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Showing posts from June, 2022

रामपुर/आजमगढ़ का चुनाव: एक विश्लेषण

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गत रविवार को जो रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के जो परिणाम आए उसमें दोनों में भाजपा विजयी हुई। लेकिन आश्चर्यजनक रूप भाजपा की जीत के बजाय सपा की हार की चर्चा सोशल मीडिया पर अधिक हो रही है। उन दोनों क्षेत्रों में घटनाक्रम इस प्रकार रहे। 1. भाजपा के दोनों प्रत्याशी वर्ष 2019 से ही क्षेत्र में भ्रमणशील रहे। जबकि सपा के दोनों प्रत्याशी टपके हुए करार दिए गए। 2. आजमगढ़ से बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली को अपने दुख सुख में शामिल रहने वाला मान लिया गया। इनके पक्ष में मुसलमानों की गोलबंदी होने लगी।  3. अभी फोन का जमाना है दोनों क्षेत्र के लोगों के बीच उक्त गोलबंदी की बात फैलने लगी। इस गोलबंदी की जानकारी यादव बहुल गांवों में पहुंची तो इसकी प्रतिक्रिया होने लगी। यादव लोगों को लगा कि  बसपा को जीतने से अच्छा है भाजपा के *निरहुआ* जीतना अधिक अच्छा है। इस कारण बहुत से यादव निरहुआ के पक्ष में गोलबंद होने लगे। 4. यादवों की इस गोलबंदी और कमजोर प्रत्याशी के चलते रामपुर के मुसलमानों के गांवों में निराशा के बादल छाने लगे। 5. इस परिस्थिति में रामपुर के कुछ यादव उदास हो गए और अधिकांश भाजपा की ओर मुड़ गए। 6. जैस

अग्निवीर रोजगार उपल्ब्ध भी करा सकते हैं

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 दिनांक 21.06.2022 की हमारी परिचर्चा में पूर्व निर्धारित विषय अग्निवीरों के सम्मानजनक पुनर्नियोजन पर चर्चा हुई। इस विषय पर आज देशभर में आशंका व्यक्त की जा रही है। कुछ लोगों का कहना है कि अग्निवीरों की पदावनती हो जायेगी जबकि कुछ लोगों का कहना है कि बहुत से अग्निवीर बेरोजगार हो जायेंगे। पदावनती अर्थात उन्हे कम महत्व और कम वेतन/भत्ता पर नौकरी मिलेगी या उन्हे कोई रोजगार मिलेगा ही नहीं। चूंकि ये दोनों प्रश्न या आशंकाएं विशुद्ध काल्पनिक हैं अतः इनके उत्तर या समाधान भी विशुद्ध रूप से काल्पनिक ही होंगे।  अब माना जाता है कि अग्निवीरों को 120 कार्य दिवस का बेसिक प्रशिक्षण के पश्चात उन्हें  1. टीम में कार्य करना 2. संविधान के अनुच्छेद 51A में बताए गये नागरिकों के मूल कर्तव्य। 3. Trust and Responsibilities 4. How to establish a Company आदि का भी प्रशिक्षण दिया जायेगा। जब वे इसी तरह के अन्य विधाओं की जानकारी साथ वे समाज में लौटेंगे तब माना जाता है कि वे हम उम्र सामान्य युवकों से अधिक दक्ष होंगे। मान लिया कि बीस पच्चीस अग्निवीर और साथ में हाल ही में सेवा निवृत्त सेना अधिकारी साथ मिलकर कोई कम्पनी बना

भूमि व्यवस्था और लगान: प्राचीन काल से अबतक

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 सभ्यता के विकास के क्रम में वर्ण व्यवस्था बनी। लोग बिना किसी परेशानी के अपने कर्म के अनुसार जीवन बिता रहे थे। किसी एक समाज में किसी वस्तु का उत्पादन अधिक और किसी दूसरे समाज में कम। तब वणिक वर्ग की उत्पत्ति हुई। वणिक वर्ग ने उपभोक्ता वर्ग की पहचान कर व्यापार प्रारम्भ किया। कालांतर में एक और वर्ग बन गया। यह वर्ग था लुटेरा वर्ग। लुटेरा वर्ग से वणिक और उत्पादक दोनों वर्ग परेशान रहने लगे। कहा जाता है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। तब तत्कालीन प्रबुद्ध लोगों ने आपसी विचार विमर्श, चर्चा और शास्त्रार्थ कर समाज के किसी शक्तिशाली व्यक्ति को शासक बनाने का सुझाव दिया। इस सुझाव को अंततः लोगों ने मान लिया। उस शासक को राजा भी कहा जाने लगा। वणिक और उत्पादक वर्ग को लुटेरों से सुरक्षा प्रदान करना ही राजा का कर्तव्य बना। बाद में इसी के समानांतर लुटेरों ने भी अपने किसी शक्तिशाली लुटेरा को अपना राजा मान लिया। अब राजा के शासन के खर्च को चलाने हेतु कर लगाया जाने लगा। कर प्रणाली से समाज रहा। धीरे धीरे कर प्रणाली की व्यवस्था बनने लगी। इसने कई परम्पराओं को जन्म दिया। हमारा देश तो प्रारम्भ से कृषि प्रधान म

Accomplice or Approver या वादामाफी गवाह

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स्मरण कीजिये बिहार का प्रसिद्ध  चारा घोटाला मामला। सीबीआई ने एक आपूर्तिकर्ता दीपेश चांडक को approver बनाया था। दीपेश चांडक की गवाही से ही उस बहु चर्चित चारा घोटाला में बड़े-बड़े आरोपियों को सजा हुई थी। कल दिनांक 02.06.2022 को पुनः एक प्रसिद्ध पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाज़े को न्यायालय ने इस शर्त पर वादामाफी गवाह बनने की अनुमति प्रदान कर दी कि वह चर्चित सौ करोड़ की वसूली काण्ड में कुछ छिपायेगा नहीं और सबकुछ सही सही बता देगा। इससे इस चर्चित मामले में एक नया मोड़ आ गया है। यदि उसने अपने वादे के अनुसार उस मामले में अपनी और बड़े-बड़े प्रभावशाली लोगों की भूमिका के बारे में सही-सही बता दिया तो एक भूचाल आ जायेगा। तब उस मामले में ऐसे-ऐसे बड़े लोग सलाखों के पीछे चले जा सकते हैं जिनके बारे में ऐसा होना कल्पना से परे है। वादामाफी गवाह बनने के बारे में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 306 में प्रावधान है। ऐसी गवाही या आरोपी का स्वीकारात्मक बयान जिसमें साक्षी अपनी पापी भूमिका बताते हुए अन्य बड़े प्रभावशाली लोगों की संलिप्तता को बताता है भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 133 में एक सुसंगत तथ्य है।  आखिर लोग व