कमजोर सड़कें भारत को गुलाम बना सकती हैं; आधी हकीक़त, आधा फ़साना।

     वर्ष 1998 में ग्यारह मई को एक बार फिर हमारे देश में "बुद्ध मुस्काये" थे. कहा जाता है कि तब सबसे ज्यादा परेशानी क्लिंटन प्रशासन को हुई थी और परेशानी और घबराहट का आलम यह था कि दो दिन बाद ही आनन-फानन में अमरीका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिया। अमरीका भारत के बारे में तो बहुत कुछ जानता था लेकिन हमारे अटलजी के और उनके कोर टीम के बारे में आंकलन करने में नाकामयाब रहा. अमरीका की नामी-गिरामी ख़ुफ़िया एजेन्सी भी पूरी दुनिया में मुंह दिखाने लायक नहीं रह गयी थी.
      अटलजी ने प्रायः सभी मोर्चों पर अच्छी तैयारी कर रखी थी. आर्थिक प्रतिबन्ध के नकारात्मक प्रभावों को  कम से कम करने हेतु उन्होंने "इंडिया इनसर्जेंट बॉन्ड" जारी किया और भारत से बाहर बसे और विदेशों में कार्यरत अमीर भारतीयों को पत्र लिखकर उक्त बॉन्ड खरीदने का व्यक्तिगत आग्रह किया। उक्त बॉन्ड की अपेक्षा से अधिक विक्री हुई और अमरीका के आर्थिक प्रतिबन्धों का कोई विशेष नकारात्मक असर नहीं पड़ा.
     आर्थिक प्रतिबन्धों को बेअसर होता देख क्लिण्टन प्रशासन के कुछ भारत विरोधी अधिकारीगण एक गुप्त योजना बनाने में जुट गये. उन लोगों ने हमारी अर्थ-व्यवस्था की कमजोरियों और हमारी सडकों की गुणवत्ता को पता लगाना प्रारम्भ किया। काफी शोध और मेहनत के बाद उनलोगों ने एक योजना बनायीं और उस योजना के अन्तर्गत क्लिण्टन महोदय को अटलजी को अमरीका बुलाने के निमन्त्रण देने के लिये राजी कर लिया। क्लिण्टन महोदय ने व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क कर उन्हें अमरीका आने का निमन्त्रण दिया। दुनियादारी और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का सम्मान करते हुए अटलजी ने अमरीका जाने का निमन्त्रण स्वीकार कर लिया।
     अटलजी ने अपने कोर टीम के समक्ष एक सवाल रखा कि अभी दो वर्ष पूर्व ही कठिन आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने वाला क्लिण्टन प्रशासन उनके अमरीका भ्रमण से क्या हासिल करना चाहता है? बहुत परिश्रम और शोध के बाद भी उनका कोर टीम अपने किसी भी उत्तर से अटलजी को सन्तुष्ट नहीं कर सका. फिर भी अपने अति विश्वासी तत्कालीन सड़क परिवहन मन्त्री मेजर जेनरल भूवन चन्द्र खण्डूरी और अन्य विश्वासी अधिकारियों के एक छोटे से दल साथ अटलजी सितम्बर 2000 में अमरीका के लिये प्रस्थान कर गये. अटलजी अपने मन्त्री मेजर जेनरल भूवन चन्द्र खण्डूरी को "जनरल साहब" के नाम से पुकारते थे.
     अधिकारियों के दल में पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से बहुत ज्यादा प्रभावित लोग नहीं थे. अटलजी ने उनलोगों को अमरीकी कूटनीति को समझने के लिये विशेष निर्देश दिया था और बहुत ही कम बात करने और नपा-तुला जवाब देने को कहा था. अमरीका पँहुचने पर अटलजी और उनके टीम का गरमजोशी के साथ जोरदार स्वागत हुआ. अटलजी की बड़ी प्रबल इच्छा ह्वाइट हाउस की वह जगह देखने की थी जहाँ 1979 में पूर्व राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर ने सोलर पावर लगाया था, लेकिन वे अपनी इच्छा को जाहिर करना भी नहीं चाहते थे. फिर भी वे ह्वाइट हाउस का अधिक से अधिक भाग देख लिये। अटलजी सोलर पावर के बहुत बड़े प्रशंसक थे. उन्हें कहीं भी सोलर पावर दिखाई नहीं दिया।
     अटलजी को एक दिन सड़क मार्ग से घुमाया गया. भ्रमण के दौड़ान ही अटलजी कार में ही सो गये. अचानक उनकी नींद खुली और वे बोल पड़े- जनरल साहब हम कहाँ आ गये? जनरल साहब बताये कि अभी हमलोग न्यू यॉर्क-कैलिफ़ोर्निया के छः हजार किलो मीटर लम्बे राजमार्ग पर चल रहे हैं. अटलजी ने जनरल साहब से पूछा कि क्या हमारे देश में ऐसी सड़क नहीं बन सकती है? क्या हमलोग अपने चारों बड़े शहरों को अच्छी सड़कों से नहीं जोड़ सकते? जनरल साहब ने तपाक से उत्तर दिया कि "नहीं"। "क्यों नहीं"? अटलजी ने पूछा।
जनरल साहब बिन्दुवार जवाब दिया-
1. अगर हमलोग दिल्ली से कलकत्ता को जोड़ने के लिये सड़क बनाने का प्रयास करेंगे तो सड़क को एक ऐसे राज्य से गुजारना पड़ेगा जिसका राजा सड़क का दुश्मन माना जाता है. उस राजा का कहना है कि सड़कें बन जायेंगी तो उसके समर्थकों की अवैध गांजा/अफीम की खेती तक प्रशासन के लोग शीघ्र पँहुच जायेंगे और इस तरह प्रशासनिक और क़ानूनी कार्यवाही होने से उनके समर्थक कमजोर हो जायेंगे। जैसा कि अवैध गतिविधि में लिप्त लोग प्रशासन दूरी बनाकर रहना चाहते हैं अतः उनके समर्थकों का भी कहना है कि उनके पास तो गाड़ी है नहीं तो फिर सिर्फ प्रशासन और धनी लोगों के लिये अच्छी सड़कें क्यों बनायीं जाये? चूँकि विधि-एवम व्यवस्था भी हमारे सम्विधान में राज्य का ही विषय है अतः बिना उसके सहयोग के हम उस राज्य में सड़क नहीं बना सकते।
2. हमारे देश में कच्चा तेल का उत्पादन हमारी आवश्यकता से एक चौथाई से भी कम होता है अतः अच्छी सड़कें बनने से हमारा कच्चा तेल का आयात बहुत बढ़ जायेगा। बेहतर होगा कि रेल प्रणाली को विकसित किया जाये।
3. हमारी सडकों की गुणवत्ता अभी काफी कम है और उनका जीवन-चक्र लगभग पॉँच साल ही है. अगर हमलोग सड़क बनवां भी लें तो उनकी गुणवत्ता के सुधार के लिये हमें काफी कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे और उन कठोर निर्णयों को उनके तार्किक परिणति तक पंहुचाने में हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली सक्षम नहीं है. अच्छी लेकिन कमजोर सड़कें उग्रवादियों को भी आकर्षित करतीं हैं.
     अटलजी कुछ नहीं बोले। उसी शाम को आयोजित भोजन पर क्लिण्टन ने अटलजी से अपने  न्यू यॉर्क-कैलिफ़ोर्निया राजमार्ग के बारे में उनकी अनुभूति पूछी। अटलजी ने उस राजमार्ग की खूब प्रशंसा की. क्लिण्टन ने बताया कि इस तरह की अच्छी सड़कें हिन्दुस्तान में भी बन सकती है और अमरीका उन सड़कों को बनाने में दिल खोलकर आर्थिक मदद भी करेगा। अटलजी ने बताया कि ऐसी सड़कें भारत में नहीं बन सकती क्योंकि जिस राज्य से सड़क गुजरेगी वहाँ का राजा सड़क का दुश्मन है. क्लिंटन ने बताया कि अमरीका और उसके सहयोगी सभी बाधाओं को दूर कर देंगे; बस आप सिर्फ सड़क बनाने हेतु हामी भर दीजिये। अटलजी ने हामी भर दी.
     अगले दिन भारत और अमरीका के बीच सड़क निर्माण हेतु कई समझौतों पर हस्ताक्षर हो गये. लेकिन इन राजमार्ग निर्माण समझौतों से खण्डूरी साहेब बहुत खुश नज़र नहीं आ रहे थे. अकेले में मौका पाकर खण्डूरी साहेब ने अटलजी से अपनी असहमति जता दी. अटलजी कुछ नहीं बोले पर एक कागज के टुकड़े पर कुछ लिख कर उस कागज के टुकड़े को खण्डूरी साहब को थमा दिये। उस पर लिखा था- "दीवारों के भी कान होते हैं. इसे पढ़ कर कागज नष्ट कर दीजिये". खण्डूरी साहेब आखिर एक फौजी ही थे. तत्काल सब समझ गये. उसके बाद उन्होंने अटलजी से कोई सवाल नहीं किया। प्रवास के अन्तिम चरण में अटलजी से उस साल अमरीका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर भारतीयों के पड़ने वाले प्रभाव पर कई पूछे गये. अटलजी को अमरीकी चुनावों में कोई दिलचस्पी नहीं थी सो उन्होंने अपने ही अन्दाज में जवाब दिया।
     स्वदेश वापस लौटने पर अटलजी अपने जनरल साहब की आशंकाओं को दूर करना चाहते थे, सो उन्होंने जनरल साहब को ओड़िसा की सड़क परियोजनाओं पर अगले सप्ताह एक मीटिंग हेतु अपने आवास पर सुबह में बुलाया। जनरल साहब अपने सभी कार्यों को बहुत तन्मयता से करने के लिये जाने जाते थे. वे समय पर अकेले ही फाइल ले कर अटलजी के आवास पर पँहुच गये. अटलजी एक सरसरी निगाह से फाइल देखे और जनरल साहब को लेकर अपनी बागवानी में पँहुच गये. वहाँ पहुँच कर अटलजी ने जनरल साहब को अपनी सभी आशंकाओं को बताने को कहा. जनरल साहब को लगा कि फाइल तो पीछे ही छूट गया है जिसके आभाव में वे पूरी तरह से ओड़िसा की सड़क परियोजनाओं को नहीं समझा पायेंगे। अतः उन्होंने अटलजी से अपनी फाइल लाने की अनुमति मांगी।
     अटलजी ने जनरल साहब को बताया कि आप बहुत भोले हो, आप पूरे देश के सड़क परिवहन मन्त्री हो न कि किसी राज्य विशेष के. ओड़िसा की सडकों पर मीटिंग तो आपसे मिलने का बहाना था; आप अमरीका प्रवास के दौडान आपके मन में उठी आशंकाओं को बताइये। जनरल साहब सब समझ गये. सबसे पहले जनरल साहब ने बताया कि उन्हें राजनीति नहीं आती. इस पर अटलजी ने बताया कि आपको राजनीति को भी समझनी पड़ेगी; आप अपनी आशंका बताइये। जनरल साहब ने बताया कि जो देश अभी दो साल पहले ही हमारे देश पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाकर हमारी अर्थ-व्यवस्था को चौपट कर देना चाहता था वह अचानक कैसे इतनी दरिया-दिली दिखाने लगा? और यह जानते हुए भी कि हमारे पास कच्चे तेल की कमी है आपने उनसे आर्थिक मदद लेकर अच्छी सड़कें बनवाने के समझौते भी करा दिया।
     अटलजी ने शान्त भाव से उनकी सभी आशंकाओं को दूर किया। उन्होंने बताया कि गठबन्धन की सरकार के चलते वे रेल-व्यवस्था को मजबूत बनाने में अपने को असमर्थ पा रहे हैं. अपने देश की सुरक्षा को मजबूत बनाने हेतु भारी फौजी हथियार और सामान देश के एक कोने से दूसरे कोने में ले जाने हेतु मजबूत सडकों की आवश्यकता होगी। हमारे सभी मिसाइल प्रणाली अभी खुले में पड़े रहते हैं जिन्हे कभी भी हमला कर नष्ट किया जा सकता है. हमें अपनी मिसाइल प्रणाली को सुरक्षित बनाने हेतु पहाड़ों में कई सुरंग भी बनाने पड़ेंगे, जिहे हम सड़क से जोड़कर सुरंग-निर्माण को जायज ठहरा सकते हैं. हम भविष्य में मेट्रो को कई शहरों में बनाकर और बने हुए मेट्रो का विस्तार कर अपनी यातायात प्रणाली को बिजली पर आधारित बनावेंगे। इसी तरह Roll On- Roll Over माल रेलगाड़ी चलाकर उसपर माल लदे ट्रकों को ढोकर काफी डीजल बचा सकते हैं. रेल-प्रणाली का विस्तार और उनका विद्युतीकरण करना पड़ेगा। हम उत्कोच के राक्षस से भी लड़कर अपनी सड़कों का जीवन-चक्र भी सुधारेंगे।
    आप दुनिया भर में होने वाले हाइड्रोजन, सोलर/पवन ऊर्जा और बैटरी पर होने वाले शोध पर नज़र दौड़ावें। हम भी इन पर शोध करावेंगे। हो सकता है भविष्य में हमें इनसे भी मदद मिले। आपकी यह बात सही है कि अच्छी सड़कें हमें दिवालिया बना सकती हैं और यही कुछ विदेशी ताकतें भी चाहती हैं, लेकिन जब हमें अच्छी सड़कें बनाने हेतु विदेशी मदद मिल रही है तो क्यों न हम उन्ही के पैसे और सहयोग से अच्छी सड़कें बनाकर अपनी प्रगति और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करें? विदेशी भी खुश हम भी खुश. उनकी कूटनीति पर उन्हें गर्व है तो हमें भी इस नीति पर गर्व है. हमारी इस नीति का सफल क्रियान्वयन का परिणाम हमारी शान होगी। जनरल साहब नतमस्तक हो गये और अटलजी के बताये मिशन पर तनमन से जुट गये.
नोट:- यह एक काल्पनिक कहानी है. मैंने उक्त दो महान हस्तियों का नाम लेकर भले ही कुछ पाप किया हो, लेकिन कच्चे तेल पर बढ़ रही हमारी अति निर्भरता के खतरों को बताने हेतु मुझे यह पाप करना गलत नहीं लगता। अगर किसी पाठक को मेरी किसी भी बात से ठेस पँहुचती हो तो मैं उनसे क्षमा प्रार्थी हूँ.     
https://Twitter.com/BishwaNathSingh


Comments

Popular posts from this blog

मानकी-मुण्डा व्यवस्था और Wilkinson Rule

एक दादा का अपनी पोती के नाम पत्र

बिहार के पिछड़ेपन के कुछ छिपे कारण!