Accomplice or Approver या वादामाफी गवाह

स्मरण कीजिये बिहार का प्रसिद्ध चारा घोटाला मामला। सीबीआई ने एक आपूर्तिकर्ता दीपेश चांडक को approver बनाया था। दीपेश चांडक की गवाही से ही उस बहु चर्चित चारा घोटाला में बड़े-बड़े आरोपियों को सजा हुई थी।

कल दिनांक 02.06.2022 को पुनः एक प्रसिद्ध पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाज़े को न्यायालय ने इस शर्त पर वादामाफी गवाह बनने की अनुमति प्रदान कर दी कि वह चर्चित सौ करोड़ की वसूली काण्ड में कुछ छिपायेगा नहीं और सबकुछ सही सही बता देगा। इससे इस चर्चित मामले में एक नया मोड़ आ गया है। यदि उसने अपने वादे के अनुसार उस मामले में अपनी और बड़े-बड़े प्रभावशाली लोगों की भूमिका के बारे में सही-सही बता दिया तो एक भूचाल आ जायेगा। तब उस मामले में ऐसे-ऐसे बड़े लोग सलाखों के पीछे चले जा सकते हैं जिनके बारे में ऐसा होना कल्पना से परे है।

वादामाफी गवाह बनने के बारे में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 306 में प्रावधान है। ऐसी गवाही या आरोपी का स्वीकारात्मक बयान जिसमें साक्षी अपनी पापी भूमिका बताते हुए अन्य बड़े प्रभावशाली लोगों की संलिप्तता को बताता है भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 133 में एक सुसंगत तथ्य है। 

आखिर लोग वादामाफी गवाह क्यों बनते हैं? 

कहा जाता है कि पाप स्वीकार कर लेने से मनुष्य का आगे का जीवन शांतिपूर्वक व्यतीत होता है। कभी-कभी मनुष्य पाप करते-करते थक जाता है; उसका मन अशांत रहने लगता है। ऐसे में वह अपने पापी जीवन-शैली से ऊबकर सबकुछ सही सही बताकर आगे का एक नया जीवन शांतिपूर्वक जीना चाहता है। 

देखें आगे क्या होता है? क्या सचिन वाज़े न्यायालय से किया गया अपना वादा निभायेगा?

सबकुछ आने वाला समय बतायेगा। समय बहुत बलवान होता है।

हमारे पुराणों में भी रत्नाकर और अंगुलीमाल की कथा का उल्लेख है। दोनों ने अपने-अपने पाप की दुनिया छोड़कर संत का जीवन अपनाकर समाज को बहुत कुछ दिया था।

दक्षिण अफ्रीका की तरह हमारे देश में भी Truth and Reconciliation Commission बनाया जाना चाहिये। 

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