Common Sense और धीरज !

     एक गाँव बेवकूफी के लिये मशहूर था. यद्यपि कि उस गाँव के लोग मेहनती और भोले-भाले थे, लेकिन अन्य गावों के लोग उन्हें मौका पाकर चिढ़ाते रहते थे. उन लोगों की अर्थ-व्यवस्था का आधार पशुपालन और दूसरे गांव या शहर जाकर मजदूरी करना था. उस गांव की बदनामी अगल-बगल के दूर-दूर तक के गावों तक फ़ैल गयी थी. इसका असर धीरे-धीरे उस गाँव के लड़के-लड़कियों की शादी पर भी पड़ने लगा.
     उस गांव में एक लड़का अब जवान हो चला था. वह लड़का भूमिहीन परिवार से था. उस नवजवान का नाम जनकदेव था. उस गांव में लगभग सभी जमीन बगल के गांव के पूर्व जमीन्दार परिवारों का था. गांव के प्रायः सभी लोग पूर्व जमीन्दार के खेतों में ही काम कर अपनी जिन्दगी गुजार देते थे. सामाजिक बदलाव का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उस गांव के लोगों यानि मज़दूरों और भूमिपति के बीच सम्बन्ध बिगड़ने लगा. कई साल तो सब के सब जमीन पड़ीत ही रह गये. मज़दूर अब अन्य राज्य में जाकर कमाने लगे.
       जनकदेव भी एक बार कमाने के लिये पंजाब गया. वहाँ भी उसे उसे अपने गाँव अगल-बगल के गॉवों के कुछ मजदूर काम करते हुए मिल गये. उन मजदूरों ने यह भी नहीं सोचा कि परदेस है; परदेस में पडोसी गाँव का आदमी सुख-दुःख का साझीदार हो सकता है और अनायास ही उसे चिढ़ाने लगे. उस लड़के को बहुत दुःख लगा लेकिन चुपचाप नियति का खेल समझ कर सहता रहा. अगर नहीं सहता और चिढ़ाने का प्रतिकार करता तो उसकी आजीविका खतरे में पड़ जाती। वह अपने काम में लगा रहा. पंजाब के जिस गांव में जनकदेव काम करता था उस गांव में सप्ताह में एक दिन एक बाबा आकर शाम को प्रवचन देते थे. जनकदेव प्रवचन सुनने जरूर जाता। बाबा प्रवचन में "कॉमन सेन्स" और "धीरज" पर बहुत जोर देते थे साथ ही सफल लोगों और अपने बीच तुलना करने की सलाह देते थे. दो महीने बाद खेती काम ख़त्म हो जाने पर वह उन चिढ़ाने वाले मजदूरों से आदर पूर्वक विदा लिया और अपने गाँव लौट आया.
     जब उससे उसके अपने गाँव के लोग यात्रा-वृत्तांत और परदेस का हालचाल पूछते तो वह सिर्फ इतना ही कहता कि बिहारी अपने राज्य में तो एक साथ रह नहीं सकते; परदेस में भी बिहारी सुख में तो साथ देता है, लेकिन दुःख में साथ नहीं देता और तरह-तरह के कटाक्ष करके दुःख को और बढ़ा देता है. साथ ही कटाक्ष कर दूसरे को नीचा दिखाने का भी प्रयास करते रहता है. उसके गाँव के लोगों को उसका यह दार्शनिक स्वाभाव अटपटा सा लग रहा था. वह लड़का मन ही मन इस बात पर चिन्तन-मनन करने लगा कि अपने गाँव की छवि कैसे बदली जाय. उसके गाँव से पाँच किलो मीटर दूर के गांव को इलाके का सबसे होशियार गांव कहा जाता था.
    जनकदेव ने फैसला किया यह भी उस होशियार गांव में जाकर कॉमन सेन्स सीखेगा। एक दिन वह अपने इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उस गांव में पँहुच गया. वह पता करते हुए उस गांव के मुखियाजी के यहाँ गया और उसने उनसे अपनी जिज्ञासा बतायी। पहले मुखियाजी को यह बात अटपटा लगी. फिर भी उन्होंने जनकदेव से अपने दलान के दिवाल पर जोर से एक मुक्का मारने को कहा. जनकदेव एक अच्छा शिष्य के रूप में मुखियाजी की बात को गुरूजी की आज्ञा मानते हुए उनके दिवाल पर एक मुक्का जोर से मारा। जनकदेव को ऐसा करने से उसकी अँगुलियों में काफी चोट आयी और वह कराहने लगा. कुछ देर के बाद वह अपना दर्द छिपाते हुए मुखियाजी से कॉमन सेन्स सिखाने का आग्रह किया। अब मुखियाजी ने जनकदेव को समझाया कि किसी कार्य को करने से पहले सोचो। अगर उस कार्य को करने में अपने को नुकसान हो तो ऐसा काम मत करो. जिसमे अच्छा-बुरा को अन्तर करने में जितना कम समय लगता है और वह अपनी भलाई के अनुरूप काम करता है उसका कॉमन सेन्स उतना ही अच्छा माना जाता है. दूसरे शब्दों में इसे प्रतिउत्पन्नमतित्व भी कहा जाता है. जनकदेव मुखियाजी से विदा लिया और मने-मन दर्द से कराहते हुए अपने गांव लौट आया.
    दो-तीन दिनों के बाद जब उसका दर्द कम हुआ तो वह नियमित रूप से अपने पिता के पशुपालन वाले काम में जुट गया. एक दिन उसके गांव के एक हम उम्र जवान ने उससे पूछा--
क्या भाई, कॉमन सेन्स सीख आये?
जनकदेव ने जवाब हाँ में दिया लेकिन जब उसे दूसरे को सिखाने को कहा गया तो उसने कहा कि चौकी का मंच बनवाइये तब वहीँ पर वह लोगों को कॉमन सेन्स सिखायेगा। गांव के लोगों में भी कॉमन सेन्स सीखने की उत्सुकता थी सो उनलोगों ने आज शाम को ही गांव के मुख्य जगह पर मंच बनाने का फैसला किया। शाम को जब जनकदेव को अन्य लोगों को कॉमन सेन्स सिखाने हेतु मंच पर आने को कहा गया. जनकदेव मंच पर गया. उसने दर्शकों में से एक लड़के को बुलाया। अब जनकदेव इधर-उधर देखने लगा. वह दिवाल देख रहा था लेकिन मंच पर तो दिवाल था ही नहीं। उसने कुछ सोचा और उस लड़के से अपने कपार में एक मुक्का जोर से मारने को कहा जैसा कि उसे मुखियाजी अपने दलान के दिवाल पर मारने को कहा था. उस लड़के ने जनकदेव की बात को उसकी आज्ञा मानकर उसके कपार में एक मुक्का जोर से जड़ दिया। इस मुक्का के प्रहार से जनकदेव के कपार से खून बहने लगा और वह दर्द से कराहते हुए मंच पर ही बैठ गया.
    उपस्थित ग्रामीण कुछ समझ ही नहीं पा रहे थे कि यह क्या हो गया. कुछ लोग गुस्सा में आकर मंच पर चढ़ गये और उस लड़के को जनकदेव को मारकर उसका कपार फोड़ देने पर पीटने लगे. वह लड़का जोर-जोर से बोलने लगा कि उसे मारने हेतु जनकदेव भइया ही बोले थे. जब जनकदेव से पूछा गया तो उसने बताया कि यही तो कॉमन सेन्स है. "उसे मुझको मुक्का मारने के पहले सोचना चाहिये था कि मुक्का मारने से मुझको चोट लग जायेगा अतः उसे मुझे मुक्का नहीं मारना चाहिये था. यही तो कॉमन सेन्स है. जो अपने कृत्य का दुष्परिणाम जितना जल्दी समझ लेता है उसका उतना ही कॉमन सेन्स अच्छा होगा". लोगों को अब कॉमन सेन्स की बातें समझ में आने लगीं, लोगों ने कहा कि आपको भी तो समझना चाहिये था कि मुक्का मारने से आपको चोट लग सकती थी. जनकदेव ने कराहते हुए कहा कि मंच पर दिवाल नहीं न था और कॉमन सेन्स सिखाना भी जरुरी था.     अब उस गांव के लोगों को अपने व्यवहार में कमी की बात समझ में आने लगी. घटना की जानकारी पूरे गांव और अगल-बगल के गावों में भी फ़ैल गयी. जनकदेव के पड़ोस का एक लड़का प्रतिदिन दूध पंहुचाने के लिये बगल के गांव के एक धनी व्यक्ति के यहाँ जाता था. वह लड़का धनिक के एक अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने वाले लड़का की संगति में कुछ टूटी-फूटी अँग्रेजी सीख गया था. तबतक जनकदेव वाली घटना की जानकारी उस गांव में भी पँहुच गयी थी. जब वह लड़का दूध लेकर पँहुचा तो अंग्रेजी स्कूल वाला लड़का उससे पूछ लिया- What about common sense? उस किशोर ने भी टूटी-फूटी अंग्रेजी में ही जवाब दिया। उसने बताया- "मारिंग द मुक्का, फुटिंग कपार। बहिंग द खून, हर.... हर....".
     इस तरह धीरे-धीरे ही सही जनकदेव और उसके गांव के लोग ठोकर खाते-खाते और बड़े लोगों के संगत में रहकर और उनसे सिख कर होशियार बनने लगे. जनकदेव के नेतृत्व में इसी कॉमन सेन्स और धीरज का सहारा लेकर पड़ोस के गांव, जिनका जमीन जनकदेव के गांव में था, से सम्बन्ध सुधार लिया। सम्बन्ध सुधरने से दोनों गावों के लोगों को लाभ हुआ बन्द पड़ी हुई खेती पुनः शुरू हो गयी. उस गांव के लोगों की इज़्ज़त भी पहले से बढ़ गयी. नजदीक में काम मिलने से लोगों की खुशहाली बढ़ने लगी और लड़कों की शादी-विवाह की बाधा भी दूर हो गयी.
नोट:- यह ब्लॉग श्रम-समस्या के एक समाधान से जुड़ा हुआ है. जब तक लोग कृषि श्रम-सम्बन्धों को गहराई से नहीं समझेंगे तब तक हमारी कृषि कमजोर ही रहेगी और अनावश्यक खून भी बहता रहेगा। पाठकों की खट्टी-मीठी टिपणियों का सदैव स्वागत रहेगा। 
https://Twitter.com/BishwaNathSingh

Comments

  1. बहुत ही बढिया कहानी.
    शिक्षाप्रद

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  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक लेख। श्रम और कृषि एक दूसरे से जुड़े हैं । साथ ही कृषि या कोई उद्यम में बदलाव को जल्द से जल्द भांपने एवं तद्नुसार व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाने की भी शिक्षा मिलती है जो कि हमारे यहां की बड़ी समस्या है। अधिकांश लोग बदलाव के लिए तैयार नहीं होते और जब तक तैयार होते हैं समय बीत चुका होता है। समाज में नित नयी टेक्नोलॉजी आ रही है जो हर क्षेत्र को प्रभावित कर रही है। इसके लिए समय से तैयार होना ही बुद्धिमानी है। हमें जितनी जल्दी हो सके शत प्रतिशत सक्षम स्तर की साक्षरता प्राप्त करने और लोगों को भविष्य की टेक्नोलॉजी के लिए तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए। किसान, उद्यमी, कर्मचारी, अधिकारी, नेता सब पर यह समान रूप से लागू होता है।

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