरपाई कैसे होगी? कुछ यही कारण है कि बाढ़ के स्थायी निदान हेतु कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है. फिर भी आपदा प्रबन्धन में सुशासन को मजबूत करने से निश्चित रूप से आपदा से पीड़ित लोगों की तकलीफ कम होगी और वे लोग भी गर्व से कह सकेंगे कि मानवता अभी जिन्दा है और हम एक कल्याणकारी देश के निवासी हैं.
नोट:- यह ब्लॉग मेरी व्यक्तिगत जानकारी और इस विषय के कुछ जानकारों से अनौपचारिक विचार-विमर्श पर आधारित है. पाठकगण इसपर बहुमूल्य जानकारी अपनी टिप्पणी के माध्यम से जोड़कर इसे जनोपयोगी बना सकते हैं.
https://Twitter.com/BishwaNathSingh

Comments

Popular posts from this blog

मानकी-मुण्डा व्यवस्था और Wilkinson Rule

एक दादा का अपनी पोती के नाम पत्र

बिहार के पिछड़ेपन के कुछ छिपे कारण!