गलतियों का विश्लेषण और उनके सुधार।

     गलती मानव से ही होती है(To err is Human). किशोरों से लेकर बूढ़े तक जीवन में हर उम्र में लोगों से गलतियां होते रहती हैं. जब गलती हो जाती है तो उसका प्रभाव भी तीव्रता के अनुरूप व्यक्ति के जीवन पर, उसके परिवार पर या समाज पर पड़ना स्वाभाविक है. अपनी गलती का आभास होने पर प्रायश्चित कर लेने से भी जीवन में सुधार हो जाता है. किशोरावस्था में तो लगता है कि अपनी गलती पकड़ी ही नहीं जायेगी। इस अवस्था को देहात में गदह पच्चीसी भी कहा जाता है
    आईये हम समझें कि गलती का आशय क्या है. पहले हम घर से ही शुरू करते हैं. बचपन में बताया जाता है कि हर सामान को रखने हेतु एक स्थान निर्धारित होता है. अगर हम अपने घरेलु सामानों को उसके निर्धारित स्थान पर रखेंगे तो जरुरत पड़ने पर वह सामान बहुत ही शीघ्रता से मिल जायेगा। कभी-कभी हमें अपने सामानों को रखने में इतनी हड़बड़ी होती है कि सामानों को जहाँ बुझाया वहीँ रख देते हैं। कुछ दिनों के बाद हम यह भी भूल जाते हैं कि उस सामान को हम कहाँ रखे थे और जब बाद में उस सामान की जरुरत होती है तब वह सामान समय पर नहीं मिलता और घर में तनाव हो जाता है. प्रायः सभी घरों का अपना एक नियम होता है कि हर सामान को कहाँ रखना है. जब इस नियम का उल्लंघन होता है तो उसी उल्लंघन को गलती कहते हैं. कुल मिलाकर ऐसा कह सकते हैं कि जिसे करना उचित नहीं समझा जाता उसे करने पर उस कृत्य को गलती कहते हैं.
    इसी तरह कार्यालय में हर कागज को रखने हेतु संचिकायें बनी होती हैं और हर संचिका को रखने हेतु फोल्डर और फोल्डर को रखने हेतु अलमारी रखी जाती है. आप को भले ही कागज को, संचिका को या फोल्डर को या फिर किसी रजिस्टर को यथा स्थान रखने में कुछ समय ज्यादा लगे लेकिन यथा स्थान रखे गये ये सामग्री आसानी से और बहुत ही कम समय में मिल जाते हैं. यही स्थिति दुकानों, गोदामों या अन्य जगहों की भी स्थिति होती है. जब कोई कर्मी कागज या सामानों को यथा स्थान नहीं रखता और जरुरत पड़ने पर वह कागज या सामान के नहीं मिलने पर कहा जाता है कि सम्बन्धित कर्मी से गलती हुई है.
     अब इसी तरह जब सामाजिक परम्परा, नीति, सांस्थानिक या विभागीय नियमों का उल्लंघन होता है तो उसे भी गलती ही कही जाती है. लेकिन जब क़ानूनी प्रावधानों का उल्लंघन होता है तब उसे अपराध(Offence) कहा जाता है. गलतियां सामान्यतया चार प्रकार की होती हैं--
(1) अनजान में की गयी गलती:-
(2) अच्छे आशय से किये गये कार्य जिसे समय बीतने पर गलती बता दिया गया:- Nothing is wrong which is done in good faith and in the larger interest of our Society. यानि अच्छे आशय से; अच्छी आस्था के साथ हमारे समाज के बड़े हित में किया गया कोई भी कृत्य को गलती या अपराध नहीं माना जाता। आत्मरक्षा में या किसी के इज़्ज़त या जान बचाने हेतु समाज के बड़े हित में किया गया कोई कृत्य भले ही सरसरी निगाह में किसी को यह अपराध लगे गलती नहीं मानी जाती। यहाँ यह भी आवश्यक है कि इस कृत्य को करने वाले का इसमें कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं हो और कोई अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं हो.
(3) यह मानकर की गयी गलती कि इसका दुष्परिणाम नहीं भुगतना पड़ेगा:-
(4) आर्थिक लाभ के लिये की गयी गलती:-
    अब अभिभावक का यह कर्तव्य बनता है कि वह अपने बच्चों की गलतियों में पैटर्न देखे और उसी अनुरूप अपने बच्चों को गलतियों को सुधारने की सलाह दे. अगर सलाह से काम नहीं चलता हो तो उचित दण्ड देना आवश्यक है. इसी प्रकार किसी संस्था में पर्यवेक्षक/नियन्त्रक से भी अपने अधीनस्थों की गलतियों के निराकरण की अपेक्षा की जाती है. बार-बार गलतियों की पुनरावृत्ति से अभिभावक या पर्यवेक्षक/नियन्त्रक की कमजोरी ही मानी जायेगी। यह भी कहा जाता है कि अगर किसी अभिभावक या पर्यवेक्षक/नियन्त्रक को उसके बच्चों या अधीनस्थों की चार-पाँच गलतियों के बाद किसी गलती का पता न हो तो समझिये कि वह झूठ बोल रहा है और उन गलतियों का वह भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लाभान्वित हो रहा है.
नोट:- यह आलेख मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है. इस आलेख की बातों से अगर कोई व्यक्ति थोड़ा भी लाभान्वित होता है तो मैं इसे अपनी समाज सेवा ही मानूंगा। अगर किसी पाठक को इससे असहमति हो तो मैं उनके असहमति का सम्मान करता हूँ. पाठकगण की खट्टी-मीठी टिपणियों का सदा की तरह स्वागत रहेगा।
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