पहले दुनिया में अण्डा आया था; बाद में मुर्गी?

    बहुत दिनों से यह सवाल पूछा जाता रहा है कि इस दुनिया में पहले अण्डा आया था या पहले मुर्गी? इस सवाल पर लोग पहले भी हँसते थे, आज भी हँसते है और भविष्य में भी हँसते ही रहेंगे। बहुत से बहसों में जब कोई किसी निष्कर्ष पर नहीं पँहुचता है तो यही कहता है कि "छोड़िये अब बन्द कीजिये। यह तो चलता ही रहेगा कि पहले इस दुनिया में मुर्गी आयी या अण्डा?". आजकल तो टीवी पर दिन प्रति दिन किसी न किसी मुद्दे पर बहस चलते ही रहती है. कुछ बहस तो लगता है कि जनता की मुलभुत समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिये भी की जाती है और शब्दों के जाल में लोगों को फँसा भी दिया जाता है. मैं समझता हूँ कि एक बार फिर इस बहस को सिर्फ मनोरञ्जन हेतु आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
    किसी भी जीव की उत्पत्ति महज संयोगों का ही प्रकृति का एक खेल है. पहले मनुष्य को ही लें. वैज्ञानिक बताते हैं कि पहले वनमानुष की तरह के कुछ प्राणी थोड़ा खड़े होने लगे और अपने दोनों हाथ और दोनों पैरों के बजाये अपने पैरों के सहारे ही ज्यादा चलने लगे. लेकिन इस प्राणी में पूँछ थी. इस प्राणी को Homo erectus की संज्ञा दी गयी. कुछ लाख वर्ष बाद कुछ प्राणी सीधा खड़े होकर चलने लगे लेकिन इनमे अभी भी छोटी पूँछ थी. इस प्राणी को Homo rodeshians की संज्ञा दी गयी. काल निर्धारण पद्धति के आधार पर करीब पच्चीस लाख वर्ष पहले की हमारे तरह के मनुष्यों की तरह के अस्थि पञ्जर अफ्रीका के जंगलों में मिले हैं जिसे Homo sapiens की संज्ञा दी गयी है. यही Homo Sapiens आधुनिक मानव है. यह सब Genetic Mutation का कमाल बताया गया है.
    इसी Genetic Mutation सिद्धान्त के अनुसार मुर्गी से मिलता-जुलता किसी पक्षी वर्ग के प्राणी के शरीर पर किन्ही विषम प्राकृतिक घटनाओं( खगोलीय ग्रहण, ठनका, वाह्य अन्तरिक्ष से आने वाली कोई विशेष किरण आदि) का कोई विशेष प्रभाव पड़ा और उस प्राणी के भ्रूण के अण्डों में कोई genetic परिवर्तन हो गया. जब वही अण्डे परिपक्व होकर उस प्राणी के शरीर से बाहर आये तो उन अण्डों से जो प्राणी निकले उनमे उनके माँ-पिता के गुणों से इतर कोई अन्य विशेष लक्षण दिखायी दिये। पुनः प्रकृति के नियमों के अनुसार उन्ही प्राणियों के नर और मादा से आगे सृष्टि चलती रही. यही प्राणी आगे चलकर मुर्गी(Gallus domesticus) कहलायी।
    अब प्राणी पर वातावरण का प्रभाव को देखें, जिसे Adaptation Theory के रूप में बताया गया है. वातावरण के प्रभाव से जंगलों में पायी जाने वाली मुर्गी तुलनात्मक रूप कुछ छोटी और फुर्तीली होती है क्योंकि उसे अपने भोजन और अपने बचाव हेतु बहुत दौड़-भाग करनी पड़ती है . इसी तरह ठण्ढे प्रदेशों में पाये जाने वाले मनुष्य गोरे और तेज धूप में भी काम करने वाले मनुष्य काले।
    प्राणियों को एक वैज्ञानिक नाम देने की प्रथा को स्वीडन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक Carl Linnaaeus ने प्रारम्भ की थी. जिस तरह किसी पदार्थ के सबसे छोटे कण को अणु कहा जाता है उसी तरह प्राणी जगत के सबसे छोटे समूह को Genus कहा गया और परमाणु को Species. यहाँ Homo मनुष्य का Generic नाम है और sapiens उसका Species है.
    46-47 वर्ष के लम्बे अन्तराल की यह प्रस्तुति है. सम्भव है इसमें कुछ तथ्य छूट गये हों. इस बीच विज्ञानं जगत में काफी प्रगति भी हुई है. उन Missing Links को आगे लाने का दायित्व इस विषय के जानकार पाठकों पर है.
इस विषय पर ज्यादा जानने को इच्छुक पाठक यहाँ क्लिक करें।   
नोट:- यह ब्लॉग मेरी याददाश्त पर आधारित है. कॉलेज के दिनों में इस सवाल पर एक प्रोफ़ेसर साहेब ने एक क्लास लिया था. उन्ही के लेक्चर की बातों को मैंने प्रस्तुत करने की कोशिश की है. इस सवाल पर आगे भी तर्कपूर्ण बहस चलनी चाहिये। अगर किसी पाठक के पास इस इसके प्रतिकार में कोई तर्क या संशय हो तो अपनी टिपण्णी के रूप में जरूर लिखें ताकि लोग लाभान्वित हो सकें।
 https://Twitter.com/BishwaNathSingh         

Comments

  1. उम्दा जानकारी
    साधुवाद

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