हे युवक तुम युवा हो! by Dr Kiran K Singh

           हे युवक तुम युवा हो! 


प्रतिस्पर्धा  में  भाग  रहे,
समय  कही  ना  निकल  जाये,
अपनी  ही  गति  को  बढ़ा  रहे।

लम्हे बीता,  दौड़ बीता ; चलने  की  आदत  सी  पड़ी,
कही  रुके  तो  रुक  ना  जाये साँस भी  हाँफती  ही  रही।

थमो  कभी  जो   थम   सको,
रुको  कभी  जो  रुक  सको,
सफ़र  का  छुट  बहुत  है  बाकी,
उम्मिदें  है  गर  मुड़  सको।                                                                  
सिमटा  हुआ  सा  जो  कंधे  पे  है,
वो तेरी पहचान  नहीं।
छूटा  हुआ  सा  जो  सफ़र  में  है,
उससे  तेरी  जीत  नहीं।।

तुमसे  थी  आशायें  बहुत  परं  तुम  कभी  भी  मिले  नहीं।
शायद  तुम जल्दी  में  थे ,उस  पगडंडी  पे  चले  नहीं।।

संकिर्ण  ही  सही  कभी  तो  चलते
कठिन  ही  सही  कभी तो चुनते
शायद  गिरते और संभलते,
ईधर  उधर कि कठिनाई में, हो सकता तुम मुझे देखते।

मै उन नन्ही  आँखों में हू जो है सपनों  से  भरे  हुये,
मै उस माँ  के आंचल  में हू, जिसने है  धूप को  परे  किये।

उस मिट्टी की फसलों में हूँ हरे रंग भरे हुए।
उस बुड्ढे की लाठी में हूँ जिसने ये जीवन तुम्हे दिये।
उस दर्द के आंसू में हूँ जो अब तक पोंछने है बाकी।
उस भूखे की थाली में हूँ रोटी परोसने है बाकी।
उस छूटी क्षमता में हूँ सम्वेदनाओं से भरे हुए।
बारिश की बून्दों में हूँ जिनसे तुम अनभिज्ञ रहे।।

हे युवक तुम युवा हो!
प्रतिस्पर्धा  में  भाग  रहे,
समय  कही  ना  निकल  जाये
अपनी  ही  गति  को  बढ़ा  रहे।              

छूट गया ये कैसे तुमसे देश बना इक अपनों से।
हर बूढ़े की उम्मीद में थे तुम, थे बालपन के सपने में।
हर फासलों की मेहनत में थे तुम, थे हर तूफान के थमने में।

मत भूलो तुम भारत हो, ये देश तुम्हारा अपना है।
तुम हो ज्योति क्रान्ति वाली, हर मोड़ पे तुमको जलना है।

रुको कभी पकड़ के चलो।
गिरो कभी सम्हल कर चलो।
मुड़ो कभी हाथ बढाओ,
देश माथे से लगा के चलो।।
A Poem by Dr Kiran K Singh

याद अधूरी बचपन की,
अगर तुम्हारी बात न हो,
बात अधूरी जीवन की,
अगर तुम्हारा साथ न हो!

कितनी बार पड़ी मुश्किल में,
तुमने मेरा साथ ना छोड़ा,
किया भरोसा हरदम मुझपर,
हर सपने को तुमने जोड़ा!

मुझे पढ़ाया, मुझे सिखाया,
एक सच्चा इन्सान बनाया,
जाना तुमसे मेहनत क्या है,
तुमने ही तो सफल बनाया!

ऐसा एक पल याद नहीं,
जब तुम मेरे साथ नहीं,
बहन का रिश्ता माँ से कम है,
इस बात को तुमने झुठलाया,
तुम ही थी जिसने मुझको,
मेरी मंजिल को करीब लाया!
         
भाई मेरे अगर तुम ना होते,
किस पर मैं योँ शासन करती,
किसे नचाती ऊँगली पर,
किस पर अपना हुकुम चलाती!

हम पाँच जैसे पाँच उँगलियाँ,
अलग-अलग पर जुड़े हुए,
एक मिट्टी से बने हुए,
और एक मिट्टी से बड़े हुए!

भाई-बहन भी दोस्त भी हम थे,
कभी कभार तो दुश्मन भी,
सबके अलग विचार थे लेकिन,
दिल एक था और मन भी!

काश! कभी हम अलग ना होते,
रहते हर-दम साथ,
साथ खेलते, लड़ते- रोते,
पकड़ के एक दूजे का हाथ!!


A Poem by Shweta Singh.

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