डेरा और मठ का बढ़ता-घटता प्रभाव

    युग/समय के साथ डेरा और मठ का प्रभाव हमारे देश में बढ़ता-घटता रहा है. भक्ति युग में कुछ भक्त सांसारिक सुखों को त्याग कर साधू बनने लगे. अनपढ़ साधू भी तीर्थाटन के क्रम में अन्य ज्ञानी साधुओं की सुसंगति में शास्त्रार्थ में समय बिताने लगे और अपना ज्ञानवर्धन करते-करते स्वयं भी ज्ञानी हो गये. साधु लोग अपना अधिकांश समय तीर्थाटन और धार्मिक प्रवचनों में व्यतीत करते थे. बड़े साधू को कालान्तर में सन्त की उपाधि दी गयी. कई बड़े साधुओं ने घूमते-घूमते थक हारकर अपने जीवन को स्थिर करने और अपना प्रभाव बढ़ाने हेतु मठों की स्थापना की. उम्र बढ़ने के बाद साधुलोग बाबा कहलाने लगे. पुराने साधूलोगों ने अपना सारा जीवन सादगी के साथ दूसरों और समाज के कल्याण में बिता दिया।
    ईसाई धर्म में Charity, इस्लाम धर्म में जकात और सनातन(हिन्दू) धर्म में "सीधा" और "अगउँ" जैसे दान देने की प्रथा की प्रधानता पहले से ही रही है. प्रायः सभी धर्म-परायण व्यक्ति अपनी कमाई का एक छोटा सा अंश दान के रूप में देते रहे हैं. इस तरह दान से प्राप्त राशि से बहुत से अस्पताल और विद्यालय भी चलते हैं. दान से गरीबों को भी पर्व-त्यौहार के अवसर पर उत्सव का आनन्द होता है. इस अवसर पर गरीबों का अच्छा भोजन और वस्त्र मिल जाता है.
    आज के हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भागों में लोग मठ को ही डेरा कहते हैं. दूसरों और समाज की अच्छी सेवा के कारण डेरा का सम्मान बढ़ने लगा. हमारे देश के बंटवारा के समय पाकिस्तान से आये पीड़ित लोगों को उन्ही ढेरों में शरण मिली। उस समय स्थानीय लोगों ने उन पीड़ितों को यथाशक्ति अपने घर के अन्न, वस्त्र और पैसों से खूब मदद की. डेरा में प्रायः शाम को भजन-कीर्तन के अलावे प्रवचन भी होते थे. डेरा में शरणार्थियों और अन्य स्थानीय दुखियारी लोगों को मुफ्त में भोजन और प्राथमिक उपचार भी मिल जाता था. डेरा ने उन शरणार्थियों को अपने पैर पर पुनः खड़े होने में पर्याप्त सहायता की. इस तरह शरणार्थियों और अब उनके वंशजों में डेरा के प्रति सम्मान की भावना बढ़ गयी. इस तरह डेरा की महान परम्परा की भी स्थापना हुई.
   
रामा बाबा 
मेरे इलाके में एक "रामा बाबा" के नाम से विख्यात एक बाबा हुए थे. इनका फोटो बायें भाग में दिया गया है. श्रद्धेय रामा बाबा अपनी जवानी के प्रारम्भिक दिनों में ही साधू हो गये थे. वे अनपढ़ होने के बावजूद तीर्थाटन में सुसंगति में रहकर काफी ज्ञानी हो गये थे. उन्होंने अपनी जवानी के दिनों में ही एक सूने पड़े पुराने मठ में ही अपना आश्रम स्थापित किया था. वे काफी मेहनती थे. उन्होंने अपने मठ के पास ही एक बारह कट्ठा की जमीन उधार में खरीदी थी. वे उसी जमीन में अच्छी खेती करते थे और अपने मठ में एक गाय भी पाल रखा था.
     वे हमेशा कर्म-प्रधान उपदेश देते थे और अच्छे संस्कारों को बताते रहते थे. उन्होंने अपने जिन्दगी के अधेड़ावस्था में ही अन्न त्याग दिया था और सिर्फ फलाहार पर ही अपनी जिन्दगी बितायी। वे बिना कभी अस्पताल गये 96 वर्ष में अपनी इहलीला समाप्त कर इस संसार से विदा हुए. उनका जीवन सादगी और संस्कारों भरा रहा. वे स्वयं भी कभी भी सवा दिन से ज्यादा कहीं एक स्थान पर नहीं रहते थे और दूसरों को भी अपने मठ पर सवा दिन के बाद अपनी खेती के काम में लगा देते थे. उनका मानना था कि दूसरों पर बोझ बनना पाप है और दूसरों का बोझ उठाना पुण्य है. जब कभी इलाके के लोग किसी कारण से अपने घर से रूठ कर उनके मठ में जाते थे तो मठ में पेट भर का प्रसाद पा लेते थे और मठ में ही खेती के कार्य में जुट जाते थे तथा गुस्सा शान्त होने पर अपने घर लौट जाते थे. उनका प्रभाव हमारे इलाके में काफी ज्यादा था. उनके इस संसार से विदा होते ही हमारे इलाके में आत्महत्या की घटना बढ़ गयी.

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    1980 के दशक से डेरा और अन्य धार्मिक मठों के बाबाओं का प्रभाव समाज के अन्य वर्ग पर भी पड़ने लगा. बड़े-बड़े लोग भी अपने कर्म से ज्यादा अपने तक़दीर पर भरोसा करने लगे. ऐसे लोग बाबा को काफी चढ़ावा देने लगे और बाबा की कृपा से अपनी मन्नत पूरी होने पर डेरा और धार्मिक मठों में बड़े दान भी देने लगे. Crony Capitalism का प्रभाव भी इन डेरों और धार्मिक मठों पर बढ़ने लगा. ठेकेदार लोग ठेका दिलवाने में मदद पाने हेतु वहाँ पहुँचने लगे. इसी तरह अधिकारी/पदाधिकारी मनचाहा पोस्टिंग कराने हेतु और नेता अपने पक्ष में वोट पाने हेतु वहाँ पहुँचने लगे. ऐसे लोग अपनी सिद्धि भी पाने लगे और बदले में डेरा और धार्मिक मठों में अपनी काली कमाई का एक अंश वहाँ दान करने लगे. बहुत से लाभान्वित अपना नाम उजागर होने से बचने के लिये गुप्तदान भी करने लगे.
    अनअपेक्षित बड़ी मात्रा में धन आने से धार्मिक मठों के गुरुओं की जीवनशैली भी बदलने लगी और गुरु लोग जवानी में ही बाबा कहलाने लगे. समाज में इनका रुतवा VIP का हो गया. देखते-देखते बाबा लोग का डेरा/मठ आलीशान महलों में बदलने लगा. अब बाबा लोग महँगी कारों और हवाई जहाज से यात्रा करने लगे तथा पञ्च सितारा होटलों में अपना आसन ज़माने लगे. बाबा लोग रंगीन मिजाज के होने लगे और व्यभिचार में लिप्त होने लगे. कुछ बाबा तो बड़े-बड़े हथियारों के सौदों में दलाली भी करने लगे. ओशो, चन्द्रास्वामी, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, आशाराम, बाबा रामपाल के किस्से तो चौक-चौपालों में भी सुनायी देने लगे.
    जब बाबा लोगों के व्यभिचार बढ़ने लगे तो उनसे पीड़ित महिलाओं की भी संख्या बढ़ने लगी. कुछ पीड़ित महिलाओं ने हिम्मत दिखाकर न्याय की गुहार प्रधान मन्त्री से लेकर न्यायलय तक लगायी. हमारी "आपराधिक न्याय प्रणाली" में होने वाली परेशानियों और अत्यधिक विलम्ब के कारण नकली बाबाओं से पीड़ित बहुत सी महिलायें न्याय की गुहार शासन/प्रशासन से नहीं लगा पातीं और मन ही मन व्यथित रह जाती हैं. समय एक न एक दिन सबका घाव भर ही देता है. फिर भी कुछ पीड़ित महिलाओं ने हिम्मत दिखाई है और नकली बाबाओं का भन्डाफोड़ भी हुआ है. बाबाओं के कुकृत्य उजागर होने से डेरा और मठ का प्रभाव घटता हुआ दिखाई दे रहा है. इसका ताजा उदहारण डेरा सच्चा-सौदा, सिरसा(हरियाणा) के नकली और बलात्कारी बाबा राम रहीम का है.   
    हमारे देश में विधि-व्यवस्था के संधारण के क्रम में पुलिस को किसी दण्डाधिकारी के अधीन रखा गया है. प्रतिनियुक्त दण्डाधिकारी का कर्त्तव्य है कि स्थिति का आंकलन कर उचित बल प्रयोग का लिखित आदेश अपने अधीन के पुलिसकर्मियों को दे. किसी भी विभाग के छोटे-बड़े कर्मचारी को अनुमण्डल पदाधिकारी द्वारा दण्डाधिकारी के रूप में प्रतिनियुक्त करने का अधिकार है. जिलाधिकारी को कर्फ्यू लगाने का अधिकार होता है. हरियाणा में जिला अदालत द्वारा डेरा सच्चा सौदा के धर्म-गुरु और बलात्कार के आरोपी को सजा सुनाये जाने को शुक्रवार के दिन में ढाई बजे समय निर्धारित किया जाना ही अपने आप में एक बड़ा संकेत था कि उस आरोपी को दोषी पाये जाने की भरपूर सम्भावना है. यह भी मीडिया से खबर आ रही थी कि सजा सुनाये जाने पर व्यापक हिंसा की आशंका सम्बन्धी ख़ुफ़िया आसूचना उपलब्ध थी.
     इन सब के बावजूद दण्डाधिकारी के पर्याप्त संख्या में समय पर सदुपयोग नहीं किया जाना दुःखद था. टीवी पर तो बहुत से पुलिसकर्मी तमाशबीन नज़र आ रहे थे. इन सब के कारण ही व्यापक हिंसा हुई और जन-धन की व्यापक क्षति हुई. लगता है कि उक्त डेरा के अनुयायियों में बड़ी संख्या में उपद्रवी लोग पूरी तैयारी के साथ घुस आये थे और सुनियोजित तरीके से हिंसा फ़ैलाने में कामयाब रहे. इस तरह की बड़ी हिंसक घटनाओं के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हम पायेंगे कि सरकार ने बहुत जल्दी ही हिंसा को आगे फैलने से रोकने में सफल रही. सरकार द्वारा यह भी बताया गया कि वहाँ पुलिस फायरिंग में कोई भी स्थानीय व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई है. 
    इस तरह जब-जब बाबा लोगों का जीवन संस्कारों और सादगी भरा रहा है तब तब उनके डेरा या मठ का प्रभाव समाज पर बढ़ता रहा है. इसके विपरीत जब-जब बाबा लोग आडम्बर और व्यभिचार में लिप्त रहे तब-तब उनके डेरा या मठ का प्रभाव समाज पर घटता गया है. यह बात भी सही रही है कि नकली बाबाओं की पहचान में हमेशा ही देरी हुई है. नकली बाबा लोग हमेशा अपने आपको धर्म के ठेकेदार के रूप में स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. नकली बाबाओं के प्रभाव में आकर लोग उनके मानसिक गुलाम की तरह भी व्यवहार करने लगते हैं. नकली बाबाओं या धर्मगुरुओं के मानसिक गुलामी से मुक्ति पाये बिना हमारा देश कभी भी दुनिया में एक सुपर पावर नहीं बन सकेगा।
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