मोटर दुर्घटना क्यों न बढे?
इधर कुछ वर्षों से मोटर दुर्घटना के मामलों में तेजी से वृद्धि होती जा रही है. यह पूरे समाज के लिये चिन्ता का कारण बनता जा रहा है. दुर्घटना के कारण परिवार के परिवार तबाह होते जा रहे हैं. आप स्वयम् ही दस-पन्द्रह वर्ष पीछे मुड़कर देखें। आपको लगेगा कि आपने भी अपने कई मित्र, परिजन और परिचित को खो दिया है.
अनुभव से मैं पाता हूँ कि दुर्घटना के मूलरूप से तीन कारण होते हैं, जो निम्न प्रकार हैं--
1. गाड़ी चलाते समय चालक का ध्यान सड़क से भटक जाना-- जब आप गाड़ी चला रहे हों तो इसका ध्यान रखें कि आपका ध्यान सड़क से नहीं हटे.
आजकल गाड़ी चलाते समय मोबाइल फोन से बात करना एक आम बात हो गई है, जबकि मोबाइल फोन में कई ऐसी सुविधायें होती हैं, जिनका उपयोग करने से गाड़ी चलाते समय पूरा ध्यान गाड़ी चालन पर दिया जा सकता। शायद धीरज की कमी होते जा रही है. मोबाइल फोन पर बात करने वाले दूसरे पक्ष को भी चाहिये कि चार रिंग होने के बाद मान लें कि अगला गाड़ी चला रहा है.
कभी-कभी ऐसे कई मौके आते हैं कि हमें भरपूर सोने को नहीं मिलता है. अचानक कोई काम आ जाने से या क्षमता से अधिक काम करने से नींद आती है और इसी समय अगर गाड़ी चलाना पड़ जाय तो झुकनी का आना स्वभाविक है. आज करीब तीन-चौथाई माल सड़क मार्ग से ढोया जाता है. बड़ी संख्या में व्यापारीगण व्यवसायिक वाहन चालकों को माल समय से पहले पँहुचा देने पर नगद प्रलोभन देते हैं. साथ ही बड़े वाहन मालिक अपने खलासी को ही पिछले दरवाजा से चालक का लाइसेंस दिलवा देते हैं, जबकि उन खलासियों को बड़े वाहन चलाने भी नहीं आते. नतीजा यह होता है कि व्यवसायिक वाहन चालक बिना उचित आराम किये गाड़ी चलाते जाते हैं. एक समय ऐसा आता है कि चालक को झुकनी आने लगती है और उसका ध्यान सड़क से भटक जाता है.
बहुत से लोग कोई न कोई कारण से घर से या अपने होटल से देरी से निकलते हैं और अपने गन्तव्य पर जल्दी पंहुचना चाहते हैं. नतीजा यह होता है कि केवल शारीर ही वाहन पर होता है जबकि दिमाग इस बात पर ज्यादा सोचने लगता है कि गन्तव्य पर देरी से पंहुचने का परिणाम क्या होगा? इसी उधेर-बुन में चालक का ध्यान सड़क से भटक जाता है.
उक्त परिस्थितियों में चालक में प्रतिउत्पन्नमतित्व कम हो जाता है और चालक का ध्यान सड़क से हटने से मोटर दुर्घटना की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है.
2. यातायात के नियमों का पालन नहीं किया जाना-- हमारे देश में यातायात नियमों को पढ़ाने वाले शिक्षण संस्थान चालकों की संख्या के अनुपात में नगण्य है. ज्यादा से ज्यादा लोग अपने पारिवारिक या अपने दोस्त की गाड़ी पर ही गाड़ी चलाना सीखते हैं. ऐसी परिस्थिति में ट्राफिक नियमों की जानकारी उन्हें नहीं मिल पाती है. वे लोग थोड़ी बहुत नियमों की जानकारी अपने मित्रों से ही मिल पाती है. सरकार द्वारा नियमों की जानकारी देने की व्यवस्था नहीं के बराबर है. जब ऐसे गाड़ी चालक ट्राफिक पुलिस को सामने देखते हैं तो घबड़ाने लगते हैं. यातायात नियमों की जानकारी का कम होना मोटर दुर्घटना का दूसरा बड़ा कारण बनता जा रहा है.
सड़क के मोड़ पर बड़ी संख्या में दुर्घटनायें होती हैं. छोटे रास्ते से मुख्य रास्ते पर जाने वालों को सतर्क रहने की जवाबदेही ज्यादा बनती है. मोड़ पर प्रायः लोग Left Rule का पालन नहीं करते और Horn नहीं बजाते।
3. वाहन में यांत्रिक खोट होना और सड़क/पुलिया के डिजाइन में खोट होना-- अधिकतर वाहन मालिक अपने गाड़ियों कि नियमित यान्त्रिक जाँच नहीं करवाते हैं. अगर जाँच करवाते भी हैं तो विशेषज्ञ के बदले कामचलाऊ मिस्त्री से. प्रायः गाड़ी चालक अपनी गाड़ी के यान्त्रिक गड़बड़ियों के बारे में जानते भी नहीं हैं.
जैसे ही थोड़ी अच्छी सड़क मिली लोग अपनी गाड़ी की गति आवश्यकता से अधिक बढ़ा लेते हैं. उन्हें समझना चाहिये कि शायद उनकी गाड़ी का ब्रेक उस गति पर काम नहीं कर पायेगा। यह भी अजीब संयोग है कि अच्छी सड़क पर ख़राब सड़क की अपेक्षा अधिक दुर्घटना होती है.
1963 में रोड काँग्रेस में पाया कि अब अधिक शक्तिशाली गाड़ियां आ रही हैं जो उस समय के मोड़ और चढ़ाई पर दुर्घटना होते-होते बचने लगी और उस काँग्रेस ने सुझाया कि मोड़ और चढ़ाई को सुधारा जाय. इन दोनों सुधारों के लिये काफी वित्तीय सहायता केन्द्र से राज्य सरकारों को प्राप्त हुई, लेकिन पैसे के बावजूद बिहार की सड़क के मोड़(Curve) और चढ़ाई/ढलान(Gradient) में अपेक्षित सुधार नहीं हो सका. आज भी बिहार झारखण्ड की सडकों के मोड़ और चढ़ाई में सुधार किये बिना ही नयी उसी पर नयी सड़कें और पुलिया बनायी जा रही है, बल्कि पहले से और ऊँची पुलिया बनायीं जा रही है. कहीं-कहीं तो पुलिया की अधिक ऊंचाई होने के कारण दोनों ओर के छोटे वाहनों के चालकों को पुलिया के आगे की स्थिति का पता ही नहीं चलता। जानकार बताते हैं कि उसके पहले सड़कें जानबूझ कर संर्पाकार(Serpentine) बनायीं जाती थीं ताकि मोटर चालकों का ध्यान सड़क पर बना रहे.
कुछ लोगों का कहना है कि हाथी के आवागमन को सुलभ बनाने के लिये पुलिया की ऊंचाई अधिक रखी जाती है. हो सकता है भविष्य में पुलिया के आस-पास जंगल हो जाय और हाथी मजे में पुलिया पार कर सकें। कुछ इंजीनियर तो वहाँ भी ऊँची पुलिया बनवा देते हैं, जहाँ तत्कालीन कोई नाला ही न हो.
सड़क का अतिक्रमण तो आम बात हो गयी है. अतिक्रमित सडकों पर गाड़ी चलाने में बड़ी धीरज की आवश्यकता होती है. ओवर लोडिंग भी तो आम बात हो गयी है, चालक यह भ्रम में रहते हैं कि उनकी गाड़ी ओवर लोडिंग और आवश्यकता से अधिक गति पर ब्रेक लगाने पर रुक जायेगी।
गाड़ी का नम्बर प्लेट इस स्टाईल में लिखवाना फैशन सा हो गया है कि गाड़ी के पीछे गाड़ी के नम्बर के अलावा सबकुछ आराम से पढ़ा जा सके. लेकिन इसका एक ही मतलब होता है कि दुर्घटना बाद पकड़े जाने की स्थिति में इनके गाड़ी का नम्बर कोई आसानी से नोट नहीं कर सके. यह स्थिति चालकों में मोटर दुर्घटना जैसे अपराध को करने से रोकने में सहायक नहीं है.
दुर्घटना रोकने में मोटर कानून को लागु कराने वाली पुलिस या परिवहन विभाग की भी अहम भूमिका होती है. अगर ये दोनों संस्थायें सिर्फ नम्बर प्लेट सम्बन्धी कानून को ही लागु करा दें तो 10% दुर्घटनायें निश्चित ही कम हो जायेंगी। लेकिन ऐसा ये दोनों संस्थायें क्यों करेंगी? इसके लिये कोई विशेष वेतन तो मिलेगा नहीं और ऊपर से यदि बड़े अधिकारी/नेताओं के चालान कट गये तो नौकरी पर भी आफत! Why do people commit crime?
अच्छे चालक के गुण:-
1. जो वाहन के उपयोग के पहले उसके ब्रेक, हॉर्न, क्लच, रेडिएटर और ईंधन को जाँच-परख लेते हों,
2. जो वाहन चलाते समय ब्रेक और हॉर्न का उपयोग कम से कम करता हो,
3. जो वाहन चलाते समय किसी अन्य से बातें नहीं करता है,
4. जिसका हाथ, पैर और मस्तिष्क जुड़ाव वाहन के स्टीयरिंग/हैंडल, हॉर्न, ब्रेक, एक्सलरेटर से हो जाता है,
5. जिन्हे यातायात नियमों और अपनी गाड़ी की स्थिति के बारे में अच्छा ज्ञान हो.
लोकोक्तियाँ
1. खराब सड़क पर दुर्घटनायें कम होती हैं.
2. जो सड़क दुर्घटनाओं में बच जाते हैं उनके लिये ईश्वर के तरफ से चेतावनी है की गाड़ी चलाते समय या सड़क का पैदल इस्तेमाल करते समय अपनी जीवन-शैली बदलें।
3. "सटले तो घटले बेटा"
4. "स्पीड का मजा, मौत की सजा"
5. "गोल्डेन ऑवर सबको नसीब नहीं होता"
6. "दुपहिआ वाहन वाले हेलमेट और चारपहिया वाहन वाले सीट बेल्ट का उपयोग तो सिर्फ पुलिस चालान से बचने के लिये ही करते हैं."
अनुभव से मैं पाता हूँ कि दुर्घटना के मूलरूप से तीन कारण होते हैं, जो निम्न प्रकार हैं--
1. गाड़ी चलाते समय चालक का ध्यान सड़क से भटक जाना-- जब आप गाड़ी चला रहे हों तो इसका ध्यान रखें कि आपका ध्यान सड़क से नहीं हटे.
आजकल गाड़ी चलाते समय मोबाइल फोन से बात करना एक आम बात हो गई है, जबकि मोबाइल फोन में कई ऐसी सुविधायें होती हैं, जिनका उपयोग करने से गाड़ी चलाते समय पूरा ध्यान गाड़ी चालन पर दिया जा सकता। शायद धीरज की कमी होते जा रही है. मोबाइल फोन पर बात करने वाले दूसरे पक्ष को भी चाहिये कि चार रिंग होने के बाद मान लें कि अगला गाड़ी चला रहा है.
कभी-कभी ऐसे कई मौके आते हैं कि हमें भरपूर सोने को नहीं मिलता है. अचानक कोई काम आ जाने से या क्षमता से अधिक काम करने से नींद आती है और इसी समय अगर गाड़ी चलाना पड़ जाय तो झुकनी का आना स्वभाविक है. आज करीब तीन-चौथाई माल सड़क मार्ग से ढोया जाता है. बड़ी संख्या में व्यापारीगण व्यवसायिक वाहन चालकों को माल समय से पहले पँहुचा देने पर नगद प्रलोभन देते हैं. साथ ही बड़े वाहन मालिक अपने खलासी को ही पिछले दरवाजा से चालक का लाइसेंस दिलवा देते हैं, जबकि उन खलासियों को बड़े वाहन चलाने भी नहीं आते. नतीजा यह होता है कि व्यवसायिक वाहन चालक बिना उचित आराम किये गाड़ी चलाते जाते हैं. एक समय ऐसा आता है कि चालक को झुकनी आने लगती है और उसका ध्यान सड़क से भटक जाता है.
बहुत से लोग कोई न कोई कारण से घर से या अपने होटल से देरी से निकलते हैं और अपने गन्तव्य पर जल्दी पंहुचना चाहते हैं. नतीजा यह होता है कि केवल शारीर ही वाहन पर होता है जबकि दिमाग इस बात पर ज्यादा सोचने लगता है कि गन्तव्य पर देरी से पंहुचने का परिणाम क्या होगा? इसी उधेर-बुन में चालक का ध्यान सड़क से भटक जाता है.
उक्त परिस्थितियों में चालक में प्रतिउत्पन्नमतित्व कम हो जाता है और चालक का ध्यान सड़क से हटने से मोटर दुर्घटना की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है.
2. यातायात के नियमों का पालन नहीं किया जाना-- हमारे देश में यातायात नियमों को पढ़ाने वाले शिक्षण संस्थान चालकों की संख्या के अनुपात में नगण्य है. ज्यादा से ज्यादा लोग अपने पारिवारिक या अपने दोस्त की गाड़ी पर ही गाड़ी चलाना सीखते हैं. ऐसी परिस्थिति में ट्राफिक नियमों की जानकारी उन्हें नहीं मिल पाती है. वे लोग थोड़ी बहुत नियमों की जानकारी अपने मित्रों से ही मिल पाती है. सरकार द्वारा नियमों की जानकारी देने की व्यवस्था नहीं के बराबर है. जब ऐसे गाड़ी चालक ट्राफिक पुलिस को सामने देखते हैं तो घबड़ाने लगते हैं. यातायात नियमों की जानकारी का कम होना मोटर दुर्घटना का दूसरा बड़ा कारण बनता जा रहा है.
सड़क के मोड़ पर बड़ी संख्या में दुर्घटनायें होती हैं. छोटे रास्ते से मुख्य रास्ते पर जाने वालों को सतर्क रहने की जवाबदेही ज्यादा बनती है. मोड़ पर प्रायः लोग Left Rule का पालन नहीं करते और Horn नहीं बजाते।
3. वाहन में यांत्रिक खोट होना और सड़क/पुलिया के डिजाइन में खोट होना-- अधिकतर वाहन मालिक अपने गाड़ियों कि नियमित यान्त्रिक जाँच नहीं करवाते हैं. अगर जाँच करवाते भी हैं तो विशेषज्ञ के बदले कामचलाऊ मिस्त्री से. प्रायः गाड़ी चालक अपनी गाड़ी के यान्त्रिक गड़बड़ियों के बारे में जानते भी नहीं हैं.
जैसे ही थोड़ी अच्छी सड़क मिली लोग अपनी गाड़ी की गति आवश्यकता से अधिक बढ़ा लेते हैं. उन्हें समझना चाहिये कि शायद उनकी गाड़ी का ब्रेक उस गति पर काम नहीं कर पायेगा। यह भी अजीब संयोग है कि अच्छी सड़क पर ख़राब सड़क की अपेक्षा अधिक दुर्घटना होती है.
1963 में रोड काँग्रेस में पाया कि अब अधिक शक्तिशाली गाड़ियां आ रही हैं जो उस समय के मोड़ और चढ़ाई पर दुर्घटना होते-होते बचने लगी और उस काँग्रेस ने सुझाया कि मोड़ और चढ़ाई को सुधारा जाय. इन दोनों सुधारों के लिये काफी वित्तीय सहायता केन्द्र से राज्य सरकारों को प्राप्त हुई, लेकिन पैसे के बावजूद बिहार की सड़क के मोड़(Curve) और चढ़ाई/ढलान(Gradient) में अपेक्षित सुधार नहीं हो सका. आज भी बिहार झारखण्ड की सडकों के मोड़ और चढ़ाई में सुधार किये बिना ही नयी उसी पर नयी सड़कें और पुलिया बनायी जा रही है, बल्कि पहले से और ऊँची पुलिया बनायीं जा रही है. कहीं-कहीं तो पुलिया की अधिक ऊंचाई होने के कारण दोनों ओर के छोटे वाहनों के चालकों को पुलिया के आगे की स्थिति का पता ही नहीं चलता। जानकार बताते हैं कि उसके पहले सड़कें जानबूझ कर संर्पाकार(Serpentine) बनायीं जाती थीं ताकि मोटर चालकों का ध्यान सड़क पर बना रहे.
कुछ लोगों का कहना है कि हाथी के आवागमन को सुलभ बनाने के लिये पुलिया की ऊंचाई अधिक रखी जाती है. हो सकता है भविष्य में पुलिया के आस-पास जंगल हो जाय और हाथी मजे में पुलिया पार कर सकें। कुछ इंजीनियर तो वहाँ भी ऊँची पुलिया बनवा देते हैं, जहाँ तत्कालीन कोई नाला ही न हो.
सड़क का अतिक्रमण तो आम बात हो गयी है. अतिक्रमित सडकों पर गाड़ी चलाने में बड़ी धीरज की आवश्यकता होती है. ओवर लोडिंग भी तो आम बात हो गयी है, चालक यह भ्रम में रहते हैं कि उनकी गाड़ी ओवर लोडिंग और आवश्यकता से अधिक गति पर ब्रेक लगाने पर रुक जायेगी।
गाड़ी का नम्बर प्लेट इस स्टाईल में लिखवाना फैशन सा हो गया है कि गाड़ी के पीछे गाड़ी के नम्बर के अलावा सबकुछ आराम से पढ़ा जा सके. लेकिन इसका एक ही मतलब होता है कि दुर्घटना बाद पकड़े जाने की स्थिति में इनके गाड़ी का नम्बर कोई आसानी से नोट नहीं कर सके. यह स्थिति चालकों में मोटर दुर्घटना जैसे अपराध को करने से रोकने में सहायक नहीं है.
दुर्घटना रोकने में मोटर कानून को लागु कराने वाली पुलिस या परिवहन विभाग की भी अहम भूमिका होती है. अगर ये दोनों संस्थायें सिर्फ नम्बर प्लेट सम्बन्धी कानून को ही लागु करा दें तो 10% दुर्घटनायें निश्चित ही कम हो जायेंगी। लेकिन ऐसा ये दोनों संस्थायें क्यों करेंगी? इसके लिये कोई विशेष वेतन तो मिलेगा नहीं और ऊपर से यदि बड़े अधिकारी/नेताओं के चालान कट गये तो नौकरी पर भी आफत! Why do people commit crime?
अच्छे चालक के गुण:-
1. जो वाहन के उपयोग के पहले उसके ब्रेक, हॉर्न, क्लच, रेडिएटर और ईंधन को जाँच-परख लेते हों,
2. जो वाहन चलाते समय ब्रेक और हॉर्न का उपयोग कम से कम करता हो,
3. जो वाहन चलाते समय किसी अन्य से बातें नहीं करता है,
4. जिसका हाथ, पैर और मस्तिष्क जुड़ाव वाहन के स्टीयरिंग/हैंडल, हॉर्न, ब्रेक, एक्सलरेटर से हो जाता है,
5. जिन्हे यातायात नियमों और अपनी गाड़ी की स्थिति के बारे में अच्छा ज्ञान हो.
लोकोक्तियाँ
1. खराब सड़क पर दुर्घटनायें कम होती हैं.
2. जो सड़क दुर्घटनाओं में बच जाते हैं उनके लिये ईश्वर के तरफ से चेतावनी है की गाड़ी चलाते समय या सड़क का पैदल इस्तेमाल करते समय अपनी जीवन-शैली बदलें।
3. "सटले तो घटले बेटा"
4. "स्पीड का मजा, मौत की सजा"
5. "गोल्डेन ऑवर सबको नसीब नहीं होता"
6. "दुपहिआ वाहन वाले हेलमेट और चारपहिया वाहन वाले सीट बेल्ट का उपयोग तो सिर्फ पुलिस चालान से बचने के लिये ही करते हैं."
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