बिहार और झारखण्ड के शहरी क्षेत्रों में पानी की समस्या?

    बिहार और झारखण्ड में हर साल लगभग 50 से 55 इंच वर्षा होती है. इस वर्षा-जल में से लगभग एक प्रतिशत का उपयोग ही शहरी क्षेत्रों में हमारे पीने और अन्य आवश्यक कार्यों में उपयोग में लाया जाता है. वर्षा-जल का शेष भाग में से अधिकांश बह कर नदियों में चला जाता है. बिहार और झारखण्ड की नदियां पश्चिम बंगाल और ओडिशा की बड़ी नदियों में मिलकर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाता है. वर्षा-जल का कुछ पानी वाष्पीकरण के माध्यम से आकाश में और कुछ अवशोषण के माध्यम से जमीन के नीचे जाकर पुनः उपयोग हेतु जमा हो जाता है.
    आज से लगभग चालीस वर्ष पूर्व जब बड़ी संख्या में लोग शहरों में भी कुओं से ही पानी पर ही निर्भर थे तो बाल्टी से पानी भरने में परिश्रम लगने के कारण प्रति व्यक्ति पानी की खपत लगभग पच्चास लीटर बताया जाता है. उसके बाद चापा-नल या चापा-कल का युग आया तो यह खपत लगभग साठ लीटर हो गयी. जब कुआँ या चापा-नल या बोरिंग में बिजली के मोटर से पानी खींचा जाने लगा तब खपत बढ़कर प्रति व्यक्ति लगभग एक सौ लीटर हो गयी. जो लोग दूसरों के घरों में रहते हैं उनके यहाँ यह खपत लगभग कुछ ज्यादा होती है. अर्थात जैसे-जैसे सुविधा बढ़ते गयी वैसे-वैसे पानी की खपत भी बढ़ती गयी है. शहरी सार्वजनिक जलापूर्ति में भी लगभग यही स्थिति है.
    1970 के बाद ही शहरीकरण तेज हुआ हुआ है. शहरीकरण के कारण बिहार और झारखण्ड के शहरों में भी जन-संख्या में तेज वृद्धि हुई है. झारखण्ड राज्य निर्माण के बाद तो शहरीकरण की प्रक्रिया और तेज हो गयी है और उसी अनुरूप जलाशयों से सरकारी जलापूर्ति की सुविधा भी बढ़ रही है. हमारा सम्विधान हमारे देश को समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष बनाता है. अर्थात सरकार का दायित्व है कि बिना भेद-भाव किये समाज के हर वर्ग को पीने का पानी उपलब्ध करावे। इसी अनुरूप सरकार जलापूर्ति की व्यवस्था बढ़ा रही है, लेकिन यह मांग से कम है.
   शहरीकरण के चलते जहाँ से धरती माता बरसात के दिनों में जल सोखती थी वहाँ लगातार भवन और सड़कें आदि पक्की संरचना बन रही है. इनसे जल ग्रहण कर उनको रोकने वाले Aquifers की मात्रा में लगातार कमी हो रही है. भूमिगत जल के अधिक दोहन से भी हर साल भूमिगत जल-स्तर नीचे जा रहा है. आज़ादी के बाद शहरी क्षेत्रों में नये तालाब नहीं के बराबर बनाये गये हैं. पुराने तालाबों के सौंदर्यीकरण के नाम पर उनका आयतन घट रहा है और नये बन रहे वाटर हारवेस्टिंग नाकाफी साबित हो रहे हैं.   
कुछ समाधान
(1) निजी क्षेत्र को जलापूर्ति के कार्य को सौंपना:- अभी तक राँची शहर में जलापूर्ति की व्यवस्था या तो नगर निगम स्वयं करता है या अपने किसी एजेंसी से कराता है. यह व्यवस्था अभी पर्याप्त नहीं है. चूँकि निजी क्षेत्र में प्रबन्धकीय खर्च सरकारी क्षेत्र से कम होता है और उसे प्रतिस्पर्द्धा का भी सामना करना पड़ता है अतः एक दीर्घकालीन नीति बनाकर प्रत्येक वार्ड में तीन-चार निजी क्षेत्र के लोगों को जलापूर्ति का लइसेंस देने से राँची शहर में पानी की समस्या का समाधान आसानी से हो सकता है.
(2) सूख चुके बोरवेल को वाटर हारवेस्टिंग से जोड़ना।
(3) कुओं और तालाबों में बोरवेल बनाना:- कुओं और तालाबों में इस हिसाब से बोरवेल बनाया जाये कि उसका मुंह इन जल-स्रोतों के सतह से लगभग चार-पॉँच फीट ऊँचा रहे.  इससे वर्ष में लगभग पॉँच महीना में ही जमीन के अन्दर इतना पानी जा सकता है कि वह अगले सात महीनों के लिये पर्याप्त भूमिगत जल-स्तर को उचित स्तर पर बनाये रख सकता है.
(4) शहरी क्षेत्रों के आस-पास के बड़े जलाशयों और तालाबों का नियमित रूप से ड्रेजिंग/desilting(उराही, गाद निकाल कर) करने से उनकी जल-ग्रहण क्षमता को निरन्तर उचित स्तर पर बनाये रखा जा सकता है.    
   अभी जल-संकट से कम लोग परेशान हैं. बहुत से लोग तो इसे कोई समस्या मानते ही नहीं हैं. गर्मी के दिनों में जल की खपत कई कारणों से बढ़ जाती है और भूगर्भीय जल-स्तर नीचे भागने लगता है. राँची के कई मोहल्लों में मार्च के महीने से ही कुआँ सूखने लगता है तथा बोरवेल भी सूखने लगते हैं. कुआँ और बोरवेल के सूखने से शहरी सरकारी जलापूर्ति व्यवस्था पर भारी दबाव पड़ने लगता है. राँची के टैगोर हिल और अन्य कुछ मोहल्लों में लोग परेशान होकर निजी जलापूर्ति व्यवस्था को बढ़ावा दे रहे हैं. यह सिलसिला जुलाई महीने के मध्य तक चल रहा है. आबादी बढ़ने के कारण सूखने की यह अवधि 2012 से लगातार धीरे-धीरे बढ़ रही है. जो लोग अभी जल-संकट का सामना कर रहे हैं उन्हें भी सम्मान पूर्वक और कम खर्च में जीने का अधिकार है. इस समस्या पर सभी को ध्यान देने की आवश्यकता है.
Update

 "प्रभात खबर" ने अपने राँची संस्करण में इस आशय का एक रिपोर्ट दि. 17.08.2017 को प्रकाशित किया है.    
नोट:- यह ब्लॉग कुछ बुजुर्ग इंजीनियरों के वार्तालाप पर आधारित है. पाठकों की खट्टी-मीठी टिप्पणियों का सदैव स्वागत रहेगा।   
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