Thanks और Sorry का प्रभाव भी मतदान पर पड़ता है


   अंग्रेजों ने हमें अपनी भावना को व्यक्त करने हेतु Thanks और Sorry के रूप में दो शक्तिशाली शब्द दिये हैं. बड़े और शरीफ लोग इन दोनों शब्दों का उपयोग बड़े पैमाने पर करते हैं. अब तो इन दोनों शब्दों का उपयोग मतदान के समय भी किया जाने लगा है. सभी अच्छे कार्यों की चर्चा खूब की जाती है और इससे सरकारी नेताओं की खूब बड़ाई होती है. किसी अच्छे कार्य का श्रेय लेने की होड़ सी लग जाती है. बड़े नेताओ के चाटुकार लोग तो इस अवसर का खूब लाभ उठाते हैं. इसके विपरीत कार्य करने वाले कनीय नेता और अधिकारी चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं. श्रेय लेने वालों और दिलाने वालों को खूब Thanks मिलता है. उसी तरह अपने किये गये वादों को पूरा नहीं किये जाने पर Sorry बोला जाता है और उन्हें पूरा करने हेतु और अधिक समय की मांग की जाती है. यही सिलसिला चुनाव दर चुनाव चलते रहता है.
    जब अटलजी ने परमाणु परीक्षण कराये थे तो बड़े लोगों ने उनकी खूब प्रशंसा की थी. जब उन्होंने अच्छी सड़कें बनवाई तब गाड़ी-मालिक और उनके उपयोग करने वालों ने उनकी खूब तारीफ की थी. अच्छी सड़कों के पास की जमीन की उपयोगिता और उसी अनुरूप कीमत भी काफी बढ़ गयी थी. सड़क बनने से उनके लाभार्थियों ने अटलजी की खूब प्रशंसा की थी. अटलजी को बड़ी मात्रा में Thanks मिले थे. बढ़ती प्रशंसा और थैंक्स ने अटलजी की लोकप्रियता बढ़ाने हेतु उनके अधीन के नेताओं ने इससे सम्बन्धित विज्ञापनों की भरमार कर दी. अख़बार देखिये; टीवी देखिये; सड़क किनारे और चौक-चौराहे पर लगे बड़े-बड़े बोर्ड देखिये विज्ञापन ही विज्ञापन।जहाँ देखिये वहीँ विज्ञापन।
    ऐसे कथित रूप से विज्ञापन के Professionals ने अपने व्यापारिक क्षेत्र की प्रचलित "Feel Good Factor" नाम की शब्दावली को राजनीति में भी खूब प्रचलित करा दी. राजनेता इस नये शब्दावली से बड़े खुश होने लगे. कुछ धुरन्धर राजनेता अपने चहेते सर्वेक्षण कम्पनियों के माध्यम से "Feel Good Factor" नाम की शब्दावली की तरह-तरह से व्याख्या कराते हुए चुनाव के सम्भावित परिणाम की व्याख्या करायी। टीवी वालों ने भी चुनावी सर्वेक्षण परिणाम को खूब दिखाया। इस तरह से सभी तरह के प्रचार माध्यमों ने और उनसे जुड़े लोगों ने खूब कमाई की. प्रथम और द्वितीय पंक्ति के सत्ताधारी नेताओं ने अब अपने ही पार्टी के तृतीय स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा प्रारम्भ कर दी.
    कुछ लोगों को लगा कि विज्ञापनों और धरातल पर दिखे कार्यों में काफी अन्तर है. इस अन्तर ने दबी जबान से निष्पक्ष लोगों को आलोचना का भी अवसर दे दिया। जब मतदान आया तो लाभार्थी लोगों ने मान लिया कि अटलजी और उनकी पार्टी की जीत पक्की हो गयी है और मतदान के दिन वे लोग मतदान केन्द्र पर जाने के बजाये अपने घरों पर ही रहकर Thanks कहना उचित समझा। उसी तरह लाभ की उम्मीद लगाये लोगों में निराशा पनपने लगी. ऐसे लोगों में से कुछ ने या तो अपने घरों या अपने कार्यस्थलों पर पर रहकर Sorry बोलना ही उचित समझा। इस श्रेणी के बहुतों ने गुस्सा में आकर विरोधियों को वोट दे दिया। उस मतदान में Thanks और Sorry ने अपनी खूब भूमिका निभायी। चुनाव परिणाम ने प्रखर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया।
    कुछ सीमा तक यही स्थिति UPA-2 के चुनाव के समय भी रही. उनकी आर्थिक नीतियों के कारण सोना और जमीन-मकान की कीमत आसमान छूने लगी थी. सोनधारकों और जमीन/मकान के मालिकों तथा उनसे लाभान्वित लोगों ने तत्कालीन प्रधान मन्त्री डॉ मनमोहन सिंह को खूब Thanks दिया। लेकिन Thanks देने वालों ने उनके दल को वोट देना उचित नहीं समझा। इसके विपरीत वैसे मतदाता जिन्हे कोई अपेक्षित लाभ नहीं हुआ उन्होंने UPA-2 के उम्मीदवारों को मतदान में Sorry बोल दिया।
    आज एक बार फिर तेजी से प्रगति करता हुआ उड्डयन क्षेत्र, स्मार्ट सिटी, बुलेट ट्रेन और उनसे लाभ की आशा लगाये लोग राजनेताओं को खूब Thanks दे रहे हैं. उसी तरह OROP, सातवां वेतन आयोग आदि तमाम सरकारी निर्णयों से लाभान्वित लोग भी खूब Thanks दे रहे हैं.
    इसके विपरीत रोजगार की उम्मीद लगाये लोग अपने रोजगार प्राप्त करने हेतु खूब संघर्ष कर रहे हैं. सामान्य लोग, जिनकी संख्या लगभग पचपन प्रतिशत बतायी जा रही है, अपने-अपने कार्यों से सरकारी अस्पतालों, स्कूलों, थानों और अन्य कार्यालयों के चक्कर पे चक्कर लगा रहे हैं. सुशासन के नाम पर जिनका काम हो जा रहा है वे तो राजनेताओं की खूब प्रशंसा कर रहे हैं. लेकिन जिनका कार्यालयों के चक्कर लगाते-लगाते चप्पल घिस जा रहे हैं अपने किस्मत को ही दोष दे रहे हैं. ऐसे लोग जल्दी सुशासन आने की उम्मीद भी लगाये बैठे हैं.
    पहले बड़े लोग ही Thanks और Sorry के माध्यम से अपनी कृतज्ञता को अभिव्यक्त करते थे. लेकिन अब छोटे लोग भी बड़े लोगों का अनुशरण करते हुए इन दोनों शब्दों का उपयोग कृतज्ञता को अभिव्यक्त करने में कर रहे हैं. ये दोनों शब्द अभियक्ति की स्वतन्त्रता के परिधि में  आते हैं. हम सभी को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का सम्मान करना चाहिये।
    विगत चुनावो के मतदान में तो Thanks और Sorry का प्रभाव पड़ने की बात पर भी चर्चा हो रही है. लोग यह भी बताते हैं कि कार्य पूरा हो जाने पर Thanks बोलने का यह अर्थ हुआ कि कृतज्ञता प्रकट कर दी गयी. अब उनसे आगे कोई उम्मीद नहीं रखना चाहिये। कुछ कृतज्ञ नेता अपनी जीत का श्रेय अपने कार्यकर्ताओं और अपने क्षेत्र के मतदाताओं को देते हुए Thanks बोलते हैं. लेकिन अधिकांश विजयी नेता अपने क्षेत्र के  मतदाताओं को Thanks बोलने के बदले अपने कुछ सक्रीय कार्यकर्त्ता और चाटुकार लोगों के साथ विजय जुलुस निकालना ज्यादा पसन्द करते हैं.
    उसी तरह जिनका कार्य या उम्मीद पूरी नहीं हुई उनके लिये राजनेताओं द्वारा Sorry बोले जाने वाली औपचारिकता की पूर्ति करने की प्रतीक्षा करना अपना समय व्यर्थ करने के समान मान रहे हैं. Sorry शब्द का खेल भी निराला है. भद्रजन कोई छोटी गलती हो जाने पर सामने वाले को Sorry बोलकर अपना शिष्टाचार निभाते हैं. अगर डॉक्टर साहेब रोगी के प्रियजनों को Sorry बोल दें तो रोगी की जिन्दगी का खेल समाप्त समझा जाता है.
    लेकिन अभी मतदाता में अपने नापसन्द उम्मीदवारों को मतदान पूर्व Sorry बोलने के शिष्टाचार का चलन प्रारम्भ नहीं हुआ है. अगर मतदाता अपने नेताओं को Sorry बोल दे तो समझिये उनकी जीत की आशा क्षीण हो गयी. चतुर मतदाता Sorry बोलने की औपचारिकता अपने नापसन्द नेताओं के विरुद्ध मतदान कर निभाते हैं. अब तो समय ही बतावेगा कि अगले मतदान में कितने लोग Thanks बोलकर उस दिन अपने घरों में पिकनिक मनाते हैं या मतदान करने का कष्ट उठाते हैं. उसी तरह समय ही बतावेगा कि Sorry बोलने वाले किस तरह से मतदान में अपनी औपचारिकता निभाते हैं. चाहे जिस रूप में हो Thanks और Sorry का प्रभाव मतदान पर पड़ना निश्चित है.
नोट:- इस ब्लॉग के विचार मेरे अपने हैं. मैं इस विचार के मतभिन्नतावादियों का सम्मान करता हूँ. साथ ही सभी पाठकों की खट्टी-मीठी टिप्पणियों का सदैव स्वागत रहेगा।      
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