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Showing posts from July, 2017

प्रभावकारी चिकित्सा व्यवस्था से भी लोगों का दिल जीता जा सकता है.

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   चिकित्सा-सेवा को हमारे सम्विधान के समवर्ती सूचि में रखा गया है. यानि जनता को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करने केन्द्र और राज्य सरकारों दोनों का सम्वैधानिक दायित्व है. हमारे सम्विधान को जन-कल्याणकारी और समाजवादी दोनों बनाया गया है. कल्याणकारी और समाजवादी व्यवस्था का अर्थ है कि राष्ट्रीय धन पर सभी जनता का उचित अधिकार है. हमारे देश के कर्णधारों ने हमारे देश के लिये मिश्रित अर्थ-व्यवस्था को उचित बताया था और इसी मार्गदर्शन के अन्तर्गत निजी चिकित्सा प्रणाली को भी समय-समय पर उचित प्रोत्साहन भी दिया जाता रहा है. निजी चिकित्सा व्यवस्था ने हमारे बहुत से लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार भी दिया है. इसके नियमन हेतु मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया(MCI) भी बनाया गया है.     अपने देश के लोगों के आर्थिक वर्गीकरण से लगभग दस प्रतिशत धनी लोग निजी चिकित्सा व्यवस्था से सन्तुष्ट बताये जाते हैं. लगभग पैतीस प्रतिशत मध्यम वर्ग के लोग लाचारी में निजी चिकित्सा व्यवस्था को अपना रहे हैं. लेकिन शेष पचपन प्रतिशत लोग, जिनकी आमदनी उतनी नहीं है कि वे महँगी निजी चिकित्सा व्यवस्था का लाभ उठा सकें, सरकारी अस्पतालों में अपनी बीमारी

तकनीकों से बदलती दुनिया और उसके पीछे-पीछे हमारा देश

    आजकल तकनीकों के सहारे दुनिया को बदलने का प्रयास चल रहा है और हमारा देश उसके पीछे-पीछे उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है. अगर हम इन नयी तकनीकों को नहीं अपनावेंगे तो हमें दुनिया में पिछड़ जाने के खतरों का सामना करना पड़ सकता है. हमारी नयी सरकार दुनिया से कदम से कदम मिलाकर चलने का पूरा प्रयास कर रही है. ऊर्जा क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है. बैटरी चालित कारें अब जल्दी ही जहरीली धुआं उगलती कारों के मूल्य से मुकाबला करने लायक होने वाली है. अभी भी लगभग तीस प्रतिशत ऊर्जा पेट्रोलियम उत्पादों से ही प्राप्त हो रही है. लेकिन धीरे-धीरे सौर/पवन ऊर्जा और हाइड्रोजन से प्राप्त ऊर्जा की मात्रा बढ़ रही है. 1. बढ़ती मोटर दुर्घटनाओं से लोग परेशान हैं और स्वचालित या चालकरहित वाहनों का इंतजार बेसब्री से कर रहे हैं. उत्खनन क्षेत्र में तो वॉल्वो कम्पनी द्वारा उत्पादित वाहन का उपयोग शुरू भी हो गया है. उत्खनन क्षेत्र से शुरू होकर स्वचालित या चालक रहित मोटर वाहन ड्रोन, जहाज और ट्रक होते हमारे शहरों में भी आने ही वाले हैं. अब इन्हे रोकना कठिन है लेकिन कब आयेंगे यह कहना कठिन है. ऐसे वाहनों के लिये अच्छी सड़कें बनान

हम खाने के लिये जिन्दा रहें या जिन्दा रहने के लिये खायें?

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    एक ओर जहाँ कोल्हान में गरीब लोग ख़ुशी-ख़ुशी लातेर-मांडी(साग-भात) खाकर जिन्दा रहते हैं वहीँ दूसरी ओर दुनिया के सभी जगहों के सम्पन्न लोग तरह-तरह के व्यंजनों के स्वाद लेने के क्रम में खा-खा कर मोटे हुए जा रहे हैं. अब तो मोटापा एक तरह से बिमारी का रूप लेने लगा है. कहा जाता है कि मोटापा अपने आप में कोई बिमारी नहीं है लेकिन मोटापा तमाम बिमारियों को आमन्त्रित करता है. मोटापा सौन्दर्य को भी कम कर रहा है. छड़हड़ा बदन वाले लोग मोटे लोगों को पसन्द नहीं करते। मोटापा और सम्पन्नता में गहरा सम्बन्ध है. इस तथ्य की पुष्टि इस बात से भी होती है कि मात्र पिछले दो वर्षों में ही वेनेजुएला नाम के देश की सम्पन्नता कम होते ही वहाँ के निवासियों का औसत वजन दस किलो ग्राम तक कम हो गया है.     एक बार एक मोटा और काफी सम्पन्न व्यक्ति अपने मोटापा के कारण कई बिमारियों से घिर गया. वह अपनी बिमारियों के इलाज कराते-कराते थक और निराश हो गया था. तभी उसके किसी शुभ-चिन्तक ने उसे पटना(बिहार) के एक गरीबों के डॉक्टर  के रूप में प्रसिद्ध डॉ शिव नारायण सिंह से मिलकर उनसे सलाह लेने को कहा. पहले तो वह व्यक्ति " गरीबों के ड

बिहार और झारखण्ड के शहरी क्षेत्रों में पानी की समस्या?

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    बिहार और झारखण्ड में हर साल लगभग 50 से 55 इंच वर्षा होती है. इस वर्षा-जल में से लगभग एक प्रतिशत का उपयोग ही शहरी क्षेत्रों में हमारे पीने और अन्य आवश्यक कार्यों में उपयोग में लाया जाता है. वर्षा-जल का शेष भाग में से अधिकांश बह कर नदियों में चला जाता है. बिहार और झारखण्ड की नदियां पश्चिम बंगाल और ओडिशा की बड़ी नदियों में मिलकर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाता है. वर्षा-जल का कुछ पानी वाष्पीकरण के माध्यम से आकाश में और कुछ अवशोषण के माध्यम से जमीन के नीचे जाकर पुनः उपयोग हेतु जमा हो जाता है.     आज से लगभग चालीस वर्ष पूर्व जब बड़ी संख्या में लोग शहरों में भी कुओं से ही पानी पर ही निर्भर थे तो बाल्टी से पानी भरने में परिश्रम लगने के कारण प्रति व्यक्ति पानी की खपत लगभग पच्चास लीटर बताया जाता है. उसके बाद चापा-नल या चापा-कल का युग आया तो यह खपत लगभग साठ लीटर हो गयी. जब कुआँ या चापा-नल या बोरिंग में बिजली के मोटर से पानी खींचा जाने लगा तब खपत बढ़कर प्रति व्यक्ति लगभग एक सौ लीटर हो गयी. जो लोग दूसरों के घरों में रहते हैं उनके यहाँ यह खपत लगभग कुछ ज्यादा होती है. अर्थात जैसे-जैसे सुविधा बढ़ते

सरकारी अस्पताल की इलाज और राजनीति

    एक नेताजी ने टिकट दिलाने की लॉबी करने वाले कुछ लोगों को प्रभावित कर विधायक का टिकट प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर ली लेकिन उनके लिये चुनाव जीतना काफी कठिन था. उनके लिये चुनाव जीतना इसलिये भी कठिन था क्योंकि उनके पार्टी के विपरीत चुनावी लहर चल रही थी. उनके पक्ष में एक बात बहुत मजबूत थी कि जिस नेता के पुत्र होने का दावा कर उन्होंने छल से ही टिकट प्राप्त किया था उनका इलाका में बहुत प्रभाव था. वो प्रभावशाली नेताजी अब वृद्ध हो गये थे और बीमार चल रहे थे. इन कारणों से उनकी राजनैतिक गतिविधि लगभग शून्य सी हो गयी थी. उस समय उस इलाके में संचार की व्यवस्था भी कमजोर थी. इसके अलावे विपरीत राजनैतिक लहर चलने के कारण उनके पार्टी के अन्दर कोई विशेष प्रतिस्पर्द्धा भी नहीं चल रही थी.     विधायक के उम्मीदवार( अब आगे से नेताजी ) अपने चुनाव क्षेत्र में अपनी पार्टी के अपने क्षेत्र के उक्त बुजुर्ग नेता को हवाला देकर कई बड़े नेता की चुनावी रैली कराने में सफल रहे. नेताजी सभी रैलियों में मंच पर अपने बुजुर्ग नेता(अपने कथित पिता) का फोटो लगाना नहीं भूलते थे. चुनाव समाप्त हुआ और विपरीत चुनावी लहर में भी कुछ

क्षत्रियों को दिये जा रहे उपदेश पर द्रौपदी का ठहाका!

    महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह वाणों की मृत्यु-शैया पर लेटे हुए थे और उत्तरायण में अपने प्राण त्यागने की प्रतीक्षा कर रहे थे. भीम अपने भाइयों के साथ भीष्म पितामह से कुछ उपदेश ग्रहण करने। पितामह उन सबों को क्षत्रिय धर्म के बारे में बताने लगे. पितामह के अनुसार क्षत्रियों को निम्न धर्म का पालन करना चाहिये:- 1. अगर युद्ध क्षेत्र में कोई पीठ दिखाते हुए भाग रहा है या अब युद्ध लड़ने की स्थिति में नहीं है तो उस पर वार या प्रहार करना बन्द कर देना चाहिये और अगर आपके सामने वैसे व्यक्ति पर कोई वार कर रहा हो तो उसका भरपूर प्रतिकार करना चाहिये। 2. अगर कोई महिला लाचारी में अर्द्ध-नग्न या  नंगे अवस्था में दिख जाये तो उसका दर्शन नहीं करना चाहिये और उस महिला अर्ध-नग्न या नंगी अवस्था में पँहुचाने वाले का भरपूर प्रतिकार करना चाहिये। 3. किसी क्षत्रिय के लिये बालक-वध वर्जित है.     इन उपदेशों को सुनकर द्रौपदी ठहाका लगाते हुए हंस पड़ी और वहाँ से चलते बनी. द्रौपदी के इस अनअपेक्षित व्यवहार से सभी पाण्डू-पुत्र चौंक पड़े और द्रौपदी को रोक कर उसके ठहाका लगा कर पितामह के उपदेशों का उपहास उड़ाने का कारण पूछ

मोटर दुर्घटनायें और चालकरहित गाड़ियाँ

    जहाँ तक मुझे याद है विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) के एक पुराने रिपोर्ट के अनुसार लगभग 70% मोटर दुर्घटनायें मानव भूल के कारण, लगभग 20% मोटर दुर्घटनायें यातायात के नियमों के उल्लंघन के कारण और शेष 10% मोटर दुर्घटनायें मोटर गाड़ियों के यांत्रिक त्रुटि और रोड डिज़ाइन में खामी के कारण घटित होती हैं. नियमों के उल्लंघन में मोटर गाड़ी चालक के आधे और राहगीर, साईकिल चालक तथा पशु मालिक जवाबदेह बताये गये थे. लावारिस या जंगली पशु भी कुछ मोटर दुर्घटनाओं के लिये जवाबदेह होते हैं लेकिन उन दुर्घटनाओं की संख्या नगण्य मानी जा सकती है.     मानव भूल वाली मोटर दुर्घटना को पुनः निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है:- (1)  गाड़ी चलाते समय चालक का ध्यान भटक जाना: - चालक से सीधे बात करना या मोबाइल से बात करने से गाड़ी चालक का ध्यान भटक सकता है और दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है. गाड़ी चलाने के पूर्व नींद की कमी या किसी अन्य कारणों से तनाव भी चालक का ध्यान भटका देता है. प्रायः कच्चे माल के मालिक या दलाल व्यवसायिक वाहनों के चालको को गन्तव्य तक माल जल्दी पँहुचा देने पर कुछ अधिक पैसे देने का लालच देते हैं. ऐसी परि

भावनाओं का असर दो-तीन महीने ही रहता है जबकि आर्थिक कारकों का सालों-साल

    प्रायः लोग भावनाओं का असर दो-तीन महीने ही अनुभव करते हैं. इसके विपरीत जबकि आर्थिक कारकों का सालों-साल सालों-साल रहता हैं. भूलना मानव स्वभाव का एक महत्वपूर्ण अवयव है. हमारे मस्तिष्क की स्मृति सीमित होती है. हम नयी बातों को याद करते हैं और हमारे स्मृति-पटल से पुरानी बातें मिटती जाती हैं. एक पुरानी कहावत भी "बीती ताहि बिसारिये आगे की सुधि लेय". बड़े-बुजुर्ग लोग यह भी कहते रहे हैं कि यदि हम पुरानी बातों को ही रटते रहेंगे तो हम आगे नहीं बढ़ पायेंगे। बहुत सी पुरानी सभ्यताओं में भी किसी की हत्या का बदला लेने का अधिकार सिर्फ उसके नाती-पोतों तक ही सीमित रखा गया था और उसके बाद के पीढ़ी द्वारा बदले में की गयी हत्या को अपराध माना गया था. उक्त कहावत और मान्यता पीढ़ियों के अनुभव और साधू-सन्तों आत्म-मन्थन और आपसी विचार-विमर्श के बाद ही बनी होंगी।     आधुनिक इतिहास की बहुत सी घटनायें भी उक्त तथ्य की पुष्टि करते हैं. इस सम्बन्ध में पृथ्वीराज चौहान और ग़ोरी की माफ़ी और पुनः आक्रमण की घटनाओं को उद्धृत करना उचित लगता है. पृथ्वीराज अपनी भावनाओं में बहकर ग़ोरी को हमेशा क्षमा कर देता था, लेकिन जब उस