हम खाने के लिये जिन्दा रहें या जिन्दा रहने के लिये खायें?



    एक ओर जहाँ कोल्हान में गरीब लोग ख़ुशी-ख़ुशी लातेर-मांडी(साग-भात) खाकर जिन्दा रहते हैं वहीँ दूसरी ओर दुनिया के सभी जगहों के सम्पन्न लोग तरह-तरह के व्यंजनों के स्वाद लेने के क्रम में खा-खा कर मोटे हुए जा रहे हैं. अब तो मोटापा एक तरह से बिमारी का रूप लेने लगा है. कहा जाता है कि मोटापा अपने आप में कोई बिमारी नहीं है लेकिन मोटापा तमाम बिमारियों को आमन्त्रित करता है. मोटापा सौन्दर्य को भी कम कर रहा है. छड़हड़ा बदन वाले लोग मोटे लोगों को पसन्द नहीं करते। मोटापा और सम्पन्नता में गहरा सम्बन्ध है. इस तथ्य की पुष्टि इस बात से भी होती है कि मात्र पिछले दो वर्षों में ही वेनेजुएला नाम के देश की सम्पन्नता कम होते ही वहाँ के निवासियों का औसत वजन दस किलो ग्राम तक कम हो गया है.

    एक बार एक मोटा और काफी सम्पन्न व्यक्ति अपने मोटापा के कारण कई बिमारियों से घिर गया. वह अपनी बिमारियों के इलाज कराते-कराते थक और निराश हो गया था. तभी उसके किसी शुभ-चिन्तक ने उसे पटना(बिहार) के एक गरीबों के डॉक्टर के रूप में प्रसिद्ध डॉ शिव नारायण सिंह से मिलकर उनसे सलाह लेने को कहा. पहले तो वह व्यक्ति "गरीबों के डॉक्टर" के शब्दों और उनके कम फीस को सुन कर ही चिढ गया लेकिन अन्त में कोई अन्य विकल्प के नहीं होने के कारण उस गरीबों के डॉक्टर से मिलने को राजी हो गया और पटना जाकर बताये गये डॉक्टर से मिला।
    देवता तुल्य डॉ शिव नारायण सिंह(अब स्वर्गवासी) ने उस मोटे व्यक्ति के पुराने इलाजों के कागजातों के अवलोकन के बाद उससे कुछ प्रश्न पूछे-
डॉक्टर साहेब:- क्या आपके घर में फ्रीज है?
मोटा व्यक्ति: हाँ है. एक फ्रीज मेरे घर में है और एक फ्रीज मेरे कार्यालय में भी है.
डॉक्टर साहेब: फ्रीज का उपयोग आप खाने में किस तरह करते हैं?
मोटा मरीज: भगवान का दिया हुआ सब कुछ मेरे पास है. मैं प्रतिदिन सुबह पॉँच किलो ग्राम मीट मंगवाता हूँ और उसे स्वादिष्ट रूप से पकवा कर रात तक जब मन में आता है तब खाते रहता हूँ.
डॉक्टर साहेब: आप खाने के लिये जिन्दा हैं या जिन्दा रहने के लिये खाना चाहते हैं?
मोटा मरीज: मैं आपके यहाँ अपने इलाज के लिये आया हूँ. आप जल्दी से दवाई लिखिये और मुझे छुट्टी दीजिये।डॉक्टर साहेब: अगर आप आगे जिन्दा रहना चाहते हैं तो मेरे पास दवाई के अलावे भी कुछ समाधान है.
मोटा मरीज: क्या समाधान है?
डॉक्टर साहेब: आपको प्रतिदिन चार बार चोकर की दो टिकड़ी और उसके साथ साधारण रूप से पकाये गये जमीन के ऊपर उगाये जाने वाले मौसमी ताजी हरी सब्जी खाकर अपना पेट भरना होगा।
मोटा मरीज: (डॉक्टर साहेब की उक्त बातें सुन कर वह चक्कर में पड़ गया). कुछ देर बाद बोला: और कोई दवाई?
डॉक्टर साहेब: कोई दवाई नहीं है और आपकी बिमारी का और कोई इलाज भी नहीं है.
मोटा मरीज अब काफी असमंजस में पड़ गया और आगे जीने की आस में उसने डॉक्टर साहेब की सलाह मान ली और वहाँ से विदा लिया। कहा जाता है कि वह मरीज नयी दिन-चर्या और खान-पान के साथ काफी दिनों तक जीवित रहा और लोगों को सलाह देता रहा कि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है तथा जीभ से दोस्ती पेट से दुश्मनी करा देती है.
    बिहार की राजधानी पटना की क्षितिज पर एक डॉ शिव नारायण सिंह नाम का तारा काफी दिनों तक चमकता रहा. उन्हें लोग गरीबों के डॉक्टर के रूप में आज भी याद करते हैं. वे अपने घर पर ही लोगों का इलाज करते थे. उनके लिये VIP यानि विशिष्ट व्यक्ति और साधारण व्यक्ति में कोई अन्तर नहीं था. कुछ ही सालों में अपनी कार्य-कुशलता और अपने मेडिकल ज्ञान के बल पर उन्होंने काफी प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी और अपना स्वाभाविक जीवन पूरा कर इस दुनिया से विदा लिये। यादों के रूप में वह तारा आज भी टिमटिमाता है.
    डॉक्टर साहेब के सम्बन्ध में कुछ रोचक बातें इस प्रकार है:-
1. उनके आवासीय क्लिनिक का मुख्य गेट पहली बार सुबह छः बजे और दूसरी बार दोपहर बाद चार बजे खुलता था. पॉँच मिनट के अन्दर ही गेट बन्द हो जाता था. नये मरीजों को अगली बार गेट खुलने का इंतजार करना पड़ता था.
2. डॉक्टर साहेब संगीत के प्रेमी थे और मरीज को देखने के क्रम में अचानक अपने ऊपरी तल्ला के आवास में चले जाते थे और कुछ देर सितार बजा कर अपना मन हल्का कर पुनः मरीज को देखने लगते थे. कहा जाता है कि संगीत से उन्हें मरीज की जटिल समस्याओं के समाधान में मदद मिलती थी.
   हमें यह बात भी समझनी चाहिये कि तेल में तला हुआ कोई भी व्यंजन जब ठंढा होने पर उसे दुबारा तला जाता है तो उसमे लगभग पॉँच प्रतिशत स्वास्थ्य के लिये हानिकारक अम्लीय पदार्थ चिपक जाते है. लगभग यही स्थिति अधिक तेल के साथ पकाये अन्य व्यंजनों की भी होती है. देहात में एक कहावत भी है कि "जीभे सुख त पेटे दुख".
   अब प्रश्न उठता है कि हम खाने के लिये जिन्दा रहें या जिन्दा रहने के लिये सादा और साधारण खाना खायें? हमारे शरीर की संरचना बहुत ज्यादा मसालेदार और मिलावटी मसाला, तेल युक्त भोजन को पचाने के लिये नहीं बनी है. हमारा शरीर शाकाहार और मांसाहार में अन्तर नहीं समझता। जब हम अपनी शारीरिक क्षमता को नज़रअंदाज कर स्वाद के कारण जरुरत से ज्यादा और हमारे शरीर के लिये अनुपयुक्त वस्तुएं खायेंगे और पियेंगे तो उनके साइड इफेक्ट्स हमारे शरीर को ही झेलना पड़ेगा। ये साइड इफेक्ट्स हमें जरुरत से ज्यादा मोटा बना देगा या हमें अपच का शिकार बना देगा। मोटापा और अपच ही बहुत सी बिमारियों का कारण बनते हैं. सुपाच्य भोजन और थोड़ा पसीना बहाने वाले नियमित शारीरिक परिश्रम हमें स्वस्थ और जिन्दा रहने के लिये पर्याप्त है.
नोट: इसकी सभी बातें श्रुतिसम्मत हैं. इस पर पाठकों की खट्टी-मीठी टिप्पणियों का सदैव स्वागत रहेगा।
Content contributor
1. Shi BN Mishra, Retired Official
https://Twitter.com/BishwaNathSingh
1. Update for chicken eating people
      

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