मोटर दुर्घटनायें और चालकरहित गाड़ियाँ

    जहाँ तक मुझे याद है विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) के एक पुराने रिपोर्ट के अनुसार लगभग 70% मोटर दुर्घटनायें मानव भूल के कारण, लगभग 20% मोटर दुर्घटनायें यातायात के नियमों के उल्लंघन के कारण और शेष 10% मोटर दुर्घटनायें मोटर गाड़ियों के यांत्रिक त्रुटि और रोड डिज़ाइन में खामी के कारण घटित होती हैं. नियमों के उल्लंघन में मोटर गाड़ी चालक के आधे और राहगीर, साईकिल चालक तथा पशु मालिक जवाबदेह बताये गये थे. लावारिस या जंगली पशु भी कुछ मोटर दुर्घटनाओं के लिये जवाबदेह होते हैं लेकिन उन दुर्घटनाओं की संख्या नगण्य मानी जा सकती है.
    मानव भूल वाली मोटर दुर्घटना को पुनः निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है:-
(1) गाड़ी चलाते समय चालक का ध्यान भटक जाना:- चालक से सीधे बात करना या मोबाइल से बात करने से गाड़ी चालक का ध्यान भटक सकता है और दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है. गाड़ी चलाने के पूर्व नींद की कमी या किसी अन्य कारणों से तनाव भी चालक का ध्यान भटका देता है. प्रायः कच्चे माल के मालिक या दलाल व्यवसायिक वाहनों के चालको को गन्तव्य तक माल जल्दी पँहुचा देने पर कुछ अधिक पैसे देने का लालच देते हैं. ऐसी परिस्थिति में गाड़ी चालक अपेक्षाकृत ज्यादा तेजी से अपनी गाड़ी चलाते हैं और अपने आराम का भी ख्याल नहीं करते और अपनी तथा दूसरों की जान जोखिम में डाल देते हैं.
    शराब आदि नशा का सेवन कर गाड़ी चलाने से भी चालक का ध्यान गाड़ी-चालन और सड़क से भटकने लगता है. इस समस्या की गम्भीरता इसी से समझा जा सकता है कि हमारे सर्वोच्च न्यायलय द्वारा राजमार्गों के आस-पास से शराब की दुकानों को हटाने का आदेश दिया गया है. शराब के प्रभाव में व्यक्ति की तार्किक शक्ति और समय पर उचित निर्णय लेने की क्षमता कम हो जाती है जो दुर्घटना का कारण बन जाती है.
(2) यातायात के नियमों की जानकारी कम होना:- हमारा आपराधिक न्याय प्रणाली यह उम्मीद करता है कि सभी चालक और पैदल मार्ग उपभोक्ता को यातायात नियमों की पूर्ण जानकारी होगी लेकिन लोगों को इन नियमों को जानने और सीखने का अवसर कम ही मिलता है. अच्छी बात यह है कि हमारे नये भूतल परिवहन मन्त्री इस ओर ध्यान दे रहे हैं.
(3) त्रुटिपूर्ण रोड डिज़ाइन और निर्माण तथा गाड़ी की यान्त्रिक त्रुटि:- दुनिया भर में लगभग दस प्रतिशत मोटर दुर्घटनायें इन्ही कारणों से होती है. और कटु सत्य यह भी है कि इस कारण से हुई मोटर दुर्घटनायें ज्यादा घातक होती हैं. प्रायः अख़बारों में इस आशय के समाचार छपते रहते हैं कि अमुक जगह सड़क में गड्ढा होने से घातक दुर्घटना हो गयी. बहुत सी गाड़ियों के ब्रेक उच्च गति पर काम करने लायक नहीं होते हैं. जब तक ब्रेक फेल होकर दुर्घटना नहीं हो जाये तब तक लोगों को गाड़ी के ब्रेक की गुणवत्ता की जानकारी भी नहीं होती।
    पहले चालक का ध्यान सड़क पर टिकाये रखने हेतु सड़क को सर्पाकार बनाया जाता था. लेकिन जब अधिक शक्तिशाली गाड़ियां आने लगी तो सड़क के डिज़ाइन में सुधार की आवश्यकता महशूस की गयी और पिछली सदी के साठ के दशक में हमारे देश में सडकों के मोड़(Turning) और उतार-चढ़ाव(Gradient) को सुधारने हेतु केन्द्र सरकार ने राज्यों को पर्याप्त राशि उपलब्ध करायी। लेकिन दुर्भाग्यवश बिहार राज्य ने उस केन्द्रीय राशि का उपयोग ही नहीं किया और सभी राशि लौट गयी. परिणाम यह हुआ कि आज भी राज्य(झारखण्ड सहित) की सडकों के मोड़ और उतार-चढ़ाव वाले जगहों पर ज्यादा दुर्घटनायें होती हैं. इसके अलावे हमारे सडकों पर गाय/भैंस आदि बड़े जानवर भी घूमते रहते हैं, जिनके गोबर वर्षा-काल में सडकों पर फिसलन पैदा करता है. कई बार गाड़ियों के ब्रेक-डाउन से मोबिल निकलता है और गाड़ी मरम्मत के बाद इसे नहीं हटाया जाता है. यह भी फिसलन पैदा करता है. यह फिसलन भी कई मोटर-दुर्घटनाओं का कारण बनता है.
    अब मोटर दुर्घटनाओं के दुष्परिणाम पर दृष्टिपात करें तो आये दिन अख़बारों में खबर छपती है कि पिछले साल हमारे देश में डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों की जान ऐसी दुर्घटनाओं में गयीं तथा इससे तीन-चार गुणा अधिक लोग उनमे जख्मी हुए. शायद ही ऐसा कोई दिन का अख़बार मिले जिसमें मोटर दुर्घटनाओं में मृत और जख्मी लोगों की चर्चा न हो. कुल मिलाकर मोटर दुर्घटनायें हमारा जीना दूभर किये जा रहे है. लोगों की समृद्धि और जन-संख्या वृद्धि के अनुरूप मोटर गाड़ियों की संख्या भी बढ़ रही है लेकिन शहरों में उस अनुरूप सड़क की लम्बाई-चौड़ाई नहीं बढ़ रही है. आज तो सभी को एक दूसरे से आगे बढ़ने में होड़ लगी हुई है. अपने स्थान से विलम्ब से चलना और अपने गन्तव्य पर जल्दी पँहुचने की कामना करना हमें अपने गन्तव्य के बदले कभी-कभी परलोक या अस्पताल पँहुचा दे रहा है. यह भी एक विडम्बना ही है कि अच्छी या खाली सडकों पर मोटर दुर्घटनायें अधिक होती हैं.
    इधर कुछ वर्षों से मोटर दुर्घटनाओं के दुष्परिणाम को देखते हुए कई बड़ी वाहन निर्माता या उनसे जुडी कम्पनियों का ध्यान स्वचालन यानि चालक रहित मोटर गाड़ी बनाने की ओर गया है. कुछ कम्पनियों को इसमें सीमित सफलता भी मिली है. वॉल्वो कम्पनी की कुछ चालकरहित गाड़ियाँ तो खदानों में कार्यरत भी हैं. Case कम्पनी के चालकरहित ट्रेक्टर भी अमेरिका के खेतों में पँहुचने लगे हैं.
    यहाँ एक उदहारण का उल्लेख करना आवश्यक लगता है. दिनांक 07.05.2016 को जोशुआ ब्राउन  नाम के एक व्यक्ति की मृत्यु अमेरिका में एक मोटर दुर्घटना में हुई थी. यद्यपि कि उस दिन दुनिया भर में पॉँच सौ से ज्यादा लोग किसी न किसी मोटर दुर्घटना में मरे थे लेकिन जोशुआ ब्राउन दुर्घटना की चर्चा विश्वभर की मीडिया में खूब हुई थी. चर्चा का कारण यह था कि दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी टेस्ला कम्पनी द्वारा निर्मित ऑटो पायलट मोड पर भी चलने वाला Model S था और जोशुआ ब्राउन अपनी गाड़ी को ऑटो पायलट मोड(पूर्ण स्वचालन के पूर्व की अवस्था) पर नियम विरुद्ध अपने मन से चला रहे थे. इस घटना की विश्वव्यापी चर्चा यह दर्शाता है कि लोगों की दिलचस्पी चालकरहित गाड़ियों में बढ़ रही है. इस प्राणघातक मोटर दुर्घटना के बाद भी चालकरहित गाड़ियों के विकास की प्रक्रिया अनवरत रूप से जारी है. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि अगले दशक में कभी भी हमारे देश में भी चालक रहित गाड़ियाँ दौड़ती नज़र आयेंगी।
    चालकरहित गाड़ियों के आने के बाद निश्चित रूप से मानव भूल और चालक के यातायात नियमों के उल्लंघन से होने वाली मोटर दुर्घटनायें बन्द हो जायेंगी। लेकिन यांत्रिक त्रुटि और रोड डिज़ाइन में खामी तथा राहगीर, साईकिल चालक तथा पशुओं के चलते होने वाली लगभग 20% मोटर दुर्घटनाओं की सम्भावना तो फिर भी बनी ही रहेगी। उम्मीद है कि बेहतर यातायात प्रबन्धन/मार्ग निर्माण और गाड़ियों के उचित रखरखाव से चालकरहित वाहनों से होने वाली दुर्घटनाओं मे व्यापक कमी लायी जायेगी।
नोट:- पाठकों की खट्टी-मीठी टिप्पणियों का सदैव स्वागत रहेगा। पाठकों से अनुरोध है कि इन आंकड़ों पर विश्वास करने के पहले उन्हें अपने स्तर से जाँच लें.
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