रामपुर/आजमगढ़ का चुनाव: एक विश्लेषण

गत रविवार को जो रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के जो परिणाम आए उसमें दोनों में भाजपा विजयी हुई। लेकिन आश्चर्यजनक रूप भाजपा की जीत के बजाय सपा की हार की चर्चा सोशल मीडिया पर अधिक हो रही है।



उन दोनों क्षेत्रों में घटनाक्रम इस प्रकार रहे।

1. भाजपा के दोनों प्रत्याशी वर्ष 2019 से ही क्षेत्र में भ्रमणशील रहे। जबकि सपा के दोनों प्रत्याशी टपके हुए करार दिए गए।

2. आजमगढ़ से बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली को अपने दुख सुख में शामिल रहने वाला मान लिया गया। इनके पक्ष में मुसलमानों की गोलबंदी होने लगी। 

3. अभी फोन का जमाना है दोनों क्षेत्र के लोगों के बीच उक्त गोलबंदी की बात फैलने लगी। इस गोलबंदी की जानकारी यादव बहुल गांवों में पहुंची तो इसकी प्रतिक्रिया होने लगी। यादव लोगों को लगा कि  बसपा को जीतने से अच्छा है भाजपा के *निरहुआ* जीतना अधिक अच्छा है। इस कारण बहुत से यादव निरहुआ के पक्ष में गोलबंद होने लगे।

4. यादवों की इस गोलबंदी और कमजोर प्रत्याशी के चलते रामपुर के मुसलमानों के गांवों में निराशा के बादल छाने लगे।

5. इस परिस्थिति में रामपुर के कुछ यादव उदास हो गए और अधिकांश भाजपा की ओर मुड़ गए।

6. जैसा कि मार्च के विधानसभा चुनाव में हुआ था इस बार न तो रामपुर में सपा ने पैसा अधिक खर्च किया और न तो बाहर जाकर कमाने वाले अपने काम से छुट्टी ले कर वोट देने आए। परिणामस्वरूप मतदान लगभग चालीस प्रतिशत ही हुआ और दोनों क्षेत्रों से भाजपा जीत गई।

अब कहा जा रहा है कि प्रशासन ने मुसलमानों को मतदान करने ही नहीं दिया। एक उदाहरण दिया जा रहा है कि एक मुसलमान के गांव में 2200 मतदाताओं में से मात्र एक मतदाता ही अपना मतदान कर सका आदि आदि।

यदि प्रशासन मनमानी करता तो स्मार्टफोन के युग में मनमानी के वीडियो की भरमार होती। इसी तरह मनमानी की शिकायतों का अम्बार चुनाव आयोग में लग जाता।

इस बात में ही ज्यादा दम लगता है कि गुड्डू जमाली की मजबूत उपस्थिति और यादवों तथा मुसलमानों की अलग अलग गोलबंदी दोनों क्षेत्रों में जीत का सुनहरा अवसर दे दिया। सुश्री मायावती राजनीति से लगभग उखड़ती जा रही थीं। इस चुनाव ने उन्हें गुड्डू जमाली को पुनःप्रतिस्थापित कर दिया है।

भाजपा और मोदी/योगी को नहीं चाहने वाले अनाप शनाप आरोप लगा रहे हैं। उन्हें सपा की हार पच ही नहीं रहा है। अब रामपुर के घनश्याम माली और आजमगढ़ के निरहुआ को एक स्वर्णिम अवसर मिल गया है। निरहुआ जी तो एक तरह से सपा नेता को निहुरा ही दिया है। आप जो नौटंकी में कहा करते थे कि "गांव की आवाज जाके दिल्ली में उठाएंगे, केहू न किया जवन कर के दिखायेंगे........." अब आप दोनों कर के दिखाइए। पच्चीस महीने ही बचे हैं।

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