बढ़ती जन-संख्या बेरोजगारी भी बढ़ा रही है


हमारी स्वतन्त्रता के साथ ही हमारी जन-संख्या भी बढ़ रही है. जहाँ 1951 में हम 36 करोड़ थे वहीं 2011 में बढ़कर 121 करोड़ हो गये. पिछले दशक में हमारी जन-संख्या 1.77 प्रतिशत से बढ़ी है. अगर हम जन-संख्या की इसी वृद्धि दर के आधार पर गणना करें तो निम्नलिखित चार्ट के अनुसार वर्त्तमान में हमारी जन-संख्या 134 करोड़ होनी चाहिये(अगर यह गणना गलत लगे तो कृपया सुधारें). लेकिन इस जन-संख्या वृद्धि के अनुपात में हमारे यहाँ रोजगार नहीं बढ़ रहे है. इस बेरोजगारी बढ़ रही है.
 वर्ष            जन-संख्या
2011        1,21,12,10,193 As per Census data
2012         1,23,26,48,613
2013         1,25,44,66,494
2014         1,27,66,70,551
2015         1,29,92,67,620,
2016         1,32,22,64,656,
2017         1,34,56,68,741 Calculated and expected 
इसके अलावे हमारे पडोसी देशों से घुसपैठ के कारण भी हमारी जन-संख्या बढ़ रही है. इस चार्ट को देखने से स्पष्ट है कि दो करोड़ से अधिक नये लोगों को रोजगार चाहिये। इसके अलावे बड़ी संख्या में पहले से ही हमारे युवक-युवतियां रोजगार पाने को प्रयत्नशील हैं. संगठित और असंगठित क्षेत्र दोनों में नियमित भर्ती से उत्पन्न रोजगार सीमित हैं.
रोजगार को प्रभावित करने वाले कुछ कारक 
1. मशीनीकरण:- प्रायः सभी क्षेत्र में मशीनीकरण हो रहा है. खेती हमारे यहाँ रोजगार पैदा करने वाला प्रमुख क्षेत्र माना जाता था. ट्रेक्टर से प्रारम्भ हुआ मशीनीकरण अब हार्वेस्टर तक पंहुच गया है. जहाँ सिचाई के प्रमुख साधन आहर, लाठा, करींग, रेहट आदि थे वहीं अब नहर, मोटर-पम्प, स्प्रिंकलर आदि से सिंचाई हो रही है. सिंचाई के नये साधन में पुराने की तुलना में रोजगार कम है.
रेलवे:- जहाँ एक समय रेलवे में कुल कामगारों की संख्या अठारह लाख पँहुच गयी थी वहीं इतनी अधिक रेलगाड़ियों के बढ़ने के बावजूद अभी रेलवे में कामगारों की संख्या तेरह लाख बतायी जा रही है. यह भी कहा जा रहा है कि वर्त्तमान संख्या अभी भी ज्यादा है. रेलवे में रोजगार की कमी मशीनीकरण के कारण ही हो रहा है. ट्रॉली, ट्रॉली-बैग और पीठ पर ढोये जाने वाले बैग के कारण भी रेल स्टेशनों पर हर साल कुलियों के रोजगार में कमी होते जा रही है.
उत्खनन क्षेत्र में पोकलेन, जेसीबी, पेलोडर आदि के आने से अकुशल रोजगार में कमी आ रही है.
अन्य क्षेत्र भी मशीनीकरण अपना रहे हैं, जिससे रोजगार में कमी आ रही है.
2. आधुनिकीकरण:- प्रायः सभी कार्यालयों में आधुनिकीकरण हो रहा है. जहाँ पहले टाइप किया जाता था वहीं अब कम्प्यूटर से प्रिन्ट किया जा रहा है. जहाँ पहले डाक से रिपोर्ट एवम विवरणी पँहुचाये जाते थे वहीं अब ये सब ऑनलाइन भेजे जा रहे हैं. इसी तरह से तमाम अन्य तरीकों को अपनाकर मशीनीकरण रोजगार के अवसर को कम कर रहा है. डिजिटल इंडिया में अकुशल/अर्द्ध-कुशल कर्मचारियों की संख्या लगातार कम हो रही है. भविष्य में इस प्रक्रिया के और तेज होने की सम्भावना है.
हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में भी आधुनिकीकरण को रहा है. मात्र विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग से गवाही दर्ज होने और आरोपी की पेशी से ही रोजगार की प्रकृति बदल रही है. इसी तरह सम्मन और नोटिस को SMS या ऑनलाइन भेजे जाने की बात भी चल रही है.
3. अन्तर्राष्ट्रीय राजनैतिक परिस्थितियां:- अरब देशों में कच्चे तेल के मूल्य में कमी आने से वहाँ की राजनीति बदल रही है. इससे वहाँ हमारे कामगारों को रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं. वहाँ पर सभी तरह की गाड़ियाँ चलाने वाले ड्राइवरों की अच्छी माँग थी. वहाँ की राजनीति के चलते इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं.
इराक, सूडान, लीबिया, यमन आदि देशों में व्याप्त अशान्ति भी हमारे रोजगारों को बाधित कर रही है.
4. स्वचालन और रोबोट का प्रचलन:- हमारे उद्योग में भी स्वचालन और रोबोट प्रचलन में आ रहे हैं. इससे कुछ पुराने कम दक्षता वाले कामगारों की छंटनी हो रही है.
5. ऑनलाइन कारोबार और डिजिटल पेमेंट:- धीरे-धीरे ऑनलाइन कारोबार और डिजिटल पेमेन्ट में प्रगति हो रही है. इससे बड़ी संख्या में एटीएम मशीन अनुपयोगी होते जायेंगे। इन दोनों क्षेत्र में अकुशल या अर्द्ध-कुशल कामगारों की प्रगति के अनुरूप ही कम होते जायेगी।
    हमारे बेरोजगारों के लिये उपरोक्त पांचों कारक अवांछित शैतान हैं. इन शैतानों से हमारे कम कुशल कामगार आसानी से बच नहीं सकते। अगर इन कारकों को हम जबरदस्ती रोकेंगे तो हम सब तरफ से पिछड़ भी सकते हैं। इन शैतानों से बचने के लिये जन-संख्या नियन्त्रण एक बेहतर विकल्प है. हमें अपनी जन-संख्या उतनी ही बढ़ानी चाहिये जितनों को हम उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार दे सकें।
    हमारे यहाँ बेरोजगारी का आलम यह होते जा रहा है कि सरकारी चपरासी के पद पर भी काफी पढ़े-लिखे लोग अपना आवेदन दे रहे हैं. हर जगह रोजगार पाने के लिये धक्का-मुक्की हो रहा है. हमारे बहुत से लोग अपनी योग्यता के अनुरूप अपना रोजगार नहीं पा रहे हैं. बेरोजगारी घरों में कलह भी पैदा कर रही है. कुछ बेरोजगार तो निराश हो कर गलत रास्ते पर भी अपना कदम बढ़ा रहे हैं. इससे समाज में अशान्ति भी फ़ैल रही है.
    हमारे प्रगतिशील विचार वाले नेताओं ने कौशल विकास केन्द्र के माध्यम से दक्ष कामगार बढ़ाने की बात की जा रही है. दक्ष शिक्षकों, कामगारों, इंजीनियरों, चिकित्सकों, प्रबन्धकों की अच्छी माँग विदेशों में है. इन क्षेत्रों में अभी भी आशा की किरण दिखायी दे रही है. मुद्रा, इन्दिरा आवास, शौचालय निर्माण, मनरेगा, ढांचागत निर्माण आदि से दो करोड़ नये रोजगार के अवसर पैदा किये जाने की बात की जा रही है. लेकिन इन योजनाओं में कथित फण्ड डायवर्सन से उचित संख्या में रोजगार के अवसर उत्पन्न नहीं हो रहे हैं. 
Image provided by @gyan198 

    यह भी सत्य है कि अगर हम खेती में मशीनीकरण नहीं अपनाते तो बढ़ती जन-संख्या हेतु पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं करा पाते। अन्य क्षेत्रों में मशीनीकरण ही हमें पिछड़ने से रोकते रहा है. जहाँ मशीनीकरण और आधुनिकीकरण से हमारे यहाँ अकुशल लोगों को रोजगार मिलने में कठिनाई हो रही है वहीं दूसरी ओर अर्द्ध कुशल और कुशल लोगों को पहले से निरन्तर ज्यादा रोजगार में वृद्धि हो रही है. कुलमिलाकर हम अपनी जान-संख्या के अनुपात में संसाधन उत्पन्न नहीं कर पा रहे हैं. अधिक मात्रा में बढ़ती बेरोजगारी हमारे देश में धनी और गरीब के बीच की खाई को भी बढ़ा रही है. इस तरह हम देखते हैं कि हमारी बढ़ती जन-संख्या बेरोजगारी भी बढ़ा रही है.


Comments

Popular posts from this blog

मानकी-मुण्डा व्यवस्था और Wilkinson Rule

एक दादा का अपनी पोती के नाम पत्र

बिहार के पिछड़ेपन के कुछ छिपे कारण!