एक साक्षात्कार में दिखे संस्कार की कहानी; एक बुजुर्ग की जुबानी.

एक बार एक चतुर्थ वर्गीय पद के लिये एक साक्षात्कार का आयोजन हुआ. उस पद के लिये योग्यता किसी भी भारतीय हेतु मिड्ल पास होना, स्वस्थ होना और 18 से 25 वर्ष का होना आवश्यक था. उस समय क्षेत्रीयता का कोई विशेष मुद्दा नहीं था, लेकिन स्थानीय को ही अघोषित रूप से प्राथमिकता देना था. अपने देश में बेरोजगारी के लगभग समानुपाती ही मात्र एक पद हेतु साठ आवेदन प्राप्त हुए. उस पद पर नियुक्ति हेतु उस समय कोई लिखित परीक्षा का आयोजन नहीं होता था.
     चूँकि पद एक और उम्मीदवार साठ थे, अतः तय हुआ कि पहले आवेदकों की चिकित्सीय जाँच करा ली जाये। चिकित्सीय जाँच के बाद 57 उम्मीदवारों को साक्षात्कार हेतु एक ही दिन बुलाया गया. साक्षात्कार लेने वाले तीन अधिकारी थे. साक्षात्कार में आनेवालों में से तीन उम्मीदवारों की पैरवी राजनेताओं के तरफ से और दो की पैरवी उसी इलाके में पदस्थापित अधिकारियों ने की थी. यह भी एक संयोग ही था कि साक्षात्कार लेने वाले किसी अधिकारी का कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपना कोई उम्मीदवार नहीं था.
     साक्षात्कार लेने वालों के सामने धर्म संकट आ गया था कि पैरवी नहीं सुनने पर खुद ही अपने को आसन्न संकट से बचाना था. इसलिये उनलोगों ने साक्षात्कार की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और तर्कपूर्ण बनाने हेतु कोई कसर नहीं छोड़ी। उनलोगों ने तय किया कि प्रत्येक उम्मीदवार से सामान्य ज्ञान के तीन प्रश्न पूछने हैं. इसी बीच उम्मीदवार को परख लेना है. सही उत्तर देने पर तीन अंक, कितना जल्दी उत्तर दिया जाता है उस पर दो अंक, परिस्थिति के अनुसार सवाल के उत्तर पर तीन अंक और इस बीच किये गये व्यवहार पर तीन अंक और दो अंक उसके परिलक्षित व्यक्तित्व पर तय किये गये.
     साक्षात्कार प्रारम्भ हुआ और अच्छी तरह से आगे बढ़ रहा था कि एक उम्मीदवार बिना जूता/चप्पल पहने ही कमरा में दाखिल हुआ. साक्षात्कार मण्डली के प्रमुख ने उस उम्मीदवार से बिना जूता/चप्पल पहन कर आने का कारण पूछा, उस उम्मीदवार ने अदब से जवाब दिया कि वह एक सभ्य घर से है. इस पर प्रमुख महोदय थोड़ा गुस्से में आ गये और बोले कि यहाँ जो लोग जूता पहन कर बैठे हैं वे क्या असभ्य घर से हैं? उम्मीदवार ने बड़े ही सहज भाव से उत्तर दिया कि वह अति साधारण घर से आता है. उसके दादा-दादी और माता-पिता ने जो संस्कार उसे दिये हैं उसके अनुसार अपने से बड़े लोगों के घर जाने पर घर के बाहर ही जूता खोल देना है. अपने परिवार और समाज के संस्कार को निभाते हुए वह कार्यालय कक्ष के बाहर जूता उतार कर अन्दर प्रवेश किया है.
     औपचारिकता निभाते हुए उससे तीन अपेक्षाकृत कठिन प्रश्न पूछे गये. उस उम्मीदवार ने तीनों प्रश्नों का सही उत्तर दिया। उसका प्रतिउत्पन्नमतित्व  भी अच्छा ही था. उसका व्यक्तित्व भी अच्छा ही लग रहा था. उसकी शिक्षा भी मेट्रिक द्वितीय श्रेणी से थी. जब सभी उम्मीदवारों का साक्षात्कार पूरा हो गया तो साक्षात्कार मण्डली में आपसी विचार-विमर्श और चर्चा प्रारम्भ हुई. मण्डली प्रमुख जूता उतार कर आये उम्मीदवार के संस्कार वाले प्रकरण से काफी प्रभावित थे.
     अब एक समस्या स्थानीयता की रह गयी थी. राज्य सरकार ने मौखिक रूप से माना था कि जो परिवार विगत 30 वर्ष से इस राज्य में प्रमाणों के आधार पर रह रहा है उसी को स्थानीय माना जायेगा। लेकिन इस सम्बन्ध में कोई लिखित आदेश राज्य सरकार द्वारा जारी नहीं किया गया था. उक्त संस्कार वाले उम्मीदवार का परिवार इस राज्य में करीब बत्तीस वर्ष से रह रहा था, लेकिन उसके परिवार के पास इसका कोई कागजी प्रमाण नहीं था. हालांकि इस 21 वर्षीय उम्मीदवार का का जन्म और प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा इसी राज्य से हुई थी. उस उम्मीदवार के अनुसार उसके दादा करीब 32 वर्ष पूर्व अन्य राज्य से एक निर्माणाधीन निजी कम्पनी में दैनिक मजदूर का काम करने हेतु आये थे. उनके कार्य से खुश होकर करीब 20 वर्ष पूर्व उन्हें उसी कम्पनी में स्थायी अर्द्ध-कुशल कामगार के रूप में नौकरी मिल गयी, जिसका कागजी प्रमाण है.
    साक्षात्कार प्रमुख के सामने दुविधाजनक स्थिति उत्पन्न हो गयी कि
(क) एक योग्य और संस्कारी उम्मीदवार का चयन किया जाये या पैरवी-पुत्र का?
(ख) सरकार की मौखिक आदेश माना जाये या उक्त संस्कार वाले उम्मीदवार की स्थानीयता की मौखिक बातों का?
अन्त में साक्षात्कार प्रमुख ने अपने मण्डली की लिखित सहमति से अंकों के आधार पर उक्त संस्कार वाला उम्मीदवार का ही चयन किया। आज भी वह संस्कारी चयनित वर्ग-4 का पदधारी अच्छा कार्य कर रहा है और उसके कार्य से सभी खुश हैं लेकिन उक्त साक्षात्कार मण्डली के सभी सदस्यों का स्थानान्तरण उसके चयन के एक माह के अन्दर ही कम महत्वपूर्ण पदों पर दूरस्थ इलाकों में कर दिया गया था.
नोट:- यह ब्लॉग श्रुतिसम्मत बातों पर आधारित है. जानभूझकर मैंने चयनित उम्मीदवार और साक्षात्कार मण्डली के अधिकारियों और पैरवी करनेवालों नाम का उल्लेख नहीं किया है. पाठकों से विनती है कि पूरी कहानी को काल्पनिक ही माना जाये।
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