इमरजेंसी में रसोगुल्ला का साइज़ छोट कर देना भी अपराध था!

     1976 के उत्तरार्द्ध में इमरजेंसी अपनी चरम सीमा पर थी। उसी समय एक दिन मोतिहारी(बिहार) के कचहरी में अजीब हलचल होने लगी. एक व्यक्ति ने सुना कि मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी के न्यायलय में एक अजीब मुकदमा आया है। एक मिठाईवाला दुकानदार पर "रसोगुल्ला का साइज़ छोट कर देने" के आरोप में वहाँ के आपूर्ति विभाग ने मुकदमा दायर किया है, लेकिन बहुत खोजबीन के बाद भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिली।
     एक सप्ताह बाद मोतिहारी कचहरी में पुनः खबर फैली कि आज "रसोगुल्ला का साइज़ छोट कर देने" का आरोपी न्यायालय में आत्मसमर्पण करने वाला है और वहाँ के नम्बर-एक वकील श्री बाबू उसका जमानत में बहस करने वाले हैं। पता चला कि "रसोगुल्ला का साइज़ छोट कर देने" के आरोप में धारा 69 DIR(Defense Of India Rule) में मोतिहारी के ही एक मिठाई दुकानदार पर आपूर्ति विभाग के निरीक्षक ने मुकदमा दायर किया है.
     भीड़ बढ़ती जा रही थी। श्री बाबू ने आरोपी के तरफ से बहस प्रारम्भ किया। उन्होंने सबसे पहले आरोप पढ़ कर सुनाया। आरोप के अनुसार जिलाधिकारी, मोतिहारी ने Defense Of India Rule में प्रदत्त शक्ति के अनुसार रसोगुल्ला की कीमत दस रुपये प्रति किलो ग्राम और प्रति पीस पच्चास पैसे नियत किया था। जब वादी आपूर्ति निरीक्षक ने आरोपी की दुकान से एक किलो ग्राम रसोगुल्ला तोलवाया तो उसमे बीस के बजाय छब्बीस पीस चढ़ गया यानि रसोगुल्ला का साइज़ छोट कर दिया गया। आरोपी के वकील ने वैसा साँचा खोजने के लिये एक पखवारा के समय की मांग की, जिस साँचा से एक किलो ग्राम में बीस पीस रसोगुल्ला बनाया जाता हो और तबतक के लिए आरोपी को Provisional Bail दिये जाने की मांग की।
     न्यायलय ने सरकारी वकील से भी उनका पक्ष जानना चाहा। सरकारी वकील के लिये इस तरह का पहला मामला था और वे बहस के लिये तैयार नहीं थे। उन्होंने भी मामला को समझने के लिये एक पखवारा का समय की माँग कर डाली। न्यायलय ने आरोपी दुकानदार को एक पखवारा के लिये Provisional Bail दे दी और अगली तारीख नियत कर दी।
    इस मुक़दमे कातात्कालिक असर यह हुआ कि पूरे मोतिहारी शहर और आस-पास के इलाके के मिठाई दुकानों से रसगुल्ला गायब हो गया। गली-चौराहों पर चर्चा यही रही कि कोई भी हलवाई एक किलो ग्राम रसोगुल्ला में ठीक-ठीक बीस पीस नहीं बना पा रहा है। इसे आम लोग इमेरजेंसी में अधिकारियों की मनमानी मानने लगे।
    दूसरी तारीख पर पहले से कुछ ज्यादा भीड़ जुट गयी थी, लेकिन अनुशासन था. आज क्या होगा यही जानने के लिये लोग उत्सुक थे. केस का नम्बर आने पर आरोपी के वकील श्री बाबू उठे और एक सूचि न्यायलय में प्रस्तुत की, जिसमे मोतिहारी शहर के मिठाई दुकानदारों का नाम था. दो दुकानदार का शपथ-पत्र भी साथ में लगा था. श्री बाबू ने बताया कि कोई दुकानदार साँचा से रसगुल्ला नहीं बनाता, जिसकी पुष्टि शपथ-पत्र में है और आरोपी दुकानदार के लिए स्थायी जमानत की माँग की.
    मुख्य़ न्यायिक दण्डाधिकारी महोदय ने काफी गौर से प्रस्तुत सूचि और शपथ-पत्र पढ़ने के बाद सरकारी वकील की ओर इशारा किया। आज सरकारी वकील साहब काफी तयारी कर आये थे. सबसे पहले उन्होंने के विभिन्न धाराओं को समझाया और उसके धारा 69 में वर्णित सजा का वर्णन किया और बताया कि यह धारा गैर जमानती है. सरकारी वकील साहब ने बताया कि देश की सुरक्षा और व्यापारियों के कुकृत्य में गहरा सम्बन्ध है. उन्होंने बताया कि इस मामले में जमानत देने से बेईमान व्यापारियों का मनोबल काफी बढ़ जायेगा और बेईमान व्यापारी तरह-तरह के कुकृत्य करके जनता का आर्थिक शोषण करने लगेंगे, जिससे जनता कंगाल हो जायेगी और देश की सुरक्षा खतरे में पड़ जायेगी।
    मुख्य़ न्यायिक दण्डाधिकारी महोदय ने पुनः आरोपी के वकील श्री बाबू के तरफ देखा। श्री बाबू ने सरकारी वकील साहेब से कोई तरीका बताने को कहा, जिससे एक किलो ग्राम में बीस रसगुल्ला बनाया जा सके. सरकारी वकील साहब ने तपाक से बताया कि इसकी जवाबदेही उनकी नहीं है. श्री बाबू ने पुनः एक पखवारा का समय माँगा ताकि आदेश पारित करने वाले जिलाधिकारी महोदय से साँचा और प्रक्रिया के सम्बन्ध में जानकारी हासिल की जा सके और मामले का अध्ययन और गहराई से किया जा सके.
    मुख्य़ न्यायिक दण्डाधिकारी महोदय ने दोनों पक्षों के तर्कों पर विचार कर एक पखवारा के लिये की आरोपी दुकानदार के अस्थायी जमानत की अवधि बढ़ा दी.
    अगले ही दिन श्री बाबू ने जिलाधिकारी महोदय के कार्यालय में साँचा और प्रक्रिया बताने की अर्जी डाल दी. वहाँ से भी अगली तारीख के पहले कोई जवाब नहीं मिला।

    आज फिर इस मुक़दमे में आरोपी दुकानदार की जमानत पर सुनवाई होनी है. भीड़ जुटनी शुरू हो गयी. आज ज्यादा भीड़ नये वकीलों की लग रही है, जो अपने अपेक्षित नये काली कोटों से दृश्यमान हो रहे हैं. अनुशासन आज भी बना हुआ है, लेकिन उत्सुकता आज कुछ ज्यादा है. केस का नम्बर आने पर आरोपी के वकील श्री बाबू उठे और अपना बिन्दुवार बहस प्रारम्भ किया---
1. उन्होंने जिलाधिकारी महोदय के कार्यालय से प्राप्त साँचा एवम् प्रक्रिया सम्बन्धित माँगे जानेवाली जानकारी की रशीद प्रस्तुत की और बताया कि उन्हें जानकारी नहीं मिल पायी।
2. उन्होंने बताया कि इस आदेश की उपज में दायर इस मुक़दमे के कारण दर्जनों हलवाई बेरोजगार हो गये हैं और सैंकड़ो ग्वाले जो मिठाई बनाने हेतु दूध बेंचकर अपना परिवार चलाते हैं के चेहरों से हंसी गायब है. सबलोग सशंकित हैं कि अगला आदेश किस मिठाई के सम्बन्ध में आवेगा।
3. उन्होंने रसगुल्ला का इतिहास और उसका उद्भव स्थान कलकत्ता बताया। उन्होंने बताया कि रसगुल्ला का दो भाग होता है. पहला भाग रस और दूसरा भाग गुल्ला होता है यानि जो गुल्ला(मिठाई का एक टुकड़ा जैसे गुड़-गुल्ला) रस में डूबा कर बेंचने के लिये बनायीं जाती है, उसे रसगुल्ला कहते हैं. आज भी कलकत्ता में जो डिब्बाबन्द रसगुल्ला मिलता है उसमे अलग से इतना रस मिला रहता है कि मिठाई का टुकड़ा रस में डूबा हुआ दिखे।
4. प्राथमिकी में वादी आपूर्ति निरीक्षक ने यह कहीं नहीं लिखा है कि उन्होंने एक किलो ग्राम रसगुल्ला तोलवाते समय रस का भी ख्याल रखा है.
5. जहाँ तक आरोपी के भाग जाने या सबूत मिटाने और गवाह पर दबाव डालने का प्रश्न है- इसकी कोई सम्भावना नहीं है.
6. चाहे तो न्यायलय जितना कठोर शर्त लगा दे, लेकिन उक्त बिंदुओं पर विचार करे और न्यायलय उनके मुवक्किल को स्थायी जमानत दे.
     अब सबका ध्यान सरकारी वकील पर था. न्यायलय से निर्देश मिलने पर सरकारी वकील साहब ने निम्न प्रकार से अपना बहस प्रारम्भ किया---
उन्होंने बताया कि देश में जनहित में इमर्जेंसी लगाया गया है और Defense Of India Rule के वैधानिक प्रावधानो के तहत ही यह आदेश लागू किया गया. इस आदेश को लागू करना आपूर्ति विभाग का कर्त्तव्य है. अगर आरोपी को जमानत दे दी जाती है तो यह इमरजेंसी का खिल्ली उड़ाने जैसा भी होगा।
     मुख्य़ न्यायिक दण्डाधिकारी महोदय ने दोनों पक्षों के बहस गौर से सुनने के बाद आरोपी दुकानदार को बिना शर्त स्थायी जमानत दे दी. अगले साल इमरजेंसी समाप्त होने पर यह मुकदमा स्वतः ही ख़ारिज हो गया.              आज भी मोतिहारी के पुराने लोग इमरजेंसी के नाम से ही सिहर जाते हैं। अधिकारियों को भी चाहिये कि जब कभी भी भविष्य में इमरजेंसी लगे तो अपने आदेश जारी करते समय उसके व्यवहारिक पक्ष पर भी ध्यान देना चाहिये। उक्त मुक़दमे में आदेश का बाद वाला भाग कि "प्रति पीस रसगुल्ला की कीमत पच्चास पैसे होगी" बिलकुल ही अव्यवहारिक माना गया।
     यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि "आदेश" पर अधिक जोर देने से पदाधिकारियों की मनमानी बढ़ जाती है और प्रशासन अधिनायकवाद की ओर बढ़ने लगता है. इसके विपरीत कानून पर अधिक जोर देने से समाज में अराजकता फैलने लगती है। अतः आदेश और कानून के बीच संतुलन जरुरी है।
@BishwaNathSingh

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