भूमि व्यवस्था और लगान: प्राचीन काल से अबतक

 सभ्यता के विकास के क्रम में वर्ण व्यवस्था बनी। लोग बिना किसी परेशानी के अपने कर्म के अनुसार जीवन बिता रहे थे। किसी एक समाज में किसी वस्तु का उत्पादन अधिक और किसी दूसरे समाज में कम। तब वणिक वर्ग की उत्पत्ति हुई। वणिक वर्ग ने उपभोक्ता वर्ग की पहचान कर व्यापार प्रारम्भ किया। कालांतर में एक और वर्ग बन गया। यह वर्ग था लुटेरा वर्ग।

लुटेरा वर्ग से वणिक और उत्पादक दोनों वर्ग परेशान रहने लगे। कहा जाता है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। तब तत्कालीन प्रबुद्ध लोगों ने आपसी विचार विमर्श, चर्चा और शास्त्रार्थ कर समाज के किसी शक्तिशाली व्यक्ति को शासक बनाने का सुझाव दिया। इस सुझाव को अंततः लोगों ने मान लिया। उस शासक को राजा भी कहा जाने लगा।

वणिक और उत्पादक वर्ग को लुटेरों से सुरक्षा प्रदान करना ही राजा का कर्तव्य बना। बाद में इसी के समानांतर लुटेरों ने भी अपने किसी शक्तिशाली लुटेरा को अपना राजा मान लिया। अब राजा के शासन के खर्च को चलाने हेतु कर लगाया जाने लगा। कर प्रणाली से समाज रहा। धीरे धीरे कर प्रणाली की व्यवस्था बनने लगी। इसने कई परम्पराओं को जन्म दिया।

हमारा देश तो प्रारम्भ से कृषि प्रधान माना जाता है। काल के अनुसार कर प्रणाली या लगान को काल के अनुसार निम्न भागों में बांटा गया है।

1. प्राचीन काल की भूमि लगान व्यवस्था: इस काल में मापतौल, मजदूरी और लगान हेतु सोलह और एक के अनुपात की परम्परा थी। राजा के कर प्रतिनिधि किसान के खलिहान से ही अन्न उत्पादन का सोलह में एक भाग ले जाते थे। प्रायः एक खानदान का एक ही स्थान पर खलिहान होता था।

2.  मुगलकालीन भूमि लगान व्यवस्था: शेरशाह सूरी ने बहुत से लगान सम्बंधी सुधार किए थे। चूंकि उस समय भी भारत एक कृषि प्रधान देश था अतः शेरशाह ने भी भूमि लगान को ही अपनी आमदनी का एक बड़ा मध्यम माना। शेरशाह के कार्यों को टोडरमल ने आगे बढ़ाया। उसने पूरे मुगल सल्तनत में अपने पूरे साम्राज्य सूबे को परगना में बांटा। उस काल में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई परगना ही थी। चूंकि मुगलों का अधिपत्य था अतः लगान व्यवस्था में अधिक से अधिक अरबी/फारसी शब्दावली का ही उपयोग किया गया। 

उस समय तक के सभी तरह की प्रचलित परम्पराओं की मान्यता दी गई। अब किसानों को रैयत के रूप में मान्यता दी गई। गांव को मौजा माना गया और परगना के हर मौजा को एक मौजा नम्बर दिया गया। सभी रैयतों के खलिहानों को एक इकाई मानते हुए लगान देने हेतु documentation किया गया। हर रैयत के खलिहान को एक लगान खाता नम्बर दिया जाने लगा। रैयत चाहे तो स्वयं भी परगना स्थित राजकार्यालय पर ही लगान जमा कर सकता थे। परगना कार्यालय में 

बाद में क्रूर राजा जैसे कुत्तुबुद्दीन ऐबक ने 16:1 के स्थान पर 3:1 के अनुपात को लागू किया। अर्थात एक तिहाई कृषि उत्पाद को खलिहान से ही सख्ती से वसूला जाने लगा। इससे तंग आकर बहुत से किसानों ने तो खेती करना भी छोड़ दिया। समय समय पर तीन में एक हिस्सा खाद्यान्न से लेकर सोलह में एक के बीच राजा के फरमान या हुकुमनामा के अनुसार वसूला जाते रहा। लगान वसूली को समय समय पर नीलाम भी किया जाने लगा। कालांतर में लगान वसूली करने वालों ने अपने को रजवार अर्थात छोटा राजा घोषित कर दिए। इससे नवाब को कोई अंतर नहीं पड़ा क्योंकि उसे लगान मिलते रहता था। 

जैसे जैसे बंगाल के नवाब के कमजोर होने लगे वैसे वैसे रजवारों की मनमानी बढ़ती गई। अलग अलग इलाकों में रजवारो ने अपने पद का अलग अलग नाम भी दे दिया। कुछ रजवार तो बहुत ही अधिक उच्छृंखल हो गए थे। 

औरंजेब की मृत्यु के बाद मुगल सल्तनत कमजोर हो गया। इसी काल में जमींदारी प्रथा का उदय हुआ। हर जमींदार अपने अपने हिसाब से किसानों से लगान वसूलने लगे। कुछ जमींदार ने लगान वसूली की इकाई खलिहान में एकत्रित अनाज के स्थान पर खेत को एक इकाई मानने लगे। जमींदार अपने हिसाब से खेतों के पर्चा देने लगे। अनाज के स्थान पर अब पैसा में लगान निर्धारित किया जाने लगा। 

3. कम्पनी राज की भूमि लगान व्यवस्था: शेरशाह के काल में ईस्ट इंडिया कम्पनी वाले भारत में आए। उस समय उस कंपनी के कुछ लोग नवाब की राजधानी मुर्शिदाबाद जाकर नवाब से मिलकर अपने लिए व्यापार करने की अनुमति मांगे। नवाब ने कहा कि यदि हो सके तो लगान वसूल दीजिए। अंग्रेजों ने कहा कि इसके लिए सर्वे करना होगा जिसमें सुरक्षा की जरूरत होगी। बंगाल के नवाब ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को सर्वे करने हुकुमनाना दे दिया।

1757 के पलासी युद्ध और 1763 के बक्सर युद्ध के बाद अंग्रेजों ने भारत के अधिकांश हिस्सों पर कम्पनी राज स्थापित कर दिया। सन में अंग्रेजी सरकार ने भारत में एक विन्यस्त सर्वे जेनरल का पद की स्थापना की। मेजर जेम्स रेनेल को पहला SGI बनाया गया। उन्होंने 1767 से अपना सर्वे का कार्य प्रारम्भ किया। उन्होंने मात्र दस वर्षों में ही पूरे नक्शे और जमीन के विवरण के साथ 1977 में पहला सर्वे रिपोर्ट प्रकाशित किया।

 इसी बीच 1786 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने जमींदारी प्रथा को विन्यस्त किया। उसने जिले के कलेक्टर को दस वर्ष के लिए बंदोबस्ती का अधिकार सहित भूमि सम्बंधी सारे अधिकार उन्ही में निहित किया।

4. ब्रिटिश राज की भूमि लगान व्यवस्था: इस काल में बहुत से कानून बनाए गए। जैसे Bengal Survey Act 1875, Land Registration Act 1884 आदि। बिहार में पहला सर्वे 1913 14 में प्रकाशित हुआ। उसी तरह झारखण्ड में हुए सर्वे का प्रकाशन 1932 में हुआ। इस सर्वे को कैडेस्ट्रल सर्वे कहा गया। बाद के सर्वे को RS Survey कहा गया।

5. स्वतंत्र भारत में भूमि लगान व्यवस्था: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक केंद्रीय "जमींदारी उन्मूलन कानून 1950" बना। चूंकि हमारे संविधान में भूमि का रखरखाव राज्य विषय हैं अतः अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी "बिहार जमींदारी उन्मूलन अधिनियम 1950" बना। अब लगान वसूली और भूमि अभिलेखों के रखरखाव हेतु 1954 में अंचल कार्यालय और एलआरडीसी कार्यालय बनाए गए। आज तक यही व्यवस्था लागू है। अभी भी शेरशाह और टोडरमल के बनाए भूमि सम्बंधी शब्दावली जैसे खाता, खेसरा, खतियान, कायमी, सिकमी आदि शब्द हू बहू प्रचलित हैं। 


Referenes 1. "The men who ruled India" A book by Philips Mason.

Content Contributors

1. Daya Shankar Singh

2. Nagendra Singh


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