हमारे सार्वजनिक उपक्रम/संस्था के पड़ुआ बैल

 एक दिन की परिचर्चा में एक सज्जन ने एक उदाहरण दिया।

"एक किसान ने मेला से एक बाछा लाकर उसे पाला पोसा। बैल बनने पर वह बाछा पड़ुआ  निकल गया। उसके पास इतना संसाधन भी नहीं था जिससे कि वह उस पड़ुआ बैल के स्थान पर एक नया बैल खरीद सके। इससे वह किसान बहुत परेशान रहने लगा क्योंकि इससे उसकी खेती बाधित होने लगी।



किसान का एक बैल पड़ुआ जरूर था लेकिन वह खाने-पीने में कभी भी पीछे नहीं रहता था। वह पड़ुआ बैल देखने में हट्टा कट्ठा था। किसान उसके कल्याण में कोई कमी नहीं रखता था।


कुछ वर्ष बाद उसका एक बेटा जवान हो चला था। उसने अपने एक मित्र के पिता से निहोरा कर उनका एक बैल मांग कर लाया और अपनी खेती करने लगा। बदले में वह अपने मित्र के खेतों में मजदूरी भी कर देता। इससे दोनों परिवारों की समृद्धि बढ़ने लगी। यही स्थिति हमारी सरकारी कंपनियों की है।"


सरकारी कंपनियों/संस्थाओं के कामगारों की तुलना उक्त पड़ुआ बैल से करने और उसके स्थान पर outsourced बैल से खेती कराये जाने पर परिचर्चा के एक दूसरे प्रतिभागी भड़क गये। तल्खी इतनी बढ़ी कि परिचर्चा को बंद करना पड़ा।

अब बहुत से लोग उक्त तुलना को सही और सटीक बता रहे हैं। किसी विषय पर वार्ता और चर्चा में कुछ समस्या के निदान के रास्ते भी निकल आते हैं। इसे एक सकारात्मक चर्चा के रूप में देखना ही उचित है।

अभी हमारी रेलवे में तीन प्रमुख योजना चर्चा में है। ये हैं - 504 बंदे भारत यात्री ट्रेन, 90000 माल गाड़ी के डब्बे और ढाई टन वाला छोटा कंटेनर। कहा जा रहा है कि इन योजनाओं के लागू करने में सरकार को अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। इसका एक उदाहरण देखिये। हमारे देश में पाँच कारखाना रेल के पहिये बना सकते हैं फिर भी सरकार को उन्तालीस हज़ार रेल पहिया सिर्फ बंदे भारत ट्रेन हेतु चीन से आयात करना पड़ रहा है। इसका प्रमुख कारण पड़ुआ बैल वाली समस्या है। 

थोड़ा हमलोग सरकारी संस्थाओं और कोऑपरेटिव समितियों पर काबिज लोगों पर दृष्टिपात करें। हम पायेंगे कि वहाँ बहुत से लोग उक्त किसान के पड़ुआ बैल की प्रकृति से मेल खाने वाले लोग मिल जायेंग। ऐसे लोगों को जनोपयोगी बनाना एक बड़ी ही कठिन समस्या है।

Contributor 1. तुलना करने वाले - श्री बीके सिंह, कैप्टेन(सम्मान), लखनऊ। ये कई बार कुछ टीवी चैनलों पर रक्षा विशेषज्ञ के रूप में चर्चा में भाग ले चुके हैं। 

Contributor 2. किसान रतन कुमार सिंह, धीना जनपद चंदौली(यूपी)।

 








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