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Showing posts from 2013

मोटर दुर्घटना क्यों न बढे?

    इधर कुछ वर्षों से मोटर दुर्घटना के मामलों में तेजी से वृद्धि होती जा रही है. यह पूरे समाज के लिये चिन्ता का कारण बनता जा रहा है. दुर्घटना के कारण परिवार के परिवार तबाह होते जा रहे हैं. आप स्वयम् ही दस-पन्द्रह वर्ष पीछे मुड़कर देखें। आपको लगेगा कि आपने भी अपने कई मित्र, परिजन और परिचित को खो दिया है. अनुभव से मैं पाता हूँ कि दुर्घटना के मूलरूप से तीन कारण होते हैं, जो निम्न प्रकार हैं-- 1. गाड़ी चलाते समय चालक का ध्यान सड़क से भटक जाना--   जब आप गाड़ी चला रहे हों तो इसका ध्यान रखें कि आपका ध्यान सड़क से नहीं हटे.    आजकल गाड़ी चलाते समय मोबाइल फोन से बात करना एक आम बात हो गई है, जबकि मोबाइल फोन में कई ऐसी सुविधायें होती हैं, जिनका उपयोग करने से गाड़ी चलाते समय पूरा ध्यान गाड़ी चालन पर दिया जा सकता। शायद धीरज की कमी होते जा रही है. मोबाइल फोन पर बात करने वाले दूसरे पक्ष को भी चाहिये कि चार रिंग होने के बाद मान लें कि अगला गाड़ी चला रहा है.     कभी-कभी ऐसे कई मौके आते हैं कि हमें भरपूर सोने को नहीं मिलता है. अचानक कोई काम आ जाने से या क्षमता से अधिक काम करने से नींद आती है और इसी समय अगर

इमरजेंसी में रसोगुल्ला का साइज़ छोट कर देना भी अपराध था!

     1976 के उत्तरार्द्ध में इमरजेंसी अपनी चरम सीमा पर थी। उसी समय एक दिन मोतिहारी(बिहार) के कचहरी में अजीब हलचल होने लगी. एक व्यक्ति ने सुना कि मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी के न्यायलय में एक अजीब मुकदमा आया है। एक मिठाईवाला दुकानदार पर "रसोगुल्ला का साइज़ छोट कर देने" के आरोप में वहाँ के आपूर्ति विभाग ने मुकदमा दायर किया है, लेकिन बहुत खोजबीन के बाद भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिली।      एक सप्ताह बाद मोतिहारी कचहरी में पुनः खबर फैली कि आज "रसोगुल्ला का साइज़ छोट कर देने" का आरोपी न्यायालय में आत्मसमर्पण करने वाला है और वहाँ के नम्बर-एक वकील श्री बाबू उसका जमानत में बहस करने वाले हैं। पता चला कि "रसोगुल्ला का साइज़ छोट कर देने" के आरोप में धारा 69 DIR(Defense Of India Rule) में मोतिहारी के ही एक मिठाई दुकानदार पर आपूर्ति विभाग के निरीक्षक ने मुकदमा दायर किया है.      भीड़ बढ़ती जा रही थी। श्री बाबू ने आरोपी के तरफ से बहस प्रारम्भ किया। उन्होंने सबसे पहले आरोप पढ़ कर सुनाया। आरोप के अनुसार जिलाधिकारी, मोतिहारी ने Defense Of India Rule में प्रदत्त शक्ति के अनुसार

एक दादा का अपनी पोती के नाम पत्र

मेरी स्नेहमयी पोती वर्णिका!                                                                                 राँची, शुभ आशीर्वाद,     मेरे गाँव में एक बाबा थे। उनका घर स्कूल जाने के रास्ते में पड़ता था। वे हम सहपाठियों में से किसी न किसी को उसके व्यवहार या आचरण में कमी पाकर उससे उसके दादा का नाम पूछ लेते। एक-दो दिन बाद ही उनकी शिकायत गलती करनेवाले सह पाठी के दादा के पास पँहुच जाती। उनका कहना था कि बच्चों में संस्कार देने की जवाबदेही उसके दादा की होती है।     वे कभी हम सहपाठियों को डांटते नहीं थे, बल्कि कभी-कभी सीजन में आम या अमरुद खिला देते थे। कुछ ही महीनों में वे बाबा हम लोगों को अच्छे लगने लगे थे। एक दिन मेरी भी गलती पकड़ी गयी। मेरी गलती यह थी कि उस दिन मैं बिना स्नान किये स्कूल जा रहा था। वे बाबा मेरे दादा का नाम पूछ बैठे। इसपर मेरे सभी सहपाठी हंस पड़े। उक्त बाबा और मैं भी सहपाठियों के हंसी का राज नहीं समझ पा रहा था। इसी उधेर-बुन में मैं उनके सवाल का जवाब देना भूल गया। उन्होंने अपना सवाल मुझसे फिर दुहराया। मैंने तत्काल अपने दादा का नाम बता दिया। उनके हिसाब से मेरे नाम बतान

सुशासन में बढ़ता कुपोषण

    हमारा संविधान कहता है कि हमारा राष्ट्र "Welfare State" यानि "कल्याणकारी राज्य" होगा। सरकार ने इसी अवधारणा को साकार करने के लिये गरीबों के हित में बहुत सी कल्याणकारी योजनाएं चला रखी है. लेकिन अजीब बात है कि सुशासन में कुपोषण बढ़ता ही जा रहा है. ऐसा क्यों हो रहा है? इस ब्लॉग में इसी विसंगति का कारण खोजने का प्रयास किया जा रहा है.     दूध की कमी:- बच्चों के विकास में दूध का विशेष योगदान रहता है. जैसे-जैसे भारत से मांस का निर्यात बढ़ रहा है, वैसे-वैसे दूध का दाम भी बढ़ रहा है. तीव्र गति से बढ़ रही हमारी जन-संख्या भी दूध के मूल्य पर दबाव बढ़ा रहा है. हमारे कानून में दुधारू पशुओं और कम उम्र के गाय/बैल ऊंट आदि को काटना वर्जित है. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कम उम्र के गाय/बैल ऊंट आदि के मांस का मूल्य भी अधिक मिलता है. लेकिन भ्रष्टाचार के कारण इस कानून की धज्जियाँ उड़ाई जा रही है. कुपोषण को दूर करने हेतु दूध की कमी की पूर्ति बाज़ार में उपलब्ध महंगे दूध का पाउडर नहीं कर पा रहा है.     कृषि में बढ़ता मशीनीकरण भी किसानों के पास पशुओं की संख्या घटा रहा है. हर तरफ ट्रैक्टर

भारत की डूबती हुई प्रतिभा डा. वशिष्ट नारायण सिंह

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Dr Bashisht Nr Singh,  Photographed by the Author.       डा. वशिष्ट नारायण सिंह का जन्म बिहार राज्य के भोजपुर जिले के ग्राम बसन्तपुर में एक साधारण सिपाही के घर में हुआ था. ग्राम बसन्तपुर आरा से करीब 22 कि.मी उत्तर-पश्चिम में अवस्थित है. इन्होने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव में प्राप्त की. उसके बाद इनका दाखिला नेतरहाट में हुआ, जहाँ से ये उच्चतर माध्यमिक बोर्ड, बिहार  में प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए पास किये। B.Sc.-1 में इनका नामांकन साइंस कॉलेज, पटना में हुआ. तबतक वशिष्ट नारायण अपने सहपाठियों और गुरुओं के बीच गणित के कठिन प्रश्न को कई तरीकों से हल करने के लिये मशहूर हो चुके थे.        उसके कुछ ही महीने बाद PU के College of Engineering में गणित सम्मलेन का आयोजन किया गया था. उस सम्मलेन में विश्व प्रसिद्द गणितज्ञ डा. जॉन एल केली अमेरिका के कलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले से पधारे थे. आयोजकों ने  वशिष्ट नारायण का परिचय डा. केली से कराया। उन्होंने वशिष्ट नारायण को कई कठिन प्रश्न हल करने को दिया। वशिष्ट नारायण की प्रतिभा से डा. केली बहुत प्रभावित हुए और तत्काल बर्कले आकर आगे की

भारत के भूले बिसरे गौरव डा. सत्यनारायण सिन्हा

               Only for Adults who understand complications of Public saying.          1952 में डा. सत्यनारायण सिन्हा ने प्रथम लोकसभा के लिये सारण पूर्वी(अब छपरा) से कांग्रेस पार्टी के सांसद के रूप में नामांकन भरा। सांसद के नामांकन के पहले बहुत कम ही लोग इनके बारे में जानते थे. चुनाव प्रचार के क्रम में इनके बारे में बहुत सी जानकारियाँ सामने आयी. कुछ लोग इन्हे पायलट साहेब के नाम से, कुछ लोग इन्हे अम्बेसडर साहेब और कुछ लोग इन्हे स्वतन्त्रता सेनानी के नाम से इनका प्रचार किया। इन्हे ग्राम मल्खाचक का निवासी बताया गया. छपरा के लोग इनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए और भारी मतों से उन्हें अपना सांसद चुनकर प्रथम लोक सभा में भेज दिया।   Link for his membership sl 48     प्रो. सोम नाथ त्रिपाठी(से. नि. सम्पूर्णानन्द विश्व विद्यालय से)  के अनुसार डा. सत्यनारायण सिन्हा तिब्बत पर गहरी रूचि   रखते थे. उन्होंने आचार्य नरेन्द्र देव को स्वयम् हवाई जहाज चलाकर तिब्बत के भारत के लिये रणनीतिक महत्व के इलाकों को दिखाया था, ताकि तिब्बत के चीन को हस्तानान्तरण का कारगर विरोध किया जा सके.     श्री दया शं

राजधर्म और राज-कर्मी By KC Dubey

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Shri KC Dubey      संस्कृत वांग्मय में धर्म शब्द का बड़ा ब्यापक स्वरुप है। धर्म के विषय में लिखा है-- "धर्मो विश्वस्य जगत प्रतिष्ठा लोके धर्मिष्ठं प्रजा उपसर्पन्ति धर्मेया पापं पनुदन्ति धर्मे सर्वम प्रतिष्ठातम तस्माधर्मे परमं वदन्ति (त्रै. आरण्यक प्रपाठक-10, अनुवाद-63). धर्म समस्त संसार की प्रतिष्ठा है। लोक जीवन में सभी लोग धर्म निष्ठ व्यक्ति के पास जाते हैं।धर्म से सब लोग अपने पाप को दूर करते हैं। धर्म में सब लोग प्रतिष्ठित हैं।इसलिये धर्म को सब लोग श्रेष्ठ कहते हैं। पूर्व मिमांसा अध्याय-1, पाठ-2, सूक्ति-2 में कहा गया है-- "चोदना लक्षण अर्थो धर्मः। उपदेश या पुनीत आदेश या वेदविहित विधि में प्रोत्साहित या प्रेरित करने वाले लक्षण युक्त कर्म को धर्म कहते हैं।      वैशेठिक अध्याय-1, अहिनक-1, सूक्ति-1 में "यतो अभ्युदय निःश्रेयस सिद्धि सह धर्मः।" अर्थात कहा गया है जिससे निःश्रेयस सिद्धि हो वह धर्म है। मनुस्मृति अध्याय-6, श्लोक-92 में कहा गया है -- "धृतिः क्षमा दामोस्तेयम शौचमिन्द्रिय निग्रहः। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकर्म धर्म लक्षण।।" धीरता, क्षमा, मन र

हे युवक तुम युवा हो! by Dr Kiran K Singh

            हे युवक तुम युवा हो!  प्रतिस्पर्धा  में  भाग  रहे, समय  कही  ना  निकल  जाये, अपनी  ही  गति  को  बढ़ा  रहे। लम्हे बीता,  दौड़ बीता ; चलने  की  आदत  सी  पड़ी, कही  रुके  तो  रुक  ना  जाये साँस भी  हाँफती  ही  रही। थमो  कभी  जो   थम   सको, रुको  कभी  जो  रुक  सको, सफ़र  का  छुट  बहुत  है  बाकी, उम्मिदें  है  गर  मुड़  सको।                                                                   सिमटा  हुआ  सा  जो  कंधे  पे  है, वो तेरी पहचान  नहीं। छूटा  हुआ  सा  जो  सफ़र  में  है, उससे  तेरी  जीत  नहीं।। तुमसे  थी  आशायें  बहुत  परं  तुम  कभी  भी  मिले  नहीं। शायद  तुम जल्दी  में  थे ,उस  पगडंडी  पे  चले  नहीं।। संकिर्ण  ही  सही  कभी  तो  चलते कठिन  ही  सही  कभी तो चुनते शायद  गिरते और संभलते, ईधर  उधर कि कठिनाई में, हो सकता तुम मुझे देखते। मै उन नन्ही  आँखों में हू जो है सपनों  से  भरे  हुये, मै उस माँ  के आंचल  में हू, जिसने है  धूप को  परे  किये। उस मिट्टी की फसलों में हूँ हरे रंग भरे हुए। उस बुड्ढे की लाठी में हूँ जिसने ये जीवन तुम्हे दिये। उस