कुछ नीतियां महँगाई भी बढ़ाती हैं!

मुझे लगता है कि निम्न प्रकार की नीतियों से महँगाई बढ़ती है----
1. बैंकिंग और बीमा क्षेत्रों को अधिक ब्याज दर से लाभ होता है और लोग बेहतर रिटर्न की उम्मीद में इन दोनों में अपना पैसा जमा करते है. जब बैंक और बीमा कम्पनियाँ अधिक ब्याज का वादा करेंगी और देंगी भी तो निश्चित रूप चाहेंगी कि महंगाई बढे ताकि उन्हें कम मूल्य वाला पैसा का भुगतान करना पड़े.
2. शासक दल प्रायः पेशेवर कर्जखोरों का कर्ज अपने राजनैतिक लाभ के लिये माफ़ करते रहे हैं. इससे बैंकों का NPA बढ़ रहा है और इसका बोझ आम जनता पर पड़ रहा है.
3. हमने अपनी अर्थ-व्यवस्था का बहुत ही अधिक डिजलीकरण और डॉलरीकरण कर लिया है. जब-जब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे ईंधन और डॉलर का मूल्य बढ़ेगा तब-तब महँगाई बढ़ते रहती है.
4. हमारे यहाँ काला धन की समानान्तर सरकार नुमा अर्थ-व्यवस्था काम कर रही है. यह व्यवस्था सरकार के अच्छे कार्यक्रमों को भी सफलीभूत नहीं होने दे रही है और महँगाई बढाती है.
5. तस्करी और हवाला कारोबार को कारगर ढंग से न रोकने की नीति अपनायी जाती रही है. इस कारण बड़े पैमाने पर हमारे देश से नगदी कैश, सेक्स और घरेलु कार्य हेतु लड़कियों/औरतों, देश की सुरक्षा और खोज सम्बन्धी जानकारियों आदि की तस्करी दूसरे देशों में हवाला आदि के जरिये होते रही है. इसी तरह सोना, इलेक्टॉनिक सामानों,  आदि की तस्करी दूसरे देशों से हमारे देश में होते रही है. लोग कहते हैं की दोनों तरह की तस्करी महँगाई बढ़ाने में सहायक होती है.
समाज पर अब इन नीतियों के साइड इफेक्ट्स निम्न रूप में दिखाई देने लगे हैं:-
1. लोगों की श्रम-उत्पादकता घट रही है. अपने देश में कार्बोहाइड्रेट से भरपूर अन्न(गेहूँ, चावल, आदि) की खपत बढ़ रही है जबकि प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थ(दाल, दूध, मांस-मछली आदि) का उपयोग घट रहा है. इन दोनों का असर हमारी श्रम-उत्पादकता पर पड़ रहा है. महंगाई आमजनों की थाली से पौष्टिक आहार गायब होकर कुपोषण भी बढ़ा रही है.
2. उत्कोच(Corruption) और Crony Capitalism बढ़ रहा है. इस बिन्दु पर पाठक स्वयं समझदार हैं.
3. जहाँ दस वर्ष पहले एक आदमी कमाता था और चार-पाँच सदस्य का परिवार आराम से खता-पीता था अब वैसे परिवार की महिलाओं को भी छोटे-मोटे काम करने के लिये बाहर निकलना पड़ रहा है.
4. बच्चों की शिक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. आज आम आदमी का रहनुमा कहलाने वाले को अपने मात्र दो बच्चों की सालाना फी करीब पौने चार लाख रुपये देना पड़ रहा है. ऐसे में सामान्य जन के बच्चों को अच्छी शिक्षा से बंचित होना पड़ रहा है.
5. आम-जन के लिये बीमार पड़ना कोई त्रासदी से कम नहीं है.
6. शहरों में स्लम बस्तिओं का आकार बढ़ता ही जा रहा है. यह इस बात का भी द्योतक है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जन-संख्या में वृद्धि के अनुरूप रोजगार के अवसर नहीं बढ़ रहे हैं.
7. महँगाई के चलते हिंसा भी बढ़ रही है. महँगाई के समानुपाती तिलक-दहेज़ में मांग भी बढ़ रही है. लड़की के पिता मज़बूरी में अनाप-शनाप मांग गछ लेते हैं, जिसका खामियाजा दहेज़-प्रताड़ना या दहेज़-मृत्यु के रूप में देखने-सुनने को मिल रहा है. जमीन की बढ़ती महंगाई के लालच में जमीन मालिक/Apartment Builders जमीन रजिस्ट्री में आनाकानी कर रहे है, जिस कारण आये दिन जमीन मालिक/Apartment Builders की हत्याएं हो रही हैं.
8. हमारे देश को तोड़ने के लिये इच्छुक विदेशी ताकतें हमारे परजीवी युवा और बुद्धिजीवियों को बहका कर उनसे गलत काम करवा रहे हैं. इससे उग्रवादी और आतंकवादी घटनायें बढ़ रही हैं.
9. हमारे रेलवे प्रणाली की उपेक्षा और Dirty Oil(Petrol & Diesel) के ज्यादा उपयोग से हवाई क्षेत्र, वाहन निर्माण क्षेत्र, सड़क निर्माण और अन्तर्राष्ट्रीय कच्चे तेल से जुड़े लोग भले ही लाभान्वित हो रहे हों, लेकिन इससे प्रदूषण बढ़ रहा है और पर्यावरण प्रभावित हो रहा है. इसका खामियाजा हमें मौसम के बदलाव के कारण झेलना भी पड़ रहा है.
10. ऋण प्राप्त करने में भी ऋण के लिये इच्छुक व्यक्तियों को कुछ नाजायज खर्च करने पड़ते हैं. इस कारण ब्याज की दर कुल मिलकर और भी ज्यादा हो जाती है. परियोजना के अससफल होने पर ऋणी कर्ज चुकाने में असमर्थ होने लगता है और जिन्दगी/व्यवस्था से निराश और हताश होकर आत्महत्या तक कर ले रहा है.
    किसानों की संख्या इसमें सबसे ज्यादा हो रही है. यह हमारे लिये राष्ट्रीय शर्म की बात है. महँगाई बढ़ाने वाली नीतियों के इन साइड इफेक्ट्स के चलते हमारा पूरा समाज बीमार पड़ रहा है। अब समय आ गया है कि हमारी सरकार महँगाई बढ़ाने वाली उक्त नीतियों पर पुनर्विचार करे.
नोट:-- मैं कोई अर्थ शास्त्री नहीं हूँ. इस आलेख को मैं अपने अनुभव और सुसंगति से मिली जानकारियों के आधार पर लिखा हूँ. आंकड़ों का संकलन मेरे संसाधनों के वश में नहीं है. जिन पाठकों को इससे असहमति हो, वे कृपया इसे बकवास समझकर भूल जायें।   
 https://twitter.com/BishwaNathSingh
      

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