भारत और नेपाल के बीच सम्बन्धों में सुधार समय की माँग है

    हमारे देश के उत्तर में नेपाल अवस्थित है. हमारे देश के राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम की सीमायें नेपाल से मिलती हैं. सदियों से भारत का नेपाल से मधुर सम्बन्ध रहा है. नेपाल की तराई में तो भारतीय संस्कृति और नेपाली संस्कृति में कोई अन्तर ही नहीं दिखता। नेपाल की तराई के बहुत से लोगों की शादियाँ भी सीमावर्ती भारतीय क्षेत्र में होती रही हैं. नेपाल के तराई के अधिकांश लोग भी भोजपुरी और हिन्दी ही बोलते हैं और उनके अधिकांश रीति-रिवाज/पर्व-त्यौहार सीमावर्ती भारतीय क्षेत्र के रीति-रिवाज/पर्व-त्यौहार से मिलते-जुलते हैं. बिहार और झारखण्ड में एक-एक पुलिस बटालियन में आज भी नेपाल मूल के लोग ही भर्ती होते हैं. बहुत से नेपाली तो हमारी सेना में भी कार्यरत हैं और उनकी निष्ठा भारत की सुरक्षा में निहित रही है. बहुत से नेपाली सेवा-निवृत्त होकर अपने परिवार के साथ भारत के विभिन्न भागों में बस कर यहाँ के लोगों से घुलमिल गये हैं.
काठमाण्डू, नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मन्दिर का एक दृश्य
काठमाण्डू, नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मन्दिर का एक दृश्य (Image Source:-Wikimedia)

    उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में नेपाल पर आधिपत्य ज़माने हेतु अंग्रेजों और नेपाली राजा के सैनिकों के बीच एक युद्ध भी हुआ था. इस युद्ध का समापन सगौली सन्धि के रूप में चार मार्च 1816 को हुआ था.  अब उस सगौली को वर्त्तमान के सुगौली(पूर्वी चम्पारण, मोतिहारी, बिहार) के रूप में जाना जाता है. इसी सन्धि और अन्य छोटे-मोटे समझौतों के अनुसार भारत और नेपाल के बीच की सीमा रेखा निर्धारित है. अंग्रेजों नेपाल के तराई क्षेत्र के लोगों का दिल जीतने हेतु गोरखपुर से सिलीगुड़ी तक भारतीय क्षेत्र के नेपाली सीमा से लगभग सटे ही एक सुदृढ़ रेल परिवहन प्रणाली विकसित की थी. इस सुविधा का लाभ आज भी सीमावर्ती नेपाली लोग उठाते हैं. यह रेल प्रणाली हमारे दोनों देशों के लोगों के सम्बन्धों के बीच में एक पुल का काम करता है.
    नेपाल सभी तरफ से भूमि से जुड़ा(Land Locked) हुआ एक देश है. नेपाल का अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भारतीय बन्दरगाहों के रास्ते होता है. उसके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का अल्पांश भाग उसके पूर्वी भाग से होते हुए तिब्बत के रास्ते चीन से होता है. नेपाल की सभी नदियां उत्तर प्रदेश और बिहार होते हुए गंगा में समां जाती हैं. इस कारण इन दोनों राज्यों में प्रति वर्ष बाढ़ भी आती है. नेपाल से निकलने वाली गंडक नदी पर भारतीय क्षेत्र के वाल्मीकि नगर में और कोशी नदी में विराटनगर के नेपाली क्षेत्र में बांध भी बने हुए हैं. नेपाल में कई परियोजनायें भारतीय सहायता से बनायीं गयी हैं.
    सीमावर्ती क्षेत्र के गोरखपुर, बगहा, बेतिया, रक्सौल, सीतामढ़ी, जयनगर और सिलीगुड़ी के सरकारी अस्पतालों में आज भी बड़ी संख्या में नेपाल के लोग अपनी बीमारी का इलाज कराने आते हैं और उनके साथ कोई भेद-भाव नहीं किया जाता है. इसके अलावे सीमावर्ती क्षेत्र के दोनों तरफ के बाज़ारों में खरीदारी हेतु दोनों देश के लोग बड़ी संख्या में आते हैं और इस पुरानी बाजार व्यवस्था से लाभ उठाते हैं.
    नेपाल की राजधानी काठमाण्डू का पशुपति नाथ मन्दिर और तराई के गढ़ी माई का मन्दिर भारतियों के लिये पसंदीदा और आस्था के रूप में जाने जाते हैं. गढ़ी माई के मन्दिर पर हर पॉँच साल पर धार्मिक मेला लगता है और वहाँ बिहार के मोतिहारी और सीतामढ़ी के लोग बड़ी संख्या में अपनी मन्नत चढाने और गढ़ी माई का दर्शन करने जाते हैं. नेपाल के जनकपुर से तो भारत का पौराणिक सम्बन्ध रहा है.
   इसी तरह भारतीय क्षेत्र के गोरखपुर, वाराणसी, अरेराज, वैद्यनाथ धाम(देवघर) आदि तीर्थ-स्थानों में बड़ी संख्या में नेपाली लोग पूजा-अर्चना हेतु प्रति वर्ष आते हैं. इसके अलावे गया में प्रति वर्ष पितृ-पक्ष के अवसर पर लगने वाले मेले में नेपाली लोग बड़ी संख्या में अपने पूर्वजों के प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिये उनके तर्पण हेतु आते हैं. इन जगहों पर विधिवत नेपाली पण्डा भी विराजमान रहते हैं.
    जब पडोसी के घर में आग लगता है तो उस आग को बुझाने सबसे पहले दूसरा पडोसी ही पँहुचता है. यह कहावत उस समय चरितार्थ हो गयी जब अप्रैल 2015 में नेपाल में एक बड़ी तबाही वाला भूकम्प आया था. हमारे प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदीजी ने सर्व-प्रथम नेपाल के भूकम्प पीड़ितों की बड़ी मात्रा में हर तरह से सहायता पँहुचायी थी. अन्य देश के लोग तो सहायता हेतु राहत सामग्री लेकर बाद में आये थे.
    उत्तर प्रदेश और बिहार के नेपाल के सीमावर्ती इलाकों में प्रायः हर साल बाढ़ आती है. कभी-कभार तो उन इलाकों के लोगों को बाढ़ की विनाश-लीला भी भुगतनी पड़ती है. कहा जाता है कि अचानक आने वाली बाढ़ का एक बड़ा कारण नेपाल में बने बांधों से अचानक पानी छोड़ा जाना भी रहा है. बाढ़ की समस्या के दीर्घ-कालिक निदान हेतु भारत और नेपाल दोनों देशों में उचित स्थान पर छोटे बड़े जलाशयों का निर्माण होना चाहिये। बाढ़ की समस्या का निदान इन दोनों देशों को मिलकर ही करना होगा।
    नेपाल के साथ मधुर सम्बन्ध बनाकर नेपाल के उन बांधों के अधिकारियों से यदि हमारे अधिकारी उचित समन्वय समय पर स्थापित करें तो उन इलाकों में बाढ़ की विभीषिका कुछ कम की जा सकती है. लखनऊ, पटना, दिल्ली और काठमाण्डू में बैठे शक्ति सम्पन्न अधिकारियों से विनती है कि यथासमय नेपाल के बांधों में जलस्तर और जल छोड़े जाने की सूचना दोनों देशों के सम्बन्धित सांसदों और विधायकों को दें. इन जन-प्रतिनिधियों से उम्मीद की जाती है कि वे सभी अपने-अपने क्षेत्र के लोगों को अपने तरीके से देते रहेंगे। इससे अवश्य ही जान-माल की क्षति और जनता की परेशानी कम होगी।
    पड़ोस का एक अच्छा दोस्त दूर के दो दोस्तों से बेहतर माना जाता है. और सम्बन्धों के लिये यही सिद्धान्त दुश्मनी पर भी लागू होता है. हमारे बीच के सम्बन्धों में निरन्तर सुधार की सम्भावना है. भारत और नेपाल के बीच सम्बन्धों के सुधार की प्रक्रिया निरन्तर चलते रहनी चाहिये और यह समय की माँग भी है. हम एक दूसरे के लिये कार्य कर भी दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में सुधार की इस माँग को पूरी कर सकते हैं.    
    भारत-नेपाल सम्बन्ध दोनों देशों के बीच शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व और परस्पर विकास का एक आदर्श उदहारण प्रस्तुत करता है. नेपाल से हमारा सम्बन्ध परस्पर सम्मान देने और एक दूसरे को सहायता हेतु सतत तत्पर रहने से भी बढ़ेगा। इधर कुछ दिनों से नेपाल के कुछ नेताओं का झुकाव चीन की ओर हो रहा है, लेकिन नेपाली जनता विशेषकर वहाँ के तराई के लोग भावनात्मक रूप से अभी भी भारत से जुड़े हैं. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जी के सत्ता सम्हालने के बाद गोरखपुर में दिल्ली के AIMS की तर्ज पर एक बड़ा अस्पताल और एक बालरोग शोध संस्थान का निर्माण शीघ ही होने वाला है. इसके अलावे सीमावर्ती क्षेत्र के रेल-व्यवस्था और सरकारी अस्पतालों तथा बाज़ारों को और ज्यादा विकसित करके तथा उन्हें साधन सम्पन्न बनाकर दोनों देशों के लोगों को और नजदीक लाने का प्रयास फलदायी हो सकता है. 
नोट:- यह ब्लॉग मेरी जानकारी और अनुभव तथा कुछ मित्रों से विचार-विमर्श पर आधारित है. पाठकों की खट्टी-मीठी टिप्पणियों का सदैव स्वागत रहेगा।
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