भारत और म्यांमार के बीच मजबूत सम्बन्ध समय की माँग है


    म्यांमार(पूर्व का बर्मा) हमारा पूर्वी पडोसी देश है. पहली अप्रैल 1937 को ब्रिटिश इंडिया से बर्मा को अंग्रेजों ने अलग कर उसपर अलग से शासन शुरू किया। बर्मा ने 1948 में अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त की अभी म्यांमार में शान्ति के लिये नोबेल पुरष्कार प्राप्त श्रीमती औंग सान सू की का शासन चल रहा है. भारत और म्यांमार में काफी समानतायें हैं. इन दोनों देशों के बीच का मजबूत सम्बन्ध समय की मांग है. इन दोनों देशों में अभी शासन की प्रजातान्त्रिक व्यवस्था चल रही है. इन दोनों देशों के बीच का सम्बन्ध दो हजार वर्ष से भी पुराना है. सम्राट अशोक के ज़माने से भारत से लोग बर्मा जाने लगे थे. अभी म्यंमार बौद्ध प्रधान देश है जिसकी जड़ें भारत में जमी हुई हैं.
     मुग़ल वंश का अन्तिम बादशाह बहादुर शाह द्वितीय ने अपनी अन्तिम सांस बर्मा में ली थी. उनका कब्र वहाँ के रंगून शहर के पास ही स्थित है. द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सेना में शामिल बहुत से भारतीय सैनिकों ने जापानी सैनिकों के समक्ष समर्पण कर आज़ाद हिन्द सेना में शामिल हो गये थे. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में आज़ाद हिन्द सेना ने अंग्रेजी सेना को हराते हुए मणिपुर पँहुच कर अपना झण्डा फहरा दिया था. आज भी वर्तमान के म्यांमार में हमारे हजारों सैनिक के अवशेष पड़े हुए हैं. म्यांमार में युद्ध कर चुके सैनिक परिवारों की यादें म्यांमार से जुडी हुई हैं.

पर्यटन 

 म्यांमार एक बौद्ध प्रधान देश है और बौद्धों का सबसे पवित्र तीर्थ-स्थल भारत के बिहार राज्य के बोध गया में स्थित है. प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में बौद्ध श्रद्धालु धार्मिक पर्यटन पर बोध गया आते हैं. भविष्य में भी बड़ी संख्या में बौद्ध श्रद्धालु हर साल भारत आते रहेंगे। यदि त्रिपुरा होते हुए म्यांमार की राजधानी यांगोन को रेल-मार्ग से जोड़ दिया जाये तो निम्न-मध्यम आय वाले श्रद्धालु भी म्यांमार से और अधिक संख्या में भारत आ पायेंगे। इस बिन्दु पर दोनों देशों के बीच निकट का सहयोग आवश्यक है.

आयात-निर्यात

भारत अपने यहाँ से इंजीनियरिंग का का सामान म्यांमार को निर्यात हैं और कुछ कृषि उत्पादों का म्यांमार से आयात करते हैं. इन दोनों देशों की भौगोलिक स्थिति को देखने से पता चलता है कि सौर ऊर्जा से उत्पादित बिजली का आदान-प्रदान कर करीब दो घण्टे तक के लिये बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है. दोनों देश अपना परस्पर व्यापार बढाकर भी अपने द्विपक्षीय सम्बन्ध मजबूत कर सकते हैं. चावल, दाल आदि दोनों देशों में प्रचुरता से उपयोग में लाये जाते हैं. दोनों देश के बीच कृषि के क्षेत्र में संयुक्त रूप से शोध कर भी सहयोग बढ़ाने की पूरी सम्भावना है. दोनों देशों में FCI का गोदाम बढाकर दोनों देशों में खाद्यान्नों के मूल्य में कुछ सीमा तक स्थिरता लायी जा सकती है.

उग्रवाद और आतंकवाद की समस्या

 भारत और म्यांमार दोनों उग्रवाद और आतंकवाद की समस्या से पीड़ित हैं. उग्रवादी और आतंकवादी भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में हिंसक कार्यवाई के बाद म्यांमार के जंगलों में पनाह पा लेते हैं. भारत के सुरक्षा बल म्यांमार के सहयोग से सीमावर्ती इलाकों में पूर्व में कार्यवाई कर चुके हैं. इस समस्या से निपटने के लिये दोनों देशों के बीच का निकट का सहयोग और तालमेल आवश्यक है.  
    बांग्लादेशियों के बाद रोहंगिया लोग भी बड़ी संख्या में म्यांमार से आकर भारत के विभिन्न जगहों में बस रहे हैं. कुछ लालची नेताओं के लिये रोहंगिया लोग एक मजबूत वोट बैंक बन रहे हैं. हमारे सम्बन्धित अधिकारी ऐसे नेताओं के प्रभाव में आकर रोहंगिया लोगों को हर तरह से मदद कर रहे हैं. भारत तो पहले से ही अपनी जन-संख्या के बोझ तले दबा जा रहा है. हमारे सरकारी अस्पतालों और ट्रेनों में बढ़ती भीड़ इसका जीता-जागता प्रमाण है. रोहंगिया लोगों से म्यांमार के लोग और वहाँ की सरकार भी परेशान है. रोहंगिया लोगों की समस्या का समाधान भारत और म्यांमार के बीच सम्बन्ध को मजबूत बनाकर किया जा सकता है. म्यांमार के रखाइन प्रान्त में रोहंगिया लोगों की सबसे ज्यादा आबादी है.
    कुछ लोगों का यह भी मानना है कि म्यांमार के रोहंगिया बहुल रखाइन प्रान्त में किसी साजिश अन्तर्गत अशान्ति पैदा की जा रही है. वहाँ की अशान्ति का बहाना बनाकर रोहंगिया समुदाय के लोग बड़ी संख्या में भारत आ रहे हैं. बतायी जा रही है कि रोहंगिया लोगों की संख्या पूरे भारत में पैंसठ हजार को पार कर गयी है. उनका आना अभी भी जा रही है. कुछ रोहंगिया लोग यहाँ पर अवैध गतिविधियों में भी लिप्त पाये गये हैं. यह बड़ी अजीब बात है कि जब शान्तिप्रिय बौद्ध लोगों के साथ रोहंगिया समुदाय के लोग नहीं रह सकते तो वे लोग परदेश में शान्ति से कैसे रह पायेंगे। हमारी सरकार को इस सम्वेदनशील रोहंगिया समस्या से गम्भीरतापूर्वक निपटना चाहिये। संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी संगठन को भी इस मुद्दे पर सकारात्मक कार्यवाई करनी चाहिये।    .

भारत और नेपाल के बीच सम्बन्धों में सुधार समय की माँग है

    पिछले बहुत वर्षों से कोई भारतीय प्रधान मन्त्री म्यांमार की यात्रा पर नहीं गये हैं. लगभग यही स्थिति म्यांमार के भी राष्ट्राध्यक्ष की रही है. ऐसी स्थिति में हमारे लोकप्रिय प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के वर्तमान म्यांमार यात्रा से बहुत उम्मीदें हैं.  अभी शान्ति के लिये नोबेल पुरष्कार प्राप्त श्रीमती औंग सान सू की म्यांमार की स्टेट कौंसिलर( हमारे देश के प्रधान मन्त्री के समतुल्य) के पद पर सत्तासीन हैं. उम्मीद है कि वे भी निकट भविष्य में हमारे देश की राजकीय यात्रा पर यायेंगी। उनके भारत आने से हमारे सम्बन्ध म्यांमार से और सुदृढ़ होगा।
    किसी भी देश से सम्बन्ध बढ़ाने या मजबूत करने हेतु उस देश से सम्वाद अति आवश्यक है. मित्रवत म्यांमार हमारी सुरक्षा और हमारी आर्थिक समृद्धि हेतु आवश्यक है. जब हमारे राजनेता मयंमार जायेंगे नहीं तो वहाँ के राजनेता हमारे यहाँ कैसे आवेंगे। पुरानी कहावत है कि ताली दोनों हाथ से ही बजती है. किसी न किसी को तो पहल करनी ही पड़ेगी। ख़ुशी की बात है कि इस बार पहल हमारे लोकप्रिय प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदीजी ने की है. अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री योगी आदित्यनाथजी ने म्यांमार की यात्रा की है. यह वहाँ से सम्बन्ध सुधार में एक सार्थक पहल है.
नोट:- यह ब्लॉग मेरी कुछ व्यक्तिगत जानकारी और Public Domain में उपलब्ध जानकारी पर आधारित है. पाठकों की खट्टी-मीठी टिप्पणी का सदैव स्वागत रहेगा। 

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