भारत के भूले बिसरे गौरव डा. सत्यनारायण सिन्हा

               Only for Adults who understand complications of Public saying.   

      1952 में डा. सत्यनारायण सिन्हा ने प्रथम लोकसभा के लिये सारण पूर्वी(अब छपरा) से कांग्रेस पार्टी के सांसद के रूप में नामांकन भरा। सांसद के नामांकन के पहले बहुत कम ही लोग इनके बारे में जानते थे. चुनाव प्रचार के क्रम में इनके बारे में बहुत सी जानकारियाँ सामने आयी. कुछ लोग इन्हे पायलट साहेब के नाम से, कुछ लोग इन्हे अम्बेसडर साहेब और कुछ लोग इन्हे स्वतन्त्रता सेनानी के नाम से इनका प्रचार किया। इन्हे ग्राम मल्खाचक का निवासी बताया गया. छपरा के लोग इनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए और भारी मतों से उन्हें अपना सांसद चुनकर प्रथम लोक सभा में भेज दिया।
 Link for his membership sl 48
    प्रो. सोम नाथ त्रिपाठी(से. नि. सम्पूर्णानन्द विश्व विद्यालय से)  के अनुसार डा. सत्यनारायण सिन्हा तिब्बत पर गहरी रूचि रखते थे. उन्होंने आचार्य नरेन्द्र देव को स्वयम् हवाई जहाज चलाकर तिब्बत के भारत के लिये रणनीतिक महत्व के इलाकों को दिखाया था, ताकि तिब्बत के चीन को हस्तानान्तरण का कारगर विरोध किया जा सके.
    श्री दया शंकर सिंह के अनुसार डा. सत्यनारायण सिन्हा का जन्म मल्खाचक, जिला छपरा(बिहार) के जमीन्दार परिवार में हुआ था. वे अपने दो भाइयों में छोटे थे.  
    लेकिन इन्होने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा और उच्च शिक्षा कहाँ से प्राप्त की, PhD की उपाधि किस विश्व विद्यालय से किस Topics पर प्राप्त की, पायलट कैसे बने इत्यादि जानकारियों की पुष्टि किसी ने नहीं की। बहुत सी भ्रांतियाँ बनी रही. आज भी ग्राम मल्खाचक से सम्बन्ध रखने वाले लोग उनकी विलक्षणता की चर्चा बिना सबूत के करते रहते हैं.
     डा. सत्यनारायण सिन्हा ने तिब्बत पर गहरी रूचि रखने के कारण 1954 में तिब्बत के चीन को हस्तान्तरण के मुद्दे पर लोक सभा में इसके विरोध में तीखे और प्रभावशाली भाषण दिया था। भारी विरोध के बावजूद इन्होने अपना संघर्ष जारी रखा. ये आचार्य नरेन्द्र देव और दलाई लामा के सम्पर्क में भी आये. इन्होने आचार्य नरेन्द्र देव को स्वयम् हवाई जहाज चलाते हुए भारत-तिब्बत सीमा का हवाई सर्वेक्षण भी करवाया। इस कारण इन्हें कांग्रेस के अन्दर विरोघ भी झेलना पड़ा। परिणामतः कांग्रेसियों ने ही अगले लोक सभा चुनाव में भीतर घात कर इन्हे हरा दिया।  
    इन्होने काफी खोज-बीन कर निम्नलिखित पुस्तकें भी लिखी थीं ----
1. Adrift on the Ganga,
2. On a forbidden flight,
3. The Chines Aggression: A First Hand Account from Central-Asia, Tibet and High Himalayas,
4. China strikes,
5. Operation Himalayas: To defend India's Sovereignty,
6. CHINA STRIKES: Forword by Gen KS Thimayya, DOAS(Rtd), COAS(1957-1961),
7. Chinese aggression: a first hand account from Central-Asia, Tibet and High Himalayas,
8. On the Himalayan front,
9. Flight to Soviets.
A Link for the Books written By Dr Satyanarayan Sinha
10. "अवारे की यूरोप यात्रा"

1960 में ही इन्होने चीनी हमला के दो वर्ष पूर्व तिब्बत में चीनियों की तयारी के बारे में काफी जानकारी दे दी थी। इस लिन्क के आधे भाग के बाद सत्यनारायण सिन्हा के बारे में रोचक बातें पढ़ी जा सकती है।
Forewarning about Agession

डा. सिन्हा ने नेताजी सुभास चन्द्र बोस की रहस्यमयी मृत्यु  के सम्बन्ध में अपनी गवाही जस्टिस खोसला आयोग के समक्ष दी थी। उनकी गवाही की चर्चा आयोग ने अपने प्रतिवेदन में विस्तार से निम्न लिन्क के पन्ना के अनुच्छेद 6.23 से 6.31 तक में की है। पढ़ा जाना चाहिये।  
His deposition before Khosla Commission 
    एक महिला(जो अपने आपको डा. सत्यनारायण सिन्हा की इकलौती बेटी बताती है) ने बताया कि इनके पिता का सम्बन्ध Maxim Gorky से भी है, जो इनके पिता को गोद लिये थे और उन्होंने ही इनके पिता को Soviet Air Force में अधिकारी के पद पर भर्ती कराया था. लेकिन इन्होने न तो इसके सम्बन्ध में कोई पुष्टि करने वाले तथ्य दिया और न ही उनका जीवन परिचय(Bio data) और फ़ोटो से फ़ोटो बनाने की अनुमति आदि ही दिया। कुल मिलकर डा. सत्यनारायण सिन्हा एक तिलस्मी व्यक्तित्व के बताये जाते हैं.        इस महिला के अनुसार बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में सात-आठ साल का एक लड़का ग्राम मल्खाचक, जिला सारण(अब छपरा), बिहार से अपने घर से रुठकर भाग कर पानी के जहाज पे सवार होकर जहाज कर्मचारियों की नौकर की तरह सेवा करते कलकत्ता बन्दरगाह पँहुचा। वहाँ पर वह लड़का एक विदेश जाने वाला जहाज पर चुपके से चोरी-छुपे चढ़ गया. जब जहाज बन्दरगाह छोड़कर गहरे समुद्र में पँहुचा तो उन्हें जहाज के एक कर्मचारी ने देख लिया। उस कर्मचारी ने आज की तरह उन्हें जहाज से समुद्र में नहीं फेंका। उस लड़के ने भी तुरन्त अपना कपडा उतारकर उससे जहाज की सफाई करना प्रारम्भ दिया। जहाज कर्मचारियों को भी इस तरह के नौकर की जरुरत थी, सो उनलोगों ने उसे अपना-अपना काम बता दिया। उस लड़के ने भी बड़ी लगन और मेह्नत से सब काम कर दिया और वह सब काम पूरा कर एक कोने में सो गया. उस लड़के में यह खूबी थी कि वह भूखा रह जाता, लेकिन खाना नहीं मांगता था.
     सुबह जहाज कर्मचारियों को एहसास हुआ कि वह लड़का तो भूखा ही सो गया था. उनलोगों ने उस लड़के से अच्छा व्यवहार शुरू कर दिया। उस लड़के ने सबों का जूता पोलिश करने से लेकर बर्तन सफाई तक सभी कार्य जहाज कर्मचारियों की पूर्ण संतुष्टि तक करता रहा. उसने सभी का दिल अपने सुकर्मों से जीत लिया था. अब उसे नियमित खाना भी मिलने लगा। कुछ ही दिनों के बाद वह खाना बनाने में भी सहयोग करने लगा. समुद्री यात्रा लम्बी थी. अगला पड़ाव आया लेकिन उस लड़के को जहाज से बाहर नहीं किया गया.
     एक पड़ाव यूरोप के शहर वियना के पास आया. जहाज कर्मचारियों ने निर्णय लिया कि अब इस लड़के को यहीं उतार दिया जाय, नहीं तो उनलोगों की नौकरी खतरे में पड़ जायेगी। अतः उनलोगों ने उस लड़के को जहाज से उसी बन्दरगाह पर उतार दिया और ईश्वर से कामना की कि अब आगे की जीवन यात्रा भगवान के हाथ में है. उस लड़के ने उनलोगों की लाचारी समझी और अपनी आगे की अनजान यात्रा पर वह निकल पड़ा. अब तक जहाज में वह टूटी-फूटी अंग्रेजी और जीने की तरकीब जान गया था तथा जीवन में अनुसाशन का महत्व भी जान गया था.
     पैदल चलते-चलते वह एक बगीचे के पास पँहुचा। उस बगीचे के गाछों में लाल-लाल फल दिखायी दे रहे थे। उसे काफी भूख लगी थी. अभी तक उसने अपने गाँव में आम और अमरूद के फल वाले गाछ ही देखा था. उसे लगा कि गाछ पर लगे फल खाने लायक होंगे। वह जनता था कि बिना अनुमति के पराये गाछ से फल तोड़ना अनुचित है, फिरभी भूख के कारण वह अपने पर नियंत्रण नहीं रख सका और एक गाछ पर चढ़कर उसका फल तोड़कर गाछ पर ही खाने लगा. इस गतिविधि से खर-खर की आवाज पर बगीचा मालिक वहाँ आ गया. बगीचा मालिक को लगा कि यह लड़का इस इलाका से अनजान और भूखा है. उन्होंने उस लड़के को नीचे उतरने का इशारा किया। वह लड़का अनुसाशित तो था ही; इशारा पाते ही वह नीचे उतरा और sorry बोला। 
      बगीचा मालिक उस बगल के अपने घर ले गये और उसे दूध और पाव-रोटी खाने को दिये। खाना खाकर उस लड़के ने तुरन्त जूठा बरतन धोया और इसे एक अवसर मानकर उस मकान मालिक का पूरा घर व्यवस्थित और साफ़ सुथरा कर दिया। इससे मकान और बगीचा मालिक काफी प्रभावित हुए. वे अपने घर में अकेले रहते थे और उन्हें भी इस लड़के के रूप में एक कामगार और सहारा मिल गया. उन्होंने उस लड़के को अपने पास रख लिया। उस लड़के ने भी अपने मालिक की खूब सेवा की और इशारों के बाद उनकी भाषा भी सीख ली. उस सज्जन ने भी उस लड़के को पढ़ाने लगे. लड़का कुशाग्र बुद्धि का और अनुसाशन प्रिय था तथा उनके घर का सारा काम और उनकी सेवा करते हुए पढ़ाई करने लगा. दोनों का जीवन सुखमय हो चला था. वह लड़का फ्रैंकफुर्ट विश्व विद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त किया और पीएचडी की उपाधि भी प्राप्त किया।  
     वह सज्जन कोई और नहीं बल्कि दुनिया का महान लेखक मैक्सिम गोर्की थे और उस लड़का को दुनिया डा. सत्यनारायण सिन्हा के रूप में जानी . उस समय मैक्सिम गोर्की वियना में अकेले अपना निर्वासित जीवन बिता रहे थे. जब उनका निर्वासन समाप्त हुआ और सोवियत संघ डा. सत्यनारायण सिन्हा के लौट आये. मैक्सिम गोर्की का प्रभाव काफी बढ़ गया था. इसका लाभ उठाते हुए उन्होंने डा. सत्यनारायण सिन्हा को सोवियत वायुसेना में भर्ती करवा दिया, जहाँ वे एक कुशल पायलट बने और कर्नल की पंक्ति तक पँहुच गये. 
     1936 में मैक्सिम गोर्की की रहस्यमयमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गयी. कुछ लोगों को लगा कि मैक्सिम गोर्की की हत्या की गयी है. इसके बाद डा. सत्यनारायण सिन्हा को भी अपना भविष्य अन्धकारमय लगने लगा. डा. सत्यनारायण सिन्हा मौका पाकर अपनी नौकरी छोड़कर लुकते-छिपते 1940 के आस-पास भारत लौट आये और स्वतन्त्रता संग्राम में अपने मूल स्थान सारण में सक्रिय भाग लिये।उन्होंने हिन्दी और बंगला भाषा भाषा भारत लौटने के बाद ही सीखी। वे सीतापुर राज-घराने के सम्पर्क में आये और उसी राज-घराने की उच्च-शिक्षित बेटी अरुणा से शादी की.   

नोट:- इसी नाम से लगभग मिलता हुआ श्री सत्य नारायण सिन्हा प्रथम, द्वितीय और तृतीय लोक सभा के लिये समस्तीपुर तथा चौथी लोक सभा के दरभंगा से सांसद बने थे। वे 1971 में मध्य प्रदेश के राज्यपाल भी बने। मौका मिलने पर भविष्य में इनपर भी एक लेख लिखा जा सकता है।
Note:- This article is being completed. Now I am finding difficulties to authenticate it. हरे रंग से लिखे आलेख अपुष्ट हैं. पाठकों से अनुरोध है कि कृपया हरे रंग में लिखी गयी बातों पर बिना सत्यापन के भरोसा नहीं करें। हो सके तो मेरी मदद करें ताकि मैं इस लेख को पूरा कर सकूँ। भावी पीढ़ी को डा. सत्यनारायण सिन्हा के बारे में जानना चाहिये।
@BishwaNathSingh
    

Comments

  1. SN Sinha was one of the pillars of Indian politics. Now his brand of politics is missing.
    Bishwa Nath Singh ji you did good job bring facts about him.

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